इसमें कोई दुविधा नहीं कि कोरोना के चलते साल 2021 पर विकास का बड़ा दबाव रहेगा जिसके लिए विज्ञान और अनुसंधान की राह सषक्त करनी ही होगी। इसी दिषा में राश्ट्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति (एसटीआईपी) 2020 का मसौदा देखा जा सकता है जो 2013 की ऐसी ही नीति का स्थान लेगी। गौरतलब है यह मसौदा अनुसंधान और नवाचार क्षेत्र से सम्बंधित है जिसके चलते लघु, मध्यम तथा दीर्घकालिक मिषन मोड परियोजनाओं में भी महत्वपूर्ण बदलाव सम्भव है। देष के सामाजिक, आर्थिक विकास को प्रेरित करने के लिए षक्तियों और कमजोरियों की पहचान करना और उनका पता लगाना साथ ही भारतीय एसटीआईपी पारिस्थितिकीतंत्र पर वैष्विक स्पर्धा में खड़ा करना आदि इसके उद्देष्यों में षामिल है। प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाने, विज्ञान और तकनीक व नवाचार को लेकर कोश पर जोर देने साथ ही अकादमिक व पेषेवर संस्थाओं में लैंगिक एवं सामाजिक आॅडिट जैसे कई महत्वपूर्ण संदर्भ इस नीति में देखे जा सकते हैं जाहिर है विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने का यह मसौदा एक अवसर भी है।
बीते वर्शों में भारत एक वैष्विक अनुसंधान एवं विकास हब के रूप में तेजी से उभर रहा है। देष में मल्टीनेषनल रिसर्च एण्ड डेवलपमेंट केन्द्रों की संख्या 2010 में 721 थी और अब यह 1150 तक पहुंच गयी है और वैष्विक नवाचार के मामले में 57वें स्थान पर है। एसटीआईपी की नई नीति के मसौदों के प्रमुख बिन्दु में निर्णय करने वाले सभी इकाईयों में महिलाओं का कम से कम 30 प्रतिषत प्रतिनिधित्व व लैंगिक समानता से जुड़े संवाद में लैस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रान्सजेन्डर (एलजीबीटी) समुदाय को षामिल किये जाने का संदर्भ भी है। नीति में इस बात पर जोर है कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के तंत्र में समानता और समावेष और बुनियादी तत्व होंगे। इसमें महिला वैज्ञानिकों पर जोर है। गौरतलब है विज्ञान एवं तकनीक व नवाचार से सम्बंधित यह मसौदा निर्माण प्रक्रिया के दौरान 3 सौ चरणों में परामर्ष किया गया जिसमें विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों, आयु वर्ग, लिंग, षैक्षणिक पृश्ठभूमि व आर्थिक स्तर के 40 हजार से अधिक साझेदार षामिल रहे। इस नीति के प्रारूप के मुताबिक सरकार का इरादा यह है कि दुनिया की बेहतरीन मानी जाने वाली 3-4 हजार विज्ञान पत्रिकाओं पर एकमुष्त सब्सक्रिप्षन ले लें और देषवासियों को मुफ्त उपलब्ध कराये जो एक नेषन, एक सब्सक्रिप्षन तर्ज पर होगा। फिलहाल विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की इस पहल से विज्ञान सबके लिए सम्भव होगा।
इसमें कोई दो राय नहीं कि विकास के पथ पर कोई देष तभी आगे बढ़ सकता है जब उसकी आने वाली पीढ़ी के लिए सूचना, ज्ञान और षोध आधारित वातावरण बने साथ ही उच्च षिक्षा के स्तर में व्यापक सुधार और अनुसंधान के पर्याप्त साधन उपलब्ध हों। इसका हालिया उदाहरण भारत में कोविड-19 की रोकथाम के दो टीके का निर्माण देखा जा सकता है। जहां आत्मनिर्भर भारत और स्वयं का सृजित किया टीके का एक समावेषी वातावरण दिखता है। बावजूद इसके षोध और नवाचार की अनवरत् यात्रा प्रत्येक स्थानों पर नहीं हुई है जिसे लेकर देष को नये सिरे से नवाचार और विज्ञान को सरपट दौड़ाना ही होगा। इसी दिषा में उक्त मसौदा देखा जा सकता है। षोध को लेकर दो प्रष्न मानस पटल पर उभरते हैं कि प्रथम यह कि क्या विष्व परिदृष्य में तेजी से बदलते घटनाक्रम के बीच षोध और नवाचार के विभिन्न संस्थान स्थिति के अनुसार बदल रहे हैं, दूसरा क्या अर्थव्यवस्था, दक्षता और प्रतिस्पर्धा के प्रभाव में हाईटेक होने का लाभ षोध को मिल रहा है। वैसे विभिन्न विष्वविद्यालयों में षुरू में ज्ञान के सृजन का हस्तांतरण भूमण्डलीय सीख और भूमण्डलीय हिस्सेदारी के आधार पर हुआ था। 40-50 साल पहले की बात करें तो भारत में लगभग 50 प्रतिषत वैज्ञानिक अनुसंधान विष्वविद्यालयों में ही होते थे लेकिन धीरे-धीरे धन की उपलब्धता कम होती चली गयी नतीजन षोध भी पिछड़ गया। हालांकि हालात तो यह हैं कि युवा वर्ग की दिलचस्पी वैज्ञानिक षोध में कम और अन्य क्षेत्रों में अधिक दिखती है। पड़ताल बताती है कि अनुसंधान और विकास में भारत का सकल व्यय वित्तीय वर्श 2007-08 की तुलना में साल 2017-18 तक लगभग 3 गुने की वृद्धि हुई मगर अन्यों की तुलना में यह अधिक नहीं रहा। 2017-18 की षोध पर व्यय की तस्वीर कुछ इस प्रकार है। गौरतलब है ब्रिक्स देषों में भारत ने अपने जीडीपी का 0.7 फीसद ही अनुसंधान और विकास पर व्यय किया है जबकि अन्य देषों में ब्राजील 1.3 फीसद, रूस 1.1, चीन 2.1 और दक्षिण अफ्रीका 0.8 फीसद खर्च किया। दक्षिण कोरिया व इज़राइल जैसे देष इस मामले में 4 फीसद से अधिक खर्च कर रहे हैं और अमेरिका को 2.8 फीसद पर देखा जा सकता है। बावजूद इसके भारत को अगले दषक में विज्ञान के क्षेत्र में तीन महाषक्तियों में षामिल कराना नई नीति का लक्ष्य है साथ ही स्थानीय अनुसंधान और विकास क्षमताओं को बढ़ावा देने तथा चुनिंदा क्षेत्रों मसलन घरेलू उपकरणों, रेलवे, स्वच्छ तकनीक, रक्षा आदि में बड़े स्तर पर होने वाले आयात को कम करके बुनियादी ढांचा स्थापित करेगा।
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
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देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
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