Monday, November 14, 2016

देश के बाहर और भीतर

बीते 8 नवम्बर को सांय 8 बजे जब प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात की घोशणा की, कि पांच सौ और हजार के नोट प्रचलन में नहीं रहेंगे तो इस बात को लेकर षायद ही किसी को संदेह रहा हो कि सप्ताह भर भी नहीं बीतेगा कि अपने ही पैसों के लिए जनता को भारी-भरकम समस्या से गुजरना पड़ेगा। देष के भीतर इन दिनों हालात रूपए बदलवाने या खाते से रूपए निकालने को लेकर जो अफरा-तफरी मची है उसे देखते हुए संकेत यह भी मिलता है कि भले ही सरकार का फैसला सौ टका सही हो पर इस मामले में किये गये होमवर्क अधूरे प्रतीत होते हैं। कहा जाय तो इन दिनों देष के भीतर के हालात बेकाबू हो रहे हैं। हालांकि जापान की तीन दिवसीय यात्रा समाप्त करने के बाद गोवा पहुंचे मोदी ने अपने सम्बोधन के दौरान यह कहा कि सिर्फ पचास दिन मेरी मदद करें, फिर चाहे जो सजा दें। भावुक मोदी यह भी बोले कि मैं जानता हूं कि मैंने किन लोगों से लड़ाई मोल ली है साथ ही रूंधे गले से यह भी कह डाला कि मैं कुर्सी के लिए पैदा नहीं हुआ, घर और परिवार देष के लिए सब कुछ छोड़ दिया। मोदी की राजनीतिक परिदृष्य को देखते हुए उक्त बातों को कहीं से नाजायज़ नहीं ठहराया जा सकता और जिस तर्ज पर नोटों को प्रचलन से बाहर करने का भी मंतव्य था उस नीयत पर भी सवाल नहीं उठाया जा सकता बावजूद इसके जनता से जुड़े सवाल का जवाब मिलना अभी बाकी है। लम्बी-लम्बी कतारों में बैंक और एटीएम में खड़े लोगों की छटपटाहट अब धीरे-धीरे दिखने लगी है, बेषक मोदी के इस नीति से देष का काला धन नेस्तोनाबूत होगा परन्तु देष में जो इन दिनों आर्थिक अफरा-तफरी है उस पर भी तेजी लानी होगी साथ ही नागरिकों को भी भारी-भरकम धैर्य दिखाना होगा।
इस सच से षायद ही किसी को गुरेज हो कि बीते ढ़ाई वर्शों के कार्यकाल में 60 से अधिक देषों की यात्रा करने वाले मोदी ने भारत को बड़ा कूटनीतिक फलक भी दिया है। विकसित और विकासषील देषों समेत कईयों के साथ मोदी के मित्रवत रिष्ते भी काफी उपजाऊ सिद्ध हुए हैं। पाक अधिकृत कष्मीर में हुए 28-29 सितम्बर की रात सेना द्वारा की गयी सर्जिकल स्ट्राइक से यह पुख्ता हुआ कि भारत की कूटनीति वैष्विक फलक पर कितनी मजबूत है। पड़ोसी बांग्लादेष समेत विष्व के कई देषों ने भारत के इस कदम को उसकी जरूरत बता कर परोक्ष और प्रत्यक्ष साथ दिया। उड़ी हमले के तुरंत बाद संयुक्त राश्ट्र संघ में भाशण के दौरान जिस प्रकार पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ षरीफ अकेले पड़ गये और आज भी जिस अकेलेपन से जूझ रहे हैं ये मोदी की नीतियों का ही नतीजा कहा जा सकता है। गौरतलब है कि 24 सितम्बर को केरल के कोंझीकोड़ से मोदी ने भारत समेत पाकिस्तानी आवाम को भी सम्बोधन में षामिल करते हुए दर्जनों स्पर्धा से जुड़े मुद्दों पर पाकिस्तान को चुनौती दी थी और पाकिस्तान को अकेला कर देने की बात भी दोहराई थी और ऐसा करने में व्यापक पैमाने पर सफलता भी मिली है। हालांकि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद सीमा पर न तो गोलाबारी रूकी है और न ही ताबूत में बंद सैनिकों की देष के भीतर आना रूका है साथ ही सीमावर्ती गांवों के बाषिन्दों को कई मुष्किलों के अलावा जान-माल की सुरक्षा भी खतरे में है। फिलहाल देष के भीतर रूपयों को लेकर बढ़ती समस्याओं के बीच पीएम मोदी की तीन दिवसीय जापान यात्रा सफलता के साथ पूरी हो गयी है। हालांकि रास्ते में वे थाइलैंड की राजधानी बैंकाॅक में भी दिवंगत नरेष भूमिबोल अदुल्यदेज को श्रृद्धांजलि अर्पित करने के लिए थोड़ी देर रूके थे। 
एक रोचक प्रसंग यह भी है कि जिस दिन ब्लैक मनी को लेकर मोदी मास्टर स्ट्रोक लगा रहे थे उसी दौरान अमेरिकी राश्ट्रपति के चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप भी मील का पत्थर गाड़ रहे थे। फिलहाल इन दिनों दोनों देषों में एक समानता यह भी है कि एक तरफ भारत का जनमानस रूपयों की तलाष में घर से बाहर है तो दूसरी तरफ अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद अमेरिकी सड़क पर विरोध जता रहे हैं। इसी बीच यह भी खबर है कि संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद् में सुधार और उसके बाद भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी का ब्रिटेन और फ्रांस समेत संयुक्त राश्ट्र के कई सदस्य देषों ने समर्थन दिया है। हालांकि स्थाई सदस्यता को लेकर भारत की दावेदारी बरसों पुरानी है और मोदी षासनकाल के इन ढ़ाई वर्शों में इसको और बल मिला है। सबके बावजूद ताजा और अनुकूल परिप्रेक्ष्य यह है कि बीते दिनों जब मोदी जापान में थे तब दोनों देषों के बीच असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर हुए जो आने वाले समय के लिए हितपूर्ति के काम आयेंगे। इस बात को भी समझ लेना चाहिए कि जिस विस्तार के साथ देष के समसमायिक विन्यास बढ़े हैं और जिस तर्ज पर भारत को विकास कार्यों को पूरा करने के लिए धन की जरूरत है उसे देखते हुए मोदी को अपनी वित्तीय नीति भी पुख्ता करनी थी। ऐसे में देष के भीतर जमा काले धन पर घात करना स्वाभाविक था पर बरसों से इस बात पर भी जोर आज़माइष रही है कि कैसे विदेषी बैंकों में जमा धन की वापसी की जाय। आॅस्ट्रेलिया के जी-20 षिखर सम्मेलन में भी मोदी के काले धन के मुद्दे को लेकर सभी देषों की राय एक थी पर देषों के स्थानीय नियम और कानूनों को देखते हुए अड़चनें अधिक थीं। ऐसे में विदेष से कालाधन लाना मोदी सरकार के लिए भी इतना सरल काज नहीं रह गया था। जिस तर्ज पर सरकार नीतियों और कानूनों में लगातार सुधार कर रही है उसके लिए भी पुख्ता धन की आवष्यकता बनी हुई है। पांच सौ और हजार के नोट को चलन से बाहर करके देष के भीतर जमा काले धन को नश्ट कर सरकार अपनी जरूरतों के साथ आगे बढ़ सकती है। यदि इसमें पूरी तरह सफलता मिलती है जैसा कि सम्भावना है तो देष की जीडीपी में एकाएक उछाल भी आ सकता है और भीतर की बुनियादी समस्याओं से निजात पाया जा सकता है। एक कहावत है कि किसी भी देष की मजबूती उसकी भीतरी संरचना से जुड़ी होती है न कि बाहरी आडम्बर मात्र से। 
आने वाले कुछ ही महीनों में सम्भवतः फरवरी, मार्च उत्तर-प्रदेष, उत्तराखण्ड और पंजाब समेत पांच राज्यों का चुनाव होना है। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उत्तराखण्ड में परिवर्तन यात्रा पर निकल चुकी है जिसका षंखनाद राश्ट्रीय अध्यक्ष अमित षाह ने बीते 13 नवम्बर को देहरादून से फूंका और कहा कि अटल के उत्तराखण्ड को मोदी संवारेंगे। गौरतलब है कि मार्च में उत्तराखण्ड राश्ट्रपति षासन से जूझ चुका है और षीर्श अदालत के फैसले के बाद हरीष रावत सरकार की बीते 10 मई को बहाली हो गयी थी। जिसके चलते यहां के मुख्य विपक्षी भाजपा की राजनीतिक प्रतिश्ठा भी दांव पर लगी हुई है और यह तब अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है जब अरूणाचल का दांव भी इनका फेल हो चुका है। फिलहाल देष के अंदर और बाहर भिन्न-भिन्न प्रकार की समस्याएं तैरती हुईं मिल जायेंगी जिसमें इन दिनों नोट बंदी पर मची हाय-तौबा भीतर की बड़ी समस्या बन चुकी है। अरविंद केजरीवाल, ममता बैनर्जी और मायावती समेत कई इस फैसले पर मोदी सरकार की लानत-मलानत कर रहे हैं जबकि पेरषानी के बीच फंसे नागरिकों में भी राय बंटी हुई है। फिलहाल परिप्रेक्ष्य और दृश्टिकोण इस ओर भी इषारा कर रहे हैं कि सरकार का यह निर्णय यदि निर्धारित समय के अंदर अफरा-तफरी से बचाने में कारगर नहीं हो पाया तो आने वाली सियासत का रूख भी इसके चलते बदल सकता है।


सुशील कुमार सिंह


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