Friday, August 5, 2016

सवालों में यूपी की कानून-व्यवस्था

कहावत है कि सरकार वही अच्छी जिसका प्रषासन अच्छा और अच्छी कानून व्यवस्था किसी राज्य के विकास की प्रथम आवष्यकता मानी जाती है पर यही पटरी से उतर जाय तो उस राज्य का बेड़ागरक होना तय है जैसा कि इन दिनों उत्तर प्रदेष का हाल देखा जा सकता है। यहां के नेषनल हाइवे-91 पर बुलंदषहर के करीब घटी हैवानियत से भरी घटना इन दिनों न केवल सुर्खियों में है बल्कि यूपी की कानून व्यवस्था को भी धता बता रही है। जिस तर्ज पर इस नेषनल हाइवे पर घटना को अंजाम दिया गया और जिस प्रकार पुलिस कंट्रोल रूम से किया जाने वाला सम्पर्क बार-बार नाकाम रहा उससे साफ है कि पुलिसया रौब रखने वाला यूपी नागरिकों की हिफाज़त के मामले में बैकफुट पर है जिसके चलते यहां की कानून व्यवस्था को लेकर लानत-मलानत का दौर भी चल रहा है। फिलहाल मामले की गम्भीरता को देखते हुए पुलिस हरकत में आयी और तीन आरोपियों को पकड़़ने में कामयाब रही। लोग आरोपियों को फांसी देने की मांग कर रहे हैं जबकि पीड़ित के पिता और पति का कहना है कि अगर न्याय नहीं मिला तो हम तीनों जहर खा लेंगे। 
देखा जाय तो सर्वाधिक जनसंख्या वाले उत्तर प्रदेष के मुखिया अखिलेष यादव प्रदेष में कानून-व्यवस्था को बनाये रखने में नाकामयाब ही सिद्ध हो रहे हैं। उत्तर प्रदेष चुनाव के मुहाने पर है जबकि कानून-व्यवस्था के मामले में यहां हालात बद् से बद्तर होते जा रहे हैं। यूपी सरकार के पास इसे संभालने हेतु कोई यांत्रिक दृश्टिकोण है इसका भी आभाव ही दिखाई देता है। लगभग पांच साल की सत्ता में अखिलेष सरकार यूपी में अपराध को रोक पाने में विफल रही है। मुजफ्फरनगर का नासूर अभी भी ताजा है इसके समेत सैकड़ों की मात्रा में हुई घटनायें इस बात का संकेत करती हैं कि उत्तर प्रदेष बिगड़ी कानून-व्यवस्था का मानो पर्याय बन गया हो। गौरतलब है कि कानून-व्यवस्था को संभालने में पुलिस की सर्वाधिक भूमिका होती है पर जिस पर इसकी जिम्मेदारी है वे ही लापरवाही से भरे प्रतीत होते हैं। इतना ही नहीं जिस पुलिस को भारी-भरकम प्रषिक्षण के बाद वर्दी पहनने का हक दिया जाता है वही मोर्चा संभालने में मुंह के बल गिरते हुए दिख रही है। 
नाक के नीचे घटनायें घट रही हैं, अपराधी बेखौफ घूम रहे हैं, कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं पर प्रषासन की संरचना एवं प्रक्रिया में कोई खास फर्क नहीं दिखाई देता। कुछ का निलंबन होना तथा स्थानांतरण होने तक बात रह जाती है। सवाल है कि जिस तर्ज पर अपराधी अपराध को अंजाम दे रहे हैं उसे रोकने के लिए किस प्रकार की मषीनरी चाहिए। सवाल तो यह भी है कि कानून-व्यवस्था के मामले में उत्तर प्रदेष जैसे प्रांत हाषिये पर क्यों जबकि तकनीकी पैनापन भी अब आ चुका है। पुलिस कंट्रोल रूम का 100 नम्बर पर गुहार लगाने वाले पीड़ित को राहत क्यों नहीं मिल पायी। इतनी लापरवाही किस ओर इषारा करती है यह समझ से परे है। संतुलित मापदण्डों में यह हमेषा रहा है कि व्यवस्थायें उथल-पुथल में रहती हैं पर यह सिलसिला खत्म ही न हो यह तो किसी त्रासदी का लक्षण है। 
पड़ताल तो इस बात की भी होनी चाहिए कि आखिर कानून-व्यवस्था जो राज्य का प्रथम विशय होना चाहिए वह सूची में आखिरी पायदान पर क्यों जा रहा है। द्वितीय प्रषासनिक सुधार आयोग ने कानून और व्यवस्था प्रषासन पर पांचवे रिपोर्ट में कई बातों का उल्लेख किया है जिसमें एक यह भी है कि अपराध अन्वेशण को कानून और व्यवस्था से अलग किया जाय। एक राश्ट्रीय अपराधिक जांच एजेंसी का गठन किया जाय। इतना ही नहीं अपराधों के प्रति जीरो टोलरेंस स्ट्रैटेजी को अपनाने का संदर्भ भी रिपोर्ट में निहित है पर इसकी जमीनी हकीकत कितनी है यह भी पड़ताल का ही विशय है। किसी भी प्रदेष में जब कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ती हैं और बड़े अपराध पनपते हैं तो साफ है कि प्रषासनिक महकमा यांत्रिक चेतना के मामले में या तो कमजोर है या फिर ड्यूटी के नाम पर टाइम पास कर रहा है। हालांकि यह माना जाता है कि केवल एक कारण से ही कानून-व्यवस्था पटरी से नहीं उतरती, इसके अनगिनत कारण होते हैं मसलन राजनीति और प्रषासन का अपराधिकरण, पुलिस सुधार में कमियां, बढ़ते संगठित अपराध, पुलिस की उदासीनता और अकर्मण्यता के कारण जनता में बढ़ती पुलिस को लेकर नकारात्मक प्रवृत्ति इसके अलावा भी अनेक सामाजिक और आर्थिक पहलू मिल जायेंगे। 
फिलहाल राज्य चाहे कोई भी हो एक कुषल व्यवस्था के लिए नियम और कानून स्तम्भ के समान होते हैं यदि यही लचर होंगे तो तंत्र का चलना न केवल मुष्किल होगा बल्कि नामुमकिन होगा। उत्तर प्रदेष में पटरी से उतरी व्यवस्था को दुरूस्त करने के लिए नये सिरे से एक बार फिर होमवर्क करने की जरूरत है और व्यवस्था को इस कदर बड़ा करना कि अपराध बौने सिद्ध हो जायें। यदि ऐसा करने में देरी हुई तो सभ्यता नश्ट होने की जिम्मेदारी से सरकार और प्रषासन दोनों नहीं बच पायेंगे।



सुशील कुमार सिंह


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