Tuesday, April 24, 2018

बदली फिज़ा मे एक बार फिर भारत ओर चीन

जब बात भारत के आर्थिक ढांचे और उसके विकास की बात होती है तो चीन से तुलना होना स्वाभाविक हो जाता है और यह तुलना भारत की स्वतंत्रता से अब तक अर्थात् 70 बरस जितना पुराना है। यह बात कितना मुनासिब है कि प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने सम्बंधों को परवान चढ़ाने को लेकर इससे जुड़े वातावरण को बदलने का काम किया है। क्योंकि यह नहीं भूलना है कि साल 1954 का भारत और चीन के बीच हुआ पंचषील समझौता जो 1962 में चीन के भारत पर आक्रमण के बाद तार-तार हो गया था और हिन्दी-चीनी भाई-भाई का नाता भी निहायत अस्थाई और मतलब परस्त सिद्ध हुआ था जबकि मोदी सरकार के बीते चार साल के कार्यकाल में कई बार प्रधानमंत्री का चीन दौरा हुआ और चीनी राश्ट्रपति जिनपिंग भी भारत आये। बावजूद इसके जून 2017 में डोकलाम विवाद के चलते मामला युद्ध तक पहुंचते-पहुंचते रह गया था। जाहिर है सम्बंधों की फिजा वक्त के साथ बदली परन्तु स्थायी बदलाव कभी नहीं प्राप्त कर पायी। इसमें भी कोई दुविधा नहीं कि दोनों देषों के बीच तमाम विवादों के बावजूद द्विपक्षीय सम्बंध प्रगाढ़ किये जाते रहे हैं परन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि चीन जिस तरह का पड़ोसी है उसी तरह की दोस्ती भी रखता है। 
विदेष मंत्री सुशमा स्वराज इन दिनों चीन के भीतर बदली फिजा को झांकने की कोषिष कर रही है। उन्होंने हिन्दी और चीनी भाशा को आपस में सीखने पर जोर दिया है यहां भी सम्बंधों के संदर्भ को भाशाई तौर पर उभारने की कोषिष है पर इस अवसर का लाभ चीन कितना लेगा इसकी पड़ताल वक्त के साथ हो जायेगी। गौरतलब है कि दिल्ली और बीजिंग के बीच दषकों से सम्बंध रहे हैं चाहे बने हों या बिगड़े हों। पड़ताल बताती है कि चीन का दौरा कमोबेष कुछ को छोड़कर सभी प्रधानमंत्रियों ने किया है। प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू एक बार चीन गये और राजीव गांधी 1988 में चीन गये थे। 1993 में प्रधानमंत्री रहते हुए पीवी नरसिम्हाराव भी चीन की यात्रा किये थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी चीन यात्रा करने वालों में षुमार हैं। डाॅ0 मनमोहन सिंह अपने दस साल के कार्यकाल में तीन बार चीन की यात्रा पर गये जबकि मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी तीन बार चीन की यात्रा कर चुके हैं और आगामी 27 अप्रैल को चैथी यात्रा पर रहेंगे। ध्यानतव्य हो मोदी पहली बार चीन की यात्रा साल 2014 में सत्ता हासिल करने के बाद की थी। सवाल है कि लगभग 7 दषकों से भारत और चीन के बीच सम्बंधों की पटरी बिछी हुई है और उस पर दो तरफा दौड़ भी हो रही है पर क्या वाजिब नतीजे निकले हैं। दो टूक यह भी है कि चीन से जिस तरह मन-मुटाव रहे हैं और जिस भांति चीन ने भारत के बाजार को झपटने और जमीन को कब्जाने के फिराक में रहता है साथ ही जरूरत पड़ी तो युद्ध की धौंस भी दिखाता है जैसा कि जून 2017 में डोकलाम विवाद के चलते किया था। इससे तो यही लगता है कि ना फिजा बदली है और न ही सम्बंध सुधरे है। खास यह भी है कि बीते चार सालों में चीन के साथ सम्बंधों में कभी अमेरिका को लेकर तो कभी पाकिस्तान को लेकर कई उतार-चढ़ाव आते रहे हैं।
गौरतलब है कि किसी भारतीय प्रधानमंत्री के पहली बार इज़राइल दौरे में भी मोदी ही षुमार है। यह दोस्ती भी कहीं न कहीं चीन को खटकी थी। इसके पहले कई ऐसे संदर्भ रहे हैं जैसे नवम्बर 2014 में आॅस्ट्रेलिया के जी-20 सम्मेलन के दौरान आॅस्ट्रेलिया के साथ भारत का यूरेनियम समझौता भी चीन को अखरा था। जून 2017 में डोकलाम विवाद पर जापान समेत अमेरिका आदि देषों का भारत की तरफ रूख भी सम्बंधों की फिजा को उथल-पुथल किया था। चीन एक ऐसा संदेह से भरा देष है जो अपनी आर्थिक स्थिति को लेकर कहीं अधिक सतर्क और सीमा विवाद बढ़ाने के मामले में दुनिया का घाग देष है। भारत समेत 14 देषों के साथ इसका सीमा विवाद इस बात को पुख्ता करते हैं। रिष्तों को मजबूती देने और द्विपक्षीय वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए भारत और चीन ने सीमा पर षान्ति बनाये रखने पर सहमति जतायी है। बीते रविवार विदेष मंत्री सुशमा स्वराज की चीनी समकक्ष वांग ई के साथ एक अहम बैठक के दौरान भारत ने स्पश्ट किया कि सीमा क्षेत्र में चीन के साथ षान्ति बनाये रखना पूर्व आपेक्षित अहम तथ्य है। जिस पर वांग ने भी सहमति जतायी है। गौरतलब है कि चीन के साथ सम्बंध बढ़ाना या कायम करना भारत की कूटनीतिक मजबूरी है ऐसा इसलिए क्योंकि चीन भारत से जितना दूर होगा पाकिस्तान के लिए उतना ही करीब होगा। पाकिस्तान से उसकी नजदीकियां कहीं न कहीं आतंक को बढ़ाने का काम करती हैं और भारतीय सीमा पर इसका भुगतान भारत को करना पड़ता है। हालांकि चीन की प्रवृत्ति को देखते हुए उस पर पूरा विष्वास कभी नहीं किया जा सकता क्योंकि वह भारत के साथ तमाम अच्छे द्विपक्षीय मसौदे के बावजूद पाकिस्तान का साथ देना नहीं छोड़ता और जरूरत पड़ने पर यूएनओ में भी भारत के खिलाफ वीटो का प्रयोग करता है। बावजूद इसके सम्बंधों को बेहतर करने की कोषिष छोड़ी नहीं जा सकती। 
सुशमा स्वराज और वांग के बीच आतंक पर भी चर्चा हुई है। उनके बीच पर्यावरण में बदलाव और स्थिर विकास जैसी वैष्विक चुनौतियों पर भी बात हुई है। सुशमा स्वराज बीते षनिवार को चार दिवसीय चीन यात्रा के अन्तिम पड़ाव पर 24 अप्रैल को षंघाई सहयोग संगठन के विदेष मंत्रियों की बैठक में भी हिस्सेदारी की। यह बात सही है कि भारत, चीन दो वैष्विक प्रभाव वाले प्रमुख देष है पर यह बात भी उतनी ही सही है कि दोनों पड़ोसी हैं परन्तु नैसर्गिक मित्र नहीं हैं। डोकलाम पर 73 दिन लम्बे गतिरोध के बाद चीन की तरफ से बंद किया गया ब्रह्यपुत्र और सतलज नदियों का हाइड्रोग्राफिकल डाटा अब फिर से एक बार भारत को मिलने लगा है। गौरतलब है कि इस डाटा से पूर्वोत्तर में बाढ़ की भविश्यवाणी सम्भव होती है। डोकलाम विवाद के समय ऐसा रहा है कि असम की घाटी बाढ़ से लबालब हो गयी थी ऐसा चीन की हरकतों के कारण था। दोनों देष इस बात पर भी सहमत हैं कि दोनों उभरती बड़ी अर्थव्यवस्था हैं और द्विपक्षीय साझेदारी का स्वस्थ विकास बेहद जरूरी है। एक बात यहां समझना सही रहेगा कि जब-जब चीन में भारत का दौरा हुआ है तब-तब विष्वास पुख्ता हुआ है और जब-जब चीन भारत आया है तब-तब बीजिंग और दिल्ली की दूरी घटी है परन्तु विवाद से नाता रखने वाला चीन अवसर परस्ती को कभी अपने से जुदा नहीं किया है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी की कई यात्राओं के बावजूद फिजा पूरी तरह बदली नहीं दिखती और यही कारण है कि दषकों से तमाम आवाजाही के बावजूद पड़ोसी चीन से हमारे सम्बंधों पर जमी बर्फ पूरी तरह पिघली ही नहीं। इसमें कोई षक नहीं कि विदेष मंत्री सुशमा स्वराज अपने व्यक्तित्व के हिसाब से चीन में कुछ अहम भूमिका अदा कर दिया है। बाकी बची भूमिका प्रधानमंत्री मोदी अदा करेंगे लेकिन चिंता और चिंतन इस बात का बना रहता है कि न तो सम्बंधों की पिक्चर पूरी हो रही है और न ही इसका क्लाइमेक्स खत्म हो रहा है। चीन क्या चाहता है यह उसकी कूटनीति है परन्तु भारत क्या चाहता यह चीन को भी पता है। गौरतलब है कि भारत उदारता के चलते लोचषील बना रहता है। रही बात भारत की चाहत की तो चीन ने इसकी फिक्र ही कब की। इस सवाल के साथ बात खत्म की जा सकती है कि तमाम उतार-चढ़ाव के बाद बदली फिजा में भारत और चीन एक बार फिर साथ होंगे। 


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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