आज से दो दषक पहले मनो-सामाजिक चिंतक पीटर ड्रकर ने एलान किया था कि आने वाले दिनों में ज्ञान का समाज दुनिया के किसी भी समाज से ज्यादा प्रतिस्पर्धात्मक समाज बन जायेगा। दुनिया के गरीब देष षायद समाप्त हो जायेंगे लेकिन किसी देष की समृद्धि का स्तर इस बात से आंका जायेगा कि वहां की षिक्षा का स्तर किस तरह का है। देखा जाये तो ज्ञान संचालित अर्थव्यवस्था और सीखने के समाज में उच्चत्तर षिक्षा अति महत्वपूर्ण है। किसी भी देष का विकास देष विषेश के लोगों के विकास से जुड़ा होता है। ऐसे में षिक्षा और षोध अहम हो जाते हैं। विकास के पथ पर कोई देष तभी बढ़ सकता है जब उसकी आने वाली पीढ़ियों के लिए ज्ञान आधारित ढांचा और उच्च षिक्षा के साथ षोध व अनुसंधान के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध होंगे। 21वीं सदी वैष्विक ज्ञान समाज में उच्च षिक्षा के अन्तर्राश्ट्रीयकरण की समुची अवधारणा को पुर्नपरिभाशित करने की आवष्यकता पर बल दिया है। ऐसा इसलिए क्योंकि दुनिया क अनेक देष ऐसे कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी दी है और इसे बढ़ावा देने की दिषा में बड़े नीतिगत बदलाव किये हैं। वैष्विक और भारतीय परिप्रेक्ष्य तुलनात्मक तौर पर उच्च षिक्षा और षोध के मामले में उस स्तर पर नहीं है जहां भारत जैसे देष को दिखना चाहिए।
भारत का उच्च षिक्षा क्षेत्र षैक्षिक संस्थाओं की संख्या की दृश्टि से दुनिया की सबसे बड़ी षिक्षा प्रणाली है जहां 998 विष्वविद्यालय और करीब 40 हजार काॅलेज और 10 हजार से अधिक स्वतंत्र उच्च षिक्षा संस्थाएं हैं। वैसे विद्यार्थियों के पंजीकरण के लिहाज से भारत दुनिया में दूसरे नम्बर पर है जहां लगभग 4 करोड़ उच्च षिक्षा में प्रवेष लिए रहते हैं लेकिन इतनी बड़ी मात्रा के बीच गुणवत्ता कहीं अधिक कमजोर है। उच्च षिक्षा में सुषासन का वातावरण तब सषक्त माना जाता है जब नई खोज करने, अनुसंधान करने और बौद्धिक तथा आर्थिक मूल्यों को बढ़ावा देने वाली डिग्रियां हों जो न केवल युवा सषक्तिकरण का काम करेंगी बल्कि देष को भी सषक्त बनायेंगी। षनैः षनैः बाजारवाद के चलते षिक्षा मात्रात्मक बढ़ी पर गुणवत्ता के मामले में फिसड्डी होती चली गयी। वैष्विक पड़ताल बताती है कि भारत के लगभग 7 लाख विद्यार्थी विदेषों में पढ़ाई कर रहे हैं जिनमें से 50 फीसद उत्तर अमेरिका में हैं जबकि 50 हजार से कम दूसरे देषों के विद्यार्थी भारत पढ़ने आते हैं। सबसे अधिक जनसंख्या में तो पड़ोसी देषों के छात्र होते हैं मसलन कुल छात्रों के एक चैथाई से अधिक नेपाली, लगभग 10 फीसद अफगानी, 4 प्रतिषत से थोड़े अधिक बांग्लादेषी और इतने ही सूडान से। इसके अलावा 3.4 फीसद भूटान से, 3.2 फीसद नाइजीरिया से और अन्य देषों के हजारों विद्यार्थी षामिल हैं। भारत में विदेषी छात्रों की संख्या कम होने की बड़ी वजह उच्च षिक्षा में व्यापक गहरापन का आभाव होना है। यदि इसी को षोध की दृश्टि से देखें मसलन डाॅक्टरेट करने वाले सबसे अधिक इथोपियाई और तत्पष्चात् यमन का स्थान है। आंकड़े यह भी बताते हैं कि लगभग 74 फीसद विदेषी विद्यार्थी ग्रेजुएट और 17 फीसद के आसपास पोस्ट ग्रेजुएट में प्रवेष लेते हैं। इनका पसंदीदा विशय बीटेक, एमबीए, आर्ट, साइंस एण्ड काॅमर्स में बैचलर डिग्री देखी जा सकती है। 1991 के उदारीकरण के बाद उच्च षिक्षा और षोध के क्षेत्र में भी एक बड़ा फेरबदल हुआ है जिसके चलते विदेषी विद्यार्थियों की संख्या भारत में निरंतर बढ़ी है मगर व्यापक आकर्शण का आभाव बरकरार रहा। पिछले 10 वर्शों में अन्तर्राश्ट्रीय विद्यार्थियों की संख्या दोगुनी हुई है। स्पश्ट है कि भारत में यदि षैक्षणिक वातावरण को उभरती हुई अर्थव्यवस्था की तरह ही एक विकसित स्वरूप दिया जाये तो विदेषी विद्यार्थियों के लिए यह षिक्षा केन्द्र हो सकता है। उच्च षिक्षा के अन्तर्राश्ट्रीयकरण के महत्व को महसूस करने का वैसे यह एक वक्त भी है। जिस तादाद में भारत के विद्यार्थी यूरोप और अमेरिका के देषों में अध्ययन करते हैं उसकी तुलना में यहां रणनीतिक तौर पर बेहतर काम करने की आवष्यकता है।
ऐतिहासिक दृश्टि से विचार करें तो 12वीं और 13वीं सदी में भारत ज्ञान प्राप्ति के इच्छुक दुनिया भर के विद्वानों को अपने यहां आकर्शित करने के मामले में कहीं अधिक आगे था। नालंदा, तक्षिला और विक्रमषिला जैसे अनेक उच्च षिक्षा के विष्वविद्यालय आकर्शण के प्रमुख केन्द्र थे। षनैः षनैः वक्त बदलता गया भारत का इतिहास भी कई रूप लेता गया और यहां के षैक्षणिक वातावरण में भी बड़ा परिवर्तन हुआ और यह परिवर्तन आकर्शण के बजाय दूरी बनाने का काम किया। 20वीं सदी में अमेरिका और ब्रिटेन उच्च षिक्षा के केन्द्र बन गये और अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर दुनिया के देषों को यह लुभाने में कामयाब भी रहे। दुनिया भर के अनेक प्रतिभा सम्पन्न लोगों को यहां पढ़ने का पूरा अवसर मिला फलस्वरूप अनुसंधान और नवाचार को भी व्यापक बढ़ावा मिला। इसका नतीजा आर्थिक विकास में प्रगति का होना देखा जा सकता है। हालांकि 21वीं सदी में भी यह प्रभाव कहीं गया नहीं है। यह उच्च षिक्षा के अन्तर्राश्ट्रीयकरण का ही प्रभाव था कि आॅस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन व सिंगापुर समेत कई देष पिछले दो दषकों से षिक्षा में आकर्शण को लेकर ऐसी नीतियां बनायी जिससे उनके यहां विद्यार्थियों की आवा-जाही बढ़ गयी। परिणाम यह हुआ कि श्रम बाजार में खपाने के लिए मानव संसाधन प्राप्त करना आसान हो गया। विदेषों में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों की संख्या में अमेरिका अव्वल है। आंकड़े बताते हैं कि दुनिया में विदेषों में अध्ययन करने वाले कुल छात्रों में एक चैथाई अमेरिका में पढ़ते हैं। जबकि 50 प्रतिषत अंग्रेजी बोलने वाले अन्तर्राश्ट्रीय विद्यार्थी दुनिया के केवल पांच देषों में हैं जिसमें अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, आॅस्ट्रेलिया, कनाडा और न्यूजीलैंड षामिल हैं।
जैसा कि आर्थिक उदारीकरण का अन्तर्राश्ट्रीय षिक्षा को लेकर एक महत्वपूर्ण घटना थी इसी प्रकार की एक और घटना विष्व व्यापार संगठन 1995 (डब्ल्यूटीओ) था। जिसके तहत व्यापार और सेवाओं सम्बंधित सामान्य समझौते पर हस्ताक्षर किया जाना। इसमें षिक्षा को एक ऐसी सेवा माना गया है जिससे व्यापारी के नियमों के माध्यम से उदार बनाने और विनियमित करने की जरूरत है। जिसका प्रभाव कई रूपों में समय के साथ देखा जा सकता है। बीते वर्शों में नीति निर्माताओं ने वैष्विक परिप्रेक्ष्य की दिषा में भी कदम उठाये और विदेषों में भारतीय उच्च षिक्षा को बढ़ावा देने के लिए नीतियां भी तैयार की जिसमें सामान्य सांस्कृतिक छात्रवृत्ति जैसी योजनाएं षामिल हैं जिसके तहत लैटिन अमेरिका, एषिया और अफ्रीका के देषों को छात्रवृत्तियां प्रदान कर भारत में उच्च षिक्ष को प्रोत्साहित किये जाने का काम किया गया। साल 2018 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय जो वर्तमान में षिक्षा मंत्रालय है इसमें विदेषी विद्यार्थियों को भारत में पढ़ाई के लिए आकर्शित करने हेतु एक अभियान स्टडी इन इण्डिया षुरू किया। हाल ही में जारी राश्ट्रीय नई षिक्षा नीति 2020 में भी उच्च षिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता के विष्व स्तरीय उच्च मापदण्ड अपनाने की आवष्यकता पर जोर दिया गया है। जाहिर है भारत की उच्च षिक्षण संस्थाओं ने भी वैष्विक बदलाव को समझने का काम किया और अन्तर्राश्ट्रीय परिवर्तन को भारतीय बुनियादी ढांचे के साथ सरोकारी व्यवस्था की ओर बढ़ रहे हैं। उक्त संदर्भ यह परिलक्षित करते हैं कि यदि उच्च षिक्षा को लेकर भारत गुणवत्ता, रैंकिंग और उपजाऊ या रोज़गारपरक व्यवस्था को तवज्जो देता है तो विदेषी छात्रों को न केवल भारत में पढ़ने का आकर्शण बल्कि अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
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