विरोध और हिंसा के बीच नेपाल अपना पहला नव लिखित संविधान बीते रविवार को लागू कर दिया जिसकी बनाने की कवायद पिछले सात वर्शों से की जा रही थी। कई मुष्किलों के बावजूद नेपाल में वह सब मुमकिन हुआ जो एक लोकतांत्रिक गणराज्य के लिए कहीं अधिक जरूरी होता है। हिन्दू राश्ट्र से धर्मनिरपेक्षता की काया ग्रहण करने वाला नेपाल कईयों का ध्यान एक सकारात्मक विमर्ष के लिए भी आकर्शित कर रहा है। इसके पूर्व नेपाल में अन्तरिम संविधान सक्रिय था। जाहिर है नये संविधान के लागू होने से अब पुराना संविधान निश्क्रिय हो चुका है। नेपाल में करीब 239 वर्शों तक षाह वंषों का षासन देखा जा सकता है जिसके अन्तिम षासक ज्ञानेन्द्र षाह रहे हैं इन्हीं के दौर में माओवादियों का उपद्रव व्यापक पैमाने पर बढ़ा था जिसको षांत कराने में भारत की अहम् भूमिका देखी जा सकती है। भारत की मध्यस्थता के चलते ही वर्श 2006 में माओवादी षांत हुए थे और यहां से वर्श 2008 में राजषाही का भी अन्त हो गया था। यहीं से नेपाल को एक नये परिवेष की अवधारणा से युक्त देखा जा सकता है। फिलहाल अब भारत की भांति नेपाल भी धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य की सूची में षुमार हो गया है लेकिन नेपाल में लागू नया संविधान अल्पसंख्यक मधेसी समूह का विरोध भी झेल रहा है। यहां यह समझना आवष्यक है कि आखिर यह मधेसी कौन हैं? दरअसल तराई के नाम से मषहूर मैदानी हिस्सों में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों को पहाड़ी समुदाय मधेसी के नाम से पुकारते हैं। इन्हें नये संविधान से कुछ मुद्दों पर आपत्ति है। नेपाल में कुल सात राज्य हैं। धर्मनिरपेक्ष राज्य वाले संघीय ढांचे का कुछ समूह इसका विरोध इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वे फिर से वे इसे हिन्दू राश्ट्र बनाने की मांग कर रहे हैं तो कुछ समूह भारतीय सीमा से सटे मैदानी सीमा के लिए इसे सही नहीं मान रहे।
फिलहाल नये संविधान के चलते मधेसी असंतोश ने एक नये संघर्श की ओर नेपाल को धकेल दिया है। संविधान स्वीकार करने की एक ओर खुषी है तो दूसरी ओर विरोध और हिंसा की आग लगी हुई है। कहा जाए तो उत्साह की जगह हिंसा ने ले ली है। भारत में भी स्थिति को समझते हुए यह चिंता जताई है और माना कि मामले को षान्ति से निराकरण तक पहुंचा जाए। जिन मुद्दों पर विरोध है उन्हें भी विस्तार से समझना सही होगा। पहला यह कि नेपाल में धर्मनिरपेक्ष षब्द को लेकर आपत्ति बढ़ी है। असल में यह षब्द नेपाल को हिन्दू राश्ट्र होने से वंचित करता है जिसे लेकर देष भर में प्रदर्षन जारी है। दूसरा धार्मिक और सांस्कृतिक आजादी पर भी मतभेद है। कुछ की आपत्ति यह है कि प्राचीन मान्यताओं का संरक्षण कहीं अधिक जरूरी है जिसके कारण हिन्दुत्व को बल मिलेगा। धर्मांतरण भी यहां तीसरे मुद्दे के रूप में देखा जा सकता है। आरोप है कि निचली जातियों और वंचित समूहों के इसाई धर्म स्वीकार किये जाने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। अन्तिम तो नहीं पर चैथा मुद्दा यह है कि नागरिकता को लेकर भी कई बातें खटकने वाली हैं। कुछ का आरोप है कि महिलाओं की नागरिकता में भेद है। नये संविधान के तहत प्रस्तावित प्रांत और सीमाएं भी अभी तय नहीं हैं। ऐसे तमाम जटिल मुद्दों से नेपाल का नया संविधान कुछ हद तक विरोध झेल रहा है।
जब बात धर्मनिरपेक्षता और लोकतांत्रिक गणराज्य की हो तो भारत से बेहतर उदाहरण इस धरा पर षायद सम्भव नहीं है। नेपाल अपने नये लिखित संविधान के चलते काफी कुछ भारत के और समीप आ गया है। करीब तीन करोड़ की आबादी रखने वाले नेपाल में 81 फीसदी हिन्दू और बौद्ध हैं जबकि एक करोड़ बीस लाख से अधिक की जनसंख्या मधेसियों की है। करीब 60 लाख नेपाली नागरिक भारत में बस चुके हैं जबकि नेपाल में बसने वाले भारतीयों की संख्या 6 लाख के आस-पास है। नेपाली बिना परिमट के भारत में काम कर सकते हैं, खाता खोल सकते हैं और सम्पत्ति भी रख सकते हैं साथ ही आवागमन को निर्बाध रूप से जारी रख सकते हैं। इतना ही नहीं नेपाल के विदेष व्यापार में एफडीआई का 47 फीसद हिस्सा भारत से ही है। सवाल है कि सब कुछ बेहतर और समुचित होने के बावजूद नये संविधान तत्पष्चात् नये नेपाल से भारत को कुछ उम्मीदें तो होगी जिस पर खरे उतरने की जिम्मेदारी नेपाल की भी है। सुरक्षा और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एवं तस्करी व नकली मुद्रा के मामले में सहयोग की अपेक्षा जरूर रहेगी। वर्श 2014 में प्रधानमंत्री मोदी का नेपाल दौरा तत्पष्चात् सार्क की बैठक में काठमांडू जाना और बीते अप्रैल में भूकम्प के दिनों में सहयोग देने वाले भारत के बारे में नेपाल भी काफी गम्भीर होगा। दोनों देषों के संयुक्त लाभ के लिए विकास भागीदारी का सुनिष्चित होना आदि। हालांकि भारत और नेपाल के बीच कुछ खटास वाली बातें भी हैं। हाल ही में पन बिजली विकास के लिए एक समझौते की पेषकष जब भारत द्वारा की गयी तो नेपाल की राजनीति में उबाल आ गया था। इसके पूर्व वर्श 1997 में महाकाली नदी समझौते के तहत पंचेष्वर परियोजना ऐसे विवाद में उलझी कि 18 साल बाद भी कागजी कार्यवाही से बाहर नहीं आ सकी।
देखा जाए तो नेपाल में जनतंत्र के जन्म का सफर जो 65 वर्श पुराना है वह मूर्त रूप ले चुका है। 601 सदस्यीय सभा ने नया संविधान 25 के मुकाबले 507 वोटों से पारित करके नेपाल को आतिषबाजी करने का पूरा अवसर दे दिया है। नेपाली संविधान में 37 भाग, 308 अनुच्छेद और 9 अनुसूचियां हैं जो भारत के संविधान के बराबर तो नहीं पर इर्द-गिर्द खड़ा दिखाई देता है। कायाकल्प की चाह रखने वाले नेपाल में फिलहाल सात प्रांतों के माॅडल वाले संविधान के विरोध में उतरे मधेसी दल अभी षांत नहीं पड़े हैं पर नेपाल जिस खासियत के साथ अपने संविधान को धरातल पर लाया है इससे यह संकेत मिलता है कि हिमालय में बसा पड़ोसी लोकतंत्र के नये युग की ओर कदम बढ़ा चुका है।
लेखक, वरिश्ठ स्तम्भकार एवं रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन के निदेषक हैं
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्ससाइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2710900, मो0: 9456120502
फिलहाल नये संविधान के चलते मधेसी असंतोश ने एक नये संघर्श की ओर नेपाल को धकेल दिया है। संविधान स्वीकार करने की एक ओर खुषी है तो दूसरी ओर विरोध और हिंसा की आग लगी हुई है। कहा जाए तो उत्साह की जगह हिंसा ने ले ली है। भारत में भी स्थिति को समझते हुए यह चिंता जताई है और माना कि मामले को षान्ति से निराकरण तक पहुंचा जाए। जिन मुद्दों पर विरोध है उन्हें भी विस्तार से समझना सही होगा। पहला यह कि नेपाल में धर्मनिरपेक्ष षब्द को लेकर आपत्ति बढ़ी है। असल में यह षब्द नेपाल को हिन्दू राश्ट्र होने से वंचित करता है जिसे लेकर देष भर में प्रदर्षन जारी है। दूसरा धार्मिक और सांस्कृतिक आजादी पर भी मतभेद है। कुछ की आपत्ति यह है कि प्राचीन मान्यताओं का संरक्षण कहीं अधिक जरूरी है जिसके कारण हिन्दुत्व को बल मिलेगा। धर्मांतरण भी यहां तीसरे मुद्दे के रूप में देखा जा सकता है। आरोप है कि निचली जातियों और वंचित समूहों के इसाई धर्म स्वीकार किये जाने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। अन्तिम तो नहीं पर चैथा मुद्दा यह है कि नागरिकता को लेकर भी कई बातें खटकने वाली हैं। कुछ का आरोप है कि महिलाओं की नागरिकता में भेद है। नये संविधान के तहत प्रस्तावित प्रांत और सीमाएं भी अभी तय नहीं हैं। ऐसे तमाम जटिल मुद्दों से नेपाल का नया संविधान कुछ हद तक विरोध झेल रहा है।
जब बात धर्मनिरपेक्षता और लोकतांत्रिक गणराज्य की हो तो भारत से बेहतर उदाहरण इस धरा पर षायद सम्भव नहीं है। नेपाल अपने नये लिखित संविधान के चलते काफी कुछ भारत के और समीप आ गया है। करीब तीन करोड़ की आबादी रखने वाले नेपाल में 81 फीसदी हिन्दू और बौद्ध हैं जबकि एक करोड़ बीस लाख से अधिक की जनसंख्या मधेसियों की है। करीब 60 लाख नेपाली नागरिक भारत में बस चुके हैं जबकि नेपाल में बसने वाले भारतीयों की संख्या 6 लाख के आस-पास है। नेपाली बिना परिमट के भारत में काम कर सकते हैं, खाता खोल सकते हैं और सम्पत्ति भी रख सकते हैं साथ ही आवागमन को निर्बाध रूप से जारी रख सकते हैं। इतना ही नहीं नेपाल के विदेष व्यापार में एफडीआई का 47 फीसद हिस्सा भारत से ही है। सवाल है कि सब कुछ बेहतर और समुचित होने के बावजूद नये संविधान तत्पष्चात् नये नेपाल से भारत को कुछ उम्मीदें तो होगी जिस पर खरे उतरने की जिम्मेदारी नेपाल की भी है। सुरक्षा और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एवं तस्करी व नकली मुद्रा के मामले में सहयोग की अपेक्षा जरूर रहेगी। वर्श 2014 में प्रधानमंत्री मोदी का नेपाल दौरा तत्पष्चात् सार्क की बैठक में काठमांडू जाना और बीते अप्रैल में भूकम्प के दिनों में सहयोग देने वाले भारत के बारे में नेपाल भी काफी गम्भीर होगा। दोनों देषों के संयुक्त लाभ के लिए विकास भागीदारी का सुनिष्चित होना आदि। हालांकि भारत और नेपाल के बीच कुछ खटास वाली बातें भी हैं। हाल ही में पन बिजली विकास के लिए एक समझौते की पेषकष जब भारत द्वारा की गयी तो नेपाल की राजनीति में उबाल आ गया था। इसके पूर्व वर्श 1997 में महाकाली नदी समझौते के तहत पंचेष्वर परियोजना ऐसे विवाद में उलझी कि 18 साल बाद भी कागजी कार्यवाही से बाहर नहीं आ सकी।
देखा जाए तो नेपाल में जनतंत्र के जन्म का सफर जो 65 वर्श पुराना है वह मूर्त रूप ले चुका है। 601 सदस्यीय सभा ने नया संविधान 25 के मुकाबले 507 वोटों से पारित करके नेपाल को आतिषबाजी करने का पूरा अवसर दे दिया है। नेपाली संविधान में 37 भाग, 308 अनुच्छेद और 9 अनुसूचियां हैं जो भारत के संविधान के बराबर तो नहीं पर इर्द-गिर्द खड़ा दिखाई देता है। कायाकल्प की चाह रखने वाले नेपाल में फिलहाल सात प्रांतों के माॅडल वाले संविधान के विरोध में उतरे मधेसी दल अभी षांत नहीं पड़े हैं पर नेपाल जिस खासियत के साथ अपने संविधान को धरातल पर लाया है इससे यह संकेत मिलता है कि हिमालय में बसा पड़ोसी लोकतंत्र के नये युग की ओर कदम बढ़ा चुका है।
लेखक, वरिश्ठ स्तम्भकार एवं रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन के निदेषक हैं
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
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देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
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