Friday, August 5, 2016

परदेस से वतन लौटने की गुहार

बीते 3 अगस्त यही कोई सुबह के साढ़े सात बज रहे थे और मैं स्वयं सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे प्रतियोगियों को भारत-अफगानिस्तान सम्बंधों पर व्याख्यान दे रहा था। पष्चिमी देषों से लेकर खाड़ी देषों तक की चर्चा-परिचर्चा जोरों पर थी। तभी कक्षा में उपस्थित एक छात्रा के मोबाइल पर सऊदी अरब में नौकरी कर रहे उसके पिता का एक संदेष आया जो तीन महीने की छुट्टी बिताकर बीते 11 जुलाई को ही सऊदी अरब वापस गये थे। संदेष में लिखा था कि हम लोग मुसीबत में हैं, हमारे पास खाने के लिए कुछ नहीं हैं, काम की जगह पर ही मानो बंधक बनाये गये हों और बहुत अधिक पीड़ा से गुजर रहे हैं। इसके आगे भी कुछ और बातें लिखी थीं। उस छात्रा ने मोबाइल में आये संदेष से पूरी कक्षा को अवगत कराया और तुरंत यह कहते हुए बाहर जाने की अनुमति मांगी कि मैं भी अपने पिता के वतन वापसी को लेकर अपने हिस्से की कोषिष करने जा रही हूं। प्रत्यक्ष हुए इस मामले से थोड़ी देर के लिए मन में यह भी चिंतन व्याप्त हुआ कि आखिर परदेस में विगत् कई वर्शों से इस प्रकार की विडम्बनायें क्यों हो रही हैं। क्यों भारतीय आये दिन कभी इराक तो कभी दक्षिणी सूडान तो कभी यमन में फंसते रहे हैं। उक्त घटना मात्र एक बानगी भर है जबकि सच्चाई यह है कि नौकरियों से हाथ धो चुके हजारों भारतीय इस समय सऊदी अरब और ओमान में फंसे हैं और वतन वापसी की गुहार लगा रहे हैं। ताजा हालात यह भी है कि सऊदी अरब में बीस षिविरों में करीब आठ हजार के आस-पास भारतीय षरण लिये हुए हैं। इनमें से रियाद में 9 षिविरों और दम्माम में एक षिविर में मेसर्स सऊदी ओगेर कम्पनी के चार हजार से अधिक भारतीय कामगार भी षामिल हैं। पड़ताल बताती है कि सऊदी अरब में फंसे लोगों की संख्या दस हजार के आसपास है जिसकी वापसी को लेकर भारत सरकार हरकत में आ चुकी है। इसी के मद्देनजर बीते मंगलवार की रात विदेष राज्यमंत्री वी.के. सिंह सऊदी अरब रवाना हो चुके हैं।
इन दिनों देष की संसद मानसून सत्र में संलिप्त है और देष को संभालने तथा बनाने वाले कई मुद्दों पर चर्चा-परिचर्चा जारी है। इसी बीच सऊदी अरब और ओमान में फंसे हजारों भारतीयों की गुहार भी संसद में गूंजी जिसे लेकर विदेष मंत्री सुशमा स्वराज ने संसद के दोनों सदनों में बयान जारी कर कहा कि वे हर घण्टे इस अभियान की निगरानी कर रही हैं। उन्होंने कहा कि दस हजार भारतीयों के बकाये पैसे भी वापस दिलायेंगी। संकट से जूझ रहे लोगों की मदद के लिए युद्ध स्तर पर कदम उठाए जा रहे हैं। सऊदी और ओमान में फंसे भारतीयों को लेकर काफी कुछ कहा जा रहा है पर वापसी कब सम्भव होगी, इसकी कागजी कार्यवाही कितने लम्बे समय तक चलेगी अभी कुछ स्पश्ट नहीं है। गौरतलब है कि सऊदी सरकार के अपने नियम हैं जिसमें किसी देष के दूतावास के कहने पर भी वहां से अपने नागरिकों को वापस लाने की अनुमति तब तक नहीं दी जाती है जब तक उनकी कम्पनी इजाजत न दे। फिलहाल भारत सरकार सऊदी सरकार से वापसी को लेकर जद्दोजहद में लगी हुई है। जितना कुछ पढ़ने और पड़ताल करने से पता चला है उससे स्पश्ट हुआ है  कि सऊदी अरब में अधिकतर फंसे भारतीयों को कई महीने से वेतन नहीं मिला है। यहां तक कि कामगारों को प्रताड़ित भी किया जा रहा है और बेहद मुष्किल हालात में लोग रह रहे हैं। इतना ही नहीं रोजमर्रा की चीजों के लिए संघर्श कर रहे हैं। सैकड़ों की तादाद में ऐसे भी हैं जिन्हें आठ महीने से वेतन नहीं मिला है। मीडिया से छन-छन कर आई खबर से यह भी साफ हुआ है कि फंसे भारतीयों के पास भारत लौटने की उम्मीद के सिवा अब वहां कुछ नहीं है। यह विडम्बना ही है कि विदेष की धरती पर रोज़गार के साथ डाॅलर, पाॅउण्ड और रियाल जैसी विदेषी मुद्रा कमाने की फिराक में हजारों, लाखों की तादाद में भारतीयों का देष छोड़ना पड़ता है पर विदेषी कानून और नियमों की बंदिषों  के अलावा यहां की आंतरिक समस्याओं के चलते कभी-कभार ये यहां फंस भी जाते हैं।
फिलहाल सऊदी और ओमान में फंसे भारतीयों को सुरक्षित लाना इस समय पहली प्राथमिकता है परन्तु साथ ही ऐसी व्यवस्था बनाने की भी जरूरत है जिसमें ऐसे कठिनाईयों से बचने की जुगत सरल हो। एक तो पुख्ता रिकाॅर्ड रखने की जरूरत है कि कितने भारतीय किस देष में, किस क्षेत्र में, किस परियोजना में, किस कम्पनी में और किस हालात में काम कर रहे हैं। यह उचित है कि जनसंख्या से भरे भारत में रोजगार की सम्भावनायें कमजोर होने के चलते बाहर जाना पड़ता है पर पैसा कमाने और दुर्लभ विदेषी मुद्रा प्राप्त करने के लिए जीवन मुसीबत में डालना कदाचित उचित नहीं है। इतना ही नहीं विदेष जाने वाले भारतीयों को भी जिम्मेदारियों से ओत-प्रोत करना चाहिए साथ ही विदेष विभाग को यह चेतावनी देनी चाहिए कि कब, किस देष में, किस प्रकार का खतरा है मसलन बीते 11 जुलाई को जिनकी वापसी सऊदी के लिए हुई यदि वहां कि विसंगतियों से विदेष विभाग रेड अलर्ट जारी किया होता तो ऐसे लोग वहां जाते ही क्यों? इन तमाम से यह भी स्पश्ट होता है कि नागरिक और सरकार दोनों की ओर से कुछ और ठोस तौर-तरीके अपनाने की जरूरत है। आज से ढ़ाई दषक पहले 1990 में जब इराक ने कुवैत को कब्जा किया था तो भारतीय वायुसेना और नौसेना ने वहां से पौने दो लाख भारतीयों को आपात स्थिति से बाहर निकाला था। इतनी बड़ी संख्या में किसी देष के नागरिक को निकालने का यह विष्व रिकाॅर्ड भी है। इसी तरह 2006 के लेबनान युद्ध के दौरान भी भारतीयों को ही नहीं बल्कि श्रीलंका और नेपाल के नागरिकों को भी सुरक्षित निकालने में सफलता मिली थी। लीबिया जैसे देषों में भी ‘आप्रेषन सेफ होमकमिंग‘ का अभियान चला कर 18 हजार से अधिक भारतीयों की वतन वापसी करायी गयी थी। इसी प्रकार दर्जनों देष देखे जा सकते हैं जहां कभी गृह युद्ध के कारण तो कभी वहां पनपी आंतरिक समस्याओं के चलते फंसे भारतीयों को वतन वापसी कराने में बड़ी-बड़ी सफलतायें मिली हैं। 
उपरोक्त सफलताओं के मद्देनजर यह भी साफ होता है कि भारत की अपने नागरिकों के प्रति कोषिष हमेषा से प्राथमिकता में रही है। भारत भावनाओं का देष है। पीड़ा से भरी गुहार को कोई भी सरकार षायद ही नजरअंदाज किया हो। संदर्भ और परिप्रेक्ष्य दोनों को देखते हुए कहा जा सकता है कि हालिया समस्या जो सऊदी और ओमान में फंसे हजारों भारतीयों से सम्बन्धित है इस मामले में भी सफलतापूर्वक वापसी सम्भव होगी। इस दिषा में प्रयास जोरों पर है। भारत में सऊदी के राजदूत से सभी द्विपक्षीय मुद्दों पर सकारात्मक चर्चा हुई है। भारतीय कामगारों से जुड़े मुद्दे समेत कई मुद्दों को सुलझाने की दिषा में सऊदी सरकार की ओर से आष्वासन और सहयोग मिलने की सूचना भी है। असल में खाड़ी देषों में भी यह देखा गया है कि अर्थव्यवस्थायें स्थिर नहीं रही हैं। यहां अर्थव्यवस्था चरमराने से हजारों भारतीयों की नौकरी चली गयी और आर्थिक कमी इस स्तर तक है कि खाने के भी लाले पड़े हैं। ऐसे लोगों के लिए भारतीय मिषन ने भोजन उपलब्ध करवाया है। विदेष में जब इस प्रकार की परिस्थितियां व्याप्त होती हैं तो वतन वापसी ही मात्र एक रास्ता बचता है फिर षुरू होती है सरकार की ओर से उन्हें लाने की कवायद। उपरोक्त से यह भी साफ होता है कि विदेष में तभी तक सुरक्षित जीवन है जब तक उनका देष किसी विडम्बना का षिकार नहीं है। फिलहाल तमाम समस्याओं की तरह इसे भी हल कर लिया जायेगा पर यह चिंता से षायद ही मुक्त हुआ जा सकेगा कि आगे एसी अनहोनी नहीं होगी।

सुशील कुमार सिंह


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