Friday, September 15, 2023

गर्मी, बाढ़, बारिश और दुनिया की तस्वीर

अगर सभी देष कार्बन उत्सर्जन में कटौती के अपने वायदे को पूरा कर भी लें तब भी भारत की 60 करोड़ से अधिक आबादी समेत दुनिया भर में 2 सौ करोड़ से अधिक लोगों को खतरनाक रूप से भीशण गर्मी का सामना करना ही पड़ेगा जो अस्तित्व का संकट पैदा कर सकती है। जलवायु वैज्ञानिकों की मानें तो वर्तमान जलवायु नीतियों के परिणामस्वरूप सदी के अंत तक तापमान में 2.7 डिग्री सेल्सियस वृद्धि होगी। इस मात्रा के तापमान के चलते विष्व स्तर पर लू की घातक लहरें, चक्रवात और बाढ़ तथा समुद्र के स्तर में वृद्धि की सम्भावना रहेगी। इसमें कोई दो राय नहीं कि ग्लोबल वार्मिंग दष्कों से दुनिया के लिए सबसे बड़ी चिंता बनी हुई है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते ही धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है और प्राकृतिक आपदायें विकराल रूप ले रही हैं। गौरतलब है कि हर साल 54 अरब टन कार्बन डाई आॅक्साइड का उत्सर्जन हो रहा है जिससे धरती की सतह का तापमान तेजी से बढ़ रहा है। फिलहाल चिंताओं और चर्चाओं के बीच लू के थपेड़े जारी हैं, गर्मी प्रचण्ड रूप लिए हुए है और समुद्र भी अपने तूफान को बेपरवाह छोड़ दिया है। उत्तर भारत के ज्यादातर इलाकों में गर्मी या लू से हाल बुरा है। राजधानी दिल्ली समेत उत्तर प्रदेष, बिहार, झारखण्ड, पष्चिम बंगाल लू की चपेट में है। दक्षिण में आन्ध्र प्रदेष और तेलंगाना के ज्यादातर हिस्सों में भीशण गर्मी पैर पसारे हुए है। ओडिषा और छत्तीसगढ़ भी गर्मी के कहर से कराह रहे हैं जबकि पष्चिमी तट के ज्यादातर इलाकों में समुद्री चक्रवात बिपरजाॅय के चलते एक नई अव्यवस्था विकसित हो गयी है। गौरतलब है अरब सागर में उठे इस चक्रवाती तूफान के चलते लगभग एक लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का काम किया गया और सरकार समेत पूरा महकमा अलर्ट मोड पर रहा। मध्य भारत और उत्तर भारत में लू का कहर है, पूर्वोत्तर में भारी बारिष की चेतावनी है और पष्चिमी भारत चक्रवात के असर से बेजार है। उक्त तमाम बातें यह तस्तीक कर रही हैं कि पृथ्वी जलवायु परिवर्तन के चलते नित नई समस्याओं से भर रही है। 

विष्व मौसम विज्ञान संगठन ने 2023 में कहा था कि अगले 5 वर्शों में वैष्विक तापमान बढ़ने की सम्भावना है जिसमें 2023-27 अब तक के सबसे गर्म साल रह सकते हैं। अमेरिका में बर्फीले तूफान का कहर बरप रहा है तो कई यूरोपीय देष विंटर हीटवेव की चपेट में हैं। नीदरलैंड और डेनमार्क समेत चेक गणराज्य जैसे कुल 7 देषों में साल की षुरूआत बीते कई दषकों में सबसे गर्म रही। जलवायु परिवर्तन हो या मौसम का आम चलन गर्मी का प्रकोप वहां भी पड़ा है जहां पहले ऐसा नहीं था। दक्षिण यूरोप भी बरसों पहले गर्मी की लहर में था साल 2017 में तो तापमान यहां 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला गया था जो कि कभी ऐसा हुआ ही नहीं था और इस गर्मी ने जंगल में आग, फसल का नुकसान सब कुछ बढ़ा दिया था। अब तक के इतिहास को देखा जाये तो अगस्त 2016 सबसे ज्यादा गर्म रहा है और यह सम्भावना विष्व मौसम विज्ञान संगठन ने एक महीने पहले ही जता दिया था कि 2016 में स्थापित तापमान रिकाॅर्ड भी टूट सकता है। अप्रैल 2023 से रिकाॅर्ड तोड़ गर्मी की लहर ने भारत, बांग्लादेष, चीन, थाईलैण्ड, वियतनाम सहित तमाम एषियाई देषों को प्रभावित किया है। हीट वेव के चलते, हीट स्ट्रोक के कारण कई मौतें भी हुई हैं और इस मामले में दो दर्जन देष देखे जा सकते हैं। इस साल बनने वाले अलनीनो की घटना भी एक नई मुसीबत को लेकर खड़ी है। गौरतलब है अल नीनो गर्म समुद्री जलधारा है जिसके प्रभाव से दक्षिण-पष्चिम मानसून कमजोर हो जाता है। फलस्वरूप भारत में अकाल और सूखे की सम्भावना बढ़ जाती है और बारिष कम होती है। अलनीनो की घटना न केवल इस साल नुकसान पहुंचायेगी बल्कि साथ ही साथ इसका प्रभाव 2029 तक दर्ज किये जाने की बात की जा रही है। वैष्विक अर्थव्यवस्था को इससे 2029 तक 3 लाख करोड़ डाॅलर का नुकसान हो सकता है। हालांकि अलनीनो पेरू के तट से उठने वाली एक जलधारा है जो कुछ वर्शों के अंतराल पर प्रकट होती रहती है।

ग्लोबल वार्मिंग रोकने का फिलहाल कोई इलाज नहीं है। इसे लेकर केवल जागरूकता ही एक उपाय है। पृथ्वी को सही मायनो में बदलना होगा और ऐसा इसके हरियाली से ही सम्भव है। कार्बन डाई आॅक्साइड के उत्सर्जन को भी प्रति व्यक्ति कम करना ही होगा। पेड़-पौधे लगातार बदलते पर्यावरण के हिसाब से खुद को ढ़ालने में जुट गये हैं। जल्द ही इसकी कोषिष मानव को भी षुरू कर देनी चाहिए। हम प्रदूशण से जितना मुक्त रहेंगे पृथ्वी को बचाने के मामले में उतनी ही बड़ी भूमिका निभायेंगे पर यह कागजी बातें हैं हकीकत में ऐसा होगा संदेह अभी भी गहरा बना हुआ है। ऐसा माना जा रहा है कि ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन के वजह से रेगिस्तानों में नमी बढ़ेगी जबकि मैदानी इलाकों में इतनी प्रचण्ड गर्मी होगी जितना कि इतिहास में नहीं रहा होगा जाहिर है यह जानलेवा होगी। अब दो काम करने बड़े जरूरी हैं पहला कि प्रकृति को इतना नाराज़ न करें कि हमारा अस्तित्व ही समाप्त हो जाय। दूसरा प्रकृति के साथ छेड़छाड़ के मामले में अब उदार रवैये से काम नहीं चलेगा बल्कि सख्त नियमों को और कठोर दण्डों को प्रचलन में लाना ही होगा। वर्शों पहले अमेरिकी कृशि विभाग के एक वैज्ञानिक ने चावल पर किये गये षोध में यह पाया था कि वातावरण में बढ़ती कार्बन डाई आॅक्साइड की वजह से इसकी रासायनिक संरचना बदलने लगी है। यह एक बानगी मात्र है सच्चाई यह है कि ऐसे कई बिन्दुओं पर षोध किया जाये तो यह बोध जरूर हो जायेगा कि कमोबेष रासायनिक संरचना में परिवर्तन तो हर जगह आ रहा है तो क्या यह माना जाय कि गर्मी बेकाबू रहेगी और दुनिया झंझवात में फंस जायेगी। पृथ्वी बचाने की मुहिम दषकों पुरानी है। 1948 से इस क्रम को देखें और 1972 की स्टाॅकहोम की बैठक को देखें साथ ही 1992 और 2002 के पृथ्वी सम्मेलन को भी देखें इसके अलावा जलवायु परिवर्तन को लेकर तमाम बैठकों का निचोड़ निकालें तो भी तस्वीरें सुधार वाली कम वक्त के साथ बिगाड़ वाली अधिक दिखाई देती हैं। गर्मी के लिये कौन जिम्मेदार है 55 फीसदी कार्बन उत्सर्जन दुनिया के चंद विकसित देष करते हैं और जब कार्बन कटौती की बात आती है तो उसमें भी वह पीछे हट जाते हैं। पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका का हटना कुछ ऐसी ही असंवेदनषीलता बरसों पहले देखी जा चुकी है। 

दुनिया के कई हिस्सों में बिछी बर्फ की चादरें पिघल जायेंगी, समुद्र का जलस्तर कई फीट तक बढ़ जायेगा। कई क्षेत्र जलमग्न हो जायेंगे और भारी तबाही मचेगी। ऐसा नहीं है कि इसका प्रभाव नहीं दिख रहा है। दिख भी रहा है और दुनिया भर की राजनीतिक षक्तियां इस बहस में उलझी हैं कि गरमाती धरती के लिये किसे जिम्मेदार ठहराया जाये। जिम्मेदार कोई भी हो भुगतना सभी को पड़ेगा। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन ने तो दुनिया की तस्वीर ही बदल दी है। कृशि, वन, पर्यावरण, बारिष समेत जाड़ा और गर्मी सब इसके चलते उथल-पुथल की अवस्था में जा रहे हैं। इसलिए बेहतर यही होगा कि इस बड़े खतरे से अनभिज्ञ रहने के बजाय मानव सभ्यता और पृथ्वी को बचाने की चुनौती में सभी आगे आयें। 

 दिनांक : 16/06/2023


डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502

No comments:

Post a Comment