Thursday, September 8, 2016

अधूरे होमवर्क की वजह भी है डेंगू.

यह बेहद चिन्ताजनक है कि इन दिनों कई प्रदेष डेंगू की मार झेल रहे हैं। डेंगू और मलेरिया के प्रकोप बढ़ने के बीच एक खबर यह भी है कि श्रीलंका मलेरिया मुक्त हो गया है। हिन्द महासागर का एक छोटा सा द्वीप और भारत के दक्षिण में सबसे नज़दीकी पड़ोसी श्रीलंका से आई इस खबर से दो परिप्रेक्ष्य उभरते हैं एक यह कि यदि कोषिष की जाय तो मलेरिया जैसी बीमारी से न केवल निपटा जा सकता है बल्कि इससे मुक्ति भी पाई जा सकती है। दूसरा यह कि भारत में इसकी मुक्ति की डेडलाइन 2030 है। जाहिर है यहां भी कुछ सीख लेने की जरूरत है। पिछले पांच साल की तुलना में इस साल डेंगू के सबसे ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। भारत के कई प्रान्त कमोबेष इसकी चपेट में है। हिमालय में बसे और ठण्डे इलाके के लिए जाना जाने वाला उत्तराखण्ड भी इन दिनों डेंगू की चपेट में है। विगत् दो माह से यहां मरीजों की संख्या निरंतर वृद्धि लिए हुए है। वर्तमान में पूरे प्रदेष में यह आंकड़ा साढ़े सात सौ के आस-पास है जिसमें सात सौ से अधिक मामले तो राजधानी देहरादून से हैं। हैरत और रोचक तथ्य तो यह भी है कि प्रदेष के बड़े से बड़ा आला अफसर देहरादून में रहता है बावजूद इसके चैकसी की कमी के चलते और सरकारी तंत्र की लचर कार्यप्रणाली ने मरीजों की संख्या बढ़ाने में काफी मदद की है। दरअसल डेंगू की रोकथाम और इसके उपचार के मामले में प्रदेष की पूरी व्यवस्था केवल सरकारी अस्पतालों तक सिमटी हुई है जबकि यहां के अस्पतालों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। राजधानी का दून हाॅस्पिटल मरीजों के दबाव में हांफने लगता है। पारिस्थितिकी और अन्य समस्याओं के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं हमेषा से ही चरमराई रही है जिसे देखते हुए हर बीमारी के उपचार का रूख देहरादून की ओर रहता है। 
डेंगू के बचाव के लिए लोगों को जागरूक रहने की नसीहत देने वाला स्वास्थ्य महकमा भी स्वयं इसकी चपेट में है। क्या पुलिस, क्या प्रषासन और क्या चिकित्साकर्मी सभी को इसका डंक लग चुका है। अभी तक डेंगू का मच्छर मलीन बस्तियों व अन्य काॅलोनियों में ही आतंक मचा रहा था लेकिन अब इस प्रकोप की चपेट में चिकित्सालय भी आ चुके हैं। दून मेडिकल काॅलेज चिकित्सालय के महिला विंग में स्टाफ के ग्यारह लोगों को डेंगू हुआ है जिसमें डाॅक्टर, नर्स और वाॅर्ड ब्वाॅय सभी षामिल हैं। इतना ही नहीं दून अस्पताल की पैथोलाॅजी में ब्लड सैम्पल इक्ट्ठा करने वाले मरीजों के हालचाल पूछने तक से काम नहीं चलेगा इस पर कोई ठोस कदम उठाना होगा। हालांकि मुख्यमंत्री ने इसके लिए कई कदम उठाये हैं पर हालात को देखते हुए यह नाकाफी कहे जायेंगे। यहां के स्वास्थ्य मंत्री ने कह दिया है कि अकेले स्वास्थ्य विभाग का काम डेंगू से निपटना नहीं है। अपर पुलिस अधीक्षक समेत कई कानून के रखवाले भी डेंगू की मार झेल रहे हैं। जिस कदर प्रदेष में डेंगू को लेकर कहर बरपा है जाहिर है उसे देखते हुए सरकार की नींद भी टूटी है। दहषत अभी बरकरार है और इसके बीच उपचार और निदान के रास्ते खोजे जा रहे हैं। षहर की सफाई व्यवस्था के लिए अतिरिक्त तैनाती की जा रही है। फाॅगिंग मषीनों के लिए अलग से बजट भी मंजूर किये जा रहे हैं। कुछ समाज सेवी संगठन बदहाल स्वास्थ्य सेवा को लेकर स्वास्थ्य मंत्री का इस्तीफा भी मांग रहे हैं। फिलहाल प्रदेष में डेंगू को लेकर क्या स्थिति है इसका भी कोई स्थिर सरकारी आंकड़ा नहीं है। रोजाना आंकड़ों की तस्वीर बदलती जा रही है। हालांकि जिस खौफनाक मंजर तक डेंगू ने क्षेत्र विषेश को कब्जे में लिया है उसे देखते हुए स्पश्ट है कि आने वाले दिनों में इससे निपटने हेतु तंत्र को और गम्भीर बनना होगा। 
उत्तराखण्ड समेत भारत के कई प्रदेष इस जानलेवा समस्या से जूझ रहे हैं। कुछ इलाके तो ऐसे हैं जहां डेंगू के सैकड़ों मरीज हैं। पष्चिम बंगाल में इस साल डेंगू से सबसे ज्यादा मौत की सूचना है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर कहा है कि राज्य में अगस्त में 22 लोगों की मौत हो गई जबकि पिछले साल यहां इसी बीमारी से मरने वालों की संख्या 14 थी। बंगाल के बाद उड़ीसा और केरल का नाम आता है, इसके बाद कर्नाटक को देखा जा सकता है। दिल्ली में दो लोगों की मौत की बात कही गयी है। इस साल अब तक देष के डेंगू प्रभावित राज्यों में करीब 28 हजार के आस-पास मामले रहे हैं जिसमें 60 की मौत बताई गयी है। देखा जाय तो डेंगू जैसी बीमारी प्रतिवर्श बढ़त के साथ गिरफ्त में लेती रहती है। डेंगू से बचाव का सबसे प्रभावषाली तरीका मच्छरों की आबादी पर काबू करना है। इसके लिए लार्वा पर नियंत्रण करना होता है या फिर वयस्क मच्छरों की संख्या पर। एडीज़ मच्छर कृत्रिम जल संग्रह पात्रों में जनन करते हैं जैसे टायर, बोतल, कूलर, गुलदस्ते आदि। इन जल पात्रों को अक्सर खाली करना चाहिए। यही लार्वा पर नियंत्रण का सबसे अच्छा तरीका है जबकि वयस्क मच्छरों को काबू में लाने के लिए कीटनाषक धुंए का सहारा लिया जाता है। कहने का आषय यह हुआ कि मच्छर को काट देने से रोकने का तरीका भी डेंगू से बचना है अर्थात् होमवर्क सटीक हो तो डेंगू को भयावह रूप लेने से रोका जा सकता है। खास यह भी है कि इस प्रजाति के मच्छर दिन में काटते हैं जिसे देखते हुए मामला गम्भीर बन जाता है। उपरोक्त बिन्दु से यह भी स्पश्ट होता है कि क्लीन इण्डिया भी इस बीमारी से निजात के बारे में मददगार सिद्ध हो सकता है। इसके अलावा जन जागरूकता और सरकारी महकमे के द्वारा इसके बचाव में उठाये गये कदम भी मारक सिद्ध हो सकते हैं पर ऐसा देखा गया है कि सरकारें अपनी दिनचर्या में ऐसे बिन्दुओं को दरकिनार रखती है और जब पानी सर के ऊपर जाता है तब वे भी गति में आ जाते हैं। 
देखा जाय तो दुनिया भर के कई देष डेंगू के प्रकोप में कभी न कभी रहे हैं। एषिया पेसिफिक के देषों में भारत समेत आॅस्ट्रेलिया, चीन, इण्डोनेषिया, मलेषिया, पाकिस्तान, फिलिपीन्स समेत कई देष समय-समय पर इस भयावह समस्या से गुजरते रहे हैं। वैसे तो डेंगू एक उश्णकटीबंधीय देषों की समस्या है। ऐसे में साफ है कि ज्यादातर डेंगू की समस्याएं कर्क और मकर रेखा के बीच स्थित देषों को होती है। हालांकि जिस प्रकार से जलवायु परिवर्तन अपनी बदलाव की मुहिम में है उसे देखते हुए बीमारी के विन्यास और विस्तार दोनों में बड़ा अन्तर आया है। अब बीमारियों का भी ग्लोबलाइजेषन हो रहा है। मौजूदा परिस्थिति में जीका, चिकनगुनिया, मलेरिया, स्वयं डेंगू इसका बेहतर उदाहरण है। एक सच यह भी है कि डेंगू के डंक से सरकारें भी बौनी हो जाती हैं और स्वास्थ्य के मामले में बड़े-बड़े दावे करने वाले महकमे बीमारियों के आगे घुटने टेकते हुए दिखाई देते हैं। स्पश्ट है कि सरकार को ऐसे मामलों में प्राथमिकता के साथ कदम उठाना चाहिए पर हैरत इस बात की है कि पर्याप्त सुविधाओं के आभाव में बड़ी से बड़ी बहुमत वाली सरकारें जो लोक कल्याण की भावनाओं से युक्त होती हैं वे भी आम जनता की तरह ही मजबूर हो जाती हैं। कुछ प्रदेषों में निजी क्षेत्र के अस्पतालों का अच्छा खासा विस्तार है, उत्तराखण्ड भी इसमें षुमार है। सरकार को चाहिए कि जन स्वास्थ्य अधिनियम व क्लीनिकल इस्टैब्लिष्मेंट एक्ट का पालन मजबूती से सुनिष्चित कराये। सरकारी के साथ निजी अस्पतालों का तालमेल बिठाये ताकि पैर पसार रही बीमारियों से निपटना आसान हो जाय साथ ही यह नहीं भूलना चाहिए कि आम जन की जिम्मेदारी इस मामले में सरकार से पहले है। 


सुशील कुमार सिंह


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