Thursday, September 15, 2016

भारत-रूस की दोस्ती के बीच पाकिस्तान

इन दिनों दक्षिण एषिया में नये-नये समीकरण उभर रहे हैं। बीते दिनों यह खबर आई कि रूस और पाकिस्तान इस वर्श के अन्त में एक ज्वाइन्ट वाॅर एक्सरसाइज़ करने वाले हैं जिसे फ्रेन्डषिप 2016 नाम दिया गया है। इसके अलावा जो भी कूटनीतिक घटनाक्रम वैष्विक फलक पर बदलाव की ओर जा रहे हैं उसे देखते हुए यह लगने लगा है कि अमेरिका के साथ भारत के करीबियों के बाद अब रूस, पाकिस्तान और चीन भारत को अलग-थलग करने के चलते एक साथ आने की जद्दोजहद में है। साफ है कि जब चीन और रूस दक्षिणी चीन सागर में साथ होंगे तो अमेरिका और जापान की चिंता बढ़ेगी। इतना ही नहीं भारत की परेषानी के सबब यह है कि उसका दषकों पुराना मित्र रूस पाकिस्तान से मोह पाल रहा है। गौरतलब है कि बीते दिनों भारत, अमेरिका और जापान ने दक्षिण चीन सागर में अभ्यास करके चीन की मुष्किल बढ़ा दी थी। अब वार-पलटवार की बारी चीन की है। चीन और रूस के बीच इस एक्सरसाइज़ को ज्वाइन्ट सी 2016 नाम दिया गया है जो आठ दिनों तक चलेगा। इसके अलावा रूस और पाकिस्तान भी पहली बार संयुक्त अभ्यास करने की तैयारी में है। अमेरिका के साथ रिष्तों में आई खटास के चलते पाकिस्तान नये साझेदार के रूप में रूस की ओर झुका है। यहां स्पश्ट कर दें कि षीत युद्ध के दिनों में जब अमेरिका और सोवियत संघ आमने-सामने थे तब पाकिस्तान और सोवियत संघ भी एक-दूसरे के दुष्मन थे और भारत सोवियत संघ का सबसे बड़ा मित्र परन्तु अब हालात बहुत बदल चुके हैं। वांषिंगटन से रिष्ते में खटास के चलते हथियारों के मामले में पाकिस्तान अब मास्को की तरफ देख रहा है। खबर तो यह भी है कि दोनों देष रक्षा और सैन्य तकनीक सहयोग बढ़ाना चाहते हैं जो किसी भी हाल में भारत के लिए खतरे की घण्टी है। 
जब 1939 से 1945 के बीच हुए द्वितीय विष्वयुद्ध के बाद दुनिया दो ध्रुवों में बंटी थी जिसमें एक ध्रुव अमेरिका तो दूसरा रूस था तब पाकिस्तान अमेरिका के साथ था। भारत वैसे तो किसी गुट में न होने का दावा हमेषा से करता रहा है पर उसका झुकाव रूस की तरफ ही था और आज भी भारत और रूस गहरे मित्र हैं। दोनों देषों के बीच दषकों से जो दोस्ती रही है वह अवसरवादी सम्बंधों की दुनिया में अपने आप में दुर्लभ कही जायेगी। 1979 में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में घुसपैठ की तो भारत ने उसके इस कृत्य की आलोचना नहीं की जिसे लेकर पष्चिमी देषों के पेट में खूब दर्द भी हुआ था। इस कदम को लेकर भारत पर यह भी आरोप मढ़ा गया था कि एक ओर तो वह स्वयं स्वतंत्रता का समर्थक बताता है परन्तु जब सोवियत संघ ने दक्षिण एषिया के एक देष पर आक्रमण किया तो वह चुपचाप था। असल सच यह है कि भारत रूस के साथ उस गहरी मित्रता का निर्वहन कर रहा था जो 1971 में सोवियत संघ द्वारा किये गये समर्थन के बदले था। इसी दौर में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जार्डन, इंडोनेषिया और चीन समेत कई पष्चिमी और मुस्लिम देषों ने पाकिस्तान का पक्ष लिया था। आज इन बातों पर पुनः जिक्र करने का अवसर इसलिए बना है क्योंकि यह बातें छन-छनकर आ रही हैं कि रूस का रूख पाकिस्तान की ओर झुक रहा है। यदि यह पूरी तरह सम्भव होता है तो वैष्विक फलक पर जो भारत की कूटनीति इन दिनों विस्तार ले चुकी है उसमें एक सेंधमारी कही जायेगी। गौरतलब है  कि भारत और रूस के बीच का सम्बंध पांच दषक पुराना है और दोनों देष एक-दूसरे के प्रति न केवल आदर भाव रखते हैं बल्कि वैष्विक फलक पर घटी घटनाओं के बीच एक-दूसरे का साथ देने में भी पीछे नहीं रहे हैं।
देखा जाय तो स्वतंत्रता से लेकर अब तक भारत की वैष्विक कूटनीति कभी अधिक उपजाऊ तो कभी कम उपजाऊ रही है। फिलहाल इन दिनों वैष्विक फलक पर भारतीय कूटनीति की बढ़ी हुई मात्रा देखी जा सकती है। पड़ोसी देष चीन और पाकिस्तान के साथ सम्बन्ध कभी भी चरम पर नहीं पहुंच पाये। इसका कसूरवार भारत तो कतई नहीं है। भारत और चीन के बीच 1954 का पंचषील समझौता बेहतरी की दिषा में उठाया गया मजबूत कदम तो था परन्तु 1962 के चीनी प्रहार के चलते यह भी तार-तार हो गया। पाकिस्तान के साथ युद्ध तो कई हुए पर नतीजे जस के तस रहे। भारत बार-बार जीतता रहा पर पाकिस्तान एक बार भी हार नहीं माना। हालात को देखते हुए उसने प्रत्यक्ष युद्ध की नीति छोड़ छद्म तरीके से प्रहार करने पर उतारू रहा। मौजूदा आतंकी गतिविधियां इसी का नतीजा हैं। 1972 का षिमला समझौता दोनों देषों के बीच आज भी मील का पत्थर साबित नहीं हो पाया। मौजूदा स्थिति यह है कि चीन और पाकिस्तान भारत को नीचा दिखाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। गौरतलब है कि बीते एक वर्श से पड़ोसी नेपाल के साथ भी भारत की कूटनीति सकारात्मक दिषा में कम ही दिखाई दे रही है। हांलाकि यहां भी कसूरवार भारत नहीं है। असल में नेपाल के नये संविधान के चलते उपजे मधेसी आंदोलन ने भारत और नेपाल के बीच संदेह का एक मौका दे दिया। हमेषा से भारत के प्रति झुकाव रखने वाले नेपाल ने उन दिनों चीन के प्रति झुकने की चेतावनी भी दे थी। गौर करने वाली बात तो यह है कि मौजूदा नेपाली प्रधानमंत्री प्रचण्ड जब पहली बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने थे तो वे भारत से पहले चीन गये थे। बदले परिप्रेक्ष्य और बदली कूटनीति में सारा तानाबाना तो सही नहीं होगा पर इसे साधने की जिम्मेदारी एक बार फिर बढ़त ले चुकी है। 
मुख्य चिंता इन दिनों रूस का पाकिस्तान की ओर चुकाव है। इस बात को स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं है कि भारत और रूस के लोग निजी तौर पर बेहद जीवंत और भावुक होते हैं। इतना ही नहीं तुरंत दोस्ती कर लेने में यकीन नहीं रखते हैं और ऐसा कहा जाता है कि दोनों के बीच एक बड़ी समानता यह है कि दोनों देषों के लोगों के जीवन में परिवार का बड़ा महत्व है। यूरेषिया की विस्तृत भू-भाग पर स्थिरता बनाये रखने के मामले में भारत और रूस के सामरिक हित बहुत मायने रखते हैं। अफगानिस्तान, सीरिया और यूक्रेन में भी दोनों के हित आपस में गुथे हुए हैं। षायद ही लोगों को पता हो कि यूक्रेन रक्षा उद्योगों का बड़ा केन्द्र है और भारतीय रक्षा उपकरणों की सर्विसिंग के लिए इसका बड़ा महत्व है। रूस पूरी दुनिया में ऊर्जा का सबसे बड़ा उत्पादक देष भी है जबकि अमेरिका और चीन के बाद भारत ऊर्जा का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। भारत की ऊर्जा सुरक्षा के मामले में भी रूस का साथ बड़ा जरूरी है। रक्षा प्रौद्योगिकी के मामले में भी रूस और भारत के बीच दषकों से सौदे होते रहे हैं। भारत पष्चिमी देषों के अनेकों प्रतिबन्ध झेल चुका है बावजूद इसके रूस ने दामन नहीं छोड़ा। एक-दूसरे के लिए खड़े होना और इसकी विष्व में यदि कोई मिसाल है तो वह भारत और रूस की मित्रता है। भारत भी जानता है कि अमेरिका और रूस अब विष्व के दो ध्रुव तो नहीं पर अभी भी आमने-सामने हैं। भले ही अमेरिका से भारत की प्रगाढ़ता तुलनात्मक खूब बढ़ी हो परन्तु भारत यह लगातार स्पश्ट करता रहा कि किसी भी तरह से रूस के साथ उसके दषकों पुराने व मजबूत रिष्ते को कमतर नहीं होने देंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने अगस्त 2016 की षुरूआत में राश्ट्रपति पुतिन के साथ वीडियो कांफ्रेन्सिंग से हुई बातचीत में रूस की अहमियत भी बताई थी। भले ही रूस का रूझान किसी कारण पाकिस्तानमय इन दिनों हुआ हो पर रूस भी जानता है कि उसका असल मित्र कौन है।


सुशील कुमार सिंह

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