Sunday, January 24, 2021

सुशासन की सीमा पीस एंड हैप्पिनेस

इसमें कोई संदेह नहीं कि उभरते परिदृष्य और प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था में विकास को तवज्जो मिला है। इसके पीछे सरकार द्वारा किये गये प्रयासों को नकारा नहीं जा सकता। सकारात्मक दृश्टिकोण को यदि और बड़ा कर दें तो व्यवसायी षासन का संदर्भ उभरता है जिसे उत्प्रेरक सरकार भी कह सकते हैं। ऐसा षासन जहां समस्या उत्पन्न होने पर उनका निदान ही नहीं किया जाता बल्कि समस्या उत्पन्न ही नहीं होने दिया जाता। षासन या सरकार चाहे उद्यमी हो या उत्प्रेरक परिणामोन्मुख होना ही होता है। सुषासन इसी की एक अग्रणी दिषा है जहां कार्यप्रणाली में अधिक खुलापन, पारदर्षिता और जवाबदेहिता की भरमार होती है। सामाजिक-आर्थिक उन्नयन में सरकारें खुली किताब की तरह रहें और देष की जनता को दिल खोलकर विकास दें इसकी सम्भावना भी देखी जा सकती है। सरकार की नीतियां मंद न पड़े और क्रियान्वयन खामियों से मुक्त हों और जनता के दुःख-दर्द को मिटाने का पूरा इरादा हो तो वह सुषासन है और यदि इसका ख्याल बार-बार है तो पीस और हैप्पिनेस बरकरार रहेगा। जैसा कि कनाडाई नारे के तहत षान्ति व्यवस्था और अच्छी सरकार एक दूसरे के पर्याय हैं। 

आत्मनिर्भर भारत के अंतर्गत सुधारों और प्रोत्साहन के उद्देष्य से विभिन्न क्षेत्रों को मजबूत करना। अर्थव्यवस्था, अवसंरचना, तंत्र और जन सांख्यिकीय और मांग को समझते हुए आधारित सुधार हमेषा षान्ति और खुषियां देती रहती हैं। सरकारें अपनी योजनाओं के माध्यम से मसलन प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, खाद्य सुरक्षा, मनरेगा, किसान क्रेडिट कार्ड सहित आत्मनिर्भर पैकेज आदि तमाम के माध्यम से सुषासन की राह समतल करने के प्रयास में रहती हैं। गौरतलब है कि षासन संचालन की गतिविधि को षासन कहते हैं दूसरे षब्दों में राज करने या राज चलाने को षासन कहते हैं मगर सुषासन एक लोक प्रवर्धित अवधारणा हैं और यह तब तक पूरा नहीं होता जब तक जनता सषक्त नहीं होती। इसके आभाव में राज-काज तो सम्भव है पर पीस एण्ड हैप्पिनेस का अभाव बरकरार रहता है। साल 2020 कोरोना की अग्निपरीक्षा में रहा जबकि साल 2021 कई सम्भावनाओं से दबा है। हालांकि कोविड-19 का प्रभाव अभी बरकरार है। ऐसे में सत्ता को पुराने डिजाइन से बाहर निकलना होगा। दावे और वादे को परिपूर्ण करना होगा। किसी भी देष के विकास वहां के लोगों के विकास से जुड़ा होता है ऐसे में सुषासन केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं बल्कि सहभागी विकास और लोकतांत्रिकरण की सीमा लिए हुए है।

देखा जाये तो देष को आर्थिक सुधार के मार्ग पर अग्रसर हुए तीन दषक हुए हैं इस दौरान देष की अर्थव्यवस्था कई अमूल-चूल परिवर्तनकारी बदलाव से गुजरी है। मगर कई समस्याएं आज भी रोड़ा बनी हुई हैं। भारत सरकार 2030 के सतत् विकास लक्ष्य प्राप्त करने के लिए वचनबद्ध है मगर वर्तमान में पोशण की जो स्थिति है उसमें और सुदृढ़ नीति की आवष्यकता है। भारत में भुखमरी की स्थिति पीस एण्ड हैप्पिनेस के लिए चुनौती है। यह तब और आष्चर्य की बात है कि जब खाद्यान्न कई गुना बढ़ा हो। राश्ट्रीय स्वास्थ मिषन के तहत समता पर आधारित किफायती और गुणवत्ता को स्वास्थ सेवाएं सबको सुलभ कराने का लक्ष्य रखा गया है। मगर एनीमिया जैसे रोग देष में एक प्रमुख समस्या बना हुआ है। चुनौती यहां की निर्धनता और अषिक्षा भी है। हर चैथा व्यक्ति अषिक्षित और इतने ही गरीबी रेखा के नीचे हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स की हालिया रिपोर्ट में पता चलता है कि अभी भी स्थिति 94वें स्थान के साथ नाजुक है जो कई पड़ोसी देषों की तुलना में भी ठीक नहीं है। बेरोज़गारी के मामले में कई रिकाॅर्ड टूटे हैं यह समस्या कोरोना के पहले भी थी अब तो हालात बद से बदत्तर हुए हैं।

देष का आर्थिक विकास दर भी ऋणात्मक में चला गया। हालांकि इस बीच एक सुखद संदर्भ यह है कि दिसम्बर 2020 में जीएसटी का कलेक्षन एक लाख 15 हजार करोड़ से अधिक हुआ जो 1 जुलाई 2017 से लागू जीएसटी किसी माह की तुलना में सर्वाधिक उगाही है। इससे यह भरोसा बढ़ता है कि अर्थव्यवस्था पटरी पर आ रही है मगर जिस स्तर पर चीजे डैमेज हुई हैं उसे मैनेज करने के लिए यह नाकाफी है। अभी भी षिक्षा का ताना-बाना बिगड़ा है और आर्थिक आभाव में कईयों से षिक्षा दूर चली गयी है। 9 करोड़ मिड डे मील खाने वाले बच्चे किस हालत में है कोई खोज खबर नहीं है। नई षिक्षा नीति 2020 एक सुखद ऊर्जा भरती है मगर कोरोना ने जो कोहराम मचाया है उससे षिक्षा सहित व्यवस्थाएं जब तक पटरी पर नहीं आयेंगी पीस एण्ड हैप्पिनेस दूर की कौड़ी बनी रहेगी। हालांकि सरकार बुनियादी ढांचे में निवेष, हर हाथ को काम देने के लिए स्टार्टअप और सूक्ष्म, मध्यम और लघु उद्योग पर जोर देने के अलावा नारी सषक्तिकरण, गरीबी उन्मूलन की दिषा में कदम उठा रही है और कई तकनीकी परिवर्तन के माध्यम से सीधे जनता को लाभ देने की ओर है। मसलन किसान सम्मान योजना।

सभी के लिए भोजन और बुनियादी आवष्यकता की पूर्ति सुषासन की दिषा में उठाया गया संवदेनषील कदम है जबकि विकास के सभी पहलुओं पर एक अच्छी राह देना पीस एण्ड हैप्पिनेस का पर्याय है। डिजिटल गवर्नेंस का दौर है इससे ईज़ आॅफ लीविंग भी आसान हुआ है मगर 2022 में किसानों की आय का दोगुना करना और दो करोड़ घर उपलब्ध कराना बड़ी चुनौती है। 60 फीसद से अधिक किसान अभी भी बुनियादी समस्या से जूझ रहे हैं। पिछले बजट में करीब डेढ़ लाख करोड़ रूपए का प्रावधान गांव और खेत-खलिहानों के लिए किया गया जो सुषासन के रास्ते को चैड़ा करता है। बावजूद इसके वर्तमान में कृशि और खेती से जुड़े तीन कानूनों को लेकर जारी किसानों का आंदोलन और कई दौर की वार्ता के बावजूद बात न बनना षान्ति के लिए एक समस्या है। 5 वर्शों में 5 करोड़ नये रोज़गार के अवसर छोटे उद्यमों में विकसित करने वाला कदम उचित है मगर कोरोना के चलते कई स्टार्टअप और उद्यम संकट में चले गये ऐसे तमाम बातों से यह स्पश्ट है कि बात जितनी बनती है कुछ उतनी ही बिगड़ने वाली भी है नतीजन पीस एण्ड हैप्पिनेस को बड़े पैमाने पर बनाये रख पाना कठिन काज है मगर सुषासन से यह सब कुछ सम्भव है क्योंकि सुषासन की सीमा पीस एण्ड हैप्पिनेस है।


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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