प्रधानमंत्री मोदी की आयरलैंड एवं अमेरिकी यात्रा के संदर्भ में आलेख
वर्तमान भूमंडलीकृत विष्व की अनिवार्यताओं को देखते हुए भारत सरकार को खासा वक्त विदेष नीति पर खर्च करना होता है। किसी भी देष की विदेष नीति का मुख्य आधार सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक वर्चस्व पर तो टिका ही होता है साथ ही कूटनीतिक, सुरक्षा, व्यापार, वाणिज्य, निवेष तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान आदि पर तो ये पूरी षिद्दत लिए होता है। सवा साल पुरानी मोदी सरकार कुछ ऐसे ही दृश्टिकोणों से अभिभूत अब तक दो दर्जन देषों से सम्बन्धों का यष प्राप्त कर चुकी है। इसी क्रम में प्रधानमंत्री मोदी की आयरलैंड और अमेरिका की नूतन यात्रा 23 सितम्बर से षुरू हो चुकी है जो 29 सितम्बर को विराम लेगी। संयुक्त राश्ट्र संघ की बैठक को सम्बोधित करने से लेकर कैलिफोर्निया के सिलिकाॅन सिटी में हजारों व्यवसायी से रूबरू होने तक की यात्रा वृतान्त इसमें षामिल है। सप्ताह भर की यह यात्रा एक बार फिर कई नई उम्मीदों को समेटे हुए है। ध्यानतव्य है कि सितम्बर, 2014 के अन्तिम सप्ताह में ही मोदी अमेरिका की यात्रा पर थे और यहीं से भारत-अमेरिका सम्बन्ध दूसरे षब्दों में कहें तो मोदी-ओबामा सम्बन्ध की नई पटकथा लिखी गयी थी। प्रधानमंत्री की वैदेषिक यात्राओं की पड़ताल की जाए तो पता चलता है कि बहुत हद तक कामयाबी से यह सराबोर रही है। जिस प्रकार का चिर-परिचित अंदाज मोदी का है उसे देखते हुए यह अंदाजा लगाना आसान है कि सप्ताह भर के इस बार के वैष्विक यात्रा में भी बेहतर नतीजे देखने को मिलेंगे। कार्यक्रम की फहरिस्त लम्बी है आयरलैंड से षुरू सितम्बर यात्रा की एक खासियत यह भी है कि यहां की धरती पर लैंड करने वाले मोदी भारत के पहले प्रधानमंत्री होंगे। आयरलैंड के साथ भारत का सम्बन्ध भारतीय राश्ट्रीय आंदोलन के उन दिनों में कहीं अधिक व्यापक रूप लिये हुए था। भारतीय संविधान में निहित नीति-निर्देषक तत्व का सम्बन्ध यहीं से है। मोदी यहां अपने समकक्ष टी.ई. केन्नी से मुलाकात करेंगे और उनकी विदेष यात्रा की सूची में न केवल यूरोप का एक देष षुमार होगा बल्कि नये सिरे से आयरलैंड के साथ पुल का भी निर्माण किया जाना सम्भव होगा।
मोदी आयरलैंड से 24 सितम्बर को अमेरिका में लैंडिंग करेंगे। पहुंचने से पहले एक सकारात्मक काज यह हुआ है कि रक्षा सौदे के मामले हरी झण्डी मिल गई है। यात्रा के एक दिन पूर्व सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी ने अमेरिकी कम्पनी बोइंग के साथ 2.5 बिलियन डाॅलर अर्थात 165 अरब रूपए के रक्षा सौदे को मंजूरी दे दी है जो एनडीए सरकार के कार्यकाल का अब तक का सबसे बड़ा रक्षा सौदा है। दरअसल कई मामलों में मोदी के षासन काल की षुरूआत से ही अमेरिकी राश्ट्रपति ओबामा के साथ केमिस्ट्री अच्छी रही है। कईयों की तो यह भी राय है कि कुछ बातों को छोड़ दिया जाए तो भारत-अमेरिकी सम्बन्ध एक बेहतर मुकाम की ओर हैं ऐसे में इस प्रकार के सौदे दोनों देषों के न केवल कूटनीतिक सम्बन्धों के परिणाम हैं बल्कि बढ़े आपसी समझ के भी पर्याय हैं। इस सौदे के चलते अमेरिकी विमानन कम्पनी बोइंग से 22 अपाषे अटैक हेलिकाॅप्टर और 15 हैवी लिफ्ट हेलिकाॅप्टरों की खरीदारी की जाएगी। हालांकि इन हेलिकाॅप्टरों को खरीदने की कवायद यूपीए सरकार के समय वर्श 2009 से ही षुरू हो चुकी थी जो तीन साल तक अटका रहा साथ ही 13 बार इसकी कीमतों में सुधार किया गया। अन्ततः वर्श 2013 में लागत वार्ता को अन्तिम रूप भी दे दिया गया। उम्मीद तो यह थी कि यह सौदा जून में ही अन्तिम रूप ले लेगा क्योंकि इस दौरान अमेरिकी रक्षा मंत्री का भारत दौरा हुआ था पर अब यह डील पक्की है।
भारत और अमेरिका कई मामलों में साझीदार है जिसमें वे प्रायः एक-दूसरे के स्वाभाविक मित्र होने की बात कहते हैं। भारत विष्व का सबसे बड़ा जनतंत्र है जबकि अमेरिका विष्व का सबसे पुराना जनतंत्र है। दोनों कानूनों का सम्मान करते हैं, दोनों अपने-अपने संघीय ढांचे में है साथ ही दोनों स्वतंत्रता के आदर्षों को संजो कर रखते हैं इतना ही नहीं दोनों के समाज गत्यात्मक, बहुसांस्कृतिक, बहुजातीय और काफी हद तक खुले है। ऐसे में कई अपेक्षाओं का एक साथ पाया जाना और पूरा होना समझा जा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी 25 सितम्बर को संयुक्त राश्ट्र महासचिव बान की मून द्वारा आयोजित सतत् विकास सम्मेलन को सम्बोधित करेंगे जिसमें भारत की प्रक्रियागत् अवधारणा भी उजागर हो सकती है। इसी सम्मेलन में 2030 का एजेण्डा भी रखा जाएगा साथ ही भारत के दृश्टिकोण और चुनौतियों को भी मोदी द्वारा स्पश्टता मिलेगी। हालांकि इससे पहले मोदी 24 सितम्बर को आयरलैंड से अमेरिका पहुंचेंगे। अनुमान है कि ‘मेक इन इण्डिया‘ और ‘डिजिटल इण्डिया‘ का व्यापक एजेण्डा यहां विस्तार लेगा। इसी क्रम में कैलिफोर्निया में भारत-अमेरिकी फोरम से टाॅक इण्डिया तर्ज पर बातचीत और मुलाकात होगी। असल में प्रधानमंत्री मोदी ने बीते एक वर्श में कई विविध आर्थिक और वैज्ञानिक पहलुओं को एक विशय के रूप में उभार कर वैष्विक ध्यान आकर्शित किया है जिसमें ‘मेक इन इण्डिया‘ और ‘डिजिटल इण्डिया‘ पर्याप्त महत्व वाले हैं पर कठिनाई यह रही है कि इसकी वैष्विक पहुंच या देषीय प्रसार में अभी स्तरीय काम होना बाकी है। अमेरिका के सैन जोन के एसएपी सेन्टर में ‘डिजिटल इण्डिया‘ की सोच को आगे बढ़ाते हुए मोदी 27 सितम्बर को हजारों लोगों को सम्बोधित करेंगे। यह अमेरिका में की गयी ‘डिजिटल इण्डिया‘ के परिप्रेक्ष्य में बड़ा काज होगा।
मोदी की अमेरिकी यात्रा का पड़ाव जैसे-जैसे अन्त की ओर होगा चिंता और चुनौती भी उसी अनुपात में प्रखर हो सकती है। भारत आतंकवाद को विष्व षांति के लिए खतरा मानता रहा है। मुख्यतः अफगानिस्तान और पाकिस्तान में आतंकवादी गतिविधियों के चलते षांति हाषिये पर बनी रहती है। ऐसे में पड़ोसियों की भी चर्चा सुरक्षा के लिहाज से जरूरत के मुताबिक की जा सकती है। एजेण्डे के अनुसार देखें तो मोदी संयुक्त राश्ट्र में षांति संरक्षण के दूसरे सम्मेलन में भी बोलेंगे। मान्यता तो यह भी है कि आधारभूत प्रसंग को उम्दा बनाना हो तो देष एवं विदेष दोनों के संयोजन को पिरोना आना चाहिए। जाहिर है मोदी-ओबामा सम्बन्ध बाखूबी इस काम में लाया जा सकता है। इनके बीच तीसरी द्विपक्षीय वार्ता भी प्रस्तावित है साथ ही द्विपक्षीय आवाजाही भी जारी है। ओबामा भी बीते गणतंत्र दिवस में मुख्य अतिथि के तौर पर मोदी षासन काल में भारत आ चुके हैं और सम्बन्ध भी फलक पर रहा है। ऐसे में द्विपक्षीय वार्ता की सफलता में कोई पेंच होगा मुमकिन नहीं लगता। दोनों देषों के बीच असैन्य परमाणु करार और वाणिज्यिक समझौते की चर्चाएं कहीं अधिक प्रगतिषील रही हैं। रही बात विज्ञान, तकनीक, रक्षा व वैकल्पिक उर्जा पर होने वाली चर्चा की, तो यहां भी सम्बन्धों को देखते हुए काफी कुछ हासिल किया जाना कठिन नहीं प्रतीत होता। इस यात्रा के अर्थ में विमर्ष के कई केन्द्र निहित हैं पर कौन कितनी मजबूती से उभरेगा यह यात्रा के मूल्यांकन के बाद ही पता चलेगा। इसके अलावा कई कूटनीतिक अप्रत्यक्ष संदर्भ भी मजबूती की ओर झुकेंगे ऐसी भी सोच रखी जा सकती है। हालांकि नीतिगत परिप्रेक्ष्य यह भी है कि वैदेषिक सम्बन्ध कभी भी एक जैसे नहीं रहते। अमेरिका के साथ भारत का नाता काफी उतार-चढ़ाव वाला भी रहा है। बावजूद इसके पिछले सवा साल में जिस प्रकार का वातावरण दोनों देषों के बीच कायम है उसे देखते हुए यह यात्रा भी उम्मीदों से भरी प्रतीत होती है।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2710900, मो0: 9456120502
वर्तमान भूमंडलीकृत विष्व की अनिवार्यताओं को देखते हुए भारत सरकार को खासा वक्त विदेष नीति पर खर्च करना होता है। किसी भी देष की विदेष नीति का मुख्य आधार सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक वर्चस्व पर तो टिका ही होता है साथ ही कूटनीतिक, सुरक्षा, व्यापार, वाणिज्य, निवेष तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान आदि पर तो ये पूरी षिद्दत लिए होता है। सवा साल पुरानी मोदी सरकार कुछ ऐसे ही दृश्टिकोणों से अभिभूत अब तक दो दर्जन देषों से सम्बन्धों का यष प्राप्त कर चुकी है। इसी क्रम में प्रधानमंत्री मोदी की आयरलैंड और अमेरिका की नूतन यात्रा 23 सितम्बर से षुरू हो चुकी है जो 29 सितम्बर को विराम लेगी। संयुक्त राश्ट्र संघ की बैठक को सम्बोधित करने से लेकर कैलिफोर्निया के सिलिकाॅन सिटी में हजारों व्यवसायी से रूबरू होने तक की यात्रा वृतान्त इसमें षामिल है। सप्ताह भर की यह यात्रा एक बार फिर कई नई उम्मीदों को समेटे हुए है। ध्यानतव्य है कि सितम्बर, 2014 के अन्तिम सप्ताह में ही मोदी अमेरिका की यात्रा पर थे और यहीं से भारत-अमेरिका सम्बन्ध दूसरे षब्दों में कहें तो मोदी-ओबामा सम्बन्ध की नई पटकथा लिखी गयी थी। प्रधानमंत्री की वैदेषिक यात्राओं की पड़ताल की जाए तो पता चलता है कि बहुत हद तक कामयाबी से यह सराबोर रही है। जिस प्रकार का चिर-परिचित अंदाज मोदी का है उसे देखते हुए यह अंदाजा लगाना आसान है कि सप्ताह भर के इस बार के वैष्विक यात्रा में भी बेहतर नतीजे देखने को मिलेंगे। कार्यक्रम की फहरिस्त लम्बी है आयरलैंड से षुरू सितम्बर यात्रा की एक खासियत यह भी है कि यहां की धरती पर लैंड करने वाले मोदी भारत के पहले प्रधानमंत्री होंगे। आयरलैंड के साथ भारत का सम्बन्ध भारतीय राश्ट्रीय आंदोलन के उन दिनों में कहीं अधिक व्यापक रूप लिये हुए था। भारतीय संविधान में निहित नीति-निर्देषक तत्व का सम्बन्ध यहीं से है। मोदी यहां अपने समकक्ष टी.ई. केन्नी से मुलाकात करेंगे और उनकी विदेष यात्रा की सूची में न केवल यूरोप का एक देष षुमार होगा बल्कि नये सिरे से आयरलैंड के साथ पुल का भी निर्माण किया जाना सम्भव होगा।
मोदी आयरलैंड से 24 सितम्बर को अमेरिका में लैंडिंग करेंगे। पहुंचने से पहले एक सकारात्मक काज यह हुआ है कि रक्षा सौदे के मामले हरी झण्डी मिल गई है। यात्रा के एक दिन पूर्व सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी ने अमेरिकी कम्पनी बोइंग के साथ 2.5 बिलियन डाॅलर अर्थात 165 अरब रूपए के रक्षा सौदे को मंजूरी दे दी है जो एनडीए सरकार के कार्यकाल का अब तक का सबसे बड़ा रक्षा सौदा है। दरअसल कई मामलों में मोदी के षासन काल की षुरूआत से ही अमेरिकी राश्ट्रपति ओबामा के साथ केमिस्ट्री अच्छी रही है। कईयों की तो यह भी राय है कि कुछ बातों को छोड़ दिया जाए तो भारत-अमेरिकी सम्बन्ध एक बेहतर मुकाम की ओर हैं ऐसे में इस प्रकार के सौदे दोनों देषों के न केवल कूटनीतिक सम्बन्धों के परिणाम हैं बल्कि बढ़े आपसी समझ के भी पर्याय हैं। इस सौदे के चलते अमेरिकी विमानन कम्पनी बोइंग से 22 अपाषे अटैक हेलिकाॅप्टर और 15 हैवी लिफ्ट हेलिकाॅप्टरों की खरीदारी की जाएगी। हालांकि इन हेलिकाॅप्टरों को खरीदने की कवायद यूपीए सरकार के समय वर्श 2009 से ही षुरू हो चुकी थी जो तीन साल तक अटका रहा साथ ही 13 बार इसकी कीमतों में सुधार किया गया। अन्ततः वर्श 2013 में लागत वार्ता को अन्तिम रूप भी दे दिया गया। उम्मीद तो यह थी कि यह सौदा जून में ही अन्तिम रूप ले लेगा क्योंकि इस दौरान अमेरिकी रक्षा मंत्री का भारत दौरा हुआ था पर अब यह डील पक्की है।
भारत और अमेरिका कई मामलों में साझीदार है जिसमें वे प्रायः एक-दूसरे के स्वाभाविक मित्र होने की बात कहते हैं। भारत विष्व का सबसे बड़ा जनतंत्र है जबकि अमेरिका विष्व का सबसे पुराना जनतंत्र है। दोनों कानूनों का सम्मान करते हैं, दोनों अपने-अपने संघीय ढांचे में है साथ ही दोनों स्वतंत्रता के आदर्षों को संजो कर रखते हैं इतना ही नहीं दोनों के समाज गत्यात्मक, बहुसांस्कृतिक, बहुजातीय और काफी हद तक खुले है। ऐसे में कई अपेक्षाओं का एक साथ पाया जाना और पूरा होना समझा जा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी 25 सितम्बर को संयुक्त राश्ट्र महासचिव बान की मून द्वारा आयोजित सतत् विकास सम्मेलन को सम्बोधित करेंगे जिसमें भारत की प्रक्रियागत् अवधारणा भी उजागर हो सकती है। इसी सम्मेलन में 2030 का एजेण्डा भी रखा जाएगा साथ ही भारत के दृश्टिकोण और चुनौतियों को भी मोदी द्वारा स्पश्टता मिलेगी। हालांकि इससे पहले मोदी 24 सितम्बर को आयरलैंड से अमेरिका पहुंचेंगे। अनुमान है कि ‘मेक इन इण्डिया‘ और ‘डिजिटल इण्डिया‘ का व्यापक एजेण्डा यहां विस्तार लेगा। इसी क्रम में कैलिफोर्निया में भारत-अमेरिकी फोरम से टाॅक इण्डिया तर्ज पर बातचीत और मुलाकात होगी। असल में प्रधानमंत्री मोदी ने बीते एक वर्श में कई विविध आर्थिक और वैज्ञानिक पहलुओं को एक विशय के रूप में उभार कर वैष्विक ध्यान आकर्शित किया है जिसमें ‘मेक इन इण्डिया‘ और ‘डिजिटल इण्डिया‘ पर्याप्त महत्व वाले हैं पर कठिनाई यह रही है कि इसकी वैष्विक पहुंच या देषीय प्रसार में अभी स्तरीय काम होना बाकी है। अमेरिका के सैन जोन के एसएपी सेन्टर में ‘डिजिटल इण्डिया‘ की सोच को आगे बढ़ाते हुए मोदी 27 सितम्बर को हजारों लोगों को सम्बोधित करेंगे। यह अमेरिका में की गयी ‘डिजिटल इण्डिया‘ के परिप्रेक्ष्य में बड़ा काज होगा।
मोदी की अमेरिकी यात्रा का पड़ाव जैसे-जैसे अन्त की ओर होगा चिंता और चुनौती भी उसी अनुपात में प्रखर हो सकती है। भारत आतंकवाद को विष्व षांति के लिए खतरा मानता रहा है। मुख्यतः अफगानिस्तान और पाकिस्तान में आतंकवादी गतिविधियों के चलते षांति हाषिये पर बनी रहती है। ऐसे में पड़ोसियों की भी चर्चा सुरक्षा के लिहाज से जरूरत के मुताबिक की जा सकती है। एजेण्डे के अनुसार देखें तो मोदी संयुक्त राश्ट्र में षांति संरक्षण के दूसरे सम्मेलन में भी बोलेंगे। मान्यता तो यह भी है कि आधारभूत प्रसंग को उम्दा बनाना हो तो देष एवं विदेष दोनों के संयोजन को पिरोना आना चाहिए। जाहिर है मोदी-ओबामा सम्बन्ध बाखूबी इस काम में लाया जा सकता है। इनके बीच तीसरी द्विपक्षीय वार्ता भी प्रस्तावित है साथ ही द्विपक्षीय आवाजाही भी जारी है। ओबामा भी बीते गणतंत्र दिवस में मुख्य अतिथि के तौर पर मोदी षासन काल में भारत आ चुके हैं और सम्बन्ध भी फलक पर रहा है। ऐसे में द्विपक्षीय वार्ता की सफलता में कोई पेंच होगा मुमकिन नहीं लगता। दोनों देषों के बीच असैन्य परमाणु करार और वाणिज्यिक समझौते की चर्चाएं कहीं अधिक प्रगतिषील रही हैं। रही बात विज्ञान, तकनीक, रक्षा व वैकल्पिक उर्जा पर होने वाली चर्चा की, तो यहां भी सम्बन्धों को देखते हुए काफी कुछ हासिल किया जाना कठिन नहीं प्रतीत होता। इस यात्रा के अर्थ में विमर्ष के कई केन्द्र निहित हैं पर कौन कितनी मजबूती से उभरेगा यह यात्रा के मूल्यांकन के बाद ही पता चलेगा। इसके अलावा कई कूटनीतिक अप्रत्यक्ष संदर्भ भी मजबूती की ओर झुकेंगे ऐसी भी सोच रखी जा सकती है। हालांकि नीतिगत परिप्रेक्ष्य यह भी है कि वैदेषिक सम्बन्ध कभी भी एक जैसे नहीं रहते। अमेरिका के साथ भारत का नाता काफी उतार-चढ़ाव वाला भी रहा है। बावजूद इसके पिछले सवा साल में जिस प्रकार का वातावरण दोनों देषों के बीच कायम है उसे देखते हुए यह यात्रा भी उम्मीदों से भरी प्रतीत होती है।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
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