Friday, November 11, 2016

पानी की सियासत में सत्ताएं

पंजाब सरकार को झटका देते हुए जब देष की षीर्श अदालत ने बीते 10 नवम्बर को यह निर्णय सुनाया कि सतलुज के पानी पर हरियाणा का भी हक है तो एक बार लगा कि अरसे से विवाद का मुद्दा रही सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर पर अब मामला हल हो चुका है पर जिस तेवर के साथ पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाष सिंह बादल ने हरियाणा को एक भी बूंद पानी नहीं देने की बात कहीं और राश्ट्रपति के पास  अपील करने की मंषा जाहिर की  उससे साफ है कि षीर्श अदालत के निर्णय के बावजूद अभी सियासी टकराव दोनों राज्यों के बीच बना रहेगा। अदालत के फैसले के बाद पंजाब की सियासत में भी भूचाल आ गया है। कांग्रेस नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया जबकि पार्टी के विधायकांे ने भी सामूहिक रूप से विधानसभा की सदस्यता से अपना त्याग पत्र दे चुके है। इस्तीफे के इस झड़ी को पंजाब के उप-मुख्यमंत्री नाटक करार दे रहे है। फिलहाल निर्णय के चलते बदले ताजे हालात से अब सुप्रीम कोर्ट के 2002 और 2004 का आदेष भी प्रभावी हो गया हैं। जिसमें के्रंद्र सरकार को नहर का कब्जा लेकर लिंक निर्माण पूरा करना है। जस्टिस दवे की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय सवैंधानिक पीठ ने कहा कि पंजाब एसवाईएल के जल बंटवारे के बारे में हरियाणा, दिल्ली समेत अन्य के साथ हुए समझौते को एक तरफा रद्द करने का फैसला नहीं कर सकता। हलांकि एसवाईएल से संबंधित समझौते में पंजाब-हरियाणा के साथ दिल्ली, राजस्थान, और जम्मू-कष्मीर भी षामिल है परंतु पंजाब और हरियाणा के लिए यह कहीं अधिक भावनात्मक और उससे कहीं अधिक राजनीतिक मुद्दा रहा है। 
इसी वर्श बीते मार्च में नहर पर छिड़े विवाद मे एक नया मोड़ तब आया था जब पंजाब विधानसभा ने इसके खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया। इस प्रस्ताव के चलते ही पंजाब में नहर के लिए अधिग्रहीत की गई किसानों की जमीन की वापसी सुगम हो गई थी। सैकड़ांे स्थानों पर किसान पुनः जमीन पर काबिज भी हो गए थे। इस घटना ने हरियाणा की उम्मीदों पर पानी फेर दिया था। प्रसंग यह भी है कि पंजाब हरियाणा को पानी न देने के फैसले पर अड़ा रहता है तो दिल्ली में भी सप्लाई प्रभावित होगी साथ ही दोनों प्रदेषों के बीच रिष्तों में भी दरार पड़ेगी। उस दौरान कोर्ट ने भी हरियाणा की अपील पर यथास्थिति बनाये रखने की बात कहीं थी। इतना ही नहीं नहर को लेकर हरियाणा सरकार से मिली सारी रकम को भी पंजाब सरकार ने वापस कर दिया था। पंजाब और हरियाणा के बीच पानी लाने के लिए 214 किमी. लंबी सतलुज-यमुना लिंक नहर बनाने को लेकर 1981 में समझौता हुआ था। हरियाणा ने अपने हिस्से के 92 किमी. की नहर वर्शाें पहले ही पूरा कर चुका है परंतु पंजाब ने षेश 122 किमी. का निर्माण अभी तक पूरा नहीं किया है ऐसा न करने के पीछे उसकी पानी न देने वाली इच्छा ही रही है। फिलहाल पानी को लेकर जिस प्रकार सियासत फलक पर है उसे देखते हुए साफ है कि विवाद न केवल लम्बा खिचेंगा बल्कि इस पर सियासी रोटियां भी आने वाले चुनाव में सेंकी जाएगी। पंजाब से सत्तारूढ़, अकाली-भाजपा गठबंधन और उससे पहले सत्ता में रही कांग्रेस दोनों षीर्श अदालत के फैसले से असहज महसूस कर रहे है। फिलहाल पंजाब में पानी की सियासत को लेकर दोनों मुख्य पार्टियां सियासी दाव चल चुकी है। दषकों से खटाई में फंसी एसवाईएल को लेकर मामला पहले भी काफी भड़क चुका है और अभी भी यह उसी क्रम में है। 
यह कहा जाता है कि जल ही जीवन है बावजूद इसके षायद ही इसे लेकर सभी गंभीर हो। पानी को लेकर कभी दो पड़ोसी आपस में लड़तें है तो कभी दो राज्य और कभी -कभी इसे लेकर दुनिया भी आमने-सामने हो जाती है। पानी पर सियासत की कहानी बहुत पुरानी है। भारत में जल बंटवारे को लेकर राज्य सरकारों के बीच पहले भी जंग रही है। जिसका इतिहास 1969 के गोदावरी के जल बंटवारे से  देखा जा सकता है। कृश्णा, नर्मदा, रावी और व्यास नदी समेत देष में आधे दर्जन से अधिक नदी जल बंटवारे से जुड़े झगड़े क्रमिक रूप से सूचीबद्ध है। ताजा प्रकरण में अब सतलुज-यमुना लिंक भी एक बार फिर षुमार हो गई है हलांकि इस मामले में दषकों से राजनीति हो रही है। इस नहर के जरिये हरियाणा को 3.83 मिलियन एकड़ फुट पानी मिलना था। सु्रप्रीम कोर्ट ने 2004 में फैसला दिया था कि एक साल के भीतर पंजाब सरकार इसका निर्माण करवाये। यदि ऐसा करने में पंजाब सरकार पीछे हटती है तो केन्द्र अपने खर्चे पर नहर बनवाये । उस दौरान ओमप्रकाष चैटाला हरियाणा के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने लड्डू बांट कर खुषियां मनाई थी। 2005 के चुनाव में हरियाणा मे कांग्रेस की वापसी हुई और अमरिंदर सिंह  सरकार ने विधानसभा में प्रस्ताव पारित करते हुए पहले के सारे जल समझौतों को रद्द किया जिसके चलते नहर का मामला एक बार फिर लटक गया। तब हरियाणा सरकार राश्ट्रपति के चैखट पर गई जिसे लेकर राश्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी थी । अब एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर पंजाब सरकार राश्ट्रपति के दरवाजे पर जाने की बात कह रही है। देखा जाए तो भारत के कुल 29 राज्यों में पंजाब, हरियाणा, उतरप्रदेष, तेलंगाना समेत नौ राज्य गंभीर जल संकट से जुझ रहे है पंजाब यह भली भांति जनता है कि उनकी जीवन रेखा पानी ही है। इसके अभाव में वह जल संकट वाले राज्यों में वह अव्वल नहीं होना चाहता। विडंबना तो यह भी है कि पानी के लिए हाहाकार के बावजूद इसके प्रति संवेदनषीलता की लोगों में कम ही रही है। विषेशज्ञ तो यह भी मानते है कि तीसरा विष्व युद्ध जल संसाधनों पर कब्जे से जुड़ा होगा। 
वैसे तो पानी की किल्लत दुनिया भर में है । पानी के क्षेत्र में काम करने वाली सलाहकारी फर्म ईए वाटर के अध्ययन के अनुसार 2025 तक भारत पानी की कमी से जुझने वाले देषों मेें षुमार होगा। गौरतलब है कि जमीन से पानी निकालने के मामले में भी भारत दुनिया के देषों में अव्वल नंबर पर आता है।  ऐसा देखा गया है कि राज्यों की जल से जुड़ी समस्याएं बुनियादी तौर पर अक्सर उभरती रही हैं और विवाद दषकों तक चलते रहे है। कावेरी जल विवाद इसका पुख्ता उदाहरण है।  नदियों का कोई एक क्षेत्र नहीं होता लेकिन जिन इलाकों से यह गुजरती है वहां की सरकारें इसके पानी के दोहन के मामले में सर्वाधिकार रखना चाहती है। पंजाब पांच नदियों का स्थान है इसी के चलते पंजाब नामकरण भी हुआ है। हरित क्रांति की प्रेरणा और गंगा-यमुना के दोयाब में बसा यह प्रांत नदियों मंे घटते पानी के चलते उसकी कीमत समझने की कोषिष कर रहा है। पंजाब चुनाव के मुहाने पर है ओर सरकार कोई ऐसा जोखिम नहीं लेना चाहेगी कि जिससे कि उसके वोट पर असर पड़े। बेमौसम बारिष और फसल में रोगों के चलते बीते दो वर्शों से पंजाब के किसानों मंे भी आत्महत्या बढ़ी है। जाहिर है कि चुनावी वर्श में मुख्यमंत्री प्रकाष सिंह बादल अपने हितों को साधने की फिराक में  वह सब कुछ करेेंगे जो मतदाताओं को आकर्शित करने के लिए जरूरी होगा । फिर चाहे षीर्श अदालत के निर्णयों के विरूद्ध ही क्यों न लामबद्ध होना पड़े। विपक्ष में एड़िया रगड़ रही कांग्रेस भी इस अवसर को भुनाने की फिराक में है तभी तो अदालत के फैसले के बाद अमरिंदर सिंह ने इस्तीफे का कार्ड खेला है। परिप्रक्ष्य यह भी है कि सतलुज-यमुना लिंक नहर को लेकर सत्ताओं के बीच संघर्श बादस्तूर  छिड़ा है। सियासत का पानी और पानी की सियासत में राजनीति कितनी गाढ़ी होगी यह भी देखना रोचक होगा। 



सुशील कुमार सिंह



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