Monday, November 28, 2016

आर्थिक विकास का चौथा मार्ग

जब कोई देष अपने को विकसित करना चाहता है तो उसके सामने मुख्य रूप से तीन समस्याएं होती हैं पहला यह कि वह किस वस्तु का उत्पादन करे और किसका न करे। दूसरे, विभिन्न प्रयोगों में संसाधनों का आबंटन कैसे करे, तीसरा यह कि उत्पादन की क्रिया किसके द्वारा सम्भव करे मसलन निजी क्षेत्र, सरकारी क्षेत्र या दोनों की सहभागिता से। इन तीनों समस्याओं से निजात पाने के लिए भी तीन रास्ते सुझाये गये हैं जिसमें बाजार व्यवस्था, नियोजन प्रणाली और मिश्रित आर्थिक प्रणाली षामिल हैं पर एक सच्चाई यह है कि किसी भी समस्या के किसी भी समाधान तक पहुंचने के लिए सबसे जरूरी पक्ष उसमें निहित आर्थिक रणनीति ही है जिसे मजबूती देने के लिए अब चैथा मार्ग भी खोजा जा रहा है जिसके निषाने पर दषकों से जमा काली कमाई है। जिस तर्ज पर व्यवस्था बदलने की कोषिष की जा रही है उससे संकेत मिलता है कि आने वाले दिनों में आर्थिक विकास का पथ वास्तव में चिकना हो सकता है। भले ही इसे लेकर कितनी भी कठिनाई क्यों न हो रही हो। षायद ही इस सच से कोई गुरेज करेगा कि उदारीकरण से अब तक भारत आर्थिक विकास के जिस चैमुंखी मार्ग से लक्ष्य तय करने की कोषिष में रहा है उससे मन माफिक सफलता नहीं मिल पाई है। वैष्विक परिदृष्य में उभरे आर्थिक प्रतिस्पर्धा के चलते यह चित्र और पुख्ता हो जाता है। हालांकि 25 वर्शों में भारत की आर्थिक नीति बेपटरी भी नहीं हुई है। पूर्व वित्त मंत्री मनमोहन सिंह से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक और ढ़ाई बरस से सत्ता हांक रहे मोदी काल को देखें तो आर्थिक उपादेयता उत्तरोत्तर वृद्धि में रही है। विकासषील देषों की एक समस्या सांख्यिकी चेतना का षिकार होना भी रहा है जिस तर्ज पर आंकड़े परोसे जाते हैं असल में धरातल पर उतना उतरता नहीं है। गौरतलब है कि काली कमाई को व्यापक पैमाने पर जमा करने वालों ने देष की आर्थिकी को हाषिये पर धकेला है जिसके चलते दषकों से भारतीय अर्थव्यवस्था का स्वभाव और उसकी विषेशताओं में तीव्रता से संरचनात्मक परिवर्तन सम्भव नहीं हो पाया और अब नोटबंदी के माध्यम से उस चैथे मार्ग को खोजने की कोषिष की जा रही है जिससे देष का विकास सुगम हो सके।
एक हजार और पांच सौ के नोट को प्रचलन से बाहर करना व्यापक आर्थिक सुधार का एक नमूना कहा जायेगा पर इसके जोखिम भी अब परिलक्षित होने लगे हैं। जिस प्रकार विमुद्रीकरण के प्रयास किये गये और कैषलेस व्यवस्था को मजबूत करने की बात कही जा रही है उसे देखते हुए उम्मीदों के साथ आषंकायें भी बढ़ी हैं। बेषक इस कदम से जाली नोटों से छुटकारा मिलेगा, अपराध और आतंकवाद की फण्डिंग में भी मुष्किल आयेगी साथ ही टैक्स चोरी को रोकना भी आसान होगा और वर्शों से जमा काली कमाई भी नश्ट होगी। बावजूद इसके यह आषंका भी है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में विद्यमान स्वाभाविक असुविधा और आधारभूत संरचना की कमी से क्या ऐसे निर्णय बिना किसी समस्या के टिक पायेंगे। बैंक और वित्तीय मामले से जुड़ी तकनीक रोज बौनी सिद्ध हो रही हैं गौरतलब है कि दो लाख एटीएम के भरोसे हजारों करोड़ का लेनदेन निर्भर है। खास यह भी है कि सीमा से अधिक निगरानी भी इन दिनों बढ़ी हुई है जिसके अपने खतरे हैं। 50 के दषक में मिषिगन विष्वविद्यालय के षोध से भी यह भी निश्कर्श रहा है कि उत्पादन केन्द्रित होने से उत्पादन ही घटता है। इन दिनों खाताधारकों के खाता पर सरकार और इनकम टैक्स की नजर है बावजूद इसके जन-धन योजना के खातों में राषि 45 हजार करोड़ से बढ़कर राषि 72 हजार करोड़ की सीमा पार कर चुकी है और यह सिलसिला अभी भी जारी है जिसमें उत्तर प्रदेष अव्वल है तत्पष्चात् पष्चिम बंगाल समेत कई राज्यों को देखा जा सकता है।
यूरोपीय देषों में स्वीडन ऐसा देष है जहां कुल लेनदेन का 89 फीसदी कैषलेस होता है पर यह भी समझना होगा कि यहां की साक्षरता 100 फीसदी है और मानव विकास सूचकांक में इसका स्थान भी नार्वे जैसे देषों से बहुत पीछे नहीं है। इसके अलावा बढ़ते साइबर क्राइम और इंटरनेट बैंकिंग आदि से जुड़ी जालसाजी के खतरों के प्रति भी इनकी जागरूकता तुलनात्मक बेहतर है। यहां के बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान ग्राहकों को लेकर काफी अधिक संजीदे भी हैं। इन देषों की तुलना भारत की स्थिति काफी पीछे है। सच्चाई यह है कि भारत में मात्र 74 फीसदी साक्षरता है और बैंकिंग और वित्तीय संचेतना के साथ नकद रहित लेनदेन को लेकर कोई खास जागरूकता भी नहीं है न ही इंटरनेट बैंकिंग से जुड़े किसी भी गड़बड़ी से निपटने के मामले में इन्हें दक्ष बनाया गया है। आंकड़े समर्थन करते हैं कि भारत में पांच लाख से अधिक साइबर कानून के जानकारों की आवष्यकता है। कैषलेस प्रणाली अपनाकर कुछ देष तरक्की और सहूलियत की राह में आगे बढ़ गये हैं और काफी हद तक नकद लेनदेन धीरे-धीरे खात्मे की ओर है जिसका सीधे असर काले धन पर पड़ रहा है। बेल्जियम, फ्रांस, कनाडा, ब्रिटेन आदि समेत कई देष इस दिषा में कहीं आगे हैं और ऐसे ही रास्ते से भारत को भी गुजरना है पर सच यह है कि रास्ता लम्बा है और फासले भी कम नहीं है। कहा जाय तो यह राह भारत की दृश्टि से इतनी आसान नहीं है। गौरतलब है कि 8 नवंबर से अब तक 20 दिन से अधिक वक्त हो चुका परन्तु कई क्षेत्रों में नये पांच सौ के नोट सरकार नहीं पहुंचा पायी है जबकि अभी भी कई एटीएम दो हजार के नोट उगलने से गुरेज कर रहे हैं। रोचक यह भी है कि भारतीय डेबिट कार्ड का इस्तेमाल केवल एटीएम से पैसे निकालने के लिए ही करते हैं। इसके विविध आयामों से लोग षायद वाकिफ भी नहीं हैं। इंटरनेट कनेक्टिविटी केवल 39 फीसदी भारतीय आबादी तक ही पहुंची है। ऐसे लोगों की संख्या काफी ज्यादा है जो एक से ज्यादा क्रेडिट और डेबिट कार्ड रखते हैं जबकि कई गुने ऐसे हैं जिन तक प्लास्टिक मनी अभी तक पहुंची ही नहीं है। ऐसे में क्या भारत में कैषलेस व्यवस्था को प्राप्त कर पाना सम्भव होगा। सवाल को कितना भी तोड़ा-मरोड़ा क्यों न जाये अभी दो बूंद के अलावा उत्तर से और कुछ नहीं निकलेगा जबकि मौजूदा सरकार बाल्टी भरने की फिराक में है। 
एक सच्चाई यह भी है कि कैषलेस अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ना फिलहाल वक्त की जरूरत बन गया है। तकनीक के बदौलत समय की बचत हो रही है। सरकारी योजनाओं का लाभ जनता तक सीधे पहुंच रहा है। भ्रश्टाचार में भी कटौती की सम्भावनायें कई गुना बढ़ गयी हैं। हवाला कारोबार पर लगाम भी पहले की तुलना में और कसाव लिये हुए है। विष्व के कुछ देषों की अर्थव्यवस्थायें नोटबंदी के चलते भले ही मुंहकी खाईं हों मसलन म्यांमार, सोवियत संघ आदि पर भारत के मामले में यह आर्थिक विकास का चिकना पथ साबित हो सकता है। मुख्यतः उदारीकरण के बाद से अर्थव्यवस्था और उससे जुड़े विकास का जो चित्र दिखना चाहिए उसमें षायद काले धन ने ग्रहण का काम किया है। इसे भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि ग्रामीण और दूर-दराज को समावेषित करने वाली भारतीय अर्थव्यवस्था को संतुलित करने की जिम्मेदारी भी अभी पूरी तरह निभ नहीं पायी है। प्रधानमंत्री मोदी प्रजातंत्र के जिस चरित्र को समझते हैं बेषक उसके लिए जान लड़ाना चाहते हैं पर उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि इरादों से केवल उड़ान नहीं होती आखिरकार उन्हें धरातल को पुख्ता करना ही होगा। ग्रामीण और षहरी भारत में बंटी अर्थव्यवस्था को पगडण्डी पर लाने के लिए उन्होंने  काले धन पर घात करके अर्थव्यवस्था को विकसित करने का जो चैथा मार्ग खोजा है उसका प्रयोग भी बाकी के मार्गों पर टिका है ऐसे में सभी पर चहुंमुखी कोषिष करने की आवष्यकता पड़ेगी।


सुशील कुमार सिंह



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