Friday, September 11, 2015

हिन्दी भाषा में बढ़ता निवेश

    हिन्दी के बढ़ते वैष्विकरण के मूल में गांधी की भाशा दृश्टि का महत्वपूर्ण स्थान है। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान भी विदेषों में हिन्दी के प्रचार-प्रसार व पाठ्यक्रमों के योगदान के लिए जानी-समझी जाती है। हिन्दी में ज्ञान, विज्ञान, प्रौद्योगिकी व तकनीकी विशयों पर सरल और उपयोगी पुस्तकों का फिलहाल अभी आभाव है पर जिस कदर भाशाई बढ़त की बात की जा रही है यह संकेत मिलता है कि यहां भी हिन्दी बढ़त ले लेगी। दक्षिण भारत के विष्वविद्यालयों में अभी हिन्दी विभाग की कमी है पर यह भी सही है कि यहां भाशाई विवाद अब जड़जंग हो रही है ऐसे में हिन्दी के लिए दक्षिणायन का मार्ग सुगम हो सकता है। हालांकि चिंगारी आये दिन उठती रहती है। यदि हिन्दी समृद्ध न होती तो भारत और भारतीयों का क्या होता इतना ही नहीं भाशाई जगत में भारत की पहचान भी किस भांति होती? इस प्रकार के संदर्भ हिन्दी भाशा की महत्ता और प्रासंगिकता दोनों को इसलिए उजागर करते हैं क्योंकि अरब से अधिक जनसंख्या रखने वाला देष में करोड़ों इसी भाशा की परवरिष से आगे बढ़े हैं। भाशा की ताकत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि यह दुनिया जहान से जुड़ने के काम आती है। किसी भी भाशा का बढ़ता हुआ गौरव उसके मूल के लिए आत्मगौरव का विशय बनता है। हिन्दी भारत देष की व्यापक सम्पर्क भाशा है ऐसे में इसे तमाम भाशाओं और बोलियों को संजोने का माध्यम भी बनाया जा सकता है। भोपाल में तीन दिवसीय हिन्दी अन्तर्राश्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने हिन्दी भाशा की गरिमा और गम्भीरता को लेकर कुछ इसी प्रकार का बखान किया, उन्होंने कहा अगर हम समय रहते न चेते तो हिन्दी भाशा के स्तर पर नुकसान उठाएंगे और यह पूरे देष का नुकसान होगा। यह सच है कि भाशा किसी भी संस्कृति का वह रूप है जिसके बगैर या तो वह पिछड़ जाती है या तो नश्ट हो जाती है। ऐसी ही मान्यताओं से युक्त विष्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन होता रहा है। यह हिन्दी भाशा का सबसे बड़ा अन्तर्राश्ट्रीय सम्मेलन है जिसमें हिन्दी के तमाम विद्वान, साहित्यकार, पत्रकार, भाशाई ज्ञानकर्मी और हिन्दी प्रेमी विष्व भर से आकर जुटते हैं। हिन्दी को लेकर अमूमन कई बातें देखने को मिलती हैं। पहली बात तो यह है कि अंग्रेजी के अनचाहे दबाव से यह लगातार क्षरण की ओर जा रही है। दूसरा हिन्दी का विस्तार तो हो रहा है पर मनोरंजन और सूचना माध्यमों में, मसलन टीवी चैनलों और विज्ञापनों में जबकि अधिकतर स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई होती है और बच्चे हिन्दी में लिखना-पढ़ना नहीं सीख पा रहे हैं जिसके फलस्वरूप नई पीढ़ी में हिन्दी निवेष कम हो रहा है।
पिछले तीन दषकों से विष्व हिन्दी सम्मेलन भारत सहित अलग-अलग देषों में आयोजित होता रहा है। इसे भारत की राश्ट्रभाशा के प्रति सरोकारों और प्रयोगों के तौर पर देखा जा सकता है साथ ही यह भाशाई बढ़त और लोकतिप्रयता की भी पहचान है। एतिहासिक परिदृष्य में अधिक गहराई और मान्यता के साथ विष्व हिन्दी सम्मेलन 1975 से प्रारम्भिकी लेता है। इसका पहला और तीसरा सम्मेलन क्रमषः नागपुर और दिल्ली में जबकि दूसरा और चैथा माॅरीषस के पोर्ट लुई में, पांचवां त्रिनिडाड-टोबेगो, छठा लंदन, सातवां सूरीनाम के पारामरिबो, आठवां सम्मेलन न्यूयाॅर्क और नौवां जोहांसबर्ग में सम्पन्न हुआ था। क्रमिक रूप से भोपाल दसवां विष्व हिन्दी सम्मेलन कहलाएगा। सम्मेलन के षुरूआती दिनों से लेकर अब तक हिन्दी के बारे में वैष्विक स्तर पर एक गम्भीर राय बन चुकी है। संयुक्त राश्ट्र संघ में हिन्दी को अधिकारिक भाशा का दर्जा देने की मांग ऐसे ही सम्मेलनों के बेहतर नतीजे के रूप में देखे जा सकते हैं। भोपाल में प्रधानमंत्री मोदी ने हिन्दी की ताकत को बड़े पैमाने पर रेखांकित करने का काम किया। उन्होंने कहा कि आने वाले वक्त में डिजिटल दुनिया में केवल तीन भाशाएं अंग्रेजी, हिन्दी और चीनी ही छाई होगी। मोदी की राय में दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी उद्योगों को हिन्दी भाशा के बाजार का विस्तार करना चाहिए। प्रधानमंत्री ने जो कहा वह कहीं अधिक महत्वपूर्ण है पर जो नहीं कहा वह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। इसी भारत में कुछ भाशाएं ऐसी भी हैं जो लुप्त होने के कगार पर हैं उन पर भी सोच-विचार की आवष्यकता है।
अगर मुझे हिन्दी नहीं आती तो मैं लोगों तक कैसे पहुंच पाता प्रधानमंत्री मोदी का यह कथन भाशाई सुचिता को समझने का अवसर देती है। भाशा एक ऐसा आवरण है जिसके प्रभाव में व्यक्ति न केवल पनाह लेता है बल्कि विकास की ओर भी जाता है। संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाशाओं का उल्लेख है जबकि 53 भाशा और 1600 बोलियां भारत में उपलब्ध हैं। विविधता में एकता का भाशाई रूप भी दुनिया के किसी भी देष में इतने व्यापक पैमाने पर तो नहीं है। तेजी से बदलती दुनिया का सामना करने के लिए भारत को एक मजबूत भाशा की जरूरत पड़ेगी। निःसंदेह हिन्दी इस हालात तक पहुंच चुकी है कि इसका सामना कर सके। भारत के  दो तिहाई लोग इसी भाशा में अपना जीवन निर्वाह करते हैं जिसमें कोई षक नहीं कि यह भाशा विष्व के भारी-भरकम देषों को भी लुभा रही है। हिन्दी ने कई देषों में अपनी पहचान बना ली है। अमेरिका, ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका जैसे तमाम देषों में हिन्दी भाशा सीखी और सिखाई जा रही है। बड़ी संख्या में विदेषियों का हिन्दी सीखने के लिए भारत आगमन होता है। दुनिया के 115 षिक्षण संस्थाओं में भारत को बेहतर ढंग से जानने के लिए हिन्दी का अध्ययन हो रहा है जिसमें 32 षिक्षण संस्थाएं अमेरिका में है। लंदन, कैम्ब्रिज और यार्क विष्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जा रही है। जर्मनी और नीदरलैंड आदि में भी हिन्दी षिक्षण संस्थाएं हैं। 1942 में चीन में हिन्दी अध्ययन की परम्परा षुरू हुई थी जबकि 1950 में जापानी रेडियो से पहली बार हिन्दी कार्यक्रम प्रसारित किया गया था, रूस में तो हिन्दी रचनाओं एवं ग्रन्थों का बड़े रूप में अनुवाद हुआ है। उपरोक्त से पता चलता है कि वैष्विक परिप्रेक्ष्य में भी हिन्दी भाशा में व्यापक पैमाने पर निवेष बरसों से होता रहा है।
हिन्दी वास्तविक रूप से किसी एक प्रदेष या क्षेत्र की भाशा नहीं है यह भारत की सम्पर्क भाशा है ठीक वैसे, जैसे विष्व में तमाम भाशाओं के बावजूद अंग्रेजी है। भारतीयों के बीच हिन्दी में संवाद उनकी एक जैविक विधा भी है। स्वयं प्रधानमंत्री मोदी मातृभाशा गुजराती होने के बावजूद कष्मीर से कन्याकुमारी तक हिन्दी में भाशण देते हैं। सिनेमा जगत ने भी फिल्मों के जरिये हिन्दी को अच्छा खासा मुकाम दिया हैे परन्तु जिस आषा और विन्यास के साथ हिन्दी भाशा का भाव और वर्णन भारत में फैला है वह अभी भी कई कमियों के साथ है। विष्व हिन्दी सम्मेलनों में भी यह चिंता देखने को मिलती रही है कि अन्तर्राश्ट्रीय भाशा के रूप में इसकी सम्भावनाएं कितनी सारगर्भित हैं और इसके लिए गहन प्रयास की भी बात तीसरे सम्मेलन में ही की गयी थी और समय-समय पर इसे सषक्त बनाने के लिए विचार भी आते रहे हैं। फिलहाल भारत में हिन्दी भाशा में अब तक का होने वाला निवेष कहीं अधिक संतोशजनक है और आने वाले दिनों में हिन्दी भारत के लिए बेहतर पहचान और गौरव दोनों के काम आयेगी ऐसी सोच रखना गैर वाजिब नहीं है।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2710900, मो0: 9456120502


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