Sunday, December 4, 2016

सवालों में घिरा राहत भरा फैसला

यदि यह कहा जाय कि सरकार द्वारा पांच सौ और हजार रूपए के पुराने नोट को प्रचलन से बाहर करने वाला निर्णय हर हाल में नेक इरादे से परिपूर्ण था तो यह कहीं से असंगत नहीं है परन्तु यदि यह माना जाय कि इस मामले में सरकार की पूरी तैयारी थी तो यह बात पूरी तरह गले नहीं उतरती। पुराने नोटों की बंदी और नये नोटों की कमी के चलते किस प्रकार की दिक्कतें उत्पन्न होंगी भले ही इसका अनुमान सरकार को न रहा हो पर इस तर्क में दम है कि मोदी सरकार ने काली कमाई पर करारी चोट की है। गौरतलब है कि ऐसी चोट करने से पहले सरकार ने 30 सितम्बर तक का वक्त दिया था जिसमें 45 फीसदी कर चुका कर इस समस्या से निजात पाई जा सकती थी। इस सरल उपाय को कईयों ने अपनाया और राहत भरी सांस ली साथ ही राजकोश भी मुहाने पर पहुंचा पर इस सीधे सपाट रास्ते से कुछ ने वास्ता नहीं रखा। षायद उन्हें अनुमान भी नहीं रहा होगा कि उनकी काली कमाई पर सरकार का ऐसा हथौड़ा गिरने वाला है। बीते 8 नवंबर को जिस तर्ज पर नोटबंदी की घोशणा हुई वह कईयों को आष्चर्य में डाला तो कईयों के लिए बड़ा संकट भी बना। इस निर्णय के बाद जनमानस में विभिन्न प्रकार की समस्यायें भी व्याप्त हुई साथ ही विरोधी दलों ने सरकार के खिलाफ लामबंध होकर जनता के बहाने इस पर खूब राजनीति भी की जो अभी भी जारी है। रोचक यह भी है कि नोटबंदी के चलते बढ़ती जन समस्याओं के अनुपात में सरकार अपने निर्णय में भी निरंतर सुधार करती रही। उसी दिषा में एक बड़ा कदम उठाते हुए आयकर अधिनियम 1961 में भी नये संषोधन की दरकार महसूस की गयी। इस संषोधन के चलते काले धन रखने वालों को एक और मौका देने का काम किया गया है पर सरकार के इस कदम से कई सवाल भी खड़े हुए हैं कि जब सरकार का होमवर्क दृढ़ता लिये हुए था तो निर्णयों को लेकर परिवर्तनों की लगातार झड़ी क्यों लगाई गयी। साफ है कि होमवर्क के मामले में सरकार की तरफ से जल्दबाजी हुई है। इसके अलावा भविश्य की समस्याओं के प्रति काफी हद तक सरकार अंजान भी रही है।
आयकर अधिनियम में संषोधन करके सरकार इन उपजी समस्याओं के बीच कुछ नये संदेष भी देना चाह रही है। जाहिर है कि काली कमाई वालों के रूख को भांप कर सरकार ने उदार रास्ता अख्तियार करना जरूरी समझा। ऐसा करने से न केवल राजकोश में वृद्धि की जा सकती है बल्कि झंझवात में फंसी सरकार कुछ राहत की सांस भी ले सकती है। सरकार की सबसे बड़ी कमी तमाम सीमाओं के बावजूद बैंकों और एटीएम में नोटों को न पहुंचा पाना भी रहा है। कुछ इलाकों में तो षायद आज भी पांच सौ के नोट बामुष्किल ही मिल रहे होंगे। हो सकता है आयकर अधिनियम में हो रहे संषोधन के मामले में विरोधी दलों का भी असर हो पर यह पूरी तरह कहना सम्भव नहीं है क्योंकि कानून पारित करते समय विरोधियों का हो हंगामा बादस्तूर लोकसभा में कायम रहा। सवाल तो यह भी है कि आखिर जब पहले ही सरकार हजार, पांच सौ के नोटों को अवैध करार दे चुकी है तो वह कानून के माध्यम से 50-50 का खेल क्यों खेल रही है। प्रष्न तो यह भी उठ रहा है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार जो 50 दिन का वक्त मांगा है उसमें उसे कारगर न उतर पाने का अंदेषा हो जिसकी वजह से यह कदम उठाना पड़ रहा हो। फिलहाल संषोधन विधेयक सभी बाधायें पार कर चुका है। इसे लेकर राज्यसभा की ओर से भी कोई अड़चन इसलिए नहीं है क्योंकि इसे धन विधेयक की श्रेणी में रखा गया है। संविधान के अनुच्छेद 110 में धन विधेयक का वर्णन देखा जा सकता है। कोई भी विधेयक धन विधेयक होगा इसकी घोशणा लोकसभा अध्यक्ष करते हैं। इसमें खास यह है कि लोकसभा में पारित होने के बाद राज्यसभा से सहमति मिलने की अनिवार्यता से यह मुक्त होता है। इसकी पेषगी भी राश्ट्रपति से पूछ कर लोकसभा में ही की जाती है।
आधा देकर, आधा सफेद करें पर पकड़े गये तो 85 फीसदी देना होगा। फिलहाल प्रावधानों में प्रस्तावित बदलाव को देखें तो आयकर अधिनियम 1961 में धारा 270 के तहत पेनाल्टी और धारा 271एएबी के तहत तलाषी एवं जब्ती के प्रावधान निहित हैं साथ ही कई अन्य प्रावधान भी देखे जा सकते हैं। फिलहाल मौजूदा प्रावधान के अन्तर्गत नई कर व्यवस्था में अघोशित नकदी और बैंक जमा को घोशित किया जा सकता है ऐसी स्थिति में 30 फीसदी टैक्स के अलावा कर राषि का 33 फीसदी सरचार्ज और 10 प्रतिषत पेनाल्टी देना होगा। इस प्रकार कुल राषि का 50 फीसदी टैक्स में जायेगा जबकि 25 फीसदी राषि चार साल के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना में जमा होगी। इस तरीके के बंटवारे के बाद घोशित राषि का मात्र 25 फीसदी ही व्यक्ति विषेश को प्राप्त होगा। हालांकि चार वर्श बाद प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना में जमा राषि वापस मिल जायेगी जो केवल मूलधन होगा। बेषक सरकार ने नये कानून के माध्यम से धन कुबेरों को राहत दिया हो पर आम जनमानस के मामले में अभी सब कुछ ठीक नहीं हुआ है। नोटबंदी से नुकसान भी बताये जा रहे हैं। एजेंसियों का मानना है कि मांग की कमी से उद्योग व अर्थव्यवस्था के लिए ये अच्छे दिन नहीं हैं। कहा जाय तो मौजूदा वक्त चुनौती से भरे हुए हैं। हालत सुधारने के अभी आसार कम ही बताये जा रहे हैं साथ ही बैंकों के लिए दिसम्बर का महीना बेहद चुनौतीपूर्ण रहने वाला है। इसकी एक मुख्य वजह प्रथम सप्ताह में निकलने वाला भारी भरकम वेतन है। दुनिया के दो बड़े रेटिंग एजेंसियां मूडीज़ एण्ड स्टैण्डर्ड एण्ड पुअर्स की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि नोटबंदी का फैसला तात्कालिक तो परेषान करने वाला है पर आगे यह फायदे का सौदा साबित होगा। कुछ सर्वे को देखें तो 85 से 90 फीसदी जनता मोदी के साथ खड़ी दिखाई देती है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि उसे भी इस बात का अंदाजा है कि सरकार के इस कदम से उसके भी अच्छे दिन आने वाले हैं। 
नये नोट की अपर्याप्त उपलब्धता के चलते हो रही समस्याओं के मद्देनजर प्रदेष के मुख्यमंत्रियों से भी राय लेने की बात हो रही है। केन्द्र सरकार ने यह निर्णय लिया है कि आन्ध्र प्रदेष के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू की अध्यक्षता में समिति बनाई जायेगी। कहा तो यह भी जा रहा है कि नोटबंदी के मामले में मोदी के राजनीतिक दुष्मन से दोस्त बने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीष कुमार समेत असम, महाराश्ट्र तथा कर्नाटक के मुख्यमंत्रियों से भी इस मामले में बात हुई है और वे इस कमेटी के हिस्सा भी बनेंगे। प्रजातांत्रिक देषों की एक परम्परा रही है कि जब भी देष हित में बड़े फैसले होते हैं तो विपक्ष की भूमिका भी विस्तार ले लेती है। जाहिर है मुख्य विपक्षी कांग्रेस को भी इसका हिस्सा बनाना लाज़मी है। हालांकि इसकी कोई औपचारिक घोशणा नहीं हुई है। प्रधानमंत्री ने षुरूआत में ही सब कुछ ठीक करने के लिए देष की जनता से 50 दिन का वक्त मांगा है। जापान यात्रा से वापसी के बाद गोवा में पहला सम्बोधन देने वाले मोदी अब तक उत्तर प्रदेष में तीन रैलियों को सम्बोधित कर चुके हैं और सभी में 50 दिन वाली बात लगभग दोहराई है। फिलहाल मौजूदा स्थिति में आयकर कानून में संषोधन करके सरकार ने काली कमाई को सफेद करने का एक और अवसर देने की फिराक में है पर इस सवाल के साथ बात समाप्त की जा सकती है कि जिस उद्देष्य के चलते सब कुछ हुआ क्या उसमें यह संषोधन मील का पत्थर साबित होगा। 
सुशील कुमार सिंह


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