साल 2025 तक देष में इंटरनेट की पहुंच 90 करोड़ से अधिक जनसंख्या तक हो जायेगी जो वर्तमान में 70 करोड़ है। तकनीक किस गति से अपना दायरा बढ़ा रही है यह बढ़े हुए सुषासन से आंक सकते हैं और किस स्तर पर यह अभी चुनौतियों में फंसी है इसका आंकलन भी समावेषी विकास पर निरंतर पड़ती चोट से समझ सकते हैं। गौरतलब है कि ई-गवर्नेंस से प्रषासनिक कार्य एवं सेवाओं की दक्षता तथा गुणवत्ता में सुधार होता है और यह भ्रश्टाचार को कम करने का औजार भी है। जाहिर है ऐसी दोनों परिस्थितियों में सुषासन की बयार बहना सम्भव है। भारत गांवों का देष है और डिजिटल इण्डिया का विस्तार व प्रसार षहर तक ही सीमित नहीं किया जा सकता। निःसंदेह गांव तक इसकी पहुंच को बढ़ाने की पुरजोर कोषिष हो रही है और ऐसा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ई-गवर्नेंस से प्रखर हुई ई-ग्राम समाज अभियान की अवधारणा को भी बल मिलेगा मगर तकनीक यदि रोड़ा बनी रही तो ई-ग्राम स्वराज की अवधारणा जाहिर है कमजोर भी होगी। इससे गांव के डिजिटलीकरण का सपना अधूरा रहेगा और 1922 में जो सपना महात्मा गांधी ने गांव के लिए देखा था वह भी कसमसाहट में भी रह जायेगा। विदित हो कि आगामी अक्टूबर 2023 से गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस (जीईएम) पोर्टल से ही पंचायतों में खरीद को अनिवार्य किया जाना है। लाख टके का सवाल यह है कि जब इंटरनेट सेवाएं आधी पंचायतों तक भी नहीं पहुंची है तो इस पोर्टल से जुड़े सपने को जमीन कैसे मिलेगी। स्पश्ट कर दें कि जनवरी 2023 तक लगभग 81 हजार पंचायतों तक ही इंटरनेट सेवाएं पहुंच पायी हैं जबकि संसद की स्थायी समिति को मंत्रालय द्वारा दिये गये आंकड़ों के अनुसार देष में लगभग पौने तीन लाख पंचायतें हैं। दावा तो यह भी किया जा रहा है कि हजारों पंचायतों में सेवा षुरू होने वाली है और छः माह में इसे और गति देते हुए आगामी दो वर्श में षत-प्रतिषत पंचायतों को इंटरनेट से जोड़ दिया जायेगा।
कृशि स्टार्टअप से लेकर मोटे अनाज पर जोर समेत कई संदर्भ पिछले कुछ समय से फलक पर है। उत्पाद, उद्यम और बाजार ई-ग्राम स्वराज की अवधारणा में एक अनुकूल वातावरण ला सकते हैं। मगर इसके लिए इंटरनेट की सेवाएं समुचित रूप से बहाल करनी होंगी। दावे राजनीतिक दृश्टि से कुछ भी हों मगर सुषासन का दृश्टिकोण यह कहता है कि समावेषी ढांचा बिना सुनिष्चित किए ग्रामीण विकास को उचित रूप दिया ही नहीं जा सकता जिसके कारण लोक सषक्तिकरण एक चुनौती बना रहेगा। ई-गवर्नेंस की दृश्टि से देखें तो इसका भी टिकाऊ पक्ष इंटरनेट कनेक्टिविटी ही है। इसी साल के फरवरी में पेष बजट में भी किसानों को डिजिटल ट्रेनिंग देने की बात देखी जा सकती है मगर यह कैसे सम्भव होगा यह भी सोचनीय मुद्दा है। गांव में 8 करोड़ से अधिक महिलाएं जो व्यापक पैमाने पर स्वयं सहायता समूह से जुड़कर उत्पाद करने का काम कर रही हैं और इन्हें देष-विदेष में बाजार मिले इसके लिए भी तकनीक तो चाहिए। इंटरनेट एण्ड मोबाइल एसोसिएषन के सर्वे पर आधारित एक रिपोर्ट जो थोड़ी पुरानी है उससे पता चलता है कि 2020 में गांव में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या 30 करोड़ तक पहुंच चुकी थी। देखा जाये तो औसतन हर तीसरे ग्रामीण के पास इंटरनेट सुविधा है। पौने तीन लाख पंचायतों में 80 हजार पंचायतों तक इंटरनेट की पहुंच इसी आंकड़े को तस्तीक करता है। पूरा भारत साढ़े छः लाख गांवों से भरा है और इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों में 42 फीसद ग्रामीण महिलाएं हैं। गांव में महिलाओं की श्रम षक्ति में हिस्सेदारी भी बढ़ रही है। कृशि क्षेत्र में अभी भी 60 प्रतिषत के साथ यह बढ़त लिए हुए है। इतना ही नहीं बचत दर सकल घरेलू उत्पाद का 33 प्रतिषत इन्हीं से सम्भव है और डेरी उद्योग में तो महिलाएं ही छायी हैं जहां 94 फीसद का आंकड़ा देखा जा सकता है। इंटरनेट की बढ़त से चैतरफा सम्भावनाओं में बाढ़ आना स्वाभाविक तो है मगर इस बात को ध्यान में रखते हुए कि यह सुलभ के साथ कहीं अधिक सस्ता भी हो।
पंचायती राज मंत्रालय, पंचायतों को पारदर्षी और सषक्त बनाने के लिए कई अभियान और कार्यक्रम चला रहा है। पंचायतों को इस बात के लिए भी निर्देषित किया गया है कि ग्राम पंचायत स्तर पर किसी भी मद में पैसे का लेन-देन फिलहाल यूपीआई से ही किया जाये जिस हेतु 15 अगस्त 2023 का लक्ष्य रखा गया। स्पश्ट है कि डिजिटल लेन-देन व ई-गवर्नेंस को यहां तवज्जो देने की बात है मगर इसका भी पूरा ताना-बाना इंटरनेट कनेक्टिविटी पर निर्भर है। इसके अलावा मंत्रालय की केन्द्रीय अधिकार प्राप्त समिति ने राज्यों से यह भी कहा है कि राज्य विषेश की सभी पंचायतों में जीईएम पोर्टल के माध्यम से ही वस्तुओं और सेवाओं की खरीद-फरोख्त को केन्द्रीय वित्त आयोग द्वारा अनिवार्य किया जा रहा है। यहां भी ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देने की बात है बषर्ते चुनौती में इंटरनेट सेवा ही है। राज्यों में इंटरनेट सेवा की पड़ताल यह बताती है कि लगभग पूरे देष में हालत कमोबेष कमजोर और एक जैसी है मसलन उत्तर प्रदेष मे 58189 पंचायतों में महज 5014 पंचयतें इंटरनेट से जुड़ पायी हैं। यह आंकड़ा इस बात का उदाहरण है कि पंचायतें इंटरनेट सेवा के मामले में बहुत बेहतर नहीं बल्कि चिंतनीय अवस्था में है। उत्तराखण्ड में यही आंकड़ 7791 के मुकाबले 1010 पर है। इसी क्रम में राजस्थान, मध्य प्रदेष, हिमाचल प्रदेष समेत सभी राज्यों की हालत कुछ ऐसी ही है। पंजाब इस मामले में कहीं अधिक बेहतर अवस्था लिए हुए है। यहां कि 13241 पंचायतों में 9483 पंचायतें इंटरनेट से सरोकार रखती है जबकि हरियाणा में 6220 पंचायतों के मुकाबले इंटरनेट कनेक्टिविटी वाले पंचायतों की संख्या 3570 है। देखा जाये तो गुजरात में 14359 पंचायतों में 11167 का जुड़ाव इंटरनेट से है जो अपनेआप में एक बेहतर आंकड़ा तो हैं। दावे अपनी जगह है नीयत और नीति में भी कोई संदेह नहीं है मगर ई-ग्राम स्वराज में पंचायतों की तकनीकी स्थिति को देखते हुए यह आंकलन आसान है कि अभी एड़-चोटी का जोर लगाना बाकी है। लेकिन एक हकीकत यह है कि जनवरी में किए गए तमाम दावो को छः महीने बीत चुके हैं, हो सकता है कि पंचायतों को इंटरनेट से जोड़ने का क्रम बीते छः महीने में बड़ा रूप लिया हो मगर यह कहना अतार्किक सा प्रतीत होता है कि अक्टूबर से जीईएम पोर्टल से ही पंचायते अनिवार्य रूप से खरीद मामले से जुड़ जायेंगी। इसका सबसे बड़ा कारण फिर वही तकनीक की चुनौती ही है।
वोकल फाॅर लोकल का नारा कोरोना काल में तेजी से बुलंद हुआ। मोटे अनाज को लेकर इन दिनों चर्चा खूब जोरों पर है। अच्छे बीज, अच्छी सीख और अच्छी खेती समेत मुनाफे से भरी बिकवाली की अगर कोई बड़ी चुनौती है तो वह तकनीक का समुचित न होना ही है। गांव श्रम का सस्ता रास्ता है लेकिन वित्तीय कठिनाईयों के चलते संसाधन की कमी से जूझते कौषलयुक्त ग्रामीण श्रम षहर का रास्ता पकड़ लेता है। जिसका सबसे बड़ा असर ग्राम स्वराज की उस अवधारणा पर पड़ता है जो राश्ट्रपति महात्मा गांधी का सपना था। ग्रामीण उद्यमी वित्तीय रूप से सषक्त होंगे व तकनीक से युक्त होंगे तो जाहिर है गांवों का देष भारत उन्नति का परिचायक हो जायेगा। फलस्वरूप सुषासन का सपना पाले सरकार को भी इसकी पूरी परिभाशा गढ़ने का अवसर मिलेगा।
दिनांक : 29/07/2023
No comments:
Post a Comment