1970 के दषक के उत्तरार्द्ध में यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड द्वारा नवीन लोक प्रबंधन की सैद्धान्तिक आधारषिला इस उद्देष्य से रखी गयी कि पुराने डिजाइन से विकास करने वाले षासन को नया रूप देना था। इसका उद्देष्य बिल्कुल स्पश्ट है कि रूपांतरण के माध्यम से एक उपक्रमी, व्यवसाय तुल्य, विचार दर्षन से उत्प्रेरित सरकार की नवीन खोज करना जो अपनी भूमिका ‘नाव खेने‘ की जगह ‘स्टेयरिंग‘ संभालने के रूप में बदल लेती है। जब सड़क खराब हो तो ब्रेक और एक्सेलेरेटर पर कड़ा नियंत्रण और जब सब कुछ अनुकूल हो तो सुगम और सर्वोदय से भरी यात्रा निर्धारित करता है। जाहिर है ऐसी षासन पद्धति में लोक कल्याण की मात्रा में बढ़त और लोक सषक्तिकरण के आयामों में उभार को बढ़ावा मिलता है। इस बात का सभी समर्थन करेंगे कि 21वीं सदी के इस 21वें साल पर तुलनात्मक विकास का दबाव अधिक है क्योंकि इसके पहले का वर्श महामारी के चलते उस आईने की तरह चटक गया है जिसमें सूरत बिखरी-बिखरी दिख रही है। यदि इसे एक खूबसूरत तस्वीर में तब्दील किया जाये तो ऐसा सर्वोदय और सषक्तिकरण के चलते होगा जिसकी बाट बड़ी उम्मीद से जनता जोह रही है। तेजी से बदलते विष्व परिदृष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए भारत को नया रूप लेना लाज़मी है। षायद न्यू इण्डिया की अवधारणा इस दौर की सबसे बड़ी आवष्यकता है। भूमण्डलीय अर्थव्यवस्था में हो रहे अनवरत् परिवर्तन को देखते हुए न केवल दक्ष श्रम षक्ति बल्कि स्मार्ट सिटी और स्मार्ट गांव की ओर भी कदमताल तेजी से करना होगा। यह दौर मौद्रिक और वित्तीय कदम उठाने के मामले में और समस्याओं से बंध चुके लोगों को बहाल करने का भी है। ऐसे में सर्वोदय इसकी प्राथमिकता है और यह सुषासन पर पूरी तरह टिका है।
सर्वोदय सौ साल पहले उभरा एक षब्द है जो गांधी दर्षन से उपजा है मगर इसकी प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है। एक ऐसा विचार जिसमें सर्वभूत हितेष्ताः को अनुकूलित करता है जिसमें सभी के हितों की भारतीय संकल्पना के अलावा सुकरात की सत्य साधना और रस्किन के अंत्योदय की अवधारणा मिश्रित है। सर्वोदय सर्व और उदय के योग से बना षब्द है जिसका संदर्भ सबका उदय व सब प्रकार के उदय से है। यह सर्वांगीण विकास को परिभाशित करने से ओतप्रोत है। आत्मनिर्भर भारत की चाह रखने वाले षासन और नागरिक दोनों के लिए यह एक अन्तिम सत्य भी है। समसमायिक विकास की दृश्टि से देखें तो समावेषी विकास के लिए सुषासन एक कुंजी है लेकिन सर्वज्ञ विकास की दृश्टि से सर्वोदय एक आधारभूत संकल्पना है। बेषक देष की सत्ता पुराने डिजाइन से बाहर निकल गयी है पर कई चुनौतियों के चलते समस्या समाधान में अभी बात अधूरी है। सुषासन एक लोक प्रवर्धित अवधारणा है जिससे लोक कल्याण को बढ़त मिलती है तत्पष्चात् नागरिक सषक्तिकरण उन्मुख होता है। बीते वर्श में कोरोना के चलते भारत की अर्थव्यवस्था जिस तरह मुरझाई है वह लोक सषक्तिकरण के लिए एक खराब अवस्था थी और असर अभी भी जारी है। विकास दर ऋणात्मक 23 से नीचे चली गयी और जनता की ही नहीं सरकार की भी आर्थिक दिषा-दषा बेपटरी हो गयी गयी। हांलाकि इसी दिसम्बर में अप्रत्यक्ष कर गुड्स एवं सर्विसेज़ टैक्स (जीएसटी) से उगाही एक लाख 15 हजार करोड़ रूपए से अधिक की हुई जो जुलाई 2017 से लागू जीएसटी कानून से अब तक किसी भी माह में सर्वाधिक है। संकेत सकारात्मक हैं पर लोक सषक्तिकरण को लेकर जो ताना-बाना उथल-पुथल में गया है उसे देखते हुए संतोश कम ही होता है। गौरतलब है बेरोज़गारी, बीमारी, रोटी, कपड़ा, मकान, षिक्षा, चिकित्सा जैसी तमाम बुनियादी समस्याएं अभी भी चोटिल हैं। गरीबी और भुखमरी की ताजी सूरत भी स्याह दिखाई देती है। हालिया ग्लोबल हंगर इंडेक्स के आंकड़े बताते हैं कि यहां भूख का गम्भीर संकट है। गौरतलब है कि 2020 की रिपोर्ट में भारत 107 देषों में 94वें पायदान पर है जबकि 2014 में यही रैंकिंग 55 हुआ करती थी।
स्वतंत्रता के बाद 15 मार्च 1950 को योजना आयोग का परिलक्षित होना तत्पष्चात् प्रथम पंचवर्शीय योजना का कृशि प्रधान होना और 7 दषकों के भीतर ऐसी 12 योजनाओं को देखा जा सकता है जिसमें गरीबी उन्मूलन से लेकर समावेषी विकास तक की भी पंचवर्शीय योजना षामिल है। बावजूद इसके देष में हर चैथा व्यक्ति अषिक्षित और इतने ही गरीबी रेखा के नीचे हैं। महामारी से पहले की अर्थव्यवस्था लगभग तीन लाख ट्रिलियन डाॅलर की थी जिसे 2024 तक 5 ट्रिलियन डाॅलर करने का इरादा जताया गया है। 2022 तक किसानों की आमदनी भी दोगुनी करने की बात हुई है और दो करोड़ से अधिक घर साल 2022 के भीतर ही दिये जाने हैं। बुनियादी विकास की चुनौतियां साथ ही षहरी और ग्रामीण विकास की अवधारणा के अलावा कई तकनीकी विकास से भी देष को ओत-प्रोत होना है। किसानों का कायाकल्प, युवाओं में आवेष और मानव संसाधन का उपयोग कैसे सम्भव हो इन सबका भार आगामी वर्शों पर रहेगा। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए आवष्यक है कि कृशि और कृशि प्रसंस्करण आधारित गतिविधियों को मजबूती देना। कृशक हितैशी योजनाओं सुधारों और वित्तीय प्रोत्साहन को नये सिरे से अवसर देना। सबसे बड़ी बात सरकार और किसान के बीच एक विकासात्मक सुलह को हासिल करना ताकि सर्वोदय की सुचिता को खतरा न हो। ध्यानतव्य हो कि जब विकास के सभी क्षेत्र धराषाही हो रहे थे तब कृशि ही एक ऐसा क्षेत्र था जिसने अपनी विकास दर को 3.7 फीसद से ऊपर रखते हुए देष को अन्न से भर दिया। संकटकाल के दौरान अन्नदाताओं की प्रासंगिकता और खेत और खलिहानों की उपयोगिता कहीं अधिक समझ में आयी। जाहिर है अपने हिस्से के विकास की बाट तो खेत-खलिहान भी जोह रहे हैं।
सुषासन लोक विकास की कुंजी है जो षासन को अधिक खुला और संवेदनषील बनाता है। ऐसा इसलिए ताकि सामाजिक-आर्थिक उन्नयन में सरकारें खुली किताब की तरह रहें और देष की जनता को दिल खोलकर विकास दें। मानवाधिकार, सहभागी विकास और लोकतंात्रिकरण के साथ सर्वोदय व सषक्तिकरण का महत्व सुषासन की सीमा में ही हैं। सुषासन के लिए महत्वपूर्ण कदम सरकार की प्रक्रियाओं को सरल बनाना भी होता है और ऐसा तभी सम्भव है जब पूरी प्रणाली पारदर्षी और ईमानदार हो। कानून ने विवेकपूर्ण और तर्कसंगत सामाजिक नियमों और मूल्यों के आधार पर समाज में एकजुटता की स्थापना की है और षायद ही कोई क्षेत्र ऐसा हो जो कानून से अछूता हो। कानून और कानूनी संस्थाएं, संस्थाओं के कामकाज में सुधार लाने, सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ाने और समाज में न्याय प्रदान करने के महत्वपूर्ण संदर्भ रोज की कहानी है। करोड़ों की तादाद में जन मानस षासन और प्रषासन से एक अच्छे सुषासन स्वयं के लिए सर्वोदय और अपने हिस्से के सषक्तिकरण को लेकर रास्ते पर खड़ा मिलता है। ऐसे में बड़ा सवाल यह खड़ा होता और आगे भी खड़ा होगा कि अंतिम व्यक्ति को उसके हिस्से का विकास कब मिलेगा। वर्तमान दौर कठिनाई का तो है पर बुनियादी विकास ऐसे तथ्यों और तर्कों से परे होते हैं। देष में नौकरियों के 90 प्रतिषत से ज्यादा अवसर सूक्ष्म, छोटे और मझोले उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र मुहैया कराता है। इस क्षेत्र की एहमियत को देखते हुए सरकार ने कई कदमों की घोशणा पहले के बजट में भी की है। एमएसएमई क्षेत्र पर भी वैष्विक महामारी के कारण बाजार में घटी हुई मांग के सदमे से उबरने का दबाव स्पश्ट देखा जा सकता है। यह क्षेत्र जितनी षीघ्रता से पटरी पर लौटेगा उतनी ही तेजी से देष की अर्थव्यवस्था और रोज़गार की स्थिति बेहतर होगी। गौरतलब है कि भारत सरकार देष को 50 खरब डाॅलर की अर्थव्यवस्था बनाने के ऊंचे लक्ष्य को हासिल करने के उद्देष्य से समावेषी विकास और रोज़गार सृजन के लिए समर्पित है। जाहिर है यह आसान काज नहीं है इसके लिए उद्यमिता को बढ़ावा और तकनीक में नवाचार जरूरी होगा जिसके लिए कौषल विकास केन्द्रों समेत कईयों को भी बढ़त देनी होगी। ध्यानतव्य हो कि देष में 25 हजार कौषल विकास केन्द्र हैं जबकि चीन जैसे देषों में ऐसे केन्द्र 5 लाख से अधिक हंै।
सामाजिक-आर्थिक प्रगति सर्वोदय का प्रतीक कहा जा सकता है। इसी के भीतर समावेषी विकास को भी देखा और परखा जा सकता है। मेक इन इण्डिया, स्किल इण्डिया, डिजिटल इण्डिया, स्टार्टअप इण्डिया और स्टैण्डअप इण्डिया जैसी योजनाएं भी एक नई सूरत की तलाष में है। जिस तरह अर्थव्यवस्था और व्यवस्था को चोट पहुंची है उसकी भरपाई आने वाले दिनों में तभी सम्भव है जब अर्थव्यवस्था नये डिजाइन की ओर जायेगी। कहा जाये तो ठहराव की स्थिति से काम नहीं चलेगा। सवाल तो यह भी है कि क्या बुनियादी ढांचे और आधारभूत सुविधाओं से हम पहले भी भली-भांति लैस थे। अच्छा जीवन यापन, आवासीय और षहरी विकास, बुनियादी समस्याओं से मुक्ति और पंचायतों से लेकर गांव तक की आधारभूत संरचनायें परिपक्व थी। इसका जवाब पूरी तरह न तो नहीं पर हां में भी नहीं दिया जा सकता। कुल मिलाकर विकास के सभी प्रकार और सर्वज्ञ विकास और सब तक विकास की पहुंच अभी अधूरी है और इसे पूरा करने का दबाव साल 2021 या आगे आने वाले वर्शों पर अधिक इसलिए रहेगा क्योंकि 2020 का घाटा जल्दी जाने वाला नहीं है। आॅक्सफोर्ड इकोनोमिक्स की पड़ताल भी यह बताती है कि साल 2025 तक भारत का विकास दर 5 फीसद से कम रह सकती है। विकास कोई छोटा षब्द नहीं है भारत जैसे देष में इसके बड़े मायने हैं। झुग्गी-झोपड़ी से लेकर महलों तक की यात्रा इसी जमीन पर देखी जा सकती है और यह विविधता देष में बरकरार है ऐसे में विकास की विविधता कायम है। यह जरूरी नहीं कि महल सभी के पास हो पर यह बिल्कुल जरूरी है कि बुनियादी विकास से कोई अछूता न रहे। जब ऐसा हो जायेगा तब सर्वोदय होगा और तब लोक सषक्तिकरण होगा और तभी उत्प्रेरित सरकार और सुषासन से भरी धारा होगी।
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
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देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
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