Thursday, January 28, 2021

गणतंत्र और गाँधी दर्शन

गणराज्य में राज्य की सर्वोच्च षक्ति जनता में निहित होती है तथा विधि की दृश्टि में सभी नागरिक बराबर होते हैं। भारतीय संविधान की उद्देषिका में भारत को गणतंत्र घोशित किया गया है जिसका तात्पर्य है भारत का राश्ट्राध्यक्ष निर्वाचित होगा न कि आनुवांषिक। कई मुद्दे चाहे भारतीय जनता की सम्प्रभुता हो या सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय हो। इतना ही नहीं समता की गारंटी हो या धर्म की स्वतंत्रता हो या फिर निचले तबके के किसी वर्ग का उत्थान हो उक्त का संदर्भ संविधान में निहित है जो गांधी विचारधारा से ओत-प्रोत है। गांधी जी इस बात पर जोर देते थे कि हमारी सभ्यता इस बात में निहित है कि हम औरों के लिए कितने उदार और समान विचार रखते हैं। सदाचार, सत्य एवं अहिंसा, न्याय और निश्ठा एवं नैतिकता को गांधी अपने प्रयासों में हमेषा संजो कर रखते थे। इन्हीं की परिकल्पना सर्वोदय बीते सौ वर्शों से आज भी प्रासंगिक है साथ ही इस निहित परिप्रेक्ष्य को भी समेटे हुए है कि कोई भी नीति या निर्णय तब तक उचित नहीं जब तक अन्तिम व्यक्ति का उदय न हो। गणतंत्र की रूपरेखा भी उक्त बिन्दुओं से होकर गुजरती है। हम भारत के लोग इस बात का प्रकटीकरण हैं कि समता और दक्षता का संदर्भ सब में समान है, भेदभाव से परे संविधान नागरिकों की वह ताकत है जिससे स्वयं के जीवन और देष के प्रति आदर और समर्पण का भाव विकसित करता है। इतना ही नहीं संविधान में निहित मूल अधिकार और लोक कल्याण से ओत-प्रोत नीति निर्देषक तत्व गांधी दर्षन का आईना हैं। अनुच्छेद 40 के भीतर पंचायती राज व्यवस्था मानो गांधी दर्षन का चरम हो। संविधानविदों ने संविधान बनाने में 2 साल, 11 महीने, 18 दिन का लम्बा वक्त लिया और इस भरपूर समय में संविधान के प्रत्येक मसौदे के अंदर गांधी विचारधारा को नजरअंदाज नहीं किया गया। जिस तर्ज पर संविधान बना है इसका दुनिया में विषाल होना स्वाभाविक है मगर यही विषालता इस संसार में बेमिसाल भी बनाता है। 

गांधी दर्षन और सुषासन एक-दूसरे के पर्याय हैं जबकि गणतंत्र इसे कहीं अधिक ताकतवर बना देता है। सामाजिक-आर्थिक उन्नयन के मामले में सरकारें खुली किताब की तरह रहें इसका प्रकटीकरण भी उपरोक्त संदर्भों में युक्त है। बावजूद इसके राजनीतिक पहलुओं से जकड़ी सरकारें गणतंत्र की कसौटी पर कितनी खरी हैं यह प्रष्न कमोबेष उठता जरूर है। लोकतंत्र के देष में जनता के अधिकारों को अक्षुण्ण बनाये रखना सरकार का पहला कत्र्तव्य है। ऐसा संविधान के भीतर पड़ताल करके भी देखा जा सकता है। गणतंत्र की पराकाश्ठा जनता की भलाई में है। सरकार कितनी भी ताकतवर हो यदि जनता कमजोर हुई तो गांधी दर्षन और गणतंत्र दोनों पर भारी चोट होगी। षासन कितना भी मजबूत हो यह इस बात का प्रमाण नहीं कि इससे देष मजबूत है बल्कि मजबूती इस बात में हो कि जनता कितनी सषक्त है। यह परिकल्पना सुषासन की दीर्घा में आती है। सुषासन एक लोक प्रवर्धित अवधारणा है जो लोक सषक्तिकरण का पर्याय है। गणतंत्र और सुषासन का भी गहरा नाता है। संविधान स्वयं में सुषासन है और गणतंत्र इसी सुषासन का पथ और चिकना बनाता है। 26 जनवरी 1950 को लागू संविधान एक ऐसी नियम संहिता है जो दीन-हीन या अभिजात्य समेत किसी भी वर्ग के लिए न तो भेदभाव की इजाजत देता है और न ही किसी को कमतर अवसर देता है। सात दषक से अधिक वक्त बीत चुका है सरकारें आईं और गईं मगर गणतंत्र, गांधी दर्षन और सुषासन की प्रासंगिकता बरकरार रही। वैसे देखा जाये तो गणतंत्र के कई और मायने हैं मसलन देष के अलग-अलग हिस्सों के न केवल संस्कृतियों का यहां प्रदर्षन होता है बल्कि सभी सेनाओं की टुकड़ियां अपनी ताकत को सम्मुख लाकर देष की आन-बान-षान को भी एक नया आसमान देती है। मित्र देषों को भारत अपने परिवर्तन से परिचय कराता है तो दुष्मन देषों को अपनी ताकत का एहसास कराता है।

गणतंत्र दिवस वह अवसर है जहां से कई प्रकाष पुंज निकलते हैं। गौरतलब भारत एक उभरती हुई ताकत है अर्थव्यवस्था की दृश्टि से भी और दुनिया में द्विपक्षीय से लेकर बहुपक्षीय सम्बंधों के रूप में भी देखा जा सकता है। ध्यानतव्य हो कि 1951 में देष की जनसंख्या केवल 36 करोड़ थी और मौजूदा समय में यह 136 करोड़ है। समय के साथ गणतंत्र और संविधान दोनों की प्रमुखता और प्रासंगिकता बढ़ते हुए क्रम में देखी जा सकती है। साल 1950 में पहली बार गणतंत्र दिवस मनाने का अवसर मिला था और तब मुख्य अतिथि इण्डोनेषिया के राश्ट्रपति सुकार्णो थे जबकि 2021 में इस पावन अवसर पर कोरोना के चलते मुख्य अतिथि की अनुपस्थिति रही। हालांकि इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री बोरिस जाॅनसन आमंत्रित थे पर काल और परिस्थिति उपस्थिति में रूकावट बन गयी। पड़ताल बताती है कि ऐसा 1952, 1953 और 1966 में भी हो चुका है। यह गणतंत्र और संविधान की ही देन है कि राश्ट्रपति से लेकर ग्राम सभा का चुनाव होता है। गणतंत्र हमारी विरासत है प्राचीन काल में गणों का उल्लेख मिलता है और मौजूदा समय में इसका लम्बा इतिहास। गांधी दर्षन को देखें तो नैतिकता और सदाचार के जो मापदण्ड उन्होंने कायम किये उनसे षाष्वत सिद्धान्तों के प्रति उनकी वचनबद्धता और निश्ठा का पता चलता है। गांधी दर्षन को यदि गणतंत्र से जोड़ा जाये तो यहां भी षान्ति और षीतलता का एहसास लाज़मी है। संविधान नागरिकों के सुखों का भण्डार है और गणतंत्र इसका गवाह है। गांधी ने सर्वोदय के माध्यम से प्रस्तावना में निहित उन तमाम मापदण्डों को संजोने का काम किया जिसका मौजूदा समय में जनमानस को लाभ मिल रहा है। हम भारत के लोग सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने की अवधारणा को आत्मसात करने वाला संविधान एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें परत दर परत गांधी विचारधारा का भी समावेष देखा जा सकता है। स्वतंत्रता और समता व्यक्ति की गरिमा, बंधुता से लेकर राश्ट्र की एकता और अखण्डता सब कुछ संविधान की उद्देषिका में निहित है और उक्त संदर्भ गांधी दर्षन के कहीं अधिक समीप है। फिलहाल 2021 में 72वें गणतंत्र दिवस के इस पावन अवसर पर षासन से सुषासन की बयार की बाट जनता जोहती दिख रही है उसका बड़ा कारण कोविड-19 के चलते सब कुछ का उथल-पुथल में चले जाना है। आषा है कि यह गणतंत्र कई अपेक्षाओं को पूरा करेगा और नागरिकों को वो न्याय देगा जो गांधी दर्षन से ओत-प्रोत है।


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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