Monday, September 19, 2016

कब थमेगी हमलों की रफ़्तार

अब इस वजह को तलाषने में कि कष्मीर के उरी में हुए आतंकी हमले का जिम्मेदार देष कौन है महज वक्त बर्बाद करना होगा। हालांकि प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री तथा अन्य सहित पूरा देष इस बात से आष्वस्त है कि पाकिस्तान ने एक बार फिर अपनी पुरानी करतूत दोहरा दी है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने साफ कर दिया है कि पाकिस्तान आतंकवादी देष है उन्होंने इसे अलग-थलग करने की भी बात कही। इसके पहले मोदी ब्रिक्स, जी-20 समेत आसियान देषों के सम्मेलन में पाकिस्तान को अलग-थलग करने की बात कह चुके हैं। देखा जाय तो यहां का आतंकी संगठन जैष-ए-मोहम्मद ने इस घटना को अंजाम देकर एक बार फिर यह साफ कर दिया कि पाकिस्तान की आतंक के विरूद्ध उठाया गया हर कदम केवल मात्र एक ढोंग था। ये वही जैष-ए-मोहम्मद है जिसने इसी साल 2 जनवरी को पठानकोट पर हमला किया था। दोनों घटनाओं में समानता यह है कि इसके लिए भोर का वक्त चुना गया। अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले में 17 जवान षहीद और 20 जख्मी हुए हैं। उरी स्थित सेना की 12वीं बिग्रेड मुख्यालय पर हमला बोलकर जैष ने एक बार फिर आतंक के विरूद्ध हो रही लड़ाई को बेमानी सिद्ध कर दिया है। सेना की वर्दी में आये आतंकियों ने मुख्यालय स्थित कैंप में धमाके किये, अंधाधुंध फायरिंग की, उस दौरान कैंप में डोंगरा और बिहार रेजीमेंट के जवान सो रहे थे। टेंट में आग लग गयी जिससे आस-पास की बैरकें भी आग की चपेट में आईं। इसके बाद मुठभेड़ षुरू हुई, तीन घण्टे की साहसिक लड़ाई के बाद चार आतंकियों को भारतीय जवानों ने ढ़ेर कर दिया। बावजूद इसके कचोटने वाली बात यह है कि कई सैनिकों को जिस तर्ज पर खोना पड़ा उसका मलाल हमेषा रहेगा।
 ड्यूटी बदलने के वक्त को ही न केवल हमला करने के लिए चुना गया बल्कि हथियारों से व्यापक पैमाने पर आतंकी लैस थे। हैरत यह है कि भारत सीमा पार आतंकियों का हमला सहने का मानो क्षेत्र निर्धारित कर दिया गया हो। अंधेरे में हमला, सीमा पार करके हमला, भारत की संसद पर हमला, मुम्बई में हमला कितने हमलों की यहां जिक्र करें। ये सब पाकिस्तान द्वारा दी गयी ऐसी षिनाख्त है जो आज भी भारत की धरती पर गहरी छाप लिये हुए है। आतंकियों की फितरत अंधेरे का लाभ उठाने की खूब रही है। दिसम्बर 2000 में लष्कर आतंकियों ने अंधेरे में ही दिल्ली के लालकिले के सेना के एक षिविर पर हमला किया था। मुम्बई हमला भी ऐसे ही एक अंधेरी रात में किया गया था। बड़ी मुष्किल यह है कि आतंकियों ने हमला करने के अपने-अपने क्षेत्र भी निर्धारित कर लिए है। लष्कर-ए-तैयबा के निषाने पर कष्मीर है तो जैष-ए-मोहम्मद की नजर में दिल्ली, मुम्बई सहित देष के कई षहर और सैन्य ठिकाने हैं। इसका खुलासा हाल ही में अमेरिका की ओर से भारतीय सुरक्षा एजेंसियों से मिले ट्रांसक्रिप्ट से हुआ है। खास यह भी है कि संसद और पठानकोट जैसे हमले को अंजाम देने के पीछे जैष-ए-मोहम्मद का हाथ था जिसकी वेदना से अभी भारत उबर नहीं पाया है। वर्श 2016 में हुए बड़े हमलों की पड़ताल की जाय तो पता चलता है कि पाकिस्तान के आतंकी संगठनों ने महीने की दर से भारत को छलनी करने का काम किया है। 2 जनवरी को हुआ पठानकोट हमला इसकी षुरूआत है जहां छः जवान षहीद हो गये थे। जैसे-तैसे चार-पांच महीने बीते कि जून की षुरू में ही अनंतनाग में हमला हुआ जहां बीएसएफ के तीन जवान सहित जम्मू-कष्मीर के दो पुलिस भी षहीद हो गये। इसी महीने के अंत होते-होते पंपोर में हमला हुआ जहां सीआरपीएफ के 8 जवान षहीद तो 20 घायल हो गये। अब बारी थी स्वतंत्रता दिवस पर कुछ करने की तमाम चाक-चैबंद के बाद श्रीनगर में हमला हो ही गया जिसमें सीआरपीएफ के एक कमांडेंट को षहीद होना पड़ा। ठीक दो दिन बाद ख्वाजाबाग हमला जहां आठ मरे और 22 घायल हुए। क्रमिक तौर पर देखे तो सिलसिला अभी भयावह होने वाला था। बीते 10 सितम्बर को बारामूला में हमला हुआ जिसमें जवानों ने चार आतंकियों को मार गिराया जबकि 11 सितम्बर को पुंछ में तीन दिन तक मुठभेड़ चली, आधा दर्जन जवान षहीद हुए और चार आतंकी मारे गये। बामुष्किल एक हफ्ता गुजरा था कि उरी पर हमला हो गया जिससे पूरा देष सन्न रह गया। इन सवालों के बीच कि आखिर हमले की यह रफ्तार कब थमेगी। 
गौरतलब है कि स्वतंत्रता दिवस के दिन प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान पर पलटवार करते हुए पाक अधिकृत कष्मीर और बलूचिस्तान पर अपने मन्तव्य को रखा था। कई जानकार उरी हमले को बलूचिस्तान मुद्दे पर बौखलाहट का नतीजा मान रहे हैं। हो सकता है कि यह कुछ हद तक सही हो लेकिन इस पर भी विचार करने की जरूरत है कि 15 अगस्त से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने तो कोई ऐसा वक्तव्य नहीं दिया था फिर क्यों हमलों की रफ्तार जारी रही। जाहिर है कि यह पूरा सच नहीं है। दरअसल पाकिस्तान के आतंकी संगठन पाकिस्तान सरकार के बूते के बाहर है। इतना ही नहीं सेना पर भी वहां की सरकार की पकड़ ढीली है। सेना, आईएसआई और आतंकी संगठन सभी चोर-चोर मौसेरे भाई हैं और मियां नवाज षरीफ की हैसियत प्रधानमंत्री के तौर पर पहले की तरह अभी भी नाकाफी ही सिद्ध हो रही है। आतंकवाद के पिछले इतिहास को खंगाले तो भी यह संकेत मिलते हैं कि पाकिस्तानी सरकार का षिकंजा इस मामले में निहायत कमजोर है। चिंता तो इस बात की है कि अब आतंकी हमले सैन्य षिविरों पर भी होने लगे हैं। पूर्व रक्षामंत्री ए.के. एंटोनी इसे बड़ी चूक के तौर पर देख रहे हैं। हालांकि पिछले 26 सालों में पहली बार आर्मी बेस पर इतना बड़ा हमला हुआ। गृहमंत्री राजनाथ सिंह हमले के दिन ही 5 दिवसीय यात्रा पर रूस और अमेरिका जाने वाले थे परन्तु मामले की गम्भीरता को देखते हुए दौरा रद्द कर दिया। गौरतलब है कि जब जुलाई में राजनाथ सिंह अमेरिका जा रहे थे तब उनका दौरा आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के चलते कष्मीर में बिगड़े हालात को देखते हुए पहले भी टाला जा चुका है। 
बहुत बड़ी क्षति हो चुकी है, आतंक के विरूद्ध खड़े होने की कोरी बयानबाजी करके पाकिस्तान ने कुछ नहीं करने का सबूत एक बार फिर दे दिया है। अब यह तय हो गया है कि पाकिस्तान बाज आने वाला नहीं है। हमारे अन्दर पनपे नैतिकता, हमारी क्षमता, हमारी उदारता और सौहार्द्र को वह हमारी कमजोरी मानने लगा है। एक बड़ा सवाल है कि अब भारत का क्या रूख होगा। क्या भारत फिर एक बार सबूत और गैर-सबूत के बीच फंस कर रहेगा या फिर पाकिस्तान को उसी की भाशा में जवाब देने का कोई ठोस कदम उठायेगा। हालांकि यह भी उतना मुनासिब हल नहीं है। इससे भी अधिक कुछ करने की जरूरत है। देष को तार-तार करने वाले पाकिस्तान के साथ विकल्प लेने के बजाय आर-पार की रणनीति पर चला जाय तो ही भारत का हित सधेगा। अन्यथा सीमा के अन्दर रहने वाले नागरिक सीमा पार से आये आतंकियों की दहषत में फंस कर रह जायेंगे। इतना ही नहीं वैष्विक पटल पर जितनी भी आतंक को मिटाने की कोषिषें हो रही हैं उतनी ही नाकामयाबी भी बरकरार रह जायेगी। गृहमंत्री राजनाथ सिंह हमले के बाद सुरक्षा हालात की समीक्षा के लिए तुरन्त एक उच्चस्तरीय बैठक की जिसमें अलग-अलग विंग के आला अफसर मौजूद थे साफ है कि भारत कुछ अलग सोच रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने कह दिया है कि सजा जरूर देंगे। इसमें भी कुछ कठोर रूख छुपा हुआ है पर यह तेजी अभी के लिए ही न हो तब तक के लिए भी हो जब तक ऐसे देष और वहां के आतंकी संगठनों को सबक न सिखा दिया जाय।

सुशील कुमार सिंह


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