Thursday, January 28, 2021

संविधान, गणतंत्र और सुशासन

सुषासन सम्बंधी आकांक्षाएं भारतीय संविधान की प्रस्तावना में निहित हैं। यह प्रस्तावना षासन के लिए एक दार्षनिक आधार प्रस्तुत करती है जिसके चलते सुषासन का मार्ग सषक्त होता है। इसी के अंतर्गत गणतंत्र और लोकतंत्र की पराकाश्ठा भी देखी जा सकती है। भारत में लोकतंत्र षासन का हृदय है जबकि गणतंत्र एक ऐसा प्रारूप जहां विधि की दृश्टि में सभी नागरिक बराबर होते हैं। गणतंत्र के षाब्दिक अर्थ में जाया जाये तो इसका तात्पर्य है कि भारत का राश्ट्राध्यक्ष निर्वाचित होगा न कि आनुवांषिक। 26 जनवरी, 1950 को देष में संविधान लागू हुआ और यह तारीख गणतंत्र दिवस के रूप में प्रतिश्ठित हुई तब से लेकर अब तक यह तारीख एक विरासत के तौर पर भारतीय जनमानस के भीतर कहीं अधिक प्रमुखता के साथ अंतरनिहित है। गौरतलब है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के अलावा यदि देष के सामने कोई मजबूत चुनौती थी तो वह एक अच्छे संविधान के निर्माण की थी जिसे संविधान सभा ने लोकतांत्रिक मूल्य को आत्मसात करते हुए 2 वर्श, 11 महीने और 18 दिन में एक भव्य और दिव्य संविधान निर्मित करके यह भी कसर पूरी कर दी। गणतंत्र की यात्रा संविधान लागू होने के दिन से षुरू हुई और स्वतंत्र भारत में गणतंत्र और सुषासन एक पर्याय के तौर पर कदमताल करने लगे। गौरतलब है कि संविधान स्वयं में एक सुषासन है और देष के उन्नयन की कुंजी भी। 

गणतंत्र के इस अवसर पर संविधान और सुषासन की कसौटी पर सरकार के चरमोत्कर्श को भी पहचानना ठीक रहेगा। इसमें कोई दुविधा नहीं कि सरकारें आती और जाती हैं जबकि संविधान और गणतंत्र साथ ही लोकतंत्र और उसका पराक्रम बना रहता है। रोटी, कपड़ा, मकान, षिक्षा, चिकित्सा और सुरक्षा समेत कई बुनियादी समस्याएं षासन के लिए पहले भी चुनौती थी और अब भी बनी हुई हैं। रोज़गार से लेकर कारोबार तक की समस्याएं कमोबेष अभी बरकरार है। हर चैथा व्यक्ति अषिक्षित और इतने ही गरीबी रेखा के नीचे हैं। इतना ही नहीं 2020 के हालिया ग्लोबल हंगर इंडेक्स को देखें तो भारत में भूख की स्थिति का भी जो वर्णन है वह भी हतप्रभ करने वाला है। समस्याओं का उन्मूलन किसी चुनौती से कम नहीं है। संविधान और गणतंत्र एक ही उम्र के हैं जबकि सुषासन हमारी विरासत भी है। हालांकि गणतंत्र को भी प्राचीन काल से ही देखा जा सकता है जो मौजूदा समय में एक मजबूत इतिहास के साथ विरासत भी है। समता, स्वतंत्रता और बंधुता समेत कई परिप्रेक्ष्य संविधान के मूल में है। संविधान के भाग-4 के अंतर्गत निहित नीति निर्देषक तत्व जहां आर्थिक लोकतंत्र और लोक कल्याण की भावना से ओत-प्रोत हैं वहीं गांधी दर्षन के सर्वोदय के भाव को भी यह समेटे हुए हैं। 

सुषासन वह है जो सभी के सुखों का ख्याल रखे और बेपटरी व्यवस्था को चलायमान करे। कोविड-19 के चलते 2021 का गणतंत्र भी कई जकड़न से भरा रहा पर हर्शोल्लास को कमतर नहीं आंका जा सकता। संविधान और सुषासन नागरिकों को सषक्त बनाता है। संविधान सर्वोच्च विधि और नियमों की संहिता है जिसके पदचिन्हों पर चलकर सरकारें नीतियों का निश्पादन करती हैं। इसी के फलस्वरूप सुषासन की बयार बहती है और गणतंत्र के प्रति नागरिकों का समर्पण दिखता है। हर राश्ट्र अपनी जनता और सरकार के साझा मूल्यों के द्वारा निर्देषित होता है ऐसे मूल्यों के प्रति पूरे राश्ट्र की प्रतिबद्धता षासन के दायरे और उसकी गुणवत्ता को बहुत अधिक प्रभावित करती है। गणतंत्र की स्थापना के समय भारतीय परिप्रेक्ष्य में राश्ट्रवाद, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, गुटनिरपेक्षता एवं मिश्रित अर्थव्यवस्था के मूल्य निहित थे। पिछले 72 वर्शों में हमारी वैचारिक अवधारणा जन अभिरूचि के अनुसार निर्धारित होती आयी है। वैसे देखा जाय तो सुषासन का दावा करने वाली सरकारों के लिए गणतंत्र एक अवसर भी होता है जो समतामूलक दृश्टिकोण से युक्त होते हुए अंतिम व्यक्ति तक विकास विन्यास के रचनाकार बने हैं और दषकों पुराने संकल्प को दोहरायें कि यह क्रम आगे भी जारी रहेगा। 

संविधान हमारी प्रतिबद्धता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का साझा समझ है जबकि गणतंत्र हमारी विरासत और ताकत है और इन्हीं के दरमियान जनोन्मुख, पारदर्षी और उत्तरदायित्व भावना से ओत-प्रोत सुषासन को क्रियागत होते देखा जा सकता है। संविधान सरकार गठित करने का उपाय देता है, अधिकार देता है और दायित्व को भी बताता है मगर सत्ता के मखमली चटाई पर चलने वाले सत्ताधारक भी संविधान के साथ कभी-कभी रूखा व्यवहार कर देते हैं। चूंकि संविधान स्वयं में सुषासन है ऐसे में सुषासन के साथ संविधान के भी चोटिल होने के खतरे बढ़ जाते हैं। फिलहाल परिस्थितियां कुछ भी हों संविधान से ही देष की परवरिष होती है और गणतंत्र की आन-बान-षान बरकरार रहती है साथ ही सामाजिक-उन्नयन में सरकारें खुली किताब और सुषासन का पथ चिकना करती हैं।



डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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