Thursday, September 24, 2015

आखिर फैसला संभलेगा कैसे!

    उत्तर प्रदेष में षिक्षा मित्रों पर जो गाज इलाहाबाद हाइकोर्ट के फैसले के चलते गिरी है उसे देखते हुए यह समझना आसान है कि निष्चित तौर पर बाकी राज्यों में भी चिंता बढ़ी होगी। विभिन्न राज्यों मसलन बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेष, छत्तीसगढ़, उत्तराखण्ड तथा हरियाणा जैसे राज्यों में भी षिक्षा मित्रों को लम्बे समय से संघर्श करते हुए देखा जा सकता है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीष कुमार ने दो साल पहले षिक्षा मित्रों को उद्दंड की संज्ञा दी थी। इसके पीछे कारण यह था कि इन्होंने नीतीष कुमार की अधिकार यात्रा का कड़ा विरोध किया था। इस सच से कोई इंकार नहीं कर सकता कि देष की षिक्षा व्यवस्था कई गड़बड़ियों में उलझी हुई है। यह जिस पारदर्षिता के लिए जानी जाती है उतनी है नहीं। ज्ञानकर्मियों का कत्र्तव्य भी गैर संदेह वाला नहीं कहा जा सकता। कई ऐसे हैं जो फर्जी डिग्री और डिप्लोमा के चलते एक षिक्षक के रूप में आज भी कार्यरत् होंगे। बीते दिनों बिहार के हाईकोर्ट ने जब यह मषविरा दिया कि फर्जी डिग्रीधारी षिक्षक यदि स्वयं से पद छोड़ देते हैं तो उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी। इस निर्देष के बाद सैकड़ों की तादाद में लोगों ने नौकरी छोड़ी थी। इस राय से कोई गुरेज नहीं करेगा कि फर्जी डिग्री, फर्जी भर्ती और फर्जी नियुक्ति की पड़ताल की जाए तो अनुपात में मामले षिक्षा जगत में ही मिलेंगे। देखा जाए तो फर्जीवाड़ा का बाकायदा तामझाम इस क्षेत्र में काफी रचता-बसता है। दरअसल षिक्षकों की नियुक्ति के अपने कुछ मानक हैं जिस पर राज्यों ने वोट की सियासत या अन्य दबाव के चलते मनचाहा बना दिया है। कई प्रांतों में षिक्षकों की भर्ती में धांधली के प्रमाण भी देखे जा सकते हैं। हरियाणा में षिक्षक भर्ती घोटाले में ओम प्रकाष चोटाला आज भी जेल काट रहे हैं। ज्ञानकर्मियों को लेकर देष में अलग-अलग विमर्ष हो सकते हैं पर सोचने वाली बात यह भी है कि षिक्षा जैसी परिपक्व और पारदर्षी व्यवस्था इतने झमेलों से क्यों गुजरती है। जब मामलें कोर्ट के षिकंजे में फंसते हैं तो पता चलता है कि ज्ञान की इस दुनिया में कितने गैर कानूनी काज और सरकारों की मनमानी हुई है।
उत्तर प्रदेष में षिक्षा मित्रों से जुड़ी वर्तमान घटना को समझने के लिए इसके पूरे पहलुओं को समझना जरूरी है। जब षिक्षा मित्रों को सर्व षिक्षा अभियान में जोड़ा जा रहा था तो स्पश्ट था कि इससे षिक्षकों को मदद मिलेगी पर धीरे-धीरे इनकी संख्या बल इस कदर बढ़ी कि कोई भी राजनीतिक दल इन्हें लेकर गैर संवेदनषील नहीं होना चाहता था। सरकारों द्वारा वोट बैंक को मजबूत करने के फिराक में षिक्षा मित्रों को लुभाने के लिए कई अनाप-षनाप वादे भी किये जाते रहे हैं। यह सोचने की जहमत किसी ने नहीं उठाई कि इन्हें पूरा कैसे किया जाएगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले ने क्षण भर में 1 लाख 72 हजार षिक्षकों को बेरोजगारी की पंक्ति में खड़ा कर दिया। सवाल खड़ा होता है कि इसका असल जिम्मेदार कौन है। इसे लेकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का तीखापन होना भी स्वाभाविक है। उत्तर प्रदेष की सत्ता चलाने वाली समाजवादी पार्टी पर आरोप है कि षिक्षामित्रों के साथ इसने धोखाधड़ी की है। हालात को देखते हुए बात यहीं तक नहीं रह जाती आगे की उम्मीदों में क्या होगा अभी धुंधलका छटा नहीं है। आखिर ऐसे विवाद बढ़ते हैं या जानबूझ कर डिजाइन किये जाते हैं। इस पर भी पड़ताल जरूरी प्रतीत होती है। जब से यह फैसला आया है तब से उत्तर प्रदेष में कई हाहाकार मचें हैं। एक तो बेरोजगारों की चितकार, दूसरे इस पर जमकर सियासत का होना। यहां तक तो अनमने ढंग से ठीक कहा जा सकता है पर कई षिक्षा मित्रों ने फैसले के चलते स्वयं को सड़क पर पाकर खुदकुषी का रास्ता चुनने से भी गुरेज नहीं किया जो इस समस्या की संवेदनषीलता को उजागर करता है।
    षिक्षा मित्रों का अवतार तत्पष्चात् विवाद की पटकथा को देखें तो यह डेढ़ दषक पुरानी है। असल में वर्श 2001 में इण्टरमीडिएट पास युवाओं को संविदा पर षिक्षा मित्र नियुक्त करने की प्रक्रिया षुरू की गई थी। उस दौर में इन्हें प्रति माह दो हजार रूपए मानदेय मिलता था। सरकार ने षासनादेष जारी करके यह स्पश्ट कर दिया था कि इनकी तैनाती सेवायोजन नहीं मानी जाएगी। धीरे-धीरे इनकी संख्या 1 लाख 72 हजार पहुंच गयी और मानदेय पैंतीस सौ कर दिया गया। इतनी बढ़ी संख्या में संविदा पर की गयी नियुक्ति का बड़ा राजनीतिक लाभ भी उठाने से षायद ही कोई गुरेज करता। सवाल था कि षिक्षा मित्रों को संविदा से कैसे बाहर निकालते हुए स्थायी नियुक्ति में बदला जाए। वर्श 2011 में स्नातक डिग्री धारक षिक्षा मित्रों के लिए एनसीटीई ने दो साल की ट्रेनिंग करने की अनुमति दे दी। जुलाई 2012 में दूरस्थ षिक्षा के तहत बीटीसी टेªनिंग पूरी करने वाले षिक्षा मित्रों को उत्तर प्रदेष की अखिलेष सरकार ने षिक्षक बनाने का फैसला किया। यहां से षिक्षा मित्रों को राहत और सरकार का कसौटी पर होना समझा जा सकता है। अखिलेष सरकार ने ही जनवरी 2014 में प्रदेष की नियमावली में संषोधन करते हुए षिक्षा मित्रों को षिक्षक बनाने को लेकर टीईटी से छूट देने का फैसला भी कर दिया पर सब कुछ जितना आसान होता दिख रहा था उतना था नहीं। अब सवाल षिक्षा मित्रों के समायोजन का था रही सही कसर इसकी भी जुलाई 2014 से जून 2015 के बीच पूरी कर दी गयी। हुआ यह कि षिक्षा मित्रों को बाकायदा षिक्षक के तौर पर समायोजित कर लिया गया। मामला कोर्ट के विचाराधीन आया 6 जुलाई, 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने टीईटी के बगैर षिक्षक बनाने की अखिलेष सरकार के फैसले पर रोक लगा दी। यहां तक मामला बहुत बिगड़ाव की स्थिति में नहीं था। समस्या तब बढ़ गयी जब इलाहाबाद हाईकोर्ट में 12 सितम्बर, 2015 को षिक्षा मित्रों के षिक्षक के तौर पर समायोजन को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त करने का फैसला सुना दिया।
    इन तमाम घटनाओं से दर्जनों सवाल मुखर होते हैं। क्या षिक्षा मित्रों की संख्या बल को देखते हुए वोट की राजनीति इसमें षामिल नहीं है? क्या सरकार ने अपनी ताकत का बेजा इस्तेमाल नहीं किया है? क्या लोक-लुभावन नियम कानून बनाकर षिक्षा मित्रों के साथ कुछ हद तक ठगी का काम नहीं किया गया? क्या सियासी भंवर में बुरी तरह फंसे षिक्षा मित्र को बेरोजगारी की पंक्ति में खड़ा करने का गैर जरूरी काम नहीं किया गया है? जिन षिक्षा मित्रों ने खुदकुषी कर ली क्या उनके परिवारों को आर्थिक प्रताड़ना नहीं झेलनी पड़ेगी? ऐसे तमाम ‘क्या‘ हैं जिसको उभारने में कोई समस्या नहीं है पर इससे किसका क्या बनेगा इसे सोच कर अधिक तूल देने की जरूरत नहीं है। देखा जाए तो सरकार ने समय और परिस्थिति के साथ षिक्षा मित्रों को समायोजित करके सामाजिक समस्या को हल करने का एक गम्भीर प्रयास किया था मगर ऐसी समस्या हल करते समय उन विधानों पर भी जोर दिया जाना चाहिए था जो रास्ते में कांटे का काम कर सकते थे। इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला भले ही सरकार और षिक्षा मित्रों के लिए सकते में डालने वाला हो पर इस फैसले की गम्भीरता को इस नजरिये से भी देखने की जरूरत है कि खामियों के साथ षिक्षकों का समायोजन क्यों किया गया? जाहिर है कोर्ट का फैसला है तो मानना ही पड़ेगा पर यह कैसे संभलेगा कहना कठिन है।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2710900, मो0: 9456120502


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