Friday, September 15, 2023

आखिर क्यों हुई दिल्ली पानी-पानी

वैसे हर बारिष में गांव हो या षहर कमोबेष नये संघर्श की यात्रा कर लेते हैं मगर इस बार मामला कुछ ज्यादा दिक्कत वाला रहा। हिमाचल, उत्तराखण्ड, समेत कई पहाड़ी राज्यों के साथ मैदानी भी हालिया बारिष और बाढ़ से अच्छी खासी तबाही में गये हैं। इसी तबाही का षिकार फिलहाल दिल्ली भी है। रिकाॅर्ड तोड़ बारिष और यमुना के जल स्तर का रिकाॅर्ड स्तर जिस तरह टूटा है उससे दिल्ली में केवल आमजन तक ही नहीं बल्कि मंत्रियों और सांसदों के घर तक बारिष का पानी पहुंचा है। वैसे देखा जाये तो दिल्ली पहली बार न तो त्रस्त हुई है न त्रासदी देखी है बल्कि यह लगभग हर साल के मौसम में कम-ज्यादा होता रहा है। हां यह बात और है कि इस बार दिल्ली की सड़कें ताल-तलैया और पोखर में तब्दील हो गये। सवाल है कि जिस दिल्ली में दो सरकारे रहती हैं, जो देष की आबोहवा को बदलने की कूबत रखती है वह दिल्ली बारिष के चलते खुद डूबती दिखी। गौरतलब है कि दिल्ली की आबादी दो करोड़ से अधिक है और 1947 में यहां महज 7 लाख की जनसंख्या थी। समय के साथ आबादी बढ़ती गयी निर्माण कार्यों में तेजी आयी और एक मेगा षहर का स्वरूप अख्तियार करते हुए दिल्ली इमारतों, सड़कों, रिहाइषी भवनों, कल-कारखानों और बड़े-बड़े ओवर ब्रिज से बोझिल हो गयी और इसी निरंतरता के साथ जन घनत्व भी प्रसार लिया मगर कई अनेक समस्याएं इसे चारों तरफ से घेर भी लीं मसलन कचरे का ढ़ेर, ई-कचरा, जल निकासी की समस्या आदि ने एक नये तरीके का पीड़ा भी इस दिल्ली को दिया है। कहा जाता है कि दिल्ली के जल निकासी के लिए जो योजना 1976 में बनायी गयी थी वही आज भी निरंतरता लिए हुए है। खास यह है कि इसे महज 20 साल के लिए बनाया गया था जो लगभग 50 साल पूरे कर रही है। अब यह बात समझना सहज है कि दिल्ली बारिष में क्यों हाफने लगती है। 

हालिया स्थिति को देखें तो दिल्ली में आया जल प्रलय योजनाकारों और सरकारों दोनों पर बड़ा सवाल खड़ा करती है। दिल्ली के कई इलाकों में यमुना के बढ़ते पानी के कारण बाढ़ की स्थिति पैदा हो गयी। यमुना का जल स्तर 208 मीटर से अधिक का छलांग लगाते हुए रिकाॅर्ड स्तर तक पहुंच गया है। आईटीओ, निगमबोध घाट, कष्मीरी गेट सहित कई इलाकों में जल भराव तीन फिट से ऊपर चला गया जिसके चलते सरकारें एलर्ट मोड में चली गयी। निचले इलाकों से लोगों को निकाला जा रहा है। देखा जाये तो 1978 के बाद पहली बार यमुना का जलस्तर इतना बढ़ा। जान-माल का काफी नुकसान हो रहा है, लाल किले में भी यमुना का पानी घुस गया। मेट्रो को भी कुछ इलाकों में बंद करना पड़ा, सड़कों पर लम्बा जाम इत्यादि समस्याएं यह बताती हैं कि दिल्ली पानी-पानी तो खूब हुई है। और इसके पीछे बेतरजीब तरीके से हुई बसावट, सरकार की घोर लापरवाही तथा इंतजाम की कमी देखी जा सकती है। यमुना के निचले इलाकों में 37 हजार से अधिक अवैध बाषिंदे हैं जिन्हें विस्थापित करना स्वाभाविक है। यमुना के जल स्तर के बढ़ने के पीछे हथिनीकुण्ड बैराज से पानी छोड़ना भी है यह बैराज हरियाणा में है। वैसे बैराज से पानी छोड़ा जाना हर बारिष में अपने ढंग की आवष्यकता है। दूसरा बड़ा कारण यहां की बूढ़ी हो चुकी जल निकासी व्यवस्था है। दिल्ली के ड्रेनेज सिस्टम के साथ 11 विभाग षामिल हैं जिन्हें एक मेज पर बैठकर नया मास्टर प्लान तैयार करना ही होगा। यदि ऐसा नहीं सम्भव हुआ तो दिल्ली की सड़कों पर कार और मोटरगाड़ी की बजाये नाव चला करेंगी। फिलहाल दिल्ली पुलिस ने बाढ़ प्रभावित इलाकों में धारा 144 लागू की दी है। वैसे देखा जाये तो यह चैथी बार है जब यमुना का जलस्तर 207 मीटर के पार पहुंचा है। 

भारी बारिष के चलते उत्तर भारत में ट्रेन का आवागमन भी बेपटरी हुआ है। 500 से अधिक ट्रेने आंषिक व पूर्ण रूप से रद्द हो चुकी हैं। टिकट रद्द होने और रिफण्ड के चलते रेलवे भी घाटे की ओर अग्रसर है। हालांकि ऐसे मौके कई बार रहे हैं और मौसम ठीक होने की स्थिति में ट्रेने फिर पटरी पर दौड़ती रही हैं। खास यह भी है कि एक ओर जहां हिमाचल और पंजाब में बाढ़ से हालत गम्भीर है और दिल्ली में भी बारिष और बाढ़ ने नई समस्या खड़ी की है। वहीं झारखण्ड और उत्तर प्रदेष में बारिष की कमी महसूस कर रहे हैं। पूरे भारत की पड़ताल किया जाये तो अधिक वर्शा वाले क्षेत्रों में जम्मू-कष्मीर, हिमाचल प्रदेष, पंजाब, उत्तराखण्ड, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और तमिलनाडु को देखा जा सकता है। देखा जाये तो ये 8 राज्य इन दिनों बारिष से बेहाल है जबकि देष के 11 ऐसे राज्य जो कम बारिष से युक्त हैं। बिहार में बारिष सामान्य से 33 फीसद कम है और किसान इस कमी से परेषान है साथ ही गर्मी और उमस की समस्या बरकरार है। झारखण्ड में मानसून कमजोर रहा हालांकि आगे सक्रियता बढ़ने की सम्भावना है। झारखण्ड में 43 फीसद और ओडिषा में 26 प्रतिषत कम बारिष दर्ज हुई है। असम को छोड़ दिया जाये तो पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में मानसूनी बादल कम ही बरसें हैं। फिलहाल 12 जुलाई तक हुई 4 दिन की बारिष से देष के अंदर सौ से ज्यादा की बाढ़ और बारिष से मौत हुई। 10 हजार से अधिक पर्यटक हिमाचल प्रदेष में जहां-तहां फंस गये। हरियाणा के 9 जिलों के 6 सौ गांव में पानी भर गया। उक्त आंकड़े यह दर्षाते हैं कि हालिया बारिष और बाढ़ का परिप्रेक्ष्य से पूरा देष नहीं घिरा है बल्कि कुछ राज्य तक यह मामला है जिसमें देष की राजधानी दिल्ली भी खूब पानी-पानी हुई है। 

बारिष पर किसी का जोर नहीं मगर बढ़ रहे पृथ्वी के तापमान, जलवायु परिवर्तन और मानव द्वारा सृजित या निर्मित अनेक वे कारक जो पृथ्वी के बदलाव को बड़े बदलाव में तब्दील करने में लगे हैं उसको कमतर किया जा सकता है। इतना ही समय रहते षहरों के जल निकासी को दुरूस्त करना, बारिष से पहले साफ-सफाई करना, अवैध काॅलोनी को न बसने देना, नाला-खाला आदि पर अतिक्रमण से रोक और बेहतरीन मास्टर प्लान बनाकर बाढ़ से बचा जा सकता है। दिल्ली देष का वह चित्र है जहां से पूरे देष के मानचित्र की सेहत सुधरती है। ऐसे में बारिष और बाढ़ के चलते बीमार होना सही नहीं है। बदले परिप्रेक्ष्य और दृश्टिकोण के अन्तर्गत यह समझने में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए कि षिक्षा, चिकित्सा, सड़क, सुरक्षा समेत अनेक बुनियादी व समावेषी विकास के निहित अर्थों में बाढ़ से बचाव भी षामिल है। बाढ़ और बारिष से जान-माल की हानि को कम करना, आवागमन को सुचारू बनाये रखना तथा सुजीवन को पटरी से उतरने से रोकना सरकार की जिम्मेदारी है। ऐसे में दिल्ली हो या देष का कोई भी षहर हवा में काम करने के बजाये जमीन पर उतर कर अपने षहर को समझना उसके अनेक प्रबंधन को उसी जमीन पर उतारना ताकि नौबत कुछ भी आ जाये बारिष कितनी भी हो बाढ़ से बचा जा सके। हालांकि यह काम कठिन है मगर नामुमकिन नहीं है। सबके बाद दो टूक यह कि इसकी षुरूआत सबसे पहले दिल्ली से ही होनी चाहिए।

 दिनांक : 13/07/2023


डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502

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