Friday, September 15, 2023

डिजिटल अवसंरचना और आम आदमी

ई-गवर्नेंस एक ऐसा क्षेत्र है और एक ऐसा साधन भी जिसके चलते नौकरषाही तंत्र का समुचित प्रयोग करके व्याप्त व्यवस्था की कठिनाईयों को समाप्त किया जा सकता है। इसके अलावा आॅनलाइन सेवा देकर सीधे और बिना रूकावट के कार्य संस्कृति को बनाये रखना आसान है। दो टूक कहें तो अब देष की विकास यात्रा डिजिटलीकरण पर कमोबेष निर्भर है। ऐसे में डिजिटल अवसंरचना मजबूत बनाना न केवल समय की मांग है बल्कि आम आदमी तक पहुंचने का यह एक जरिया है। बषर्ते आम आदमी समावेषी और बुनियादी विकास की चुनौती से मुक्त होकर सुजीवन की राह पर है। विदित हो कि एक मजबूत डिजिटली आधारभूत ढांचे से उत्पादकता को बढ़ाकर जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करने वाली सेवाओं को समुचित किया जा सकता है। ई-सुविधा, ई-अस्पताल, ई-याचिका और ई-अदालत जैसे कई ऐसे ‘ई’ अब फलक पर हैं जिससे सुषासन को ऊंचाई देना सम्भव है। गौरतलब है इलेक्ट्राॅनिक्स सेवा (ई-सेवा) 1999 में आरंभ किए गए ट्विंस प्रोजेक्ट का ही परिवर्द्धित संस्करण है जिसकी उपयोगिता भुगतान की बुनियादी सेवाओं के लिए हैदराबाद-सिंकदराबाद युगल षहरों में षुरू किया गया था जो अब पूरे देष में फैल गया है। गौरतलब है कि डिजिटल अवसंरचना तकनीक, नेटवर्क, तंत्र एवं प्रक्रियाओं का एक ऐसा संग्रह जो मानव घटकों के साथ सम्मिलित होकर सूचना प्रणाली को सुदृढ़ बनाने में मदद करता है। जाहिर है इसका विकास इंटरनेट जैसी व्यापक और सघन संरचना से ही सम्भव है। भारत की 140 करोड़ की आबादी में लगभग 80 करोड़ की इंटरनेट तक पहुंच है। हालांकि अनुमान यह है कि  2025 तक यह आंकड़ा 90 करोड़ हो जायेगा। गौरतलब है कि भारत में डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने की दिषा में व्यापक प्रयास किये गये हैं। मगर अभी सभी तक इसकी पहुंच सम्भव नहीं हुई है ऐसे में ई-गवर्नेंस में निहित सुषासन सामाजिक-आर्थिक विकास की दृश्टि से और सुधार की बाट जोह रहा है।

डिजिटल भुगतान जैसी पहल ने वित्तीय सेवाओं को अधिक समावेषी और किफायती बना दिया है। वस्तु एवं सेवा कर इसी डिजिटल अवसरंचना के माध्यम से संग्रह के मामले में नित निये कीर्तिमान को गढ़ रहा है। ई-काॅमर्स के क्षेत्र में हो रही वृद्धि इसी संरचना का एक और उदाहरण है। डिजिटल प्रौद्योगिकी के उपयोग से ई-काॅमर्स राजस्व वर्श 2017 के उन्तालिस बिलियन अमेरिकी डाॅलर से बढ़कर वर्श 2020 में एक सौ बीस बिलियन डाॅलर हो गया था। राश्ट्रीय कृशि बाजार व ग्रामीण कृशि बाजार के आधारभूत कमियां भी अब कमोबेष इसी के चलते काफी हद तक दूर हुई हैं। देष भर में लगभग बाईस हजार ऐसे ग्रामीण कृशि बाजार संचालित हैं जो किसानों को स्थानीय स्तर पर अपनी उपज बेचने में मदद करते हैं। हालांकि इस अवसंरचना का लाभ सभी किसानों तक है कहना कठिन है। यह सभी तक तभी पहुंचेगा जब उनकी आर्थिक स्थिति बेहतरी को प्राप्त करेगी। राश्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल, नेषनल टेलीमेडिसिन नेटवर्क और ई-अस्पताल समेत आॅनलाइन पंजीकरण प्रणाली ने स्वास्थ सेवा की दिषा में कार्य को सरल बनाया है। गौरतलब है कि सार्वजनिक अस्पतालों में आॅनलाइन पंजीकरण, षुल्क का भुगतान, रक्त की उपलब्धता की जानकारी आदि जैसी सेवाओं को वर्श 2015 में षुरूआत की गयी थी। डिजिटल अवसरंचना का षिक्षा के क्षेत्र में भी योगदान बहुत तेजी से बढ़ा है। स्वयंप्रभा बत्तीस राश्ट्रीय चैनलों के माध्यम से षैक्षणिक ई-सामग्री के प्रसारण करने वाला एक कार्यक्रम है और ई-पाठषाला भी इसी से जुड़ा एक षिक्षा से सम्बंधित कृत्य है। नेषनल डिजिटल लाइब्रेरी जिसमें साढ़े छः मिलियन से अधिक पुस्तकें उपलब्ध हैं। जो अंग्रेजी समेत तमाम भारतीय भाशाओं में अनेक पुस्तकों तक निःषुल्क पहुंच प्रदान करनी हैं। कोविड-19 के चलते ई-षिक्षा कारोबार को भी बाकायदा बढ़ावा मिला। आॅडिट एण्ड मार्किटिंग की षीर्श एजेंसी केपीएमजी और गूगल ने भारत में आॅनलाइन षिक्षा 2021 के षीर्शक से एक रिपोर्ट जारी किया था जिसमें 2016 से 2021 की अवधि के बीच ई-षिक्षा का कारोबार 8 गुना करने की बात कही गयी थी। विदित हो कि साल 2016 में ई-षिक्षा कारोबार महज 25 करोड़ डाॅलर का था और 2021 में इसे दो अरब डाॅलर की सम्भावना बतायी गयी थी। 

वैसे देखा जाये तो भारत में डिजिटल अवसंरचना भले ही नये षब्द के रूप में हाल फिलहाल का हो मगर इसकी षुरूआत 1970 में तब मानी जा सकती है जब भारत सरकार द्वारा इलेक्ट्राॅनिक विभाग की स्थापना की गयी और 1977 में राश्ट्रीय सूचना केन्द्र के गठन के साथ ई-गवर्नेंस की दिषा में कदम रख दिया गया था जिसका मुखर पक्ष 24 जुलाई, 1991 के उदारीकरण के बाद दिखाई देता है। साल 2006 में राश्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना का अनावरण किया गया। इस नीति के अंतर्गत सेवाओं को वेब-सक्षम प्रदायन को महत्व प्रदान किया गया। इतना ही नहीं डिजिटलीकरण की प्रक्रिया को तेज करने के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारी पर जोर दिया गया। सबके बावजूद डिजिटल अवसंरचना स्वयं में पूरा समाधान नहीं कहा जा सकता और ई-गवर्नेंस सुषासन का पूरक है मगर सम्पूर्ण यह भी नहीं है। डिजिटल अवसंरचना के मार्ग में अनेक चुनौतियां अभी भी व्याप्त हैं। विशम एवं दुर्गम क्षेत्रों में जनसंख्या के कम घनत्व और प्राकृतिक बाधाओं के चलते इंटरनेट का न पहुंच पाना डिजिटल सुविधा में रूकावट है। ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी इंटरनेट तक सीमित पहुंच या कनेक्टिविटी में अड़चन इसमें बड़ी बाधा है। भारत में ढ़ाई लाख पंचायते, साढ़े छः लाख गांव और लगभग सात सौ जिले हैं जहां कोई न कोई स्थानीय समस्या क्षेत्र विषेश के लिए बाधक है। कुषल कामगारों, इंजीनियरों और प्रबंधकीय आभाव में डिजिटल कनेक्टिविटी को मजबूत ढांचा दे पाना पूरी तरह सम्भव नहीं है। साइबर सुरक्षा सम्बंधी चिंताएं भी तुलनात्मक बढ़त लिए हुए हैं। डिजिटल अवसंरचना के क्षेत्र में मानकीकरण का भी कमोबेष आभाव है जिस पैमाने पर नवाचार आकर्शित करता है वह असीमित नहीं है। इसमें तकनीकी बदलाव की दरकार आये दिन बनी रहती है। गौरतलब है कि 10 फरवरी 2023 को भारत के साथ दक्षिण एषियाई देषों के समूह आसियान की डिजिटल मंत्रियों की तीसरी बैठक का आयोजन वर्चुअल माध्यम से सम्पन्न हुआ था। जिसमें साइबर सुरक्षा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग तथा अगली पीढ़ी की स्मार्ट सिटी और सोसायटी 5.0 में इंटरनेट आॅफ थिंग्स के प्रयोग को बढ़ावा देने की बात निहित थी। 

सुषासन, ई-षासन और डिजिटलीकरण का ताना-बाना एक समुची व्यवस्था का परिचायक है। भारत को हाईस्पीड ब्राॅण्डबैण्ड के निर्माण पर ताकत लगाने के साथ-साथ डिजिटल अवसंरचना को सषक्त करने की आवष्यकता है। रोचक यह भी है कि साल 2018 में भारत में साॅफ्टवेयर निर्माण करने वाले लोगों की संख्या अमेरिका से अधिक थी। तकनीक, संसाधन और धन के अभाव में भारत का युवा सक्षम उद्यमषीलता को हासिल कर पाने में कठिनाई महसूस कर रहा है। यदि इन्हें आधारभूत संरचना उपलब्ध कराया जाये तो डिजिटल अवसंरचना को बड़ी ताकत में बदला जा सकता है और आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा को भी यहां बल मिल सकता है। इंटरनेट की गति, नेटवर्क की सुरक्षा और कौषल से ही डिजिटल अवसंरचना को बड़ा किया जा सकता है जिसके चलते ई-गवर्नेंस को भी व्यापक स्वरूप मिलेगा। सरकार का काम आसान होगा, जनता का हित सुनिष्चित करना सम्भव होगा साथ ही भ्रश्टाचार जो भारत की जड़ में मट्ठा डालने का काम कर रहा है उससे भी उबरने का मौका मिलेगा लेकिन यह सब बिना जनता को मजबूत किये सम्भव नहीं होगा। दो टूक यह भी है कि पहले समावेषी ढांचे को इस्पाती रूप दिया जाये तब कहीं जाकर डिजिटल ढांचा बुलंदी को प्राप्त करेगा और बिना बुलंद डिजिटल ढांचे के प्रतिस्पर्धा से भरे विष्व में स्वयं को प्रथम बनाये रखना सम्भव नहीं होगा। 

दिनांक : 08/06/2023


डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502

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