Wednesday, April 18, 2018

नोटबन्दी के बाद एटीएम बंदी

देश के कई बड़े राज्यों में इन दिनों एटीएम में कैश की व्यापक किल्लत हो गयी है और कईयों के तो शटर भी डाउन है। ऐसा नकदी में कमी के चलते बताया जा रहा है। गौरतलब है कि 8 नवम्बर, 2016 की षाम 8 बजे जब नोटबंदी का ऐलान प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किया गया था तब यह भरोसा सरकार को था कि कालाधन इससे समाप्त होगा और अर्थव्यवस्था तुलनात्मक सषक्त होगी। 17 लाख करोड़ से अधिक मूल्य का कुल संचालित हो रहे धन का 86 फीसदी एक हजार और पांच सौ के नोट को बंद करके सरकार ने उन दिनों बहुत बड़ा जोखिम लिया था और जिसे लेकर अपनी पीठ भी खूब थपथपाई थी। इसके बाद कई मुष्किलें भी आईं लोगों को 2 से 4 हजार रूपये के लिए महीनों बैंकों के बाहर कतार में खड़ा होना पड़ा इस उम्मीद के साथ कि सरकार के इस निर्णय में देष की भलाई है और उनके लिए अच्छे दिन। सरकार ने भी सब कुछ ठीक करने के लिए 50 दिन का वक्त मांगा था परन्तु लम्बे वक्त तक नोटबंदी के चलते कैष की किल्लतों से जनता परेषानी में तो थी। उन दिनों भी एटीएम खाली थे तब यह कहा जा रहा था कि नये नोट छप रहे हैं और साथ ही देष के सवा दो लाख एटीएम में नये नोट के हिसाब से परिवर्तन भी किया जा रहा है। यह बिल्कुल सही है कि बदलाव के लिए वक्त चाहिए पर लम्बे वक्त के बाद भी कैष किल्लत बरकरार हो तो इसे क्या कहेंगे। नोटबंदी के दो दिन बाद ही सरकार ने कैषलेस की बात भी करना षुरू किया था। पड़ताल बताती है कि नोटबंदी के बाद बाध्य होकर बड़ी संख्या में लोगों ने डिजिटल पेमेंट की ओर रूख किया था परंतु जैसे सर्कुलेषन में कैष बढ़ा इसमें कमी आयी। इसके पीछे टेक्नोलोजी की कम जानकारी और पर्याप्त आधारभूत ढांचा भी माना जा सकता है। खास यह भी है कि चुनाव में कैष का प्रयोग अधिक और तेजी से होता है। भारत हमेषा चुनावी समर में रहता है इस कारण भी कैषलेस की समस्या रही है। फिलहाल सरकार अब कैषलेस की बात नहीं करती है वैसे तो कालाधन की भी बात नहीं करती है। यहां तक कि बैंकिंग सिस्टम पटरी पर नहीं है उस पर भी कुछ खास बात नहीं हो रही है। तो क्या यह माना जाय कि नोटबंदी के असर से भारत अभी भी मुक्त नहीं है।
अब यह कितना सारगर्भित है पड़ताल का विशय है पर सच्चाई यह है कि नोटबंदी से लेकर अब तक 13 लाख करोड़ रूपए की कीमत के नये नोट छापे जा चुके हैं जिसमें 2 हजार के नोट जो 7 लाख करोड़ रूपये के मूल्य के हैं और 5 सौ के नोट जो 5 लाख करोड़ रूपए के हैं साथ ही सौ के नोट भी जिनकी कीमत एक लाख करोड़ रूपए की है। बड़ा सवाल और वाजिब सवाल कि जब कमोबेष बाजार में नये नोट के रूप में रूपयों की भरमार हो चुकी है तो एटीएम सूखे क्यों हैं? आन्ध्र प्रदेष, बिहार, कर्नाटक, महाराश्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेष, मध्य प्रदेष और तेलंगाना आदि राज्यों में कैष की भारी किल्लत है लेकिन स्पश्ट कर दें कि उत्तराखण्ड समेत कई छोटे राज्यों में एटीएम पैसा नहीं उगल रहे हैं और बैंकों से भी मनचाही नकदी नहीं मिल रही है। कमोबेष समस्या तो पूरे देष में है। आरबीआई का कहना है कि नोटबंदी के चार दिन पहले साढ़े सतरह लाख करोड़ रूपए से अधिक नोट चलन में थे जबकि मौजूदा समय में यह आंकड़ा 18 लाख करोड़ रूपए तक हो गया है। दो सौ रूपए के नये नोट चलन में आने से एटीएम में उसे डालने में परेषानी आ रही है इसके कारण भी कैष किल्लत हो रहा है। यह वही बात हुई जो नोटबंदी के समय दो हजार और पांच सौ के नोट के लिए कहा जा रहा था। जब इतने व्यापक पैमाने पर कैष उपलब्ध है तो आखिर पैसा गया कहां। रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट बताती है कि कुल जारी करेंसी में दो हजार रूपए के नोटों का हिस्सा पचास फीसदी से अधिक है। अब जो आंकड़ा सामने आ रहा है वह चैकाने वाला है। बीते जुलाई तक बैंकों में दो हजार रूपए के नोटों की संख्या 35 फीसदी रहती थी। नवम्बर 2017 तक यह 25 फीसदी हो गयी। एसबीआई, पीएनबी, बैंक आॅफ बड़ौदा और बैंक आॅफ इण्डिया समेत कई बैंकों के करेंसी चेस्ट के आंकड़ों में दो हजार रूपए के नोट की संख्या मात्र 9 से 14 फीसदी तक ही है। बड़ा सवाल है कि दो हजार रूपए के नोट कहां हैं। क्या ये डम्प हो रहे हैं और बैंकों में इनकी वापसी नहीं हो रही है। इस दुविधा को भी समझ लेना सही होगा कि बैंकों ने बीते डेढ़ वर्शों में जिस तरह जनता को पेरषानी में डाला है उससे उन्होंने अपना भरोसा भी खत्म किया है। जिसके चलते बैंकों में नकदी मुख्यतः दो हजार और पांच सौ के नोट जमा करने से खाताधारक कतरा रहे हैं। नोटबंदी के बाद भी यह बात सामने आयी थी कि 2 हजार रूपए के नोट कालाधन को बढ़ाने में मदद करेंगे कमोबेष स्थिति वही बनती दिख रही है। गौरतलब है कि गुलाबी नोट छापने वाली मोदी सरकार यदि बैंकिंग व्यवस्था और डम्प हो रहे नोटों पर सही मंथन नहीं रखा तो गुलाबी नोट काले में तब्दील हो सकते हैं। 
बैंकों की हालत बहुत पतली है और लगभग देष भर में यही स्थिति है। जिन बैंकों का औसतन बैलेंस नोटबंदी के पहले तीन सौ करोड़ रूपए था अब वह करीब सौ करोड़ रूपए ही है। इतना ही नहीं बैंकों से जमा नकदी रोजाना 14 करोड़ से घटकर 4 करोड़ हो गयी है जिसमें दो हजार के नोट मात्र 50 लाख रूपए की कीमत के हैं। एक आंकड़ा और देते हैं सरकारी खातों की जिन बैंकों में अधिकता है उनके करेंसी चेस्ट का अधिकतम बैलेंस नोटबंदी से पहले 9 सौ करोड़ रूपए था जो अब करीब ढ़ाई सौ करोड़ है। यहां भी रोजाना जमा नकदी 80 करोड़ से ठीक आधी 40 करोड़ हुई है और इसमें दो हजार के नोट 4 करोड़ रूपए से भी कम मूल्य के हैं। सरकार की आर्थिक नीतियां तो यही इषारा कर रही हैं कि सुविधा के चक्कर में दुविधा बढ़ गयी है। आरबीआई के पूर्व गवर्नर वाई.वी. रेड्डी ने अर्थव्यवस्था को नोटबंदी और जीएसटी जैसे कदमों से झटका लगने की बात कही है साथ ही इससे उबरने के लिए दो साल के समय की जरूरत भी बतायी है। एटीएम बंदी को लेकर देष के छोटे-बड़े षहर और ग्रामीण इलाके से खूब षिकायतें आ रही हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी नोटबंदी के बाद विकास दर गिरने की बात कही थी जो सही साबित हुआ था। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाशण के दौरान कहा था कि वे हारवर्ड नहीं हार्डवर्क में विष्वास करते हैं। स्थिति तो यही बताती है कि जरूरत दोनों की है। फिलहाल एटीएम में कैष की समस्या से नोटबंदी के साइड इफैक्ट दिख रहे हैं। जिस एटीएम से पैसे निकल रहे हैं वहां लम्बी कतार लग रही है। भारतीय स्टेट बैंक की एक षोध रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आरबीआई ने बड़ी तादाद में 2 हजार रूपए के नोट जारी करने से रोक दिया है या फिर इसकी छपायी बंद कर दी है। कैष की कमी के चलते विभिन्न स्थानों पर लगी एटीएम इंक्वायरी मषीन बन कर रह गयी है। इसका इस्तेमाल लोग बैलेंस समेत अन्य जानकारी के लिए कर रहे हैं जबकि एटीएम का मकसद नकदी देना था। तो क्या इसे अव्यवस्था माना जाय, मिस मैनेजमेंट माना जाय या फिर पटरी से उतर गयी सिस्टम समझा जाय या फिर अभी भी सरकार की मजबूत आर्थिक नीति कहा जाय इसे आप स्वयं समझे। 



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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