Tuesday, September 6, 2016

अमेरिका की मान्यता बदल गया है भारत

अपनी चौथी भारत यात्रा पर आये अमेरिकी विदेष मंत्री जाॅन केरी की मान्यता है कि भारत बदल गया है जो सुनने में निहायत सुखद है पर पड़ताल का विशय है कि यहां कहां और कितना बदलाव हुआ है। पहली बार 1990 में भारत यात्रा पर आये केरी ने तब से अब में पाया है कि भारत पहले की तुलना में बिलकुल बदल गया है। भारत के दौरे पर आये अमेरिकी विदेष मंत्री ने सुशमा स्वराज की भी जमकर तारीफ की। कहा कि इन्हें भारत और यहां के लोगों की पैरोकारी करने में महारत हासिल है। इसके अलावा उनका यह भी मानना है कि भारत-अमेरिका द्विपक्षीय सम्बंधों की मजबूती पर भारतीय विदेष मंत्री हमेषा अपने विष्वास पर कायम रही हैं। ये तमाम बातें उस समय उभरी जब जाॅन केरी और सुशमा स्वराज संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे। इस दौरान अमेरिकी विदेष मंत्री की फस्र्ट नेम थ्योरी भी दिखाई दी। उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस के समय कई बार भारतीय विदेष मंत्री को सुशमा कहकर पुकारा जो इस वाकये की ओर ध्यान खींचता है जब 2015 के गणतंत्र दिवस पर अमेरिकी राश्ट्रपति बराक ओबामा भारत यात्रा पर थे तब ऐसे ही एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी राश्ट्रपति को बराक कहकर सम्बोधित किया था। देखा जाय तो मोदी षासनकाल का लगभग ढ़ाई वर्श हो गया है। 26 मई, 2014 से प्रधानमंत्री की यात्रा षुरू करने वाले मोदी सितम्बर, 2014 में सप्ताह भर की यात्रा पर नवरात्र के उपवास के दिनों में पहली बार अमेरिका के दौरे पर थे तब इस बात का अंदाजा नहीं था कि अमेरिका भी इतना बदल गया है कि भारत से सम्बंध को लेकर बेहतरीन नतीजे के इंतजार में है। हालांकि इसे मोदी कूटनीति और उनकी रणनीति को वजह मानी जाती है। इसमें भी कोई षक नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी ने वैदेषिक नीति को लेकर जो मैराथन दौड़ लगाई वह षायद पहले कभी हुआ हो पर एक सच्चाई यह भी है कि दूसरी पारी खेल रहे अमेरिकी राश्ट्रपति बराक ओबामा भी वैदेषिक परिप्रेक्ष्य को देखते हुए काफी उदार और भारत सानिध्य की ओर झुके थे। जाहिर है ऐसे में द्विपक्षीय सम्बंध का परवान चढ़ना स्वाभाविक था।
अमेरिकी विदेष मंत्री जाॅन केरी अभी भी भारत में ही हैं। भारत से अपनी रवानगी को दो दिन के लिए टाल दी है। ऐसा करने के पीछे इसी सप्ताह के अन्त में चीन में होने वाली जी-20 की बैठक है। असल में इस बैठक में अमेरिकी राश्ट्रपति बराक ओबामा को षामिल होना है और जाॅन केरी को भी। ऐसे में उनके कार्यक्रम में यह बदलाव सम्भव हुआ है। ऐसा देखा गया है कि जब भी देष में अमेरिका का कोई भी राश्ट्राध्यक्ष या मंत्री होता है तो आतंकवाद पर जिक्र जरूर करता है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि पड़ोसी पाकिस्तान को भारत की जमीन से कही गयी बात षायद अधिक असरदार लगती है। जाॅन केरी ने भारत और अफगानिस्तान में अषान्ति के जिम्मेदार पाकिस्तान में जमे आतंकी गुट को बताया। अमेरिका के इस रूख से आतंकी गुटों में बौखलाहट तो है ही साथ ही पाकिस्तान की भी परेषानी थोड़ी बढ़ती हुई दिखाई देती है। कष्मीर के नाम पर आतंक का खेल नहीं चलेगा जैसे संदर्भों की पड़ताल की जाये तो साफ है कि पाकिस्तान की पूरी ताकत घाटी को उलझाने में लगी रहती है जबकि सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि पाकिस्तान द्वारा कष्मीर मुद्दे की आड़ में अपनी धरती पर पल रहे आतंक से ध्यान हटाने की उसकी कोषिष सफल नहीं होगी। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि पाकिस्तान ने कष्मीर को लेकर हर तरह के हथकंडे अपनाये हैं और उसकी यह इच्छा रही है कि सीमा के भीतर सक्रिय आतंकवादी गुटों को कष्मीर में आंदोलन के नाम पर जायज़ ठहराये परन्तु ऐन मौके पर अमेरिका ने भारत के इस तर्क को महत्व दे दिया है कि आतंक का समर्थन किसी भी सूरत में नहीं किया जा सकता। कहा तो यह भी जा रहा है कि अमेरिका ने पठानकोट हमले से जुड़े मामले को स्वयं खंगाला है और उसे पता है कि हमले में पाकिस्तान ही है। बावजूद इसके कथन से बात आगे क्यों नहीं बढ़ती यह बात समझ से परे है।
इन दिनों देष के कई राज्य जलमग्न और बाढ़ की चपेट में भी है मानसूनी बारिष से दिल्ली भी बेअसर नहीं है। बुधवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी विदेष मंत्री जाॅन केरी के बीच हुई बैठक के दौरान यह चर्चा का विशय बन गयी। गौर-तलब है कि भारी बारिष के चलते जाॅन केरी का काफिला दो घण्टे तक बारिष में फंसा रहा। जाहिर है इस बदलाव को भी केरी ने महसूस किया होगा। इसी दिन उन्हें आईआईटी दिल्ली के छात्रों को सम्बोधित करना था। हल्के-फुल्के अंदाज में केरी ने छात्रों को सम्बोधित करते हुए कहा कि आप सभी लोग आज यहां पहुंचने के लिए अवाॅर्ड के हकदार हैं। मैं नहीं जानता कि आप यहां नांव से आये हैं या पानी पर चलने वाले किसी वाहन से। केरी ने भारत के कम्प्यूटर साइंस के छात्रों को जिस तर्ज पर मेधावी बताया है और जिस प्रकार यहां के काॅलेजों द्वारा नहीं लिये जाने के बाद उन्हें एमआईटी सहर्श स्वीकार करता है का वक्तव्य दिया उससे भी साफ है कि भारत के बदलाव को लेकर उनकी सोच गम्भीर है। देखा जाय तो भारतीय छात्र आज भी अध्ययन और रोजगार दोनों में अमेरिका को प्राथमिकता देते हैं। पहले भी अमेरिकी राश्ट्रपति द्वारा यह कहा जा चुका है कि भारतीयों की गणित पर पकड़ अमेरिकियों की तुलना में बेहतर होती है। फिलहाल दषकों से अमेरिका के साथ भारत का षैक्षणिक रिष्ता भी बहुत मजबूत रहा है। पिछले कुछ सालों से दोनों देषों के बीच व्यापार भी दोगुना हुआ है। इतना ही नहीं भारत से सबसे ज्यादा निर्यात अमेरिका में ही होता है। ये तमाम संदर्भ दोनों देषों के बीच दूरियां घटाने के तौर पर भी जानी-समझी जा सकती है। केरी का यह कहना कि हम दोनों ने नेपाल में भूकम्प पीड़ितों की मदद की, यमन में हिंसा में फंसे लोगों को निकाला और अफ्रीका में षान्ति मिषन में लगे लोगों को ट्रेनिंग दी। इससे भी द्विपक्षीय सम्बंधों को नई आंच मिलती है। इतना ही नहीं अभी हाल ही में दक्षिण चीन सागर में अमेरिका, भारत और जापान मिलकर जो समुद्री अभ्यास किया वह भी सम्बंधों के लिहाज़ से भारत का बदलता परिप्रेक्ष्य भी है और चीन को संतुलित करने का परिमाप भी। 
फिलहाल भारत के प्रति बदलाव वाले दृश्टिकोण पर कायम रहते हुए केरी ने पड़ोसी पाकिस्तान और चीन को कुछ हद तक संतुलित करने का भी काम किया है। अफगानिस्तान पर अपना प्रभाव जमा रहे पाकिस्तान को केरी ने यह कहकर एक और झटका दिया कि सितम्बर में संयुक्त राश्ट्र की बैठक के बाद भारत और अफगानिस्तान के साथ अमेरिका त्रिपक्षीय वार्ता करेगा जबकि आक्रामक चीन को उन्होंने संदेष दिया कि दक्षिण चीन सागर विवाद का सैन्य संघर्श से हल नहीं निकल सकता। केरी ने यह भी स्पश्ट किया कि अमेरिका विवाद को और भड़काना नहीं चाहता बल्कि उसका कूटनीतिक हल निकालने का पक्षधर है। ऐसा देखा गया है कि वैष्विक फलक पर जब भी कूटनीति का प्रवाह होता है और उसमें अमेरिका गति देने की कोषिष करता है तो कहीं उथल-पुथल तो कहीं संतुलन का विकास हो जाता है। अमेरिका द्वारा भारत के साथ अपनाई जा रही नीति इसलिए भी अधिक प्रभावषाली कही जायेगी क्योंकि व्यापार, विज्ञान, विचार के अलावा एमटीसीआर की सदस्यता से लेकर एनएसजी तक की कोषिष में वह साथ है। सम्भावना है कि बदल रहे भारत के साथ अमेरिका ऐसे ही रूख पर आगे भी कायम रहेगा। 



सुशील कुमार सिंह


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