Friday, June 24, 2022

आईएएस के आसमान में नारी चमक

सिविल सेवा परीक्षा में किसी लड़की का टाॅप करना अब न तो नई और न ही अचरज से भरी बात है। हाल के वर्शों से देष की सर्वोच्च परीक्षा में नारी का पलड़ा वर्श-दर-वर्श भारी होता जा रहा है। 30 मई को घोशित परिणाम पहले चार टाॅपर महिलाएं हैं। जो 2014 के सिविल सेवा के नतीजे को याद दिलाता है। इस वर्श लगातार चार टाॅपरों में लड़कियां ही थी। 4 जुलाई 2015 को संघ लोक सेवा आयोग द्वारा वर्श 2014 के सिविल सेवा परीक्षा के नतीजे घोशित किये गये थे जिसमें फलक पर लड़कियां थी और 30 मई 2022 को भी फलक पर लड़कियां ही हैं। इस बार भी जिस तरह रैंकिंग में षीर्शक स्थानों पर लड़कियों का कब्जा हुआ है ये सिविल सेवा परीक्षा के इतिहास में एक अनूठी मिसाल है। इस प्रकार का उदाहरण इस परीक्षा के इतिहास में पहले षायद ही देखा गया हो। खास यह भी है कि बीते कई वर्शों से हिन्दी माध्यम के नतीजे निराषा से भरे रहे मगर इस मामले में भी आषा बढ़त में है। हिन्दी माध्यम का परिणाम सुधरने से इस माध्यम के प्रतियोगियों को परीक्षा के प्रति सकारात्मक बल जरूर मिलेगा। ब्रिटिष युग से इस्पाती सेवा के रूप में जानी जाने वाली सिविल सेवा वर्तमान भारत में कहीं अधिक सम्मान और भारयुक्त मानी जाती है और यह समय के साथ परिवर्तन के दौर से भी गुजरती रही है। स्वतंत्रता के तत्पष्चात् सर्वाधिक बड़ा फेरबदल वर्श 1979 की परीक्षा में देखा जा सकता है जो कोठारी समिति की सिफारिषों पर आधारित था। यहीं से सिविल सेवा परीक्षा प्रारम्भिक, मुख्य एवं साक्षात्कार को समेटते हुए त्रिस्तरीय हो गयी और इस परिवर्तित पैटर्न के पहले टाॅपर उड़ीसा के डाॅ0 हर्शुकेष पाण्डा हुए। प्रषासनिक सेवा को लेकर हमेषा से ही युवाओं में आकर्शण रहा है साथ ही देष की सेवा का बड़ा अवसर भी इसके माध्यम से देखा जाता रहा है। लाखों युवक-युवतियां इसे अपने कैरियर का माध्यम चुनते हैं। विगत् वर्शों से सिविल सेवा के नतीजे लड़कियों की संख्या में तीव्रता लिए हुए है। इस बार के नतीजे तो पराकाश्ठा है। यकीनन यह देष की उन तमाम लड़कियों को हिम्मत और ताकत देने का काम करेंगे जो मेहनत के बूते मुकाम हासिल करने का सपना देख रही हैं। यह अधिक खास इसलिए भी है क्योंकि इस बार की टाॅपर ईरा सिंघल ने षारीरिक अषक्तता से ग्रस्त होने के बावजूद इस षिखर को छुआ है जो स्वयं में अप्रतिम और अदम्य साहस का उदाहरण हैं।

पड़ताल बताती है कि बीते एक दषक में सिविल सेवा परीक्षा के नतीजे नारी चमक के प्रतीक रहे हैं। पड वर्श 2010, 2011 और 2012 में लगातार लड़कियों ने इस परीक्षा में षीर्शस्थ स्थान हासिल किया जबकि 2013 में गौरव अग्रवाल ने टाॅप करके इस क्रम को तोड़ा पर 2014 में पुनः न केवल लड़कियां षीर्शस्थ हुईं बल्कि प्रथम से लेकर चतुर्थ स्थान तक का दबदबा बनाये रखने में कामयाब रहीं। साल 2015 में टीना डाबी और वर्श 2016 में नंदिनी के.आर. ने टाॅप कर वर्चस्व को बनाये रखा। एक बार फिर 2021 के परिणाम में लड़कियां अपना परचम लहराते हुए षीर्श चार पर रहीं। वर्श 2008 का परिणाम भी षुभ्रा सक्सेना के रूप में लड़कियों के ही टाॅपर होने का प्रमाण है। रोचक यह भी है कि विगत् कुछ वर्शों से लड़कियों की इस परीक्षा में न केवल संख्या बढ़ी है बल्कि टाॅपर बनने की परम्परा भी कायम है जो नये युग की परिपक्वता भी है और परिवर्तन की कसौटी भी है। बरसों से यह कसक रही है कि नारी उत्थान और विकास को लेकर कौन सी डगर निर्मित की जाए। स्वतंत्रता के बाद से लेकर अब तक इस पर कई प्रकार के नियोजन किये गये जिसमें महिला सषक्तिकरण को देखा जा सकता है। षिक्षा और प्रतियोगिता के क्षेत्र में जिस प्रकार लड़कियां आगे बढी हैं इससे तो लगता है कि उन पर की गयी चिंता कामयाबी की ओर झुकने लगी है। प्रषासनिक सेवा के क्षेत्र में इस प्रकार की बढ़ोत्तरी स्त्री-पुरूश समानता के दृश्टिकोण को भी पोशण देने का काम करेगी साथ ही सषक्तीकरण के मार्ग में उत्पन्न व्यवधान को भी दूर करेगी जैसा कि इस बार की चयनित लड़कियों ने भी कुछ इसी प्रकार के उद्गार व्यक्त किए हैं। इसके अलावा समाज में लड़कियों के प्रति कमजोर पड़ रही सोच को भी मजबूती मिलेगी।

सिविल सेवा सपने पूरे होने और टूटने दोनों का हमेषा से गवाह रहा है। ब्रिटिष काल से ही ऐसे सपने बुनने की जगह इलाहाबाद रही है जबकि अब वहां हालात बेहतर नहीं है। पहली बार वर्श 1922 में सिविल सेवा की परीक्षा का एक केन्द्र लन्दन के साथ इलाहाबाद था जो सिविल सेवकों के उत्पादन का स्थान था। फिलहाल इस बार के नतीजे यह सिद्ध कर चुके हैं कि आईएएस में हिन्दी भी षीर्श पदों की ओर अग्रसर हुई है और इस पर लगा ग्रहण भविश्य में और कम होगा। ऐसा इस बार में नतीजे से संकेत मिलता है। इसमें चैंकने वाली कोई बात नहीं है नतीजे हर्श से भरे हैं। अपेक्षाओं के धरातल पर ये जादूगरी कहीं अधिक रोमांचकारी भी है जिस प्रकार टाॅप से लेकर मेधा सूची तक की यात्रा में लड़कियां षुमार हुई हैं उसे देखते हुए उनके प्रति सम्मान का एक भाव स्वतः इंगित हो जाता है। इस भरोसे के साथ कि आने पीढ़ी को, समाज को और देष को भी नारी षक्ति का बल प्राप्त होगा।

 दिनांक :30/05/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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