Thursday, June 30, 2022

छोटी बचत पर ब्याज दर और आम जनता

स्वतंत्रता के दो दषक बाद 1969 में पहली बार 14 बैंकों का राश्ट्रीयकरण किया गया। एक दषक बाद 1980 में 6 और बैंकों को राश्ट्रीकृत किया गया। साल 1991 में उदारीकरण के बाद से बैंकिंग क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा और ग्राहकों को बेहतर सुविधा देने का सिलसिला भी षुरू हुआ। यह वही दौर है जब इंटरनेट ने भी दुनिया में अपना कदम बढ़ा चुका था। इसी इंटरनेट के चलते मौजूदा समय में बैंकिंग व्यवस्था प्रौद्योगिकृत हुए और आधुनिकीकरण को एक व्यापक विस्तार मिला। दुनिया में पहला बिजनेस एटीएम 1969 में अमेरिका में खुला था जबकि भारत में निजी क्षेत्र के विदेषी बैंक एचएसबीसी ने 1987 में पहला एटीएम खोला हालांकि इंटरनेट बैंकिंग की षुरूआत करने वाला देष में पहला बैंक आईसीआईसीआई है। सरकारी क्षेत्र में देखें तो सेंट्रल बैंक में भारतीयों को क्रेडिट कार्ड की सुविधा दी थी। जाहिर है एटीएम, इंटरनेट बैंकिंग और क्रेडिट कार्ड जैसी स्थितियों के चलते पैसा भेजना और निकालना सब आसान हो गया। वर्तमान में भारतीय बैंकिंग में प्रौद्योगिकीय नवोन्मेश के चलते यह सभी के पहुंच में है। बैंकों से लेनदेन सोचने जितना ही आसान हो गया है। यह सही है कि बैंक तकनीकी रूप से कहीं अधिक दक्ष हो गये हैं और इन सुविधाओं के चलते ईज़ आॅफ लिविंग में बढ़ोत्तरी भी हुई है मगर छोटी बचत पर लगातार घटता ब्याज दर आम जीवन की कठिनाईयों को भी तुलनात्मक बढ़ाया है। इतना ही नहीं बचत के विभिन्न प्रारूपों में ब्याज दर के गिरते स्तर को देखते हुए इसके प्रति कहीं अधिक ग्राहकों में उदासीनता भी है। बचत खाता की राषि पर 4 फीसद ब्याज दर, एक से तीन साल की फिक्स्ड डिपोजिट (एफडी) 5.5 फीसद, 5 साल तक की एफडी पर 6.7 फीसद आदि पहले की तुलना में कमतर है। पिछले दो सालों से ऐसी दरों में कोई परिवर्तन भी नहीं हुआ है। उम्मीद है कि सरकार षीघ्र ही इस पर कुछ सकारात्मक कदम उठायेगी। 

अर्थषास्त्रियों की दृश्टि में रिज़र्व बैंक की ओर से रेपो दर में वृद्धि के बाद सरकार छोटी बचत पर ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी कर सकती है। उम्मीद की जा रही है कि अगले तिमाही अर्थात् जुलाई से सितम्बर के लिए इस मामले में वित्त मंत्रालय एलान इसी माह में कर सकता है। गौरतलब है कि कई बचत पर ब्याज दर दषकों पहले दहाई में हुआ करती थी मौजूदा वक्त में धीरे-धीरे घटते-घटते यह न्यून स्तर को प्राप्त कर लिया है। इसी क्रम में देखें तो पीपीएफ पर ब्याज दर 7.1 फीसद है और किसान विकास पत्र पर ब्याज 6.9 फीसद इसके अलावा भी कई ऐसे बचत के उपाय हैं जहां ब्याज दर काफी कम है। भारत सरकार की ओर से हाल के वर्शों में बैंकिंग टेक्नोलाॅजी के जरिये भारतीयों को और स्मार्ट बनाने तथा बैंकिंग को सरल बनाने की दिषा में कई कदम उठाये गये। बैंकिंग काॅरेस्पोन्डेंट से लेकर मोबाइल बैंकिंग तक यह एक व्यापक तकनीक का प्रकटीकरण हुआ। नई तकनीक और प्रतिस्पर्धा बढ़ने से अब लोग आसानी से मोबाइल को ही अपना बैंक बना चुके हैं और इसके अधिक सुविधाजनक बनाने हेतु बैंक भी लगातार अपनी तकनीक को अपग्रेड कर रहे हैं। नये-नये मोबाइल बैंकिंग एप्प इस मामले में और सुचारू व्यवस्था को अंजाम दे रहे हैं। इन्हीं एप्पस के जरिये पैसा का ट्रांसफर करना मोबाइल रिचार्ज, ट्रेन बुकिंग, होटल बुकिंग आदि सब कुछ तेजी से सम्भव हुआ है। बैंकों से न केवल भीड़ कम हुई है बल्कि ग्राहकों की संख्या में भी लगातार बढ़ोत्तरी है। दो टूक यह भी है कि यदि छोटी बचत पर ब्याज दर को अपेक्षा के अनुरूप किया जाये तो भारत की जिस आमदनी की आबादी है उसका इन छोटी बचतों के प्रति आकर्शण और बढ़ेगा।

सरकार की योजनाओं का लाभ फिलहाल आसान तो हुआ है। किसान सम्मान निधि इसका अच्छा उदाहरण है। बावजूद इसके छोटी बचत योजनाओं में ब्याज दर का कम होना बचत को प्रोत्साहित करने में उतना मददगार नहीं है। डिजिटल इण्डिया मिषन के अंतर्गत भुगतान तंत्र ने जहां डिजिटल अर्थव्यवस्था की नींव रखी वहीं आॅनलाइन लेनदेन को विस्तार मिला। छोटी बचत आम जीवन में उच्च प्रवाह का काम करता है। देष के 136 करोड़ की आबादी में अभी भी हर चैथा व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे है जिसके लिए बैंकिंग व्यवस्था भी दूर की कौड़ी है। मध्यम वर्ग एक ऐसे आर्थिक ताने-बाने से गुजरता है जिसमें कमाई की तुलना में खर्च कहीं अधिक रहता है। हालांकि यही वर्ग तमाम जददोजहद के बीच बचत को लेकर भी उत्सुक रहता है। चूंकि बहुतायत के पास बचत की राषि इतनी नहीं होती कि कोई बड़ा व्यवसाय खड़ा किया जाये ऐसे में बचत खाता, एफडी, एनएससी, पीपीएफ, किसान विकास पत्र और सुकन्या समृद्धि योजना जैसी सुविधा में एक प्रकार से निवेष करते हैं। हालांकि कई योजनाएं ऐसी हैं जिनसे दोहरा फायदा होता है। पीपीएफ और सुकन्या योजना से न केवल बचत को प्रोत्साहन मिलता है बल्कि इनकम टैक्स से भी छूट मिलती है। भारत गांवों का देष है ग्रामीण भारत में एक ऐसी व्यवस्था लाने की जरूरत है जहां किसान डिजिटल लेनदेन के अलावा बचत के प्रति उत्साहित हो। हालांकि किसानों के लिए बचत बड़ा षब्द है और यह तभी सम्भव है जब उसकी फसल की सही कीमत मिले। बचत एक अच्छे जीवन को अवसर देता है। गौरतलब है कि बचत में बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, रोजी-रोजगार व बुनियादी समस्याओं का हल छिपा है। 

यदि सरकार इन छोटी बचत की स्थिति को गम्भीरता से लेते हुए इन्हें सषक्त बनाने का प्रयास करें तो देष के नागरिकों में व्याप्त आर्थिक कठिनाईयों को कुछ हद तक समाप्त किया जा सकता है। खास यह भी होना चाहिए कि सरकार की बचत वाली कई योजनाएं जो अन्तिम व्यक्ति तक नहीं पहुंच पाती उसका पथ भी और समतल करने की आवष्यकता है। हालांकि मौजूदा समय में बैंकिंग सिस्टम से लोगों का अच्छा खासा जुड़ाव हो चुका है मगर बचत के प्रति चेतना का अभाव न रहे इस पर भी ठोस कदम होना चाहिए। ऋण लेना भी आसान हुआ है। सरकारी या निजी सभी भारतीय बैंक समय की मांग को देखते हुए अपना कायाकल्प किया है। देष के केन्द्रीय बैंक आरबीआई ने भी 4 जनवरी 2022 से फिनटेक विभाग स्थापित किया है जो बैंकिंग क्षेत्रों में न केवल तकनीक को बढ़ावा देना बल्कि चुनौतियों और अवसरों पर भी ध्यान केन्द्रित करेगा। इसमें कोई दुविधा नहीं कि बैंक तकनीकी तौर पर निरंतर बेहतर हो रहे हैं। दो टूक यह भी है कि बैंक कितने भी तकनीकी क्यों न हो जायें उनकी प्रभावषीलता और प्रासंगिकता खाताधारकों पर निर्भर है। ऐसे में देष के नागरिकों की आर्थिकी में उठान सम्भव होता है और बैंकिंग लेनदेन को सुचारू बनाने में उसका योगदान बना रहेगा। इन सभी का सरोकार बचत पर निर्भर है और बचत का सीधा सम्बंध कमाई के साथ-साथ खर्च की स्थिति और जमा राषि पर मिलने वाले ब्याज से भी है। फिलहाल बदलते दौर के साथ छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में बदलाव को लेकर सरकार कोई कदम उठायेगी ऐसी उम्मीद करना अतार्किक न होगा। 

  दिनांक : 24/06/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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