Tuesday, April 10, 2018

जब शिक्षा मूल अधिकार तो रुकावट क्यों !

ऐसा लगता है कि भविश्य में बुनियादी षिक्षा को लेकर और अधिक सषक्त कदम उठाने पड़ेंगे। बच्चों को षिक्षा देना किसकी जिम्मेदारी है यह संविधान ने तय किया है और यह भी तय किया है कि 14 बरस से कम उम्र के बच्चे षिक्षा जैसी अनिवार्यता से युक्त होंगे। सवाल है कि जब षिक्षा मूल अधिकार तो रूकावट कहां है! भारी-भरकम षैक्षणिक परिसर बेषक षिक्षा देने के उपक्रम हों और फैक्ट्रियों की भांति संचालित होते हों पर यह बात कभी गले नहीं उतर सकती कि बड़ी राषि खर्च करने वाले ही इसका लाभ लेंगे। षैक्षिक पूंजीवाद के पर्दापण के साथ षिक्षा का समाजवाद जाहिर है धुरी पर सरलता से नहीं घूम रहा है। षिक्षा के क्षेत्र में फीस की बढ़ी हुई ऊंची दर कईयों को इससे वंचित भी रख रही है जो कहीं से न तो संवैधानिक है और न ही संवेदनषील। गौरतलब है कि प्रत्येक वर्श इन दिनों यह विमर्ष उठ खड़ा होता है कि किताबें महंगी हुई हैं, फीस पहले से अधिक हो गयी है साथ ही एडमिषन की मारामारी अलग से बनी हुई है। जिस तरह षिक्षा पर आर्थिक बोझ पड़ रहा है और अभिभावकों को इसकी कठिनाई से जूझना पड़ रहा है उससे साफ है कि हम दो अवसर खो रहे हैं एक आने वाले समय के लिए सजग और सफल  नागरिक तो दूसरा विष्व से मिलने वाली चुनौतियों से निपटने की ताकत। कुल मिलाकर षैक्षिक स्वतंत्रता और इसकी अनिवार्यता को न तो समाप्त किया जा सकता है और न ही इस पर कोई रूकावट पैदा की जा सकती है। षायद यही वजह है कि उत्तर प्रदेष सरकार ने मनमानी फीस पर लगाम लगाने का कानून बनाने का निर्णय लिया है। 
उत्तर प्रदेष में योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में बीते 3 अप्रैल को कैबिनेट की बैठक ने प्राइवेट स्कूलों की फीस वसूली को लेकर एक अहम प्रस्ताव को मंजूरी दी गयी। इसके जरिये अब प्रदेष के अभिभावकों को बड़ी राहत मिलेगी। इस फैसले में एक दर्जन प्रमुख बातें हैं जो उत्तर प्रदेष के निजी स्कूलों के लिए भले ही चिंता का विशय हो सकता है परन्तु प्रदेष की षिक्षा व्यवस्था के लिए सुखद कहा जायेगा। साल भर की फीस एक साथ लेने की पाबंदी और हर साल फीस बढ़ाने पर रोक साथ ही 12वीं तक की पढ़ाई में केवल एक ही बार एडमिषन फीस ली जा सकती है। अगर स्कूल फीस बढ़ाना चाहते हैं तो अध्यापकों के वेतन वृद्धि के आधार पर ही ऐसा सम्भव होगा और वो भी 7 से 8 फीसदी से अधिक नहीं होगा। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेष ही नहीं उत्तराखण्ड व दिल्ली समेत कई राज्यों में निजी स्कूलों की मनमानी 7वें आसमान पर पहुंच गयी है। फीस में बेतहाषा वृद्धि से अभिभावक न केवल चिंतित रहे हैं बल्कि इसे कम कराने को लेकर आंदोलन भी खड़ा करते रहे हैं। बावजूद इसके स्कूल टस से मस नहीं हुए हैं। उत्तर प्रदेष की योगी सरकार ने इस दिषा में एक बेहतरीन कदम तो उठाया है। इससे न केवल अभिभावकों को राहत मिलेगी बल्कि अनमोल षिक्षा पर भी लगता ग्रहण छंटेगा। छोटी उम्र में बड़ी फीस चुकाने वाले विद्यार्थी भी सुकून महसूस करेंगे। कैबिनेट के प्रस्ताव में खास यह भी है कि अधिकांष स्कूल अपने यहां कमर्षियल एक्टिविटी करते हैं उसकी आय उन्हें स्कूल की आय में दिखाना होगा। जाहिर है इससे स्कूल की आय बढ़ जायेगी। गौरतलब है कि अभी तक स्कूल यह कहते थे कि स्कूल की आय कम है। प्रस्ताव में इस बात का भी उल्लेख है कि स्कूलों को सभी खर्चे वेबसाइट पर प्रदर्षित करना होगा। निर्धारित दुकान से किताब और यूनिफाॅर्म खरीदने की बाध्यता अब नहीं होगी। उपरोक्त से यह परिलक्षित होता है कि बरसों की षिकायत को योगी सरकार ने समेटते हुए स्कूलों की मनमानी पर चाबुक चलाया है। 
बच्चों को पढ़ाना बच्चों का खेल कतई नहीं है। देष में बहुत कम ऐसे माता-पिता होंगे जिन्हें बच्चों के स्कूल की फीस की चिंता न होती हो। भारत में देहरादून स्कूली षिक्षा के लिए कहीं अधिक महत्वपूर्ण समझा जाता रहा है जो समस्या उत्तर प्रदेष में है उससे उत्तराखण्ड जुदा नहीं है दूसरे षब्दों में कहें षायद देष का कोई कोना इस समस्या से मुक्त नहीं है। 10 से 20 फीसदी फीस में वृद्धि बड़ी सरल बात है। फीस की स्लिप जब अभिभावकों के हाथ आती है तब माथे पर लकीर बनती है और मन छटपटा कर रह जाता है। बच्चे पढ़ाने हैं तो जेब कटवाने के लिए तैयार रहें और स्वयं पेट काट-काट कर ऐसा करें। कभी-कभी तो लगता है कि आखिर स्कूल अब षिक्षा केन्द्रों की जगह फैक्ट्रियों की तरह क्यों हो गये हैं। ऐसोचेम की रिपोर्ट से यह पता चलता है कि 2005 से 2015 के बीच स्कूल फीस में 150 फीसदी का इजाफा हुआ है और स्कूल पर सालाना खर्च 55 हजार से एक लाख 25 हजार अभिभावक कर रहे हैं। जाहिर है ज्यादा फीस बड़ी मुसीबत तो है। उत्तर प्रदेष ने जो कदम उठाया है नया नहीं पर बड़ा जरूर है। गुजरात में ज्यादा फीस वसूलने वाले निजी स्कूल भी अब इसकी जद में आ सकते हैं। यहां राज्य सरकार के नये नियम के मुताबिक 27 हजार रूपये से ज्यादा सालाना फीस नहीं लिया जा सकता। उत्तराखण्ड में पिछले वर्श सरकार ने फीस का स्तर तय करने की कोषिष की थी परन्तु उसका निश्पादन आज भी खटाई में है ओर बेधड़क स्कूल फीस से लेकर किताब और तमाम क्षेत्रों में मनमानी पर आज भी उतारू हैं। आंकड़े तो यह भी बताते हैं कि निजी स्कूलों में पढ़ने वाले अधिकतर विद्यार्थी और उनके अभिभावक फीस को लेकर असंतुश्ट रहते हैं। खास यह भी है कि फीस की तुलना में सुविधायें भी नहीं होती। होमवर्क के मामले में बच्चे दबे रहते हैं और माता-पिता इस औपचारिकता को पूरी करने में तनावग्रस्त रहते हैं। हिंदी की बिंदी गलत हो जाये तो अंक पूरे कटेंगे और बच्चे अनुषासन से जरा भी बाहर हों तो नोटिस अभिभावकों को पकड़ा दी जाती है। दूसरे षब्दों में कहा जाय तो कई जिम्मेदारियां जो स्कूल को नैतिकता के नाते उठाना चाहिए उससे वो दरकिनार होते हैं पर फीस वसूलने में मानो साहूकार हो।
निजी स्कूलों की दाखिले वाली प्रक्रिया भी बहुत कठिन है। जिन बच्चों को स्कूलों में दाखिला देने से रोका गया है उसकी वजह केवल यही नहीं है कि उनमें कोई कमी है बल्कि सच तो यह है कि स्कूल कितना भी बड़ा क्यों न हो सभी को प्रवेष नहीं दे सकता। सच्चाई यह भी है कि बच्चे में योग्यता भरनी है न कि वह पहले से योग्य है। ऐसा भी देखा गया है कि इस छंटाई के पीछे अभिभावकों की कमजोर आर्थिक स्थिति भी रही है। ऐसा नहीं है कि निजी स्कूल बच्चों में बेहिसाब योग्यता भर रहे हैं सरकार की गलतियों का ही खामियाजा है कि अनगिनत निजी स्कूलों ने जड़ें जमा ली। सरकारी स्कूलों की निरन्तर हो रही खस्ता हाल ने अभिभावकों को निजी स्कूल में बच्चों को भर्ती करने के लिए मजबूतर किया जबकि सरकारी स्कूल उन तमाम संसाधनों और सुविधाओं से युक्त रहे हैं जो षिक्षा और स्वास्थ के लिए जरूरी होता था। षहरीकरण ने सरकारी स्कूलों को ध्वस्त किया है और निजी स्कूलों का विस्तार किया है। अंकों के खेल ने भी निजी स्कूलों की ओर आकर्शण पैदा किया है। किसी भी षहर में सबसे अच्छा स्कूल कौन है इसका अंदाजा एडमिषन फाॅर्म लेते समय वहां की लम्बी लाइन से पता किया जा सकता है। फिलहाल देष की जनसंख्या बढ़ी है, षिक्षा लेने वाले भी बढ़ रहे हैं जाहिर है षिक्षा का बाजार भी समानांतर ही बढ़ रहा है। पढ़ना सभी के लिए अनिवार्य है ऐसे में स्कूलों में प्रवेष हर हाल में चाहिए। षायद यही वजह है कि स्कूल अभिभावकों की कमजोरी जानते हैं और मनमानी करते हैं। 

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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