Wednesday, September 14, 2016

मोदी, राहुल और किसान

मोदी जी किसानों के बीच नहीं जाते क्योंकि 15 लाख का सूट गंदा हो जायेगा। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अक्सर अपने वक्तव्य में कुछ इसी प्रकार के षब्दों के साथ प्रधानमंत्री मोदी पर प्रहार करना नहीं भूलते। बीते कुछ दिनों से उत्तर प्रदेष में उनकी खाट पंचायत वाली रैली जिस तर्ज पर चुनावी मुहिम को अंजाम देने की कोषिष में है उसमें यह भी झलकता है कि उनका अपना एजेंडा पीछे और मोदी पर निषाना आगे है। आजमगढ़ में बीते रविवार एक बार फिर तंज भरे लहज़े में राहुल गांधी ने रैली में लोगों से पूछा क्या आपने कभी नरेन्द्र मोदी की किसी किसान के साथ फोटो देखी है? स्वयं जवाब देते हुए कहा नहीं देखी क्योंकि उनके कपड़े गंदे हो जायेंगे। यही वजह है कि वो आपके बीच नहीं आते और ओबामा से मिलने अमेरिका जाते हैं। इसके अलावा उन्होंने बसपा और सपा पर भी निषाना साधा। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी बीते एक सप्ताह से उत्तर प्रदेष की अपनी किसान यात्रा में विरोधियों की लानत-मलानत कर रहे हैं। मामले को समझना कठिन नहीं है कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं। जाहिर है आगामी वर्श के मुहाने पर उत्तर प्रदेष का विधानसभा चुनाव खड़ा है और 1989 से लगातार सदस्यों के मामले में वह यहां दहाई से आगे नहीं बढ़ पाई है। इस बार इस सूखे को खत्म करने की फिराक में ये सब कुछ किया जा रहा है। इसी के चलते तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रह चुकी षीला दीक्षित को मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में उत्तर प्रदेष में उतार कर राजनीति की चाल कांग्रेस द्वारा पहले ही चली जा चुकी है। रोचक यह भी है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में चाय पर चर्चा जोरों पर थी तो उत्तर प्रदेष में राहुल गांधी की खाट पंचायत इन दिनों पर है। 
किसानों की रैली भारतीय राजनीति में किसानों की समस्या के समाधान के लिए होती रही या उनके अंदर छुपे वोट को आकर्शित करने के लिए इस पर भी नजरिया साफ होना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी जब 2014 में षीत सत्र के बाद भूमि अधिग्रहण अध्यादेष लागू किया था तब देष भर के किसानों ने इसका विरोध किया था। 2015 के बजट सत्र के दौरान दिल्ली में भारत के आधे राज्यों से अधिक दूर-दराज से आये किसानों ने अपनी जमीन बचाने के लिए यहां जमकर हल्ला बोला था तभी से मोदी पर यह आरोप जड़ दिया गया कि वे किसान के हितैशी नहीं हैं। इतना ही नहीं उन्हें उद्योगपतियों का हित साधक के रूप में प्रचार-प्रसार किया जाने लगा। हांलाकि कई प्रयासों के बावजूद अभी भी उनका उद्योगपतियों के प्रति आकर्शण में घटाव नहीं माना जाता है। यह भी सही है कि मोदी ने 2016 के आम बजट में किसानों के लिए काफी कुछ करने की कोषिष की है। इस बजट को गांव उन्मुख बजट की भी संज्ञा दी गयी। यहां तक कि यह भी कहा जाने लगा कि इस बजट के माध्यम से मोदी अपनी छवि बदलना चाहते हैं। गौरतलब है कि वर्श 2015 के मार्च-अप्रैल में दर्जनों बार हुए बेमौसम बारिष से रबी की फसलें चैपट हो गयी थी और थोक के भाव किसानों ने आत्महत्या किया था जबकि कमजोर मानसून के चलते खरीफ की फसल की पैदावार में भी जोरदार गिरावट आई थी जिसके चलते किसानों की बची खुची उम्मीद भी हाषिये पर चली गयी थी। यह एक ऐसा दौर था जब किसी भी सरकार को एक बेहतर कार्यपालक की भूमिका में होना चाहिए था। प्रधानमंत्री मोदी पर यहां भी आरोप रहा कि किसानों के नुकसान की भरपाई में वे विफल रहे। हालांकि सरकार की ओर से किसानों के नुकसान को लेकर संजीदगी तो दिखाई गयी पर यह पड़ताल का विशय है कि मोदी का रिपोर्ट कार्ड इस मामले में कितना बेहतर है।
संदर्भ तो यह भी है कि किसान यात्रा करने वाले राहुल गांधी यह क्यों भूल जाते हैं कि मोदी से पहले 10 बरस की सरकार केन्द्र में उन्हीं के दल की रही है। उन्होंने 2004 से 2014 के बीच किसानों के लिए क्या किया आखिर इसका भी हिसाब कौन देगा? एक विपक्षी होने के नाते यदि राहुल गांधी इसका जवाब देना जरूरी नहीं समझते तो सरकार चला रहे मोदी पर किसानों को लेकर इतनी लानत-मलानत क्यों कर रहे हैं? मोदी पहले भी कह चुके कि राज्य सहयोग करे तो 2022 तक किसानों की इनकम दोगुनी कर देंगे। उन्होंने यह भी कहा है कि आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए कृशि को पहली प्राथमिकता बनाने की जरूरत है। गौरतलब है कि मोदी अपनी चुनावी रैलियों में भी किसानों के जीवन को ऊँचाई देने के तमाम वादे किये थे पर इसमें सफल कितने हुए यह बात भी साफ होनी चाहिए। किसानों को भारत की जान बताने वाले प्रधानमंत्री यह भी मानते हैं कि इनकी समृद्धि के बगैर देष की खुषहाली की बात सोची नहीं जा सकती। बावजूद इसके इनकी किसान विरोधी छवि क्यों है? देखा जाये तो केन्द्र सरकार ने किसान के हित में प्रधानमंत्री फसल बीमा, सिंचाई बीमा, मृदा राजस्व कार्ड जैसी कई योजनायें षुरू की है। जरूरत है कि राज्य कृशि और किसानों के काम को अपनी प्राथमिकता में लेकर दिगदर्षित करने की। बुंदेलखण्ड की हालत किसी से छुपी नहीं है। बेषक बसपा और सपा को इसके लिए कसूरवार ठहराया जा सकता है। हालात यह हैं कि पांच नदियों वाला बुंदेलखण्ड में ट्रेन से पानी भेजा जाता है। राहुल गांधी को पूर्वी एवं पष्चिमी उत्तर प्रदेष ही नहीं बल्कि बुंदेलखण्ड की भी चिंता करनी चाहिए और उन्हें भी यह जवाब देना चाहिए कि दस साल तक केन्द्र में रहते हुए बुंदेलखण्ड को संकट से उबारने में उन्होंने क्या किया?
साढ़े छः लाख गांवों से भरे भारत में अभी भी दो दृश्टिकोण चलते हैं एक ग्रामीण भारत तो एक षहरी। षहरी भारत का अपना जोखिम और अपनी समस्या है पर ग्रामीण भारत की बुनियादी समस्या यह है कि दो लाख से अधिक गांव अभी भी बिजली, पानी के लिए तरस रहे हैं। 2019 तक हर गांव में बिजली पहुंचाने की बात कही जा रही है। उत्तर प्रदेष के हजारों गांवों में अभी भी बिजली का खंभा नहीं गड़ा है और जहां गड़ा है वहां बिजली नहीं पहुंची है और जहां बिजली पहुंची है वहां भी पूरे मन से यह नहीं कहा जा सकता कि स्थिति संतोशजनक है। राहुल गांधी किसानों की बेहतरी चाहते हैं। पंजाब में भी उन्होंने मोदी को कई बार ललकारा कि यहां आकर किसानों की हालत देखें पर वही सवाल फिर खड़ा होता है कि क्या वाकई में राहुल गांधी किसानों के बड़े हितैशी हैं या फिर प्रधानमंत्री मोदी किसानों को लेकर अछूत राय रखते हैं। बड़ा सच यह है कि सियासी भंवर में जब भी किसानों को धकेला जाता है तो सियासतदान के हिस्से में मलाई और किसानों के हिस्से में सूखी रोटी ही आई है जब चुनाव सिर पर मंडराने लगता है तब खेत-खलिहान में नेता उग जाते हैं। इस वादे के साथ कि सत्ता पाने के बाद उनकी जिन्दगी को चकमक कर देंगे पर पिछले 65 वर्शों में सियासी हाथों से छले जाने वाले किसान क्या इन बातों पर एक बार फिर भरोसा कर सकते हैं। आधारभूत संरचना से कटे गांव और वहां के बाषिन्दे एक बेहतर सरकार लाने की बेचैनी में तो रहते हैं पर वह छले नहीं जायेंगे इसकी गारंटी कौन लेगा। इस बात को समझना भी मर्म से भरा होगा कि चाहे राहुल गांधी की किसान रैली हो या प्रधानमंत्री मोदी की या फिर किसी और सियासतदान की सत्ता हथियाने के बाद उनका रूख किसानों के प्रति क्या वैसा रहता है? क्या किसानों की उम्मीदों पर वे खरे उतरते हैं? जब ऐसा नहीं होता तब मन मारकर आखिरकार किसानों को अपनी किसमत के सहारे एक बार फिर जीवन ढोना ही पड़ता है।



सुशील कुमार सिंह


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