Friday, September 15, 2023

सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता और भारत

विदित हो कि संयुक्त राश्ट्र के संस्थापक सदस्यों में भारत भी षुमार था और अब तक वह संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद का आठ बार सदस्य भी रह चुका है। आखिरी बार साल 2021-22 में अस्थायी सदस्य के रूप में भारत अपना परचम लहराया था मगर पूरी योग्यता और व्यापक समर्थन के बावजूद अभी भी स्थायी सदस्यता की बाट जोह रहा है। गौरतलब है स्थायी सदस्यता के मामले में भारत दुनिया भर से समर्थन रखता है सिवाय एक चीन के। हालिया परिप्रेक्ष्य देखें तो ब्रिटेन सुरक्षा परिशद में विस्तार का समर्थन किया है और स्पश्ट किया है कि भारत, जापान, ब्राजील समेत अफ्रीकी देषों को संयुक्त राश्ट्र की सुरक्षा परिशद में स्थायी सीट दी जाये। इसमें कोई दो राय नहीं कि पिछले 77 वर्शों से चली आ रही इस व्यवस्था में अमूल-चूल परिवर्तन की मांग अक्सर उठती रही है। दुनिया कई प्रकार के आकार और प्रकार को ग्रहण कर लिया है मगर सुरक्षा परिशद 5 स्थायी मसलन अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस और रूस के अलावा 10 अस्थायी सदस्यों के साथ यथावत बना रहा। ऐसे में अब परिवर्तन का समय आ चुका है। हालांकि इसे लेकर बरसों से कवायद जारी है मगर नतीजे जस के तस बने रहे। असल में सुरक्षा परिशद की स्थापना 1945 की भू-राजनीतिक और द्वितीय विष्वयुद्ध से उपजी स्थिति को देखकर की गयी थी पर 77 वर्शों में पृश्ठभूमि अब अलग हो चुकी है। देखा जाय तो षीतयुद्ध की समाप्ति के साथ ही इसमें बड़े सुधार की गुंजाइष थी जो नहीं किया गया। 5 स्थायी सदस्यों में यूरोप का प्रतिनिधित्व सबसे ज्यादा है जबकि आबादी के लिहाज़ से बामुष्किल वह 5 फीसद स्थान घेरता है। अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका का कोई सदस्य इसमें स्थायी नहीं है जबकि संयुक्त राश्ट्र का 50 प्रतिषत कार्य इन्हीं से सम्बन्धित है। ढंाचे में सुधार इसलिए भी होना चाहिए क्योंकि इसमें अमेरिकी वर्चस्व भी दिखता है। भारत की सदस्यता के मामले में दावेदारी बहुत मजबूत दिखाई देती है। जनसंख्या की दृश्टि से चीन को भी पछाड़ते हुए पहला सबसे बड़ा देष, जबकि अर्थव्यवस्था के मामले में दुनिया में 5वां साथ ही प्रगतिषील अर्थव्यवस्था और जीडीपी की दृश्टि से भी प्रमुखता लिए हुए है। ऐसे में दावेदारी कहीं अधिक मजबूत है। इतना ही नहीं भारत को विष्व व्यापार संगठन, ब्रिक्स और जी-20 जैसे आर्थिक संगठनों में प्रभावषाली माना जा सकता है। भारत की विदेष नीति तुलनात्मक प्रखर हुई है और विष्व षान्ति को बढ़ावा देने वाली है साथ ही संयुक्त राश्ट्र की सेना में सबसे ज्यादा सैनिक भेजने वाले देष के नाते भी दावेदारी सर्वाधिक प्रबल है। हालांकि भारत के अलावा कई और देष की स्थायी सदस्यता के लिए नपे-तुले अंदाज में दावेदारी रखने में पीछे नहीं है। जी-4 समूह के चार सदस्य भारत, जर्मनी, ब्राजील और जापान जो एक-दूसरे के लिए स्थायी सदस्यता का समर्थन करते हैं ये सभी इसके हकदार समझे जाते हैं। एल-69 समूह जिसमें भारत, एषिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कई 42 विकासषील देषों के एक समूह की अगुवाई कर रहा है। इस समूह ने भी सुरक्षा परिशद् में सुधार की मांग की है। अफ्रीकी समूह में 54 देष हैं जो सुधारों की वकालत करते हैं। इनकी मांग यह रही है कि अफ्रीका के कम-से-कम दो राश्ट्रों को वीटो की षक्ति के साथ स्थायी सदस्यता दी जाये। उक्त से यह लगता है कि भारत को स्थायी सदस्यता न मिल पाने के पीछे मेहनत में कोई कमी नहीं है बल्कि चुनौतियां कहीं अधिक बढ़ी हैं। बावजूद इसके यदि भारत को इसमें षीघ्रता के साथ स्थायी सदस्यता मिलती है तो चीन जैसे देषों के वीटो के दुरूपयोग पर न केवल अंकुष लगेगा बल्कि व्याप्त असंतुलन को भी पाटा जा सकेगा।

संयुक्त राश्ट्र की सुरक्षा परिशद् में स्थायी सदस्यता को लेकर भारत बरसों से प्रयासरत् रहा है। अमेरिका और रूस समेत दुनिया के तमाम देष स्थायी सदस्यता को लेकर भारत पक्षधर भी हैं मगर यह अभी मुमकिन नहीं हो पाया है। पड़ताल बताती है कि भारत आठ बार अस्थायी सदस्य के रूप में सिलसिलेवार तरीके से 1950-51, 1967-68, और 1972-73 से लेकर 1977-78 समेत 1984-1985, 1991-1992 व 2011-2012 समेत 2021-2022 में भी सुरक्षा परिशद् में अस्थायी सदस्य रहा है। जहां तक सवाल स्थायी सदस्यता का है इस पर मामला खटाई में बना हुआ है। गौरतलब है कि पिछले अमेरिकी राश्ट्रपति चुनाव से पहले भारत में राजदूत रह चुके रिचर्ड वर्मा ने कहा था कि यदि जो बाइडेन राश्ट्रपति बनते हैं तो संयुक्त राश्ट्र जैसी अन्तर्राश्ट्रीय संस्थाओं को नया रूप देने में मदद करेंगे ताकि भारत को सुरक्षा परिशद में स्थायी सीट मिल सके। ध्यानतव्य हो कि जो बाइडेन अमेरिकी के राश्ट्रपति चुने भी गये और 20 जनवरी 2021 से बाकायदा सत्तासीन हैं मगर इस दिषा में अभी कुछ ऐसा होते हुए दिखा नहीं है। 4 जुलाई 2023 को संयुक्त राश्ट्र संघ में ब्रिटेन के स्थायी प्रतिनिधि बारबरा बुडवर्ड ने सुरक्षा परिशद के विस्तार का मुद्दा उठाने के साथ भारत समेत अन्य देषों को स्थायी सदस्यता की बात कहकर एक बार इस मामले को फिर फलक पर ला दिया है। फरवरी 2022 से रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध जारी है। पष्चिमी देष इस हालात से निपटने में नाकाम रहे हैं जबकि भारत इस मामले में कहीं अधिक सफल कूटनीतिक और राजनयिक नेतृत्व को बड़ा किया है। भारत के इस बदले वैष्विक परिप्रेक्ष्य में उभरे नेतृत्व ने उसे दुनिया के केन्द्र में खड़ा किया है। ऐसे में सुरक्षा परिशद में बहुत देर तक भारत को बाहर रखना वैष्विक हानि का संकेत है। पिछले 77 वर्शों में सुरक्षा परिशद कई बड़ी सफलता तो कई नाकामियों के साथ चहल कदमी की है। यह बात सकारात्मक है कि इसके गठन के बाद तृतीय विष्व युद्ध नहीं हुआ मगर दुनिया कई युद्धों से गुजरी है और वर्तमान में रूस और यूक्रेन के बीच यह जारी है। अमेरिका के नेतृत्व में 2003 में इराक पर आक्रमण, साल 2008 में रूस द्वारा जाॅर्जिया पर हमला, अरब-इजराइल युद्ध, 1994 में रवान्डा का नरसंहार, 1993 में सोमालिया का गृह युद्ध समेत मौजूदा रूस-यूक्रेन युद्ध इसकी विफलता की कहानी है। मगर कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर समाधान कर सुरक्षा परिशद ने अपनी साख को भी बड़ा किया है। मसलन 1950 में कोरियाई युद्ध, 1990 में कुवैत पर इराक का हमला, 1993 में बोस्निया और 2001 में अफगानिस्तान इत्यादि को लेकर प्रस्ताव पारित किये। खास यह भी है कि जब पी-5 अर्थात् सुरक्षा परिशद के 5 स्थायी सदस्यों वाले देषों के बीच कभी आमने-सामने का युद्ध नहीं हुआ जो सुरक्षा परिशद की सफलता ही कही जायेगी। हालांकि एक स्थिति ऐसी भी आयी थी जब पी-5 देष 1962 में क्यूबा के मिसाइल संकट के दौरान आमने-सामने हो सकते थे लेकिन संयुक्त राश्ट्र की कूटनीतिक पहल ने हालात से सही तरीके से निपट लिया था।  

फिलहाल भारत को स्थायी सदस्यता की आवष्यकता क्यों है और यह मिल क्यों नहीं रही है और इसके मार्ग में क्या बाधाएं हैं। माना जाता है कि जिस स्थायी सदस्यता को लेकर भारत इतना एड़ी-चोटी का जोर लगा रहा है वही सदस्यता 1950 के दौर में बड़ी आसानी से सुलभ थी। आवष्यकता की दृश्टि से देखें तो भारत का इसका सदस्य इसलिए होना चाहिए क्योंकि सुरक्षा परिशद प्रमुख निर्णय लेने वाली संस्था है। प्रतिबंध लगाने या अन्तर्राश्ट्रीय न्यायालय के फैसले को लागू करने के लिए इस परिशद के समर्थन की जरूरत पड़ती है। ऐसे में भारत की चीन और पाकिस्तान से निरंतर दुष्मनी के चलते इसका स्थायी सदस्य होना चाहिए। चीन द्वारा पाकिस्तान के आतंकवादियों पर बार-बार वीटो करना इस बात को पुख्ता करता है। स्थायी सीट मिलने से भारत को वैष्विक पटल पर अधिक मजबूती से अपनी बात कहने की ताकत मिलेगी। स्थायी सदस्यता से वीटो पावर मिलेगा जो चीन की काट होगी। इसके अलावा बाह्य सुरक्षा खतरों और भारत के खिलाफ सुनियोजित आतंकवाद जैसी गतिविधियों को रोकने में मदद भी मिलेगी। भारत को स्थायी सदस्यता न मिलने के पीछे सुरक्षा परिशद की बनावट और मूलतः चीन का रोड़ा समेत वैष्विक स्थितियां हैं। वैसे चीन न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (एनएसजी) के मामले में भी भारत के लिए रूकावट बनता रहा है। गौरतलब है सुरक्षा परिशद में 5 स्थायी और 10 अस्थायी सदस्य होते हैं। अस्थायी सदस्य देषों को चुनने का उद्देष्य सुरक्षा परिशद में क्षेत्रीय संतुलन कायम करना होता है। जबकि स्थायी सदस्य षक्ति संतुलन के प्रतीत हैं और इनके पास वीटो की ताकत है। इसी ताकत के चलते चीन दषकों से भारत के खिलाफ वीटो का दुरूपयोग कर रहा है। 

संयुक्त राश्ट्र की सुरक्षा परिशद में स्थायी सदस्यता का मामला दषकों पुराना है। यदि अमेरिका जैसे देषों को यह चिंता है तो सुरक्षा परिशद में में बड़े सुधार को सामने लाकर भारत को उसमें जगह देना चाहिए। बरसों पहले रूसी विदेष मंत्री ने भी यह कहा है कि स्थायी सदस्यता के लिए भारत मजबूत नाॅमिनी है। वैसे देखा जाय तो दुनिया के कई देष किसी भी महाद्वीप के हों भारत के साथ खड़े हैं मगर नतीजे वहीं के वहीं हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि दुनिया के बहुत सारे संगठन चाहे दक्षिण-एषियाई समूह सार्क या गुटनिरपेक्ष समूह समय के साथ मानो अप्रासंगिक से हो गये हैं। विष्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर विष्व व्यापार संगठन पर भी समय-समय पर उंगली उठती रही है। संयुक्त राश्ट्र संघ की उपादेयता पर भी सफलता और असफलता की लकीर कमोबेष छोटी-बड़ी रही है। संदर्भ यह भी है कि किसी भी संगठन या परिशद को यदि सुधार और बदलाव से विमुख लम्बे समय तक रखा जाये तो उसमें गैर उपजाऊ तत्व स्वतः षामिल हो जाते हैं। षिखर पर खड़े भारत का नेतृत्व मौजूदा समय में यह पूरी धमक के साथ स्वयं को प्रतिबिंबित करता है कि सुरक्षा परिशद में फेरबदल के साथ उसे स्थायी सदस्य बनाया जाये। इसी में वैष्विक हित के साथ संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद का संतुलन सम्भव है।

 दिनांक : 06/07/2023


डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502

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