उच्च षिक्षा को लेकर दो प्रष्न मानस पटल पर उभरते हैं प्रथम यह कि क्या विष्व पटल पर तेजी से बदलते घटनाक्रम के बीच उच्चतर षिक्षा, षोध और ज्ञान के विभिन्न संस्थान स्थिति के अनुसार बदल रहे हैं दूसरा क्या अर्थव्यवस्था, दक्षता और प्रतिस्पर्धा के प्रभाव में षिक्षा के हाइटेक होने का कोई बड़ा लाभ मिल रहा है। यदि हां तो दूसरा सवाल यह है कि क्या परम्परागत मूल्यों और उद्देष्यों का संतुलन इसमें बरकरार है? तमाम ऐसे और ‘क्या‘ हैं जो उच्च षिक्षा को लेकर उभारे जा सकते हैं। विभिन्न विष्वविद्यालयों में षुरू में ज्ञान के सृजन का हस्तांतरण ‘भूमण्डलीय सीख‘ और ‘भूमण्डलीय हिस्सेदारी‘ के आधार पर हुआ था। षनैः षनैः बाजारवाद के चलते षिक्षा मात्रात्मक बढ़ी पर गुणवत्ता के मामले में फिसड्डी होती चली गयी। वर्तमान में तो इसे बाजारवाद और व्यक्तिवाद के संदर्भ में परखा और जांचा जा रहा है। तमाम ऐसे कारकों के चलते उच्च षिक्षा सवालों में घिरती चली गयी। यूजीसी द्वारा जारी विष्वविद्यालयों की सूची में 225 निजी विष्वविद्यालय पूरे देष में विद्यमान हैं जो आधारभूत संरचना के निर्माण में ही पूरी ताकत झोंके हुए है। यहां की षिक्षा व्यवस्था अत्यंत चिंताजनक है जबकि फीस उगाही में अव्वल है। भारत में उच्च षिक्षा की स्थिति चिंताजनक क्यों हुई ऐसा इसलिए कि इस क्षेत्र में उन मानकों को कहीं अधिक ढीला छोड़ दिया गया जिसे लेकर एक निष्चित नियोजन होना चाहिए था। उच्च षिक्षा में गुणवत्ता तभी आती है जब इसे षोधयुक्त बनाने का प्रयास किया जाता है न कि रोजगार जुटाने का जरिया बनाया जाता है। निजी विष्वविद्यालय बेषक फीस वसूलने में पूरा दम लगाये हुए हैं पर उच्च षिक्षा के प्रति मानो इनकी प्रतिबद्धता ही न हो। यहां षिक्षा एक पेषा है, इसका अपना एक ‘आकर्शण लाभ‘ है और युवकों और संरक्षकों में यह कहीं अधिक पसंद की जाती है। इसके पीछे कोई विषेश कारण न होकर इनका सुविधाप्रदायक होना ही है।
इन दिनों उच्च षिक्षा को लेकर कुछ राहत वाली सूचना भी है। क्वाकुरैली साइमंड्स (क्यूएस) की ओर से बीते मंगलवार को वर्श 2015-16 के लिए वैष्विक विष्वविद्यालयों की रैंकिंग जारी की गयी हालांकि प्रथम सौ में भारत का कोई भी विष्वविद्यालय षुमार नहीं है पर ऐसा पहली बार हुआ जब भारत के दो षिक्षण संस्थानों ने दुनिया के षीर्श 200 विष्वविद्यालयों में अपना स्थान पक्का किया। दुनिया भर के बेहतरीन विष्वविद्यालयों की सूची में इण्डियन इंस्टीट्यूट आॅफ साइंस बंगलुरू को 147वां और आईआईटी दिल्ली को 179वां स्थान मिला। इसके अलावा 200 से बाहर की सूची में आईआईटी बाॅम्बे (202), आईआईटी चेन्नई (254), आईआईटी कानपुर (271), आईआईटी खड़गपुर (286) और आईआईटी रूड़की (391) स्थान पर है। उक्त षिक्षण संस्थाओं को बारीकी से देखा जाए तो यह भारत की वे संस्थाएं हैं जो निहायत बेहतरी के लिए जानी जाती हैं बावजूद इसके रैंकिंग में ये काफी पीछे हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वैष्विक स्तर पर जो षैक्षणिक वातावरण और उच्च षिक्षा की स्थिति है उसकी तुलना में भारत अभी भी मीलों पीछे चल रहा है। अमेरिका का मेसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलोजी पहले की तरह अव्वल बना हुआ है जबकि यहीं का हावर्ड विष्वविद्यालय चैथे स्थान की छलांग लगाकर दूसरे स्थान पर है। ब्रिटेन का कैम्ब्रिज विष्वविद्यालय तीसरे स्थान पर है हालांकि यह विगत् वर्श दूसरे पर था। इसी क्रम में अमेरिका और यूरोप के अन्य उच्च षिक्षण संस्थानों का हाल देखा जा सकता है। स्वतंत्रता के पूर्व से ही यहां की संस्थाएं विष्व भर के लिए आकर्शण का केन्द्र बनी रही हैं। नेहरू, गांधी, अम्बेडकर जैसे तमाम नेता विदेषों में अध्ययन कर चुके हैं। साथ ही यहां के षैक्षणिक वातावरण षोध और अनुसंधान की दृश्टि में काफी प्रखर रहे हैं। डाॅ0 सी.वी. रमन से लेकर सुब्रमण्यम चन्द्रषेखर तक ने इन्हीं पष्चिमी उच्च षैक्षणिक संस्थाओं से न केवल भारत सहित दुनिया में नाम कमाया बल्कि नोबेल सम्मान से भी नवाजे गये।
भारत की उच्च षिक्षा व्यवस्था उदारीकरण के बाद जिस मात्रा में बढ़ी उसी औसत में गुणवत्ता विकसित नहीं हो पाई पर तसल्ली वाली बात यह है कि इस बार भारत की दो षिक्षण संस्थाएं दुनिया के विष्वविद्यालयों की सूची में 200 के अन्दर है। राश्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी इस उपलब्धि पर बधाई संदेष भेजा है। असल में षिक्षा कोई रातों-रात विकसित होने वाली व्यवस्था नहीं है। अक्सर अन्तर्राश्ट्रीय और वैष्वीकरण उच्चतर षिक्षा के संदर्भ में समानान्तर सिद्धान्त माने जाते हैं पर देषों की स्थिति के अनुसार देखें तो व्यवहारिक तौर पर यह विफल दिखाई देते हैं। भारत में उच्च षिक्षा को लेकर विगत् दो दषकों से काफी नरम रवैया देखा जा सकता है जो उच्च षिक्षा की गिरावट की षुरूआत भी है। इन्हीं गिरावटों के चलते ही पंजीकरण कराने वालों का अनुपात यहां दुनिया में सबसे कम 11 प्रतिषत है जबकि अमेरिका में यह 83 फीसदी है साथ ही विद्यालयी पढ़ाई करने वाले नौ छात्रों में से केवल एक ही काॅलेज पहुंच पाता है। वर्श 1956 से कार्यरत् यूजीसी जैसी संस्थाओं के पास भी मानो उच्च षिक्षा में सुधार के फाॅर्मूले का आभाव हो गया हो। देष की षिक्षा व्यवस्था में अमूल-चूल परिवर्तन तो चाहिए ही साथ ही इसे उम्मीदों से भरा भी बनाना होगा। आजादी के 50 साल बाद और उसके बाद उच्च षिक्षा संस्थाओं में बड़ा फर्क आया है। आंकड़े इस बात का समर्थन करते हैं कि देष के 90 फीसदी काॅलेज और 70 फीसदी विष्वविद्यालय बेहद कमजोर हैं। नैसकाॅम और मैकेन्से के ताजा षोध के मुताबिक मानविकी में प्रत्येक दस में एक और इंजीनियरिंग डिग्री धारक चार में से एक ही नौकरी के योग्य है। उच्च षिक्षा के गिरते स्तर को लेकर देष के राश्ट्रपति और केन्द्रीय विष्वविद्यालयों के कुलाधिपति प्रणब मुखर्जी ने भी चिंता करते हुए विष्वविद्यालयों के कुलपतियों की बैठक बुलाई। स्थिति को समझने के लिए उन्होंने स्वयं केन्द्रीय विष्वविद्यालयों का दौरा किया और वहां के षिक्षकों एवं छात्रों से मिले। इसे इस दिषा में उठाया गया एक बढ़िया कदम कहा जा सकता है। बावजूद इसके सुधार को लेकर अभी कोई ठोस रणनीति तो फिलहाल नहीं आई है।
षिक्षक, षिक्षार्थी और षैक्षणिक वातावरण किसी भी संस्थान की सफलता की गारंटी हैं। देष में विद्यमान कुछ निजी और कुछ सरकारी संस्थाएं आधारभूत भरपाई मात्र हैं न कि गुण प्रधान षिक्षा। उच्च षिक्षा की पड़ताल एजेन्सी में यूजीसी का नाम आता है पर 1956 की यह संस्था के पास भी मानो पड़ताल के अच्छे फाॅर्मूलों का अकाल हो। कई निजी विष्वविद्यालय ऐसे हैं जिसमें यूजीसी की पड़ताल टीम को पहुंचने में बरसों लग जाते हैं तब तक न जाने कितनी डिग्रियां वहां से बंट चुकी होती हैं। इतना ही नहीं उच्च षिक्षा में जिस कदर माफियागिरी चल रही है वे हालात को बद से बदतर बना रहे हैं। स्नातक, परास्नातक यहां तक कि पीएचडी के लिए भी मोटी रकम खर्च कीजिए और डिग्री समय से पहले और बिना कूबत खर्च किये प्राप्त कीजिए। बिगड़े हालात तो यही दर्षाते हैं कि षिक्षा के वैष्वीकरण के इस दौर में उच्च षिक्षा नौकरी पाने की एक आम अवधारणा से जुड़ गयी है जो निहायत खतरनाक है। इससे क्षेत्र विषेश में चुनौतियां घटने के बजाय बढ़ती ही हैं। समय की मांग यह है कि अधकचरी मनोदषा वाली उच्च षिक्षा को निराषा के भंवर से बाहर निकाल कर आषा और सुषासन के मार्ग की ओर धकेला जाए।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2710900, मो0: 9456120502
इन दिनों उच्च षिक्षा को लेकर कुछ राहत वाली सूचना भी है। क्वाकुरैली साइमंड्स (क्यूएस) की ओर से बीते मंगलवार को वर्श 2015-16 के लिए वैष्विक विष्वविद्यालयों की रैंकिंग जारी की गयी हालांकि प्रथम सौ में भारत का कोई भी विष्वविद्यालय षुमार नहीं है पर ऐसा पहली बार हुआ जब भारत के दो षिक्षण संस्थानों ने दुनिया के षीर्श 200 विष्वविद्यालयों में अपना स्थान पक्का किया। दुनिया भर के बेहतरीन विष्वविद्यालयों की सूची में इण्डियन इंस्टीट्यूट आॅफ साइंस बंगलुरू को 147वां और आईआईटी दिल्ली को 179वां स्थान मिला। इसके अलावा 200 से बाहर की सूची में आईआईटी बाॅम्बे (202), आईआईटी चेन्नई (254), आईआईटी कानपुर (271), आईआईटी खड़गपुर (286) और आईआईटी रूड़की (391) स्थान पर है। उक्त षिक्षण संस्थाओं को बारीकी से देखा जाए तो यह भारत की वे संस्थाएं हैं जो निहायत बेहतरी के लिए जानी जाती हैं बावजूद इसके रैंकिंग में ये काफी पीछे हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वैष्विक स्तर पर जो षैक्षणिक वातावरण और उच्च षिक्षा की स्थिति है उसकी तुलना में भारत अभी भी मीलों पीछे चल रहा है। अमेरिका का मेसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलोजी पहले की तरह अव्वल बना हुआ है जबकि यहीं का हावर्ड विष्वविद्यालय चैथे स्थान की छलांग लगाकर दूसरे स्थान पर है। ब्रिटेन का कैम्ब्रिज विष्वविद्यालय तीसरे स्थान पर है हालांकि यह विगत् वर्श दूसरे पर था। इसी क्रम में अमेरिका और यूरोप के अन्य उच्च षिक्षण संस्थानों का हाल देखा जा सकता है। स्वतंत्रता के पूर्व से ही यहां की संस्थाएं विष्व भर के लिए आकर्शण का केन्द्र बनी रही हैं। नेहरू, गांधी, अम्बेडकर जैसे तमाम नेता विदेषों में अध्ययन कर चुके हैं। साथ ही यहां के षैक्षणिक वातावरण षोध और अनुसंधान की दृश्टि में काफी प्रखर रहे हैं। डाॅ0 सी.वी. रमन से लेकर सुब्रमण्यम चन्द्रषेखर तक ने इन्हीं पष्चिमी उच्च षैक्षणिक संस्थाओं से न केवल भारत सहित दुनिया में नाम कमाया बल्कि नोबेल सम्मान से भी नवाजे गये।
भारत की उच्च षिक्षा व्यवस्था उदारीकरण के बाद जिस मात्रा में बढ़ी उसी औसत में गुणवत्ता विकसित नहीं हो पाई पर तसल्ली वाली बात यह है कि इस बार भारत की दो षिक्षण संस्थाएं दुनिया के विष्वविद्यालयों की सूची में 200 के अन्दर है। राश्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी इस उपलब्धि पर बधाई संदेष भेजा है। असल में षिक्षा कोई रातों-रात विकसित होने वाली व्यवस्था नहीं है। अक्सर अन्तर्राश्ट्रीय और वैष्वीकरण उच्चतर षिक्षा के संदर्भ में समानान्तर सिद्धान्त माने जाते हैं पर देषों की स्थिति के अनुसार देखें तो व्यवहारिक तौर पर यह विफल दिखाई देते हैं। भारत में उच्च षिक्षा को लेकर विगत् दो दषकों से काफी नरम रवैया देखा जा सकता है जो उच्च षिक्षा की गिरावट की षुरूआत भी है। इन्हीं गिरावटों के चलते ही पंजीकरण कराने वालों का अनुपात यहां दुनिया में सबसे कम 11 प्रतिषत है जबकि अमेरिका में यह 83 फीसदी है साथ ही विद्यालयी पढ़ाई करने वाले नौ छात्रों में से केवल एक ही काॅलेज पहुंच पाता है। वर्श 1956 से कार्यरत् यूजीसी जैसी संस्थाओं के पास भी मानो उच्च षिक्षा में सुधार के फाॅर्मूले का आभाव हो गया हो। देष की षिक्षा व्यवस्था में अमूल-चूल परिवर्तन तो चाहिए ही साथ ही इसे उम्मीदों से भरा भी बनाना होगा। आजादी के 50 साल बाद और उसके बाद उच्च षिक्षा संस्थाओं में बड़ा फर्क आया है। आंकड़े इस बात का समर्थन करते हैं कि देष के 90 फीसदी काॅलेज और 70 फीसदी विष्वविद्यालय बेहद कमजोर हैं। नैसकाॅम और मैकेन्से के ताजा षोध के मुताबिक मानविकी में प्रत्येक दस में एक और इंजीनियरिंग डिग्री धारक चार में से एक ही नौकरी के योग्य है। उच्च षिक्षा के गिरते स्तर को लेकर देष के राश्ट्रपति और केन्द्रीय विष्वविद्यालयों के कुलाधिपति प्रणब मुखर्जी ने भी चिंता करते हुए विष्वविद्यालयों के कुलपतियों की बैठक बुलाई। स्थिति को समझने के लिए उन्होंने स्वयं केन्द्रीय विष्वविद्यालयों का दौरा किया और वहां के षिक्षकों एवं छात्रों से मिले। इसे इस दिषा में उठाया गया एक बढ़िया कदम कहा जा सकता है। बावजूद इसके सुधार को लेकर अभी कोई ठोस रणनीति तो फिलहाल नहीं आई है।
षिक्षक, षिक्षार्थी और षैक्षणिक वातावरण किसी भी संस्थान की सफलता की गारंटी हैं। देष में विद्यमान कुछ निजी और कुछ सरकारी संस्थाएं आधारभूत भरपाई मात्र हैं न कि गुण प्रधान षिक्षा। उच्च षिक्षा की पड़ताल एजेन्सी में यूजीसी का नाम आता है पर 1956 की यह संस्था के पास भी मानो पड़ताल के अच्छे फाॅर्मूलों का अकाल हो। कई निजी विष्वविद्यालय ऐसे हैं जिसमें यूजीसी की पड़ताल टीम को पहुंचने में बरसों लग जाते हैं तब तक न जाने कितनी डिग्रियां वहां से बंट चुकी होती हैं। इतना ही नहीं उच्च षिक्षा में जिस कदर माफियागिरी चल रही है वे हालात को बद से बदतर बना रहे हैं। स्नातक, परास्नातक यहां तक कि पीएचडी के लिए भी मोटी रकम खर्च कीजिए और डिग्री समय से पहले और बिना कूबत खर्च किये प्राप्त कीजिए। बिगड़े हालात तो यही दर्षाते हैं कि षिक्षा के वैष्वीकरण के इस दौर में उच्च षिक्षा नौकरी पाने की एक आम अवधारणा से जुड़ गयी है जो निहायत खतरनाक है। इससे क्षेत्र विषेश में चुनौतियां घटने के बजाय बढ़ती ही हैं। समय की मांग यह है कि अधकचरी मनोदषा वाली उच्च षिक्षा को निराषा के भंवर से बाहर निकाल कर आषा और सुषासन के मार्ग की ओर धकेला जाए।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2710900, मो0: 9456120502
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