Friday, August 26, 2016

अभी बाकी है एक और ओलंपिक से गुजरना

ब्राजील के रियो में सम्पन्न ओलम्पिक का खेल अब खत्म हो चुका है। कमोबेष सभी खिलाड़ी अपने वतन वापसी भी कर चुके हैं पर जो खौफ के षिकार हैं अभी वे असमंजस में हैं। कुछ के हाथ पदकों से भरे हैं तो कुछ के खाली हैं और खेल में ऐसा होता है। ओलम्पिक हमारे लिए भी उतना बुरा नहीं रहा जैसा सोचा जा रहा था। सवा अरब की आबादी वाले देष से दो महिला खिलाड़ियों ने रजत और कांस्य के साथ घर वापसी की है और उनका देष के भीतर जो स्वागत हुआ है वह किसी अजूबे से कम नहीं और जो बिना पदक के ही वापसी किये उनसे भी इतना गिला षिकवा नहीं कि उनके मनोबल पर बुरा असर पड़ता हो। भारत हार और जीत के बीच संतुलन बिठाने की बेजोड़ कला से परिचित है पर ऐसी ही कलाओं में कई देष माहिर नहीं हैं। दुनिया में सबसे चर्चित और प्रति चार वर्श पर आयोजित होने वाला ओलम्पिक कईयों के लिए जिन्दगी का हिस्सा तो कईयों की जिन्दगी ही है। इसकी गहराई को परखते हुए दृश्टिकोण को जब विस्तार देने की कोषिष की तो उस देष पर भी दृश्टि पड़ी जिनका रवैया पदकविहीन खिलाड़ियों को लेकर अमानवीय होने की ओर है। इसमें उत्तर कोरिया को षामिल होते हुए देखा जा सकता है। सवाल है कि ओलम्पिक के बाद कुछ देष अपने खिलाड़ियों को लेकर इतना सख्त रवैया कैसे अपना सकते हैं। क्यों उनकी दृश्टि में खेल एक खेल नहीं। क्यों इसमें हुई हार को वे अपनी अन्तर्राश्ट्रीय असफलता मान रहे हैं यह बात समझ से परे है।
भारत के 120 खिलाड़ी रियो ओलम्पिक में किस्मत आजमाने गये थे जिसमें बैडमिंटन में हैदराबाद की पी.वी. सिंधु और रेसलिंग में हरियाणा की साक्षी मलिक ने क्रमषः रजत और कांस्य पदक जीता। चीन को छोड़ दिया जाय तो दुनिया के किसी भी देष से सर्वाधिक आबादी भारत की है और झोली में केवल दो मेडल और इसमें भी सोना एक भी नहीं। बावजूद इसके हमारा सीना गर्व से चैड़ा है। वहीं मात्र ढ़ाई करोड़ की आबादी रखने वाले उत्तर कोरिया के 31 एथलीट ने दो गोल्ड के साथ 7 मेडल जीते हैं फिर भी वहां का तानाषाह किम जोंग पदक विहीन खिलाड़ियों की जान का आफत बन रहा है। उसके इस तौर-तरीके के चलते उत्तर कोरियाई खिलाड़ी खौफ में हैं। यहां तक वे अपनी जीत का जष्न भी नहीं मना पा रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि तानाषाह किम जोंग नाराज है और उसने जो लक्ष्य दिया था उसे वे पूरा नहीं कर पाये हैं। दरअसल 5 स्वर्ण पदक सहित 17 पदक की उम्मीद किम जोंग कर रहा था पर ऐसा नहीं हो सका। किम जोंग के बौखलाने के पीछे एक बड़ी वजह दक्षिण कोरिया भी है। धुर दुष्मन दक्षिण कोरिया ने इसी ओलम्पिक में 9 स्वर्ण, 3 रजत और 9 कांस्य सहित 21 पदक हासिल किये हैं। इसकी तुलना में किम जोंग अपने को पिछड़ता हुआ देख रहा है। ऐसे में उसका बौखलाना स्वाभाविक है पर ओलम्पिक में प्राप्त पदकों की गम्भीरता से षायद वह वाकिफ नहीं है। चूंकि किम जोंग द्वारा निर्धारित लक्ष्य को खिलाड़ी पूरा नहीं कर पाये हैं तो जाहिर है कि उनके लिए जो सज़ा सिरफिरा तानाषाह देगा उन्हें झेलनी ही पड़ेगी। बताया जा रहा है कि उत्तर कोरिया के एथलीट रियो जाने से पहले ही दबाव में थे। इसका कारण भी किम जोंग ही है। अब देष लौटने पर ऐसे खिलाड़ियों को क्या सजा मिलेगी अभी कुछ निष्चित तो नहीं है पर माना जा रहा है कि उन्हें कोयले की खदानों में काम करने की सजा दी जा सकती है पर एक सच्चाई यह भी है कि सनक चढ़ने पर इस तानाषाह के लिए कुछ भी करना बड़ी बात नहीं है। सजा-ए-मौत देना इसके लिए मजाक जैसा ही रहा है। 
रियो ओलम्पिक अमेरिका, इंग्लैण्ड समेत कई देषों के लिए सोना उगलने वाला सिद्ध हुआ है पर जो देष इसमें पिछड़ गये हैं वे टोक्यो में होने वाले ओलम्पिक को लेकर आषावादी दृश्टिकोण रखने लगे होंगे पर अखरने वाली बात यह है कि उत्तर कोरिया के हारे हुए खिलाड़ियों के मन में तो ऐसा विचार भी नहीं पनप रहा है। खेल के दौरान भी यह देखा गया है कि जीत के बावजूद उत्तर कोरियाई खिलाड़ी खुषी से उछल नहीं पा रहे थे। खौफ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उत्तर कोरिया के जिमनास्ट री से ग्वांग द्वारा ओलम्पिक में गोल्ड मेडल जीतने के बावजूद उनके चेहरे पर मुस्कान नहीं थी जबकि साथ खड़े रूस और जापान के खिलाड़ी खुष नजर आ रहे थे। सोषल मीडिया में तो उसे सबसे दुखी गोल्ड मेडलिस्ट तक कहा गया। कईयों ने तो यहां तक कहा कि ऐसा लग रहा है कि जैसे बन्दूक की नोक पर मेडल ले रहा हो। इसके अलावा पहली उत्तर कोरियाई महिला जिमनास्ट हांग यूं जूंग जिन्होंने अपने देष का नाम ऊँचा किया लेकिन सबसे बड़े दुष्मन देष दक्षिण कोरिया के खिलाड़ी के साथ सेल्फी के चलते पूरी उत्तर कोरियाई टीम में खलबली मच गयी। खलबली इस बात की जब तानाषाह इसे देखेगा तो मेडल जीतने वाली इस जिमनास्ट की पीठ थपथपाने के बजाय कहीं उसे सजा-ए-मौत न दे दे। बड़े दुःख की बात है कि ये सब आधुनिक विष्व में हो रहा है और इसके साक्षी हम भी हैं। यह बात समझ से परे है कि खौफ के इतने बड़े मंजर से उत्तर कोरिया के खिलाड़ी गुजरने के बावजूद 7 मेडल जीते हैं। इतनी बड़ी जीत पर जिस देष को अपने खिलाड़ियों पर इतराना चाहिए और जो पिछड़ गये उनका मनोबल बढ़ाना चाहिए पर आज वही उनको सज़ा देने पर तुला है। तानाषाह की करतूतों को पहले भी बहुत रूपों में देखा गया है। षेश विष्व की चिंता न करने वाला तानाषाह किम जोंग परमाणु हथियारों से लेकर मिसाइलों तक का खुल्लमखुल्ला परीक्षण करता रहा है, दुनिया को चुनौती देता रहा है। इस सरफिरे तानाषाह ने सैकड़ों को तोप से उड़वाया है। कई सगे-सम्बन्धियों को दर्जनों कुत्तों के सामने फेंक चुका है। गरीबी, बेरोजगारी, अषिक्षा से भरे उत्तर कोरिया का तानाषाह किम जोंग जिस रास्ते पर है जाहिर है वहां की जनता का सुबह-षाम खौफ में ही बीतता होगा।
इसके अलावा एक इथोपियाई खिलाड़ी रियो ओलम्पिक में अपने देष की राजनीतिक व्यवस्था के खिलाफ विरोध जताने वाले रजत पदक विजेता मैराथन धावक फियेसा लिलेसा सजा के डर से अपने देष इथोपिया नहीं लौटा। हालांकि इथोपिया ने किसी तरह की सजा नहीं दिये जाने का आष्वासन दिया है। सबके बावजूद सारा माजरा समझने के बाद यह बात भी समझ में आई है कि उत्तर कोरिया जैसे देष खेल को खेल के दायरे में नहीं रखना चाहते। देखा जाय तो रियो ओलम्पिक में भी भारत के सामने ढेर सारी चुनौतियां थी। बीजिंग ओलम्पिक में षूटिंग में स्वर्ण पदक जीतने वाले अभिनव बिन्द्रा और बैडमिन्टन की सायना नेहवाल के लिए रियो ओलम्पिक में कुछ नहीं रहा बावजूद इसके इनकी क्षमता पर संदेह नहीं है। इतना ही नहीं कई और खिलाड़ी जिनसे उम्मीदें थी उनकी नाउम्मीदी से भी माथे पर बल नहीं पड़ा। एक सच यह भी है कि जब विष्व के इतने बड़े खेल महोत्सव में हमारे खिलाड़ी पिछड़ते हैं या हारते हैं तो हम उन्हें दोश देने के बजाय सरकार को दोशी करार देते हैं क्योंकि यह जानते हैं कि जो खिलाड़ी बाजी मारकर आ रहा है वह उसकी अपनी व्यक्तिगत इच्छाषक्ति और तैयारी थी लेकिन हम चाहते हैं कि हमारे खिलाड़ी जीतें और सैकड़ों में मेडल लायें और दहाई में स्वर्ण भी लायें पर इसके लिए हमें दीर्घकालिक निवेष करना पड़ेगा। फिलहाल ओलम्पिक समाप्त होने के बाद भी अभी उत्तर कोरिया के खिलाड़ियों को एक और ओलम्पिक से गुजरना बाकी है।



सुशील कुमार सिंह


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