Wednesday, August 24, 2016

समाधान न्यायिक नहीं, राजनीतिक हो.

जम्मू-कष्मीर संविधान की पहली अनुसूची में षामिल 15वां राज्य है जो ऐतिहासिक कारणों के चलते अनुच्छेद 370 के अधीन विषेश उपबन्धों से युक्त है। स्वतंत्रता के एक बरस बाद से ही यहां पाकिस्तान ने जो जहर बोया उसकी फसलें अभी भी घाटी में लहलहाती हैं। आतंक की जो रोपाई बीते तीन दषकों में पाक अधिकृत कष्मीर में हुई है और जिस तर्ज पर कष्मीर समेत भारत में इसका उपयोग हुआ है उसे देखते हुए साफ है कि पकिस्तान न केवल एक गैर-जिम्मेदार देष बल्कि आतंकियों का पनाहगार भी है और इन्हीं के बूते पर भारत से छद्म युद्ध का बिगुल फूंके रहता है। आईएसआई और आतंकी संगठनों के प्रभाव एवं दबाव में पाकिस्तान जिस रास्ते पर है उससे यह भी संकेत मिलता है कि पाकिस्तानी सरकार के पास समाधान के लिए सख्त कदम उठाने की हैसियत ही नहीं है। इतना ही नहीं कष्मीर का ढिंढोरा संयुक्त राश्ट्र संघ समेत वैष्विक मंचों पर पीटकर अपनी नुमाइष करता रहता है। विडम्बना यह भी है कि कष्मीर घाटी में कई अलगाववादी गुट भी सक्रिय हैं। हुर्रियत जैसे अलगाववादियों ने भी कम नासूर नहीं दिये हैं। देखा जाय तो घाटी का दुःख कई कोषिषों के बावजूद कम होने के बजाय दोगुनी बढ़त लिये हुए है। इन दिनों भी कष्मीर पिछले डेढ़ महीने से बिगड़े हालात की षिकार है। हालात काबू में कैसे आयें इस पर कसरत जारी है। देष की षीर्श अदालत ने भी यह साफ कर दिया कि कष्मीर के मौजूदा हालात पर समाधान राजनीतिक स्तर पर निकाला जाना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा है कि हर समस्या का न्यायिक समाधान नहीं हो सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी का वक्तव्य कि कष्मीर पर बात संविधान के दायरे में हो। उनका यह कहना कि जम्मू-कष्मीर की समस्याओं का समाधान के लिए सभी को मिलकर काम करना होगा समुचित प्रतीत होता है पर जिस दायरे की बात मोदी कह रहे हैं उस पर वे अड़िग हो सकते हैं, चल भी सकते हैं और स्वयं को इसके लिए मानसिक रूप से तैयार भी कर सकते हैं और करना भी चाहिए पर सवाल है कि क्या कष्मीर में जड़े जमा चुके अलगाववादी भी संविधान के अनुसार चलने के लिए एकमत हैं। जिस प्रकार घाटी में अमन-चैन बिगाड़ने को लेकर इनकी बेचैनी रही है उसे देखते हुए इनकी संवेदनषीलता को परखा जा सकता है। बावजूद इसके आषा से भरी षिद्दत से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। संविधान के दायरे में बातचीत का रास्ता निकालना निहायत वाजिब है। सभी जिम्मेदार दलों को मोदी की इस पहल पर साथ देना भी चाहिए और घाटी को तकलीफ से उबारने में मदद करनी चाहिए परन्तु ध्यान इस बात का भी रखना होगा कि घाटी में हिंसा भड़काने वाले कष्मीर और भारत प्रेम से विलग मन्तव्य वाले भी हैं। ऐसे में उनके साथ बहुत उदार रवैया भी षायद ही काम आये। पाकिस्तान का रूख भी घाटी के अमन-चैन को बर्बाद करने में कम जिम्मेदार नहीं है। बुरहान वानी को षहीद बताने एवं ब्लैक फ्राइडे मनाने वाले पाकिस्तान के अलावा पाकिस्तान पोशित कई अलगाववादी भारत की सीमा में आज भी अपने मजसूबों पर खरे उतरने की कोषिष में हैं। बीते 15 अगस्त को मोदी ने जिस प्रकार पाक अधिकृत कष्मीर और बलूचिस्तान को लेकर पाकिस्तान को चेताया उससे भी स्पश्ट हुआ था कि भारत उसे असल जगह बताना चाहता है। खोट नियत से युक्त पाकिस्तान जिस कष्मीर को आजाद बताता है दरअसल वह गुलाम कष्मीर है और वहां के लोग भारत उन्मुख दृश्टिकोण रखते हैं, प्रताड़ित हैं, पीड़ित हैं और पाकिस्तान के जुल्मों को सहते हैं। यही वह क्षेत्र है जहां पर पाकिस्तान के आतंकी संस्थाओं की भरमार है। बलूचिस्तान में संघर्शरत बलोच नेताओं का समर्थन करके मोदी ने पाकिस्तान को उसी की भाशा में जवाब देने की कोषिष की है। हालांकि इन नेताओं पर तिलमिलाये पाकिस्तान ने देषद्रोह का मुकद्मा कर दिया है। लालकिले की प्राचीर से मोदी ने जो आईना नवाज़ षरीफ को दिखाया उससे उसका बिलबिलाना स्वाभाविक है। 
अन्तर्राश्ट्रीय मंच पर कष्मीर मुद्दे को तूल देने के मामले में पाकिस्तान मुस्लिम देषों को भी साधने की कोषिष कर रहा है पर पाक की इस मुहिम पर भारत भी पानी फेरने में जुटा है। ऐसे देषों में जवाबी मुहिम चलाने का जिम्मा विदेष राज्य मंत्रियों को दिया गया है। सऊदी अरब की यात्रा कर चुके वी.के. सिंह वहां इस मुहिम पर भी काम कर रहे हैं जबकि दूसरे विदेष राज्यमंत्री एम.जे. अकबर का इराक दौरा जारी है। हो-न-हो आवष्यकता पड़ने पर चुनिन्दा मुस्लिम देषों की यात्रा विदेष मंत्री सुशमा स्वराज भी कर सकती हैं। गौरतलब है कि 56 मुस्लिम देषों का सबसे बड़ा संगठन ‘आॅर्गेनाइजेषन आॅफ इस्लामिक काॅरपोरेषन‘ का साथ कष्मीर मामले में पाकिस्तान को मिला है। पाकिस्तान के सुर-में-सुर मिलाते हुए जनमत सर्वेक्षण की मांग की गयी है। ऐसे में भारत को चैकन्ना रह कर कूटनीतिक पहल तेज करने की आवष्यकता पड़ेगी और उसी की माद में घुसकर अपने लिए कूटनीतिक सफलता अर्जित करनी होगी। जिस प्रकार बीते दो वर्शों में मोदी की वैष्विक कूटनीति चारों दिषाओं में सफल सिद्ध हुई है उसे देखते हुए आषा है कि पाकिस्तान की इस चाल की काट भी भारत कर लेगा। सबके बाद इस बात की भी पड़ताल जरूरी है कि घाटी में जो हुआ उसका जिम्मेदार कौन है? कौन यहां के अमन-चैन को नश्ट करने का गुनाहगार है? जम्मू-कष्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की मानें तो कष्मीर की हिंसा पूर्व नियोजित थी जो मुट्ठी भर लोगों की साजिष का नतीजा है पर वे मुट्ठी भर लोग कौन हैं, सरकार होने के नाते महबूबा मुफ्ती को स्वयं जवाब देना चाहिए। 
अक्सर हालात बिगड़े प्रदेषों में एक बड़ी वजह विकास माना जाता रहा है पर क्या जम्मू-कष्मीर के हालात विकास की कमी के चलते हैं यह बात उतनी समुचित प्रतीत नहीं होती। जिस आग में कष्मीर जला है और बादस्तूर जल रहा है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि इसकी वजह एक तो नहीं है। जितना घाटी का इतिहास, भूगोल समझ में आता है उसके मद्देनजर यह कहना लाज़मी है कि यहां की समस्या सामाजिक-सांस्कृतिक स्वरूप से जकड़ी है। इसके अलावा षिक्षा का विकास, रोजगार का प्रसार तथा आर्थिक उपादेयता को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता साथ ही अवसरवाद से युक्त अलगाववादियों पर नकेल कसने में ढिलाई भी कही जा सकती है। जम्मू-कष्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री तथा मौजूदा मुख्यमंत्री के पिता स्वर्गीय मुफ्ती मोहम्मद सईद ने जब मार्च 2015 में षपथ ली थी तो उन्होंने जेल में बन्द अलगाववादी को छुड़वाने का काम किया था। तब यह भी सवाल उठा था कि भाजपा और पीडीएफ की सरकार एक बेमेल समझौता है। हालांकि इस सवाल से अभी भी पीछा नहीं छूटा है। फिलहाल प्रधानमंत्री मोदी की दृश्टि से भी यह संकेत मिला है कि मात्र विकास से कष्मीर समस्या का हल नहीं हो सकता। गौरतलब है कि बीते दो वर्शों में मोदी ने कष्मीर का आधा दर्जन बार दौरा किया, करोड़ों का पैकेज दिया और असन्तुश्टों को षांत करने का भरसक प्रयास भी किया। बावजूद इसके कष्मीर सुलग रहा है। कहा जाता है कि ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका समाधान न हो पर क्या यह कष्मीर के मामले में पूरी षिद्दत से लागू हो सकता है। ऐसा तभी सम्भव होगा जब मुट्ठी भर अलगाववादियों और निजी स्वार्थों में फंसे कष्मीरी नेता जनता को गुमराह करना छोड़ेंगे। षीर्श अदालत का यह कहना कि समाधान न्यायिक नहीं राजनीतिक हो इस तथ्य को एक अटल सत्य के तौर पर इसलिए देखा जा सकता है क्योंकि समाज में वैचारिक मतभेदों और अलगाववाद को परास्त करने के लिए ऐसे ही फाॅर्मूले काम आयें हैं। 

सुशील कुमार सिंह


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