Friday, August 5, 2016

कानून के कगार पर जीएसटी

आखिरकार एक देष, एक टैक्स का सपना अब हकीकत की राह पकड़ लिया है। दषकों से अधिक समय की प्रतीक्षा के बाद और 6 मई, 2015 को लोकसभा में पारित जीएसटी विधेयक अन्ततः बीते 3 अगस्त को राज्यसभा की भी अनुमति प्राप्त कर ली है। खास यह भी है कि जो जीएसटी विधेयक 2014 के षीत सत्र से हिचकोले खा रहा था जब वह राज्यसभा में 203 मतों से पारित हुआ तो विरोध में कोई भी नहीं दिखाई दिया। हालांकि राज्यसभा में विधेयक पर मतदान से पहले सरकार के जवाब से असंतोश जताते हुए अन्नाद्रमुक ने सदन से वाॅकआउट किया था। फिलहाल दोनों सदनों में पारित जीएसटी को कानूनी रूप लेने में अभी कई प्रक्रियायें षेश हैं। जीएसटी को अन्तिम रूप देने के लिए दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत के अलावा आधे राज्यों की सहमति भी अनिवार्य है। ऐसे में 122वां संविधान संषोधन विधेयक के अन्तर्गत निहित जीएसटी को अभी 15 राज्यों की मंजूरी लेना होगा। तत्पष्चात् राश्ट्रपति हस्ताक्षर करेंगे तब कहीं जाकर 1 अप्रैल, 2017 से लागू होने वाला यह कानून धरातल पर उतर सकेगा पर मोदी सरकार की सर्वाधिक महत्वाकांक्षी विधेयक में षामिल जीएसटी के राज्यसभा में पारित होने के बाद इस बात पर भी विमर्ष जारी है कि इसके नफे-नुकसान कितने और कैसे होंगे। जाहिर है कि कुछ चीजों के दाम घटेंगे तो कुछ बढ़ेंगे और धीरे-धीरे सब कुछ पटरी पर आ जायेगा। लेकिन इस हकीकत को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि जीएसटी भारत के लिए नया कानून हो सकता है पर विष्व के कुछ देषों को जीएसटी को लेकर अनुभव नरम-गरम रहे हैं। ऐसे में 1 अप्रैल, 2017 के बाद और कुछ माह एवं वर्श बीतने के बाद ही इसकी पुख्ता पड़ताल सम्भव हो पायेगी। 
जीएसटी के इतिहास को खंगाला जाय तो पता चलता है कि 28 फरवरी, 2006 को 2006-07 के बजट में पहली बार इसका प्रस्ताव षामिल किया गया था और यह जाहिर किया गया था कि 1 अप्रैल, 2010 से जीएसटी को लागू किया जायेगा। इसके बाद नवम्बर, 2009 में जीएसटी पर पहला डिस्कषन पेपर जारी हुआ। साल दर साल इस पर चर्चा होती रही इसके होने को लेकर कई फायदे और नुकसान की भी गिनती होती रही पर इसे अमल में लाना सम्भव नहीं हो पाया। यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल में प्रस्ताव के तौर पर आया जीएसटी की पारी एक दषकीय से अधिक है। प्रधानमंत्री मोदी की महत्वाकांक्षी विधेयकों में जीएसटी का अहम स्थान था पर राज्यसभा में संख्याबल की कमी के कारण इसे पारित कराने में अच्छा खासा वक्त खर्च करना पड़ा। कांग्रेस समेत कई विरोधी दलों को कई बार मान-मनव्वल भी करनी पड़ी जिसका नतीजा अब जाकर मिला पर अभी इसकी दर तय नहीं हुई है। वित्त मंत्री जेटली ने विधेयक पारित होने से पहले अपने जवाब में बताया कि मुख्य आर्थिक सलाहकार ने जीएसटी की दर के बारे में 16.9 से 18.9 के बीच सुझाव दिया था। फिलहाल इसमें कई कमियां हैं जिसके चलते राज्य के वित्त मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समिति को स्वीकार्य नहीं है। जीएसटी की दर बाद में काउंसिल तय करेगी। गौरतलब है कि अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान 17 जुलाई, 2000 को राज्य के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति का गठन हुआ था और 12 अगस्त, 2004 को इसे पुर्नगठित किया गया था। देखा जाय तो जीएसटी दोनों सदनों से पारित होकर कानून बनने के कगार पर आ खड़ा है। ऐसे में सवाल यह भी खड़े हो रहे हैं कि यह देष के लिए कितना लाभप्रद होगा। माना जा रहा है कि काफी छोटे स्तर के उद्यम और कारोबारियों को आरम्भ के वर्शों में लाभ नहीं मिलेगा उल्टा इसके लागू होने पर कारोबार की लागत बढ़ जायेगी। 
फेडरेषन आॅफ इण्डियन स्माॅल मीडिया इन्टरप्राइजेज के मुताबिक जीएसटी सैद्धान्तिक रूप से फायदेमन्द है क्योंकि इससे कर चोरी की सम्भावना कम हो जायेगी और ईमानदारी को बढ़ावा मिलेगा। देखा जाय तो सर्विस सेक्टर से जुड़े क्षेत्र में महंगाई बढ़ेगी। अनुमान है कि 18 फीसदी दर होगी। इस आधार पर पर्यटन, एसी ट्रेन, बस यात्रा, हवाई यात्रा यहां तक कि कोचिंग करने वाले विद्यार्थियों एवं प्रतियोगियों को अधिक षुल्क चुकाना होगा। जो चीजें सस्ती होंगी उनमें छोटी कारें, रेस्तरां में भोजना करना, सिनेमा के टिकट आदि षामिल हैं। यह आंकलन सरसरी तौर पर है जबकि इसके अलावा कई क्षेत्र और भी हैं जो इसी प्रकार के लाभ-हानि के दायरे में देखे जा सकते हैं। अलबत्ता फायदे और नुकसान के दरमियान जीएसटी का मोल-तोल किया जाय पर पूरे देष में एक दर होने से इसके दूरगामी नतीजे बेहतर होंगे ऐसी सम्भावना लगाई जा रही है। ऐसा नहीं है कि जीएसटी के मामले में दुनिया को समझ नहीं है। पड़ताल बताती है कि एषिया के 19 देषों में इसी प्रकार का कर प्रावधान है जबकि यूरोप में तो 53 देष इसमें सूचीबद्ध हैं। इसी प्रकार अफ्रीका में 44, साउथ अमेरिका में 11 समेत दुनिया भर में सौ से अधिक देष इसके अन्तर्गत निहित देखे जा सकते हैं। सबके बावजूद यह भी ध्यान देना होगा कि इसकी दर अधिक न हो। रोचक यह भी है कि जीएसटी को लेकर कुछ देषों में यह भी देखने को मिला है जिस सरकार ने जीएसटी को लागू किया उसमें से कुछ को आगामी चुनाव में हार का सामना भी करना पड़ा। हालांकि इस कानून के आने से कई अन्य की भी राह आसान होगी मसलन नये कारोबारियों के एक आसान सा आवेदन देना होगा जो आॅनलाइन दाखिल हो जायेगा। एक ही पंजीकरण सेन्ट्रल जीएसटी और स्टेट जीएसटी हेतु मान्य होगा। इसके अलावा वर्तमान कारोबारी को पंजीकरण कराने की जरूरत नहीं है।
कर चोरी घटेगी, ईमानदार कारोबारियों को लाभ मिलेगा, कई अप्रत्यक्ष करों को खत्म कर एक कर लगाया जायेगा जो बार-बार कर चुकाने के झंझट से मुक्ति मिलेगी साथ ही कारोबार की दृश्टि से पूरा देष एक जैसा हो जायेगा। जिस कर व्यवस्था में ऐसी अवधारणायें छुपी हों उसकी तस्वीर साफ क्यों नहीं कही जायेगी। अर्थषास्त्रियों की राय जीएसटी के मामले में बंटी जरूर है पर इस बात से षायद ही कोई गुरेज कर रहा हो कि भारत में ऐसे कर कानूनों की जरूरत थी। प्रधानमंत्री मोदी जीएसटी को कानून की राह में लाकर फिलहाल एक नेक काज तो किया है साथ ही दुनिया में बदलती और उभरती अर्थव्यवस्था के बीच भारत को भी विष्व मंचों पर ऊंचाई के साथ खड़ा किया है। ऐसे में आन्तरिक आर्थिक व्यवस्था को लेकर भी ठोस रणनीति बनाना जरूरी था जिसे देखते हुए जीएसटी फिलहाल के लिए बेहतर विकल्प था। जीएसटी के मूर्त रूप लेने से इसका एक ऐतिहासिक अर्थ भी निकलता है। 24 जुलाई, 1991 के बड़े आर्थिक सुधार के बाद ठीक 25 वर्श बाद यह दूसरा बड़ा आर्थिक सुधार कहा जायेगा। समझने वाली बात यह भी है कि जीएसटी भले ही राजनीतिक सर्वसम्मति की अवधारणा लिये रहा हो पर यह पूरा मामला आर्थिक कवायद का था। भारत राज्यों का संघ है, संघ का अपना एक संवैधानिक अर्थ है पर यहां इसका मतलब सभी की चिंता करने वाला कहा जाय तो अतार्किक न होगा। इस आधार बिन्दू को तभी पुख्ता किया जा सकता था जब भारत के कोने-कोने में प्रणालियों में भी एकरूपता हो। जीएसटी इस दिषा में भी एक बेहतर कदम के रूप में जाना जायेगा। नेषनल कांउसिल आॅफ अप्लाइड इकोनोमिक रिसर्च का भी मानना है कि इसके लागू होने से जीडीपी में 0.9 से 1.7 तक का इजाफा हो सकता है। जिसके चलते भारत की जीडीपी दहाई में भी जा सकती है। फिलहाल बरसों से राजनीति का षिकार जीएसटी कानूनी कगार पर है जिसका स्वागत किया ही जाना चाहिए। 



सुशील कुमार सिंह

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