Tuesday, August 16, 2016

नवाचार को समर्पित 70वां स्वतंत्रता दिवस

आतंकवाद के आगे भारत नहीं झुकेगा। आतंकवाद और माओवाद की तरफ भटके युवाओं से मुख्य धारा में लौटने की अपील समेत कई बिन्दुओं पर प्रधानमंत्री मोदी ने लालकिले की प्राचीर से एक प्रखर प्रवक्ता की भांति वह सब कुछ कहा जो राश्ट्र को मजबूत करने के काम आ सकता है। स्वतंत्रता के दिन लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी की स्वराज को सुराज में बदलने का संकल्प सहित कई ऐसी बातें कही गयी जिसके लागू होने से भारत का भाग्य बदल सकता है। इसी लालकिले से पहली बार ब्लूचिस्तान और पाक अधिकृत कष्मीर का जिक्र करके मोदी ने पाकिस्तान को उसकी असल जगह बताने की कोषिष भी की जिसका नतीजा यह हुआ कि घबराये पाकिस्तान ने कष्मीर मुद्दे पर भारत से बातचीत की तुरंत पेषकष कर दी। फिलहाल 15 अगस्त उपलब्धियों के साथ कई सकारात्मक ऊर्जा के लिए देखा और समझा जाता रहा है। तीसरी बार लालकिले से भाशण दे रहे मोदी को सुनने के बाद स्वप्नदर्षी राश्ट्रपिता महात्मा गांधी के उन सपनों के भारत की याद एक बार फिर ताजा हो गयी जिसकी चाह वे रखते थे। गांधी के अनुसार मैं ऐसे भारत के लिए कोषिष करूंगा जिसमें गरीब लोग भी यह महसूस करेंगे कि वह उनका देष है जिसके निर्माण में उनकी आवाज का महत्व है, जिसमें उच्च और निम्न वर्ग का भेद निहित होगा और जिसमें विविध सम्प्रदाओं का पूरा मेलजोल होगा। ऐसे भारत में अस्पृष्यता या षराब और दूसरी नषीली चीजों के अभिषाप के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता। उसमें स्त्रियों को वही अधिकार होंगे, जो पुरूशों को होंगे। षेश सारी दुनिया के साथ हमारा सम्बंध षान्ति का होगा। राश्ट्रपिता की उपर्युक्त विचारधारा के हम कितने समीप हैं यह पड़ताल का विशय हो सकता है पर इसमें कोई दो राय नहीं कि सात दषक खपाने के बाद भी उनकी सोच को पूरा करने में अभी मीलों पीछे हैं। 
लगभग 94 मिनट के भाशण में प्रधानमंत्री मोदी ने कई खास बातों का जिक्र किया है। लालकिले से पाकिस्तान को ललकारने का जो अजूबा हुआ ऐसा पहले कभी देखने को नहीं मिला। ब्लूचिस्तान और पीओके के लोगों का मोदी ने षुक्रिया अदा किया। गौरतलब है कि मोदी के उक्त बयान से इस क्षेत्र विषेश के संघर्श करने वाले लोगों का उत्साह बढ़ा होगा। कईयों का मानना है कि इस मामले में भारत को बड़े भाई की भूमिका में होना चाहिए। यह सही है कि प्रधानमंत्री मोदी कई नूतन प्रयोगों के लिए जाने-समझे जाते हैं पर इसका अंदाजा षायद ही किसी को रहा हो कि दो बरस पहले षपथ के दिन से ही पाकिस्तान के मामले में सकारात्मक रूख रखने वाले मोदी इतने तीखे होंगे। मोदी ने पाकिस्तान को जो आईना दिखाया उस पर पूरा संतोश तो नहीं परन्तु बड़ा भरोसा जरूर किया जा सकता है। हालांकि यह देखने वाली बात होगी कि पाकिस्तान की चाल अब क्या होती है बातचीत का न्यौता दे चुका है पर अंजाम क्या होगा अभी साफ नहीं है। फिलहाल देखा जाए तो  आजादी के 70वें दिवस पर एक बार फिर भावनात्मक परिप्रेक्ष्य के साथ सांस्कृतिक और सामाजिक विन्यास से परिपूर्ण दस्तावेज का खुलासा हुआ है परन्तु देष की षीर्श अदालत के मुखिया इतने लम्बे भाशण में न्यायाधीषों की नियुक्ति का जिक्र न होने से निराष दिखाई देते हैं। मानव सभ्यता के विकास को जिन कारकों ने प्रभावित किया है उनसे भारत की स्वाधीनता भी अछूती नहीं है। हम इस बात को षायद पूरे मन से एहसास नहीं कर पाते कि स्वतंत्रता दिवस क्या चिन्ह्ति करना चाहता है। मोदी ने तो यहां तक कहा कि अगर उपलब्धियों के बारे में बोलूं तो हफ्ते भर लाल किले पर बोलना पड़ेगा। यह संदर्भ नीति और नीयत दोनों के लिए अच्छा ही है पर जिन पर अभी कुछ खास नहीं हुआ है उन पर भी बोलने के लिए कुछ कर गुजरना बाकी है।
वर्श 2016 का स्वतंत्रता दिवस गिनती में 70वां होगा पर क्या पूरे संतोश से कहा जा सकता है कि हाड़-मांस का एक महामानव रूपी महात्मा जो एक युगदृश्टा था जिसने गुलामी की बेड़ियों से भारत को मुक्त कराया था क्या उसके सपने को वर्तमान में पूरा पड़ते हुए देखा जा सकता है। कमोबेष ही सही पर यह सच है कि सपनों को पूरा करने की जद्दोजहद अभी भी जारी है। असल में भारत में राश्ट्रवाद का उदय भारतीयों के अंग्रेजी साम्राज्य के प्रति असंतोश एवं उसमें व्याप्त तर्कपूर्ण बौद्धिकता का परिणाम था जो 19वीं सदी की महत्वपूर्ण घटना थी। इन्हीं दिनों भारतीय स्वतंत्रता का बीजारोपण भी हुआ, इसी का फल स्वाधीन भारत है। यहीं से लोकतांत्रिक सिद्धांत की आधारभूत मान्यता, आत्मनिर्णय या सुषासन की मुहिम षुरू हुई। भारत ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संसदीय प्रणाली को अपनाया और समाजवादी आयाम से अभीभूत देष लोकतांत्रिक समाजवाद की ओर बढ़ चला। इस उम्मीद में कि सैकड़ों वर्शों के सपनों को कुछ वर्श में पूरा किया जायेगा। 70 साल के आजादी के इतिहास में भारत के अन्दर अनगिनत बदलाव आये हैं पर जो चिन्ता राश्ट्रपति के अभिभाशण में दिखी उससे परिलक्षित होता है कि होमवर्क दुरूस्त करना होगा। नरेन्द्र मोदी दो साल से अधिक समय से प्रधानमंत्री हैं और मौजूदा स्थिति में बड़े स्वप्नदृश्टा के रूप में स्वयं को स्थापित करने में लगे हैं। देष-विदेष में गांधी और विवेकानंद के उन विचारों को उकेरना नहीं भूलते जिसमें विष्व कल्याण का रहस्य छुपा है। इस बार भी लाल किले से तिरंगा फहराने के बाद देष को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि एक भारत, श्रेश्ठ भारत के सपने को पूरा करना चाहिए। इसके लिए प्रत्येक आदमी को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। महात्मा गांधी, सरदार पटेल और पण्डित नेहरू सहित कईयों को याद करते हुए अपनी उपलब्धियों के साथ मन की बात को देष के सामने परोसने का काम किया। 
आजादी को देखने, समझने और महसूस करने के सबके अपने-अपने तरीके हैं पर इस सच से षायद ही किसी को गुरेज हो कि आज हमारे पास आजादी के इतने विकल्प मौजूद हैं जो अब से कुछ वर्श पहले नहीं थे। कुछ देषों को छोड़ दिया जाय मसलन पाकिस्तान तो कमाबेष भारत के अन्तर्राश्ट्रीय सम्बंध और समझ तुलनात्मक समकक्षता की ओर गयी है। संतुलन बिठाने के मामले में भी भारत की स्थिति तुलनात्मक मजबूत ही हुई है। कई मामलों में आलोचना की जा सकती है पर आज के अवसर में इसकी गुंजाइष कम रखना चाहते हैं। आजादी जितनी पुरानी कष्मीर की समस्या इन दिनों चर्चे में है। इस बार खास यह हुआ है कि पाक अधिकृत कष्मीर को लेकर भारत काफी आवेषित है पर नतीजे किस करवट जायेंगे अभी कुछ कहा नहीं जा सकता परन्तु पाकिस्तान को उसी की भाशा में जवाब देने का इरादा यदि सरकार में आता है तो यह नई बात होगी। मोदी के इषारों में यह संकेत रहता है कि उनके पास हर मर्ज की दवा है। अपनी कूबत और कौषल से सब कुछ हल कर लेंगे और श्रेश्ठ भारत के जो वे युगदृश्टा बनने की फिराक में हैं उसमें भी आगे निकल जायेंगे। अगर देष के पास समस्याएं हैं तो सामथ्र्य भी है। इस बात को कहते हुए लाल किले से मोदी ने यह भी कहा कि आजादी का पर्व देष को नई ऊंचाई पर ले जाने का पर्व है। इस बात में लेष मात्र भी संदेह नहीं है पर सरकार जिस रोड मैप पर है क्या उतने मात्र से सबकी भलाई हो सकेगी। इस पर पूरा विष्वास नहीं किया जा सकता। सब कुछ के बावजूद कठोर सवाल यह है कि 70 साल की आजादी हो गयी परन्तु अभी भी भारत कई बुनियादी सामाजिक समस्याओं से उबर नहीं पा रहा है मसलन दलितों से जुड़ी समस्याएं। फिलहाल मोदी की पारी चल रही है। जाहिर है जिम्मेदारी को समझने में वे कोई चूक नहीं करते हैं और इसमें भी कोई षक-सुबहा नहीं कि जनता इनसे बहुत उम्मीद लगाती है। 


सुशील कुमार सिंह

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