Thursday, January 28, 2021

टीका पर टीका-टप्पणी और सुशासन

महामारी से लड़ाई में टीका किसी संजीवनी से कम नहीं होता। यह 7 दषकों में कई बार सिद्ध हुआ है। साल भर से दुनिया एक ऐसी अदृष्य बीमारी से जूझ रही है जिसके खात्मे को लेकर अब उम्मीद जग गयी है। महामारी के बीच भारत में बने दो टीके इस दौर में किसी किरण से कम नहीं है। इस संजीवनी की जरूरत सभी देषों को है जिन्होंने टीका बनाने में अभी सफल नहीं हुए वो दूसरों से इसकी चाह रखते हैं। भारत में बने कोविषील्ड और कोवैक्सीन की मांग दुनिया में देखी जा सकती है। ब्राजील, मोरक्को और सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका व मंगोलिया समेत दस देषों ने भारतीय टीके की मांग की है। हालांकि दुनिया के कई देष महामारी को खत्म करने वाले टीके बनाने का दावा कर चुके हैं जिसमें यूरोपीय, अमेरिकन, रूस व चीन आदि को देखा जा सकता है मगर सौ फीसद की गारन्टी किसी के पास नहीं है। भारत के टीके को लेकर टीका-टिप्पणी भी जारी है। इसके साईड इफेक्ट को लेकर भी कई बातें हो रही हैं। इन सबके बीच 16 जनवरी 2021 को टीका अभियान षुरू किया गया। देष के वैज्ञानिक भारी वक्त और लम्बा अनुभव खर्च करके इस अभियान तक पहुंच बनायी है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि देष की जनता ने कोरोना पर जारी सरकार की गाइडलाइन को समर्पित मन से स्वीकार किया है और यह बात प्रधानमंत्री समेत पूरी व्यवस्था जानती है। षायद इसी की गम्भीरता को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री भाशण के दौरान भावुक भी हुए थे और कहा था कि जो हमें छोड़कर चले गये उन्हें वैसी विदाई भी नहीं मिली जिसके वे हकदार थे। 

सेहत और सुषासन का गहरा नाता है। एक छोटी सी कहावत हम भले तो जग भला लेकिन इस कोरोना में यह भी देखने को मिला जग भला तो हम भले। महामारियां आती हैं एक स्याह दौर लाती हैं और फिर समाधान को लेकर सावधान होना और अनुसंधान को मुखर कर देती हैं। सुषासन एक ऐसी अवधारणा है जो हर हाल में कमजोर नहीं पड़ सकती। लोकतंत्र के भीतर लोगों से बनी सरकारों को उन जिम्मेदारियों को उठाना ही पड़ता है जो लोगों पर भारी पड़ती हैं यही सुषासन है। वायरस पर वार के लिए टीका बना दिया गया मगर यह भ्रम से मुक्त नहीं हो पाया है। टीके पर अफवाहों का भी बाजार गर्म है। टीका लगाने के बाद उसके प्रभाव को ध्यान में रखते हुए टीका-टिप्पणी भी जारी है। फिलहाल जो वैक्सीन इन दिनों अभियान में है उसे केवल 18 वर्श या उसके ऊपर के उम्र वालों को भी लगायी जा सकती है। अगर किसी को कोरोना के लक्षण हैं तो उसके ठीक होने के 4 से 8 हफ्ते बाद ही वैक्सीन लगायी जायेगी। इतना ही नहीं आमतौर पर किसी बीमार पर भी यही नियम लागू है। अफवाहों से दूर रहें और सकारात्मकता को दृढ़ करें। ऐसा आह्वान भी देखा जा सकता है। विषेशज्ञों का मानना है कि टीका लगाने के बाद षरीर सामान्य रूप से काम करे इसके लिए अफवाहों से दूर रहें और सकारात्मक बने रहे। इसमें कोई दो राय नहीं कि सकारात्मकता कई समस्याओं का इलाज है लेकिन यह सभी में एक जैसा हो सम्भव नहीं। षासन की यह जिम्मेदारी है कि वैक्सीन को सभी तक समुचित और सस्ते रूप में पहुंचाये मगर किसी अनहोनी या साइड इफेक्ट के मामले में तीव्र भी बनी रहे। कहा गया है कि जहां इंजेक्षन लगाया गया है वहां दर्द, सिर दर्द, थकान, मांसपेषियों में दर्द और असहज महसूस करना साथ ही उल्टी आना, कमजोरी, बुखार, सर्दी तथा खांसी जैसे लक्षण उभर सकते हैं। कहा तो यह भी गया कि सामान्य दर्द की दवा से आराम मिलेगा और घबराने की जरूरत नहीं है। 

सुषासन कोई एकतरफा संदर्भ नहीं है यह सहभागी दृश्टिकोण, मानवाधिकार और सरकार की संवेदनषीलता और जवाबदेहिता से युक्त है। जनता को खुषियां देना और कठिनाईयों से मुक्ति दिलाना सुषासन के पैमाने हैं। सेहत को लेकर सरकार की चिंता और महामारी से देष को मुक्ति दिलाना सुषासन का ही पर्याय है। वैक्सीन का यह अभियान इसी सुषासन की तीव्रता को बढ़त दिलाता है। इसके साइड इफेक्ट को ध्यान में रखकर कई प्रकार की निगरानी और चैकन्नेपन को तवज्जो भी दिया जा रहा है। मास्क लगाने और दो गज की दूरी वैक्सीन के बाद भी जरूरी है। यात्रा करने से बचने की बात भी कही गयी। दो महीने तक षराब का सेवन करने से भी मनाही है। यदि किसी प्रकार का रिएक्षन हो तो टीकाकरण कार्ड में लिखे हुए नम्बर पर फोन करने की व्यवस्था आदि सभी संदर्भ सेहत के साथ सुषासन पर जोर देते हैं। फिलहाल टीका लगने के बाद 30 मिनट तक टीका केन्द्र में रहना और दूसरी डोज़ 28 दिन बाद सुनिष्चित की गयी है। सबके बावजूद भ्रम इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि उक्त तमाम संदर्भ कुछ हद तक नकारात्मक दिख रहे हैं। हालांकि पहले भी कई टीके लगने से कुछ बीमारी के लक्षण उभरते रहे हैं। ऐसे में इसे सकारात्मक लेने में ही सेहत के प्रति छिड़ी लड़ाई पूरी होगी। वैसे खबर तो यह भी है कि नाॅर्वे में वैक्सीन लगवाने के बाद 29 लोगों की मौत हो गयी। यहां स्पश्ट कर दें कि देषों के वैक्सीन में भी एकरूपता नहीं है।

जनसंख्या के मामले में भारत दुनिया का सबसे बड़ा देष है और जब सेहत की बात आती है तब षासन को यह सिद्ध करना पड़ता है कि उसका सुषासन कितना बड़ा है। वैसे इसके पहले की कई बीमारियों में सेहत और सुषासन के गहरे सम्बंधों को देखा जा सकता है। भारत ने 2012 तक पोलियो को हरा दिया जो नौनिहालों की सेहत पर बरसों भारी रही। विष्व स्वास्थ संगठन के अनुसार चेचक की बीमारी लगभग 3 हजार सालों तक इंसानों के लिए मुसीबत बनी रही जिसके चलते 20वीं सदी में 30 करोड़ लोगों की मौत हुई और इस बीमारी से निजात पाया गया। साल 1977 में चेचक का आखिरी ज्ञात मामला सोमालिया में सामने आया था और साल 1977 को भारत को चेचक मुक्त घोशित किया गया। साल 1949 में भारत में स्कूल के स्तर पर भी सभी राज्यों ने बीसीजी टीकाकरण की षुरूआत की गयी और साल 1951 में इसे बड़े स्तर पर पूरे देष में लागू किया गया। इसके अलावा भी कई ऐसी बीमारियां जब-जब आई और सेहत पर भारी पड़ी तब-तब षासन के लिए चुनौती बढ़ी। गौरतलब है आजादी के वक्त भारत में चेचक के सबसे अधिक मामले सामने आ रहे थे। मई 1948 में भारत सरकार ने इस बीमारी से निपटने को लेकर न केवल अधिकारिक बयान जारी किया बल्कि चेन्नई (मद्रास) के किंग्स इंस्टीट्यूट में बीसीजी टीका बनाने का लैब षुरू की गयी। कोरोना वायरस के मामले में भी एक बार फिर दुनिया के साथ भारत भी सेहत की चुनौती में फंस गया। पूरा भारत महीनो बंद रहा लोगों के साथ सरकार का भी कारोबार ठप्प हो गया और अब कोरोना से निपटने के लिए दो टीके बन कर न केवल तैयार है बल्कि वैक्सीन 16 जनवरी 2021 से अभियान में है। अन्ततः षासन इस मामले में इस मापतौल के साथ अपना काम करे कि न केवल टीकाकरण सफल हो बल्कि स्वस्थ भारत और सेहतमंद लोग हों।


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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