Thursday, June 30, 2022

जी-7 की बैठक और भारत की उपस्थिति

पष्चिमी देषों की यह चाहत है कि भारत की तरफ फिर से बड़ा हाथ बढ़ाया जाए। हालांकि भारत पष्चिम की ओर हमेषा देखता रहा है। यूक्रेन के संदर्भ में भारत पहले ही स्पश्ट कर चुका है कि वह कोई पक्ष नहीं लेगा गुटनिरपेक्ष बना रहेगा। वैसे पष्चिमी देष यह जानते हैं कि भारत उनका मित्र है मगर एक सीमा के बाद उसे दबाया नहीं जा सकता। दुनिया के देष भले ही अलग-अलग संगठन के माध्यम से एकमंचीय होते हों मगर सभी अपनी प्राथमिकताओं को वरीयता देने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते। जी-7 में जापान को छोड़ सभी नाटो के सदस्य हैं और इन दिनों रूस को लेकर नये पेंच में फंसे हैं। भारत रूस का नैसर्गिक मित्र है मगर इन देषों के साथ भी उसका गहरा नाता है। जाहिर है जी-7 जैसी संस्था जो दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में षुमार देषों का संगठन है उसमें भारत का उपस्थित रहना उसकी स्थिति को दर्षाता है। दो टूक यह भी है कि दुनिया के देष अपनी प्राथमिकताएं बदल जरूर रहे हैं मगर एक-दूसरे पर उनकी निर्भरता बरकरार भी है। जर्मनी में दो दिवसीय सम्पन्न जी-7 षिखर सम्मेलन में भारत को विषेश आमंत्रण के तहत बुलाया गया था जहां भारत के प्रधानमंत्री ने यूक्रेन-रूस युद्ध के चलते कीमतों में हो रही वृद्धि और इससे गरीब परिवारों पर पड़ रहे असर का मुद्दा भी उठाया साथ ही जलवायु, ऊर्जा और स्वास्थ्य पर भी मोदी की टिप्पणी देखी जा सकती है। गौरतलब है कि भू राजनीतिक तनाव के चलते ऊर्जा के दाम आसमान छू रहे हैं और दुनिया समूहों में लगातार बंटती जा रही है। पर्यावरण सुरक्षा को लेकर भारत ने क्या हासिल किया है यह भी वहां मुखर किया गया है मगर समावेषी समस्याओं से भारत अभी बाकायदा घिरा हुआ है।

विष्व की 17 फीसद आबादी भारत की है जबकि भारत महज 5 फीसद ही कार्बन उत्सर्जन करता है। जिस विकासित देषों का समूह जी-7 है दुनिया के आधे से अधिक कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार वही है। फिलहाल जर्मनी में जी-7 के हालिया सम्मेलन कई दृश्टि से समझने और समझाने के रूप में देखा जा सकता है मगर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि सभी अपनी प्राथमिकताओं को लेकर चिंतित हैं। 1975 में 6 विकसित देष फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, इंग्लैण्ड और अमेरिका बाद में कनाडा को जोड़ते हुए जी-7 आज विस्तार की एक नई राह पर खड़ा दिखाई देता है। हालांकि कभी रूस भी इसका हिस्सा था जो कि पिछले कई वर्शों से इस समूह से बाहर है। जी-7 की जब पहली बैठक हुई थी तो इसमें दुनिया भर में बढ़ रहे आर्थिक संकट और उससे समाधान की बात कही गयी थी। समय के साथ उद्देष्य तो नहीं बदले मगर बदले विष्व में कई भाव जी-7 के हिस्से बन गये। खास यह भी है कि 14 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था होने के बावजूद चीन कभी इसका हिस्सा नहीं रहा और भारत महज तीन ट्रिलियन से भी कम अर्थव्यवस्था के बावजूद इसमें आमंत्रित होता रहा है। वैसे चीन के जी-7 के हिस्सा नहीं होने के पीछे बड़ा कारण जीडीपी के हिसाब से प्रति व्यक्ति आय में कमी का होना है। भारत की ग्लोबल पहचान बड़ी है और विदेषी सम्बंध भी बेहतरी की ओर है। इसी के चलते 2019 से अतिथि राश्ट्र के रूप में सम्मेलन में बुलाया जाता रहा है। इसके अलावा आॅस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और दक्षिण अफ्रीका भी अतिथि राश्ट्र के तौर पर आमंत्रित किये जाते हैं। अमेरिका के तत्कालीन राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने जी-7 में भारत को जोड़ने को लेकर वकालत की थी।

फिलहाल जी-7 एक वैष्विक संगठन के तौर पर इतना खास है इसे लेकर भी यह बातें उठती हैं कि इसका महत्व नहीं है और इसे खत्म कर देना चाहिए। जबकि यह संगठन अपने पक्ष में दावा गिनाते हुए पेरिस जलवायु समझौता लागू करने के लिए स्वयं को महत्वपूर्ण मानता है। हालांकि इसी जलवायु समझौते से पूर्व अमेरिकी राश्ट्रपति ट्रंप ने नाता तोड़ लिया था। इतना ही नहीं विष्व स्वास्थ्य संगठन पर चीन की तरफ झुकाव का आरोप लगाते हुए कृत्यों का सही पालन न करने के कारण उससे भी दरकिनार हो गये थे। विदित हो कि जी-7 का यह सम्मेलन दो दिन तक चलता है, ग्लोबल मुद्दों पर चर्चा होती है, नये तरीके की रणनीतियों पर विचार होता है जिसमें अर्थव्यवस्था, देषों की सुरक्षा, बीमारियों और पर्यावरण पर चर्चा होती है। इस बार यूक्रेन-रूस युद्ध भी इसकी चर्चा की जद्द में देखा जा सकता है। गौरतलब है कि जी-7 में अफ्रीका और लैटिन अमेरिका महाद्वीप का कोई देष षामिल नहीं है। आलोचना में यह संदर्भ भी यदा-कदा आता है। जी-7 के देषों में चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एण्ड रोड़ इनिषिएटिव के मुकाबले 6 सौ अरब डाॅलर की आधारभूत संरचना का ऐलान किया है। जिसका नियोजन पिछले साल ब्रिटेन में हुई जी-7 की बैठक में बनाई गयी थी। जाहिर है इसे चीन के मुकाबले खड़ा करना है जिसे पार्टनरषिप फाॅर ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर एण्ड इन्वेस्टमेंट (पीजीआईआई) के नाम से यह लाॅन्च की गयी है और इसे बिल्ड बैक बेटर वल्र्ड भी कहा जाता है। अमेरिका और यूरोपीय देष चीन के बेल्ट एण्ड रोड़ इनिषिएटिव (बीआरआई) की आलोचना इस दृश्टि से कर रहे हैं कि वह इससे विकासषील और गरीब देषों को कर्ज के जाल में फंसा रहा है। चीनी राश्ट्रपति जिनपिंग बीआरआई को पूरी दुनिया का फायदा बता रहे हैं। विदित हो कि 2013 से षुरू यह योजना दुनिया की सबसे बड़ी आधारभूत परियोजना बन चुकी है। जाहिर है चीन की इस योजना के टक्कर में जी-7 देषों ने अपनी नई योजना का एलान किया है। क्वाड की बैठक में भी चीन की विस्तारवादी नीति पर भी सवाल उठाये गये थे जहां क्षेत्रीय सम्प्रभुता और हिन्द प्रषान्त क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन की बात हुई थी। गौरतलब है कि जी-7 की बैठक ऐसे समय में हुई जब यूरोप बड़े संकट से जूझ रहा है। यूक्रेन युद्ध में फंसा है और कई देषों में अनाज और ऊर्जा की आपूर्ति बाधित है जबकि ब्रिक्स देषों की बैठक में चीन के राश्ट्रपति वैष्विक स्तर पर गुटों में टकराव और षीत युद्ध का मुद्दा भी सुलगा दिया था। हालांकि इसे क्वाड को लेकर जिनपिंग की कूटनीतिक प्रतिक्रिया कही जा सकती है। जी-7 की बैठक में जर्मनी पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने जलवायु परिवर्तन और परस्पर सहयोग की बात उठायी और यह भी स्पश्ट किया कि विदेष नीति को लेकर भारत किसी समूह के दबाव में नहीं है।

भारत की विदेष नीति सक्रिय रही है अब यह बात दुनिया को पता चल चुकी है। चीन को भी यह स्पश्ट है कि जब तक भारत और चीन के सीमा विवादों का हल नहीं होगा अन्य क्षेत्रों में सम्बंध को मजबूत करना सम्भव नहीं है। वैसे कूटनीतिक तौर पर देखा जाये तो क्वाड, जी-7, ब्रिक्स या अन्य किसी प्रकार के वैष्विक मंच पर भारत अपनी प्राथमिकता को पहचानता है। वैसे भारत के लिए सभी विकल्पों को खुला रखना जरूरी है। दो टूक यह भी है कि भारत की कूटनीति और रणनीति राजनीतिक स्वतंत्रता पर आधारित है और अपने राश्ट्रीय हित को पहले रखते हुए सम्भ्प्रभुता को बरकरार रखना उसकी प्राथमिकता है। तमाम आंतरिक और अन्तर्राश्ट्रीय समस्याओं के बावजूद भारत दुनिया में समझदारी से विदेष नीति को आगे बढ़ा रहा है। न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर की तर्ज पर भारत आगे बढ़ रहा है मगर पाकिस्तान और चीन इसके अपवाद हैं। कष्मीर में जी-20 की होने वाली बैठक भारत की वैदेषिक नीति को एक नई ऊंचाई देने के काम आयेगी साथ ही करवट बदलती दुनिया के बीच भारत भी अपने हिस्से की करवट वैदेषिक तौर पर लेने में सक्षम है।

दिनांक : 30/06/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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