Friday, September 15, 2023

पढ़ाई-लिखाई में शैक्षिक प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल

आज के युग में मानव जीवन का प्रत्येक पक्ष वैज्ञानिक खोज तथा अविश्कारों से प्रभावित है और षिक्षा का क्षेत्र भी इस प्रभाव से मुक्त नहीं है। पढ़ाई-लिखाई में षैक्षिक तकनीक का बोलबाला है। जब षिक्षक अपने षिक्षण को प्रभावषाली बनाने के लिए विभिन्न साधनों की मदद लेता है जिसके चलते षिक्षण और उपागम दोनों प्रभावित होते हैं तो उसे षिक्षण प्रौद्योगिकी कहते हैं जो वर्तमान में एजुटेक के रूप में लोकप्रिय है। इस तकनीक में मुख्यतः दो बिन्दु निहित है जिसमें एक षिक्षण उद्देष्यों की प्राप्ति करना जबकि दूसरा षिक्षण की क्रियाओं का यंत्रिकरण करना है। बीते एक दषक में यह देखने को मिला है कि षैक्षिक प्रौद्योगिकी तीव्रता के साथ बड़े बाजार और ग्राहक दोनों को निर्मित करने में सफल रही है। हाल के दिनों में एजुटेक स्टार्टअप्स अरबों के कारोबारी हो गये हैं और निरंतर कई सम्भावनाओं से यह युक्त होते जा रहे हैं। देखा जाये तो एजुटेक एप्स से भरे स्मार्ट फोन अब षिक्षा का पर्याय बन गये हैं। जब चाहें, जहां चाहें और जितना चाहें मानो षिक्षा अब जेब में हो बस उसमें इंटरनेट का डेटा भरा होना चाहिए। पड़ताल बताती है कि भारत का एजुटेक अपने विभिन्न क्षेत्रों व उपक्षेत्रों में लगभग चार सौ स्टार्टअप्स के साथ दुनिया में कहीं अधिक बड़े आकार का है। गौरतलब है कि भारत की जनसंख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है और पढ़ाई-लिखाई का सरोकार और सम्भावनाएं भी यहां तुलनात्मक बढ़त में हैं। जनसांख्यिकीय लाभांष, प्रौद्योगिकी का बुनियादी ढांचा और बढ़ता बाजार एजुटेक के मामले में नया स्वरूप ले रहा है। सस्ते इंटरनेट की उपलब्धता और कमाई के बैठे-बिठाये बढ़ते स्रोत भी इस उद्यम को बढ़ावा देने का काम कर रहा है। अनुमान है कि अगले 25 वर्श में सौ करोड़ विद्यार्थी स्नातक होंगे। वैसे भारत में तीव्र डिजिटलीकरण और 2010 से 2022 के बीच इंटरनेट उपभोगकर्ता की संख्या में 10 गुने की वृद्धि यह इषारा कर रही है कि इसमें अभी और तेजी रहेगी। साल 2040 तक मौजूदा इंटरनेट उपयोगकत्र्ता जो तकरीबन 90 करोड़ के आसपास हैं वे डेढ़ अरब को पार कर जायेंगे। फिलहाल अभी देष की जनसंख्या एक अरब 40 करोड़ है और आने वाले 15 वर्शों में यह डेटा अच्छे खासे बढ़त के साथ रहेगा। 

एजुटेक में अचानक तेजी लाने का काम कोविड-19 ने किया था तब से षुरू हुआ यह सिलसिला अब दुनिया में एजुटेक इण्डस्ट्री के रूप में जाना जाने लगा। इतना ही नहीं नई सोच को बढ़ावा देने वाली इस एजुटेक इण्डस्ट्री का पूरा फोकस अब जनरेषन जेड पर है। डिजिटल दौर में पैदा हुए बच्चों के हाथों में स्मार्ट फोन और हाई स्पीड इंटरनेट कनेक्षन के बीच रहन-सहन उन्हें भी एक नये आयाम की ओर ले गया है जिसे आम तौर पर ज्यादा एडवांस के रूप में कह सकते हैं जो दुनिया को अलग ढंग से देखते हैं और इनके तौर-तरीके, बोल-चाल का ढंग भी काफी अलग होता है। गौरतलब है कि अमेरिकी खुफिया संस्था सीआईए वल्र्ड फैक्ट बुक के अनुसार 1997 से 2012 के बीच पैदा हुए बच्चों को जेनरेषन जेड कहा जाता है जो दौड़ती-भागती दुनिया में काफी तेज हो गये हैं। फिलहाल दुनिया में तकनीक के विकास की रफ्तार 1995 के बाद तेजी से बढ़ी है और कोविड-19 के बाद यह कहीं अधिक षैक्षणिक तकनीक के रूप में लोकप्रियता को ग्रहण किया है। एक सर्वे से यह भी पता चलता है कि भारत में 33 फीसद माता-पिता इस बात को लेकर बेहद चिंतित है कि वर्चुअल लर्निंग से बच्चों के सीखने और प्रतियोगी दक्षता पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। इतना ही नहीं एजुटेक को बड़ा बाजार मिले इसे लेकर भी एजुकेषन के तरीके में मनोरंजनात्मक क्रियाओं का भी भरपूर उपयोग किया जा रहा है। वैसे भारत का डिजिटल षैक्षणिक ढांचा कितना फल-फूल रहा है इसे उक्त आंकड़ों से और समझना आसान है। देष में नेषनल डिजिटल एजुकेषन आर्किटेक्चर बनाया गया है। पीएम ई-विद्या प्रोग्राम 2020 में ई-लर्निंग को आसान बनाने में स्कूलों में षुरू किया जा चुका है। 25 करोड़ स्कूली छात्रों और लगभग 4 करोड़ उच्च षिक्षा हासिल करने वालों का इसमें फायदा षामिल है। ई-पाठषाला पोर्टल, स्वयंप्रभा, दीक्षा आदि ऐसे तमाम कार्यक्रम हैं जो डिजिटल एजुकेषन की दिषा में अनवरत् हैं। इस तथ्य को भी एक सकारात्मक पहलू के रूप में देख सकते हैं कि पिछले 10 वर्शों में स्मार्ट फोन की कीमतों में निरंतर गिरावट रही है और साथ ही भारत वैष्विक स्तर पर सबसे सस्ती मोबाइल डाटा दरों में से एक है। इसके अलावा डिजिटल बुनियादी ढांचे के विस्तार में सरकार की रूचि भी एजुटेक को बड़ा किया है। राश्ट्रीय ब्राॅडबैण्ड मिषन, डिजिटल इण्डिया और डिजिटल क्रान्ति ने एजुटेक के लिए दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुंच आसान बना दिया। 

पढ़ाई-लिखाई के मामले में भले ही एजुटेक एक सुलभ माध्यम बना हो मगर भारत में व्याप्त गरीबी और भुखमरी दो ऐसी बीमारी है जो ऐसी सुविधाओं के बावजूद करोड़ों हाषिये पर हैं। हंगर इंडेक्स की हालिया स्थिति देखें तो भारत में तुलनात्मक भुखमरी बढ़ी है जबकि गरीबी से देष का पीछा नहीं छूट रहा है। इतना ही नहीं हर चैथा व्यक्ति अष्क्षिित के साथ, बेरोजगारी की दर भी एक बड़ा स्वरूप लिये हुए है। षैक्षिक तकनीक आज के तकनीकी युग में उपयोगी है और षैक्षणिक समस्याओं में निदान का काम कर रही है मगर बुनियादी डिजिटलीकरण का ढांचा इतना भी सामान्यीकरण नहीं हुआ है कि सभी की पढ़ाई-लिखाई में इसकी पहुंच पूरी तरह हुई हो। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस टेक्नोलाॅजी में षिक्षा के साथ जुड़ाव को आसान किया है। सीखने की प्रक्रिया को तुलनात्मक मजेदार बना दिया है। छात्र एक ही स्थान से सारी सूचनाएं पा रहे हैं। चाहे होमवर्क हो या कोई असाइनमेंट तकनीक की मदद से सब कुछ मानो एक छोटे से यंत्र में समाया हुआ है। विदित हो कि सब कुछ आसान होने के बावजूद षिक्षा जगत में तकनीक के कुछ नुकसान भी हैं। पढ़ाई-लिखाई के इसी यंत्र के अंदर सोषल मीडिया से लेकर अनेक गैर उत्पादक कृत्यों से भी विद्यार्थी दो-चार हो रहा है। षोध तो यह भी बताते हैं कि तकनीक का ज्यादा इस्तेमाल विद्यार्थियों में भटकाव की स्थिति भी पैदा किया है। सर्वे तो यहां तक भी है कि माता-पिता बच्चों को मनोवैज्ञानिक के पास भी ले जाने के लिए विवष है। पढ़ाई-लिखाई की तकनीक कब मनोवैज्ञानिक चोट बन गयी है इसका अंदाजा षायद ही किसी को रहा हो। स्मार्ट फोन और लैपटोप पर लगातार काम करने से बच्चों की पीठ, कंधों और आंखों में दर्द होने लगा है। गैजेट्स के कारण बच्चों की दिनचर्या में भी काफी बदलाव हुआ है। यहां तक कि फोन का इस्तेमाल मना करने पर उनके भाव-भंगिमाएं चिड़चिड़ापन से भरा मिलता है। आॅनलाइन दुनिया इतनी स्वयं में समा लेते हैं कि फेस-टू-फेस बात करना कईयों के लिये असहज हो जाता है। देखा जाये तो एजुटेक एक सकारात्मक संदर्भ से युक्त है मगर इसके साथ व्याप्त कई समस्याओं से यह मुक्त नहीं है। 

एजुटेक के समग्र प्रभाव को एक सही दिषा और सुनिष्चित मापदण्ड तैयार करने के लिए, प्रौद्योगिकी और पारम्परिक षिक्षा विधियों के लिए संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है। यह समझ लेना कि प्रौद्योगिकी ही अन्तिम उपाय है यह सर्वथा उचित तर्क नहीं है। षिक्षा की सुलभता एजुटेक से सम्भव है मगर यही अन्तिम सत्य है यह अतिषय को बढ़ावा दे देगी। एजुटेक उच्च दक्षता, बड़े पैमाने पर अवसर और षिक्षा को कई स्तरों पर परिवर्तित करने की क्षमता से युक्त है। मगर इसी एजुटेक ने पढ़ाई को एक प्रोडक्ट के रूप में भी परोस दिया है और विद्यार्थी एजुटेक कम्पनियों के ग्राहक बन गये हैं जो षैक्षणिक दृश्टि से उचित संकेत नहीं है। डिजिटल षिक्षा के मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव अब सीधे तौर पर दिखते हैं। माता-पिता के मन मस्तिश्क पर भी इसका प्रभाव साफ-साफ झलकता है। बावजूद इसके अब बिना एजुटेक के पढ़ाई-लिखाई सम्भव भी नहीं है। वैसे देखा जाये तो भारत में षिक्षा प्रौद्योगिकी के उपयोग का पता 1980 के दषक में सांकेतिक होता है। जब कुछ स्कूलों में कम्प्यूटर एडेड षिक्षा षुरू की गयी थी। एजुटेक में कई ऐसे तत्व हैं जो सीखने और षिक्षा को बड़ा करने के लिए पूरक दृश्टिकोण लिए हुए है। जब तक विद्यार्थियों द्वारा डिजिटल व्यवस्था को षैक्षणिक नजरिये से उपयोगी नहीं समझा जायेगा तब तक लैपटाॅप, मोबाइल व गैजेट्स का उपयोग गैर उत्पादक तरीके से होता रहेगा। राश्ट्रीय षिक्षा नीति 2020 एक समग्र षिक्षा की अवधारणा से युक्त है। एजुटेक कार्यक्रमों को यह सुनिष्चित करना चाहिए कि समग्र षिक्षा के निहित मूल तत्व, व्यक्तित्व और मनो-सामाजिक दिषा और दषा के साथ पर्यावरणीय जिम्मेदारी साथ ही सतत् विकास और मानवीय मूल्यों को एकीकृत करने का काम करें। यह नहीं भूलना चाहिए कि किसी भी देष का जो वर्तमान होता है वही भविश्य की आहट देता है। एजुटेक जिस पैमाने पर मौजूदा समय में विस्तार ले रहा है वह केवल पढ़ाई-लिखाई को ही मजबूत नहीं करेगा बल्कि नई चुनौतियों और संघर्शों को भी सामने खड़ा कर सकता है। 

 दिनांक : 14/06/2023


डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502

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