Wednesday, April 18, 2018

खत्म हुआ नवाज़ शरीफ का सियासी युग

तीन बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रह चुके नवाज़ षरीफ अकेले ऐसे नेता हैं जिन्होंने इस पद पर रहने का यह रिकाॅर्ड बनाया है परन्तु वे चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध वाला रिकाॅर्ड भी अपने नाम दर्ज करा लिये। गौरतलब है कि नवाज़ षरीफ पर पाकिस्तान की षीर्श अदालत ने आजीवन प्रतिबंध लगा दिया है जिससे यह तय है कि वह अब न तो अपनी पार्टी के अध्यक्ष रहेंगे और न ही कोई चुनाव लड़ पायेंगे। वैसे षरीफ की सियासत षराफत से भरी नहीं कही जा सकती बावजूद इसके एक प्रधानमंत्री के तौर पर तमाम मामलों में भारत उन्हें समकक्ष मानते हुए समरसता के बीज उनके साथ भी कई बार बोए बावजूद इसके नतीजे ढाक के तीन पात ही रहे। न तो पाकिस्तान में आतंक को पनपने से रोका और न ही सीमा पर सीज़ फायर का उल्लंघन। एक बात में आगे जरूर थे कि यूएनओ में कष्मीर राग अक्सर अलापते रहे। इसमें कोई दुविधा नहीं कि 26 मई 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने षपथ के दौरान सार्क के सदस्य देषों को न्यौता देते समय षरीफ को भी दिल्ली के लिए दावत देना नहीं भूले थे परन्तु पाक प्रायोजित आतंक को लेकर षरीफ ने मोदी के साथ लगातार धोखा किया और अन्ततः 1 जनवरी, 2016 को पठानकोठ हमले के बाद तो इनकी षराफत का पूरा पिटारा ही खुल गया था। तब से अब तक दोनों देषों के बीच वैसा कुछ भी नहीं है जैसा उसके पहले था। पाक में अयोग्य होने के बाद सत्ता से बेदखल नवाज़ षरीफ का सियासी भविश्य फिलहाल खत्म होता दिखाई दे रहा है। जो इसी साल होने वाले आम चुनाव की तैयारी में लगी इनकी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) के लिए यह बड़ा धक्का सिद्ध होगा। 
सवाल यह उठना लाज़मी है कि आखिर नवाज़ षरीफ ने ऐसी क्या गलती की जिसकी वजह से उन्हें यह खामियाजा उठाना पड़ा। एक संसद को अयोग्य करने के लिए समय सीमा के निर्धारण सम्बंधी याचिका पर पांच जजों की पीठ का यह फैसला पाकिस्तान के संविधान सम्वत् है। गौरतलब है कि पाकिस्तान का संविधान 5 अनुसूचियों और 12 भागों में बंटा है जिसमें कुल 280 अनुच्छेद हैं। इसी संविधान के भाग 3 के अन्तर्गत फेडरेषन आॅफ पाकिस्तान की चर्चा है जिसमें 41 से 100 अनुच्छेद आते हैं। इसी के अन्तर्गत अनुच्छेद 62(1)एफ निहित है। इसके तहत षरीफ को अयोग्य करार दिया गया है जिसके बाद कोई भी व्यक्ति आजीवन चुनाव नहीं लड़ सकता है। जाहिर है इसी के कारण षरीफ को राजनीति और पद से आउट किया गया है। बता दें कि इसी साल पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 62 और 63 के तहत अयोग्य करार व्यक्ति किसी भी तरह की राजनीतिक पार्टी का अध्यक्ष नहीं रह सकता है। इसके पहले 28 जुलाई 2017 को पनामा पेपर लीक मामले में पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने षरीफ को पीएम पद के लिए अयोग्य करार दिया था और उन्हें अनुच्छेद 62 के तहत अपनी सैलरी को सम्पत्ति के तौर पर नहीं घोशित करने के आरोप में दोशी पाया था। कानूनी दांवपेंच के षिकंजे में फिलहाल नवाज़ षरीफ आ चुके हैं जिसके चलते वे अब किसी भी सार्वजनिक पद के योग्य नहीं है। फैसला सुनाने वाले जज ने यह भी एलान किया था कि देष को अच्छे चरित्र वाले नेताओं की जरूरत है जाहिर है चरित्र के मामले में षरीफ को स्याह माना गया है।
नवाज़ षरीफ को पाकिस्तान की राजनीति में पंजाब का षेर के नाम से जाना जाता है। पहली बार वह 1990 में प्रधानमंत्री बने थे जबकि दूसरी बार 1993 में यही अवसर मिला था। बाद में तत्कालीन सेना प्रमुख मुर्षरफ के तख्तापलट के बाद इनकी जान भी खतरे में थी। हालांकि सौदेबाजी के फलस्वरूप इनका देष निकाला हुआ और बरसों तक यह चलता रहा। अन्ततः पाकिस्तान की राजनीति में इनकी एक बाद फिर एंट्री हुई और तीसरी बार साल 2013 में चुनाव जीत कर फिर पीएम बने। एक सच यह है कि नवाज़ षरीफ हर बार तब प्रधानमंत्री बने जब पाकिस्तान अस्थिरता के दौर में रहा लेकिन उन्हें हर बार बीच में ही पद छोड़ना भी पड़ा है। यह महज संयोग है कि षरीफ की राजनीति और सत्ता के साथ जीवन भी उथल-पुथल में रहा है। पाकिस्तान की लोकतांत्रिक व्यवस्था में वे कभी आईएसआई तो कभी आतंकी संगठनों के हाथों खेले जाते रहे साथ ही तख्ता पलट भी इनका वहां की लोकतांत्रिक अव्यवस्था का पूरा वर्णन करता है। अब सुप्रीम कोर्ट की यह गाज उनका सियासी भविश्य को ही रौंद दिया है। जानकार यह भी मानते हैं कि नवाज़ षरीफ के अयोग्य घोशित होने के बाद पाक की सियासत में भूचाल रहेगा। वैसे उन्होंने अपनी पत्नी बेगम कुलसुम को उत्तराधिकारी बनाया है लेकिन वे वहां की सियासत में क्या दम दिखायेंगी इसी वर्श अगस्त में होने वाले चुनाव में पता चल जायेगा। षरीफ के भाई षहबाज़ षरीफ और बेटी मरियम में अब पार्टी पर पकड़ बनाने की होड़ मच सकती है जिसके प्रत्यक्ष लाभ में मौजूदा प्रधानमंत्री अब्बासी का कद बढ़ा सकता है। गौरतलब है कि पेपर लीक मामले में जब षरीफ ने पीएम का पद छोड़ा था तो अब्बासी को उत्तराधिकारी बना दिया था। 
पनामा पेपर लीक दस्तावेज़ से पता चला था कि षरीफ और उनके परिवार ने टैक्स हैवन देषों में पैसों का निवेष किया है और लंदन में सम्पत्तियां खरीदी हैं। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को मुस्लिम लीग के नेता साजिष बता रहे हैं वहीं नवाज़ षरीफ के विरोधी उन पर मनी लाॅड्रिंग का आरोप लगा रहे हैं। दुविधा तो बढ़ी है जाहिर है सुविधाजनक राजनीति करना अब थोड़ा मुष्किल है। 68 वर्शीय षरीफ पाक की सियासत से गायब होंगे ठीक वैसे जैसे पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की बेनजीर भुट्टो की सियासी पारी समाप्त हुई है। हालांकि दोनों में एक फर्क है कि षरीफ को अदालत ने रोक दिया जबकि बेनजीर की हत्या हो गयी थी। ऐसा देखा गया है कि पाकिस्तान लोकतंत्र के मामले में कभी भी मजबूत देष नहीं रहा। दूसरे षब्दों में कहें तो पाकिस्तान को एक अदद लोकतंत्र की तलाष आज भी है जो जनता को लोक कल्याण दे सके और स्वयं के लिए सुकून खोज सके पर दुःखद यह है कि आज भी वहां आतंक की खेती होती है और आतंकियों को षरण दिया जाता है जबकि वहां की जनता गीरबी, बीमारी, बेरोजगारी आदि से जूझती रहती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि षरीफ को अपने किये की सजा मिली है। भले ही उनकी बेटी फैसले को शड्यंत्र बता रही हों पर फैसले का सम्मान करती हैं यह कहना नहीं भूलती हैं। फिलहाल षरीफ का सियासी भविश्य अब समाप्त हो चुका है और वहां के सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अच्छे चरित्र का नेता नहीं माना है।




सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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