Friday, November 11, 2016

ब्लैक मनी पर मास्टर स्ट्रोक

एक हजार और पांच सौ के नोट की बंदिषों वाले प्रधानमंत्री मोदी के इस निर्णय को देखते हुए एक प्रबंध विज्ञान के चिंतक पीटर ड्रकर की याद अनायास ही ताजा हो जाती है। पीटर ड्रकर ने ‘द इफेक्टिव एक्जीक्यूटिव‘ नामक पुस्तक में कहा है कि प्रषासक दो प्रकार के होते हैं एक वे जो सदैव अनावष्यक, विस्तृत एवं उत्तेजक क्रियाओं में व्यस्त होते हैं, दूसरे वे जो सृजनात्मक और महत्वपूर्ण कार्यों में ही समय लगाते हैं। दूसरा वक्तव्य मोदी के लिए बिल्कुल समुचित है। प्रधानमंत्री के एकाएक नोटों को बंद करने का निर्णय जिस तर्ज पर हुआ है उसे देखते हुए कई ब्लैक मनी पर सर्जिकल स्ट्राइक की संज्ञा दे रहे हैं तो कई इसे मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं। हालांकि इस साहसिक कदम के पीछे लम्बे समय की रणनीति रही है पर देखने वाली बात यह थी कि एक हजार और पांच सौ के नोटों को चलन से बाहर करने के निर्णय को लेकर किसी को कानों-कान खबर नहीं हुई। खबर तब हुई जब देष के नाम संदेष में प्रधानमंत्री मोदी स्वयं इस मुद्दे के साथ प्रकट हुए। नोटों को प्रचलन से बाहर करना और अकस्मात ऐसा निर्णय होना आम जन-जीवन में मानो अफरा-तफरी हो गयी हो। इस निर्णय को लेकर देष भर की राय भी बंटी हुई दिखाई देती है। सबके बावजूद निर्णय की काफी सराहना भी की जा रही है। हालांकि अस्पताल में इलाज जैसी जरूरतों के लिए निर्णय के तीन दिन तक बादस्तूर नोट वैसे ही प्रचलन में रहेंगे। इसके अलावा भी कुछ स्थानों को चिन्ह्ति किया गया है जहां पर यह बरकरार है। प्रचलन से बाहर हो चुके नोटों को आगामी 30 दिसम्बर तक बदला जा सकता है। इसके अलावा कुछ औपचारिकताओं के साथ इसे परिवर्तित करने की अवधि 31 मार्च, 2017 भी निर्धारित की गयी है।
गौरतलब है कि मोदी हैरत में डालने वाले कुछ निर्णय पहले भी ले चुके हैं मसलन 25 दिसम्बर, 2015 को एकाएक लाहौर की यात्रा करके उन्होंने वैष्विक फलक पर हलचल पैदा कर दी थी जबकि बीते 28-29 सितम्बर की रात पाक अधिकृत कष्मीर में की गयी सर्जिकल स्ट्राइक भी एक साहसिक निर्णय के तौर पर परखा गया। हालांकि यह साहस देष की सेना का था पर निर्णय के सूत्रधार तो राजनीतिक कार्यपालिका ही कही जाती है। नोटों के प्रचलन से बाहर करने को लेकर मोदी को यह भी लगता है कि इस निर्णय से आम जनता कुछ असहज हो सकती है तभी तो उन्होंने अपील करते हुए कहा कि लोगों को कुछ परेषानियां पेष आयेंगी लेकिन मेरा आग्रह है कि देषहित में वे कठिनाईयों को नजरअंदाज करेंगे। खास यह भी है कि राश्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सरकार के इस साहसिक कदम की भूरी-भूरी प्रषंसा की है। कई कयासों के बीच यह भी स्पश्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी ने इस मास्टर स्ट्रोक के चलते एक तीर से कई निषाने भी साधे हैं। काले धन के रूप में जिन लोगों ने हजार और पांच सौ रूपए की नकदी जमा कर रखी हैं उनके लिए अब यह केवल कागज के टुकड़े रहेंगे। आगामी कुछ महीनों में उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं चुनाव के दौरान इस्तेमाल होने वाले बेनामी नकदी पर भी लगाम लगाई जा सकेगी। इसके अलावा भुगतान के पारम्परिक और वैधानिक तरीकों को भी बल मिलेगा इससे भी काले धन रखने वाले प्रचलन से बाहर हो जायेंगे। गौरतलब है कि पाक से आयातित नकली नोटों का गोरख धंधा बीते कई वर्शों से भारत में चल रहा है। इसे भी एक झटके में नेस्तोनाबूत करने का काम कर दिया गया है। ऐसा भी रहा है कि आतंकियों के पास ऐसे धन का खूब संचय है जिसकी चमक में वे दूसरों की जिन्दगी में अंधेरा कर रहे हैं। उनको भी इस निर्णय के चलते वित्तीय झटका मिल चुका है। 
सबका साथ, सबका विकास और सुषासन के साथ समृद्ध देष की अवधारणा को विकसित करने की चाह रखने वाले मोदी वैष्विक फलक पर भी बीते ढ़ाई वर्शों में भारत को बुलंद करने का काम किया है। आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन के मसले को लेकर उन्होंने प्रत्येक अन्तर्राश्ट्रीय मंचों पर जोर लगाकर अपने अंदाज में बात कही है। काली कमाई को लेकर और उसकी विदेषों में जमाखोरी को लेकर भी जी-20 की बैठक में भी सहमति बनवाने में सफलता प्राप्त की है पर वैष्विक स्तर पर जो प्रयास काले धन को लेकर हुआ उसकी जमीनी हकीकत पूरी तरह समुचित नहीं रही। अब बारी देष के अन्दर बेहतर होमवर्क के साथ मजबूत निर्णय की थी जो बीते 8 नवम्बर को लिया जा चुका है। साफ है कि इस निर्णय से एक बार फिर भारतीय अर्थव्यवस्था की दषा और दिषा भी नया रास्ता अख्तियार करेगी। जब देष के विकास की धारणा और उसमें छिपे लोक कल्याण को लेकर चिंता बड़ी हो जाती है तो षासकों को ऐसे निर्णयों से गुजरना ही पड़ता है। प्रधानमंत्री मोदी का 8 नवम्बर की देर षाम आये निर्णय ने उसके अगले दिन जिस तर्ज पर कौतूहल लिए रहा उसमें ट्रंप की अमेरिकी राश्ट्रपति के तौर पर जीत भी फीकी रही पर एक सच्चाई यह है कि भारत के प्रधानमंत्री मोदी और नवनिर्वाचित अमेरिका के राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक साथ मास्टर स्ट्रोक मारा है। कहा जाय तो यहां भी इतिहास बना है और वहां भी इतिहास लिखा गया है। 
गौरतलब है कि बड़े नोटों को चलन से बाहर करने की बात बीते कुछ वर्श पूर्व बाबा रामदेव ने भी कही थी। बाबा रामदेव कालेधन के मामले में अभियान भी छेड़ चुके हैं। एनडीए के 2014 के चुनावी एजेण्डे में भी काला धन षामिल रहा है बेषक देष के बाहर के काले धन को लेकर इस निर्णय से चित्र न साफ होता हो पर देष के अंदर इसका व्यापक असर होता दिखाई दे रहा है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी कहा है कि प्रधानमंत्री के इस फैसले से आतंकवाद और भ्रश्टाचार के खिलाफ लड़ाई मजबूत होगी। इस बात में सच्चाई है पर यह लड़ाई इतने मात्र से सम्भव होगी कहना कठिन है जिस तर्ज पर आतंकवाद का विस्तार हुआ है उसे देखते हुए यह केवल इसे रणनीति का एक हिस्सा मात्र ही कहा जा सकता है। बड़े नोटों के प्रचलन से बाहर करने से दूरमागी असर होंगे। रियल स्टेट, सर्राफा बाजार सहित कई स्थानों पर काम काज में पारदर्षिता आयेगी। आतंकियों की तो कमर टूटेगी ही नकली नोटों का कारोबार भी थमेगा। सरकारें बरसों से वित्तीय घाटा झेल रही हैं इस कदम से उनके राजस्व में भी बढ़ोत्तरी होगी। इन सबके अतिरिक्त संचित निधि में वृद्धि होने से देष के बुनियादी विकास को बल मिलेगा। षिक्षा, स्वास्थ एवं रोजगार समेत गरीबी को मिटाने में यह मददगार सिद्ध होगा। देखा जाय तो स्वतंत्रता के बाद काले धन व भ्रश्टाचार के खिलाफ सरकार का यह सबसे बड़ा कदम है। हालांकि साल 1975 में इन्दिरा गांधी के षासनकाल में भी बड़े नोटों को चलन से बाहर किया गया था वह दौर आज से काफी भिन्न था। सरकार का फैसला नकदी को लेकर लोगों के लिए कठिनाई जरूर पैदा कर रहा है पर चैक, ड्राफ्ट, क्रेडिट व डेबिट कार्ड से भुगतान सुविधा ज्यों की त्यों बनी हुई है आॅनलाइन लेन-देन की कोई पाबंदी नहीं है। परिप्रेक्ष और दृश्टिकोण यह इषारा करते हैं कि आर्थिकी की इस बदली रोषनी में रास्ते और समतल होंगे और उस बेहतरी की ओर भारत बढ़ सकेगा जिसकी कल्पना सपनों की उड़ान में थी न कि हकीकत में। एक सच्चाई यह भी है कि नतीजे चाहे नरम-गरम ही क्यों न हों पर सरकार का साहस क्या होता है यहां यह भी उजागर होता दिखाई देता है। 


सुशील कुमार सिंह


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