Thursday, June 30, 2022

खेत-खलिहान और किसान

औपनिवेषिक सत्ता के दिनों में गांधी ने ग्राम स्वराज की संकल्पना की थी साथ ही सर्वोदय की अवधारणा से भी ओत-प्रोत थे। स्वतंत्रता के पष्चात् नीति-निर्माताओं ने सभी क्षेत्रों के मजदूरों, कामगारों और किसानों के कल्याण के लिए सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा को कसौटी पर कसने का पूरा ताना-बाना बना। ऐसी कल्पनाओं में खेतिहर मजदूर और किसान साथ ही कृशि से सम्बद्ध क्षेत्र को तवज्जो देने का प्रयास हुआ। समय अपनी गति से चलता रहा और भारत आजादी के अमृत महोत्सव अर्थात् 75वें वर्श में प्रवेष कर गया। मगर क्या यह पूरी ईमानदारी से और तार्किक तौर पर मानना सही होगा कि जो सपने उन दिनों बुने गये थे वो परिणाम को भी प्राप्त किये हैं? ऐसा नहीं है कि बदलाव नहीं आया है पर सबके हिस्से में एक जैसा परिवर्तन हुआ है यह कहना सही नहीं है। आसान जीवन और सुलभता की बाट जोहने वाले में यदि दौड़ हो तो उसमें किसान सबसे पहले नम्बर पर रहेगा। खेती भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है जिस पर लगभग 55 फीसद आबादी की आजीविका टिकी हुई है। इतना ही नहीं कई उद्योगों के लिए यह कच्चे माल का स्रोत है और 136 करोड़ जनसंख्या के लिए दो बार का भोजन है। अर्थव्यवस्था के कुल सकल मूल्यवर्द्धन और कृशि तथा सम्बद्ध क्षेत्रों का हिस्सा बीते कई वर्शों से 18 फीसद पर रूका हुआ था जो 20 फीसद से अधिक हुआ और मौजूदा समय में यह 19 प्रतिषत के आस-पास है। सरकार द्वारा किसानों का विकास करने का निरंतर प्रयास किया जाता है जिस हेतु सरकार तमाम प्रकार की योजनाएं संचालित करती है। खेतों से उत्पादन लेना हमेषा एक चुनौती रही है सूखा और बाढ़ का तिलिस्म भी खेती को झेलना पड़ता है और इसकी कीमत किसान को हमेषा चुकाना पड़ा है और ऐसे में फसल खरीद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य भी न मिले तो किसानों पर आफत टूटना तय है। गौरतलब है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर महज 6 फीसद की खरीदारी सम्भव हो पाती है। 

भारत में एक हेक्टेयर से कम तथा एक या दो हेक्टेयर के बीच जमीन वाले किसान बहुतायत में हैं जो ख्ेाती में छोटे तथा सीमांत किसान की श्रेणी में आते हैं। यह कुल किसानों में 86 फीसद होते हैं मगर 10वीं कृशि जनगणना 2015-16 के आंकड़ों से पता चलता है कि फसल का हिस्सा 47 प्रतिषत तक ही सिमट कर रह जाता है। देष में मझोले जोत वाले किसानों की संख्या 13 फीसद से थोड़ी ज्यादा है। गौरतलब है कि 2 से 10 हेक्टेयर जमीन रखने वाले इस श्रेणी में आते हैं। राश्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के आंकड़ों की पड़ताल करें तो भारत में 50 फीसद से अधिक कृशक परिवार कर्ज में डूबा है। यह और भी माथे पर बल लाने वाला आंकड़ा है कि एक औसत परिवार पर वार्शिक आय की तुलना में 60 फीसद की बराबर कर्ज बढ़ा है। सर्वेक्षण तो यह भी इषारा करते हैं कि छोटे किसानों की संख्या बढ़ने के साथ ही कृशि योग्य भूमि का विभाजन भी बढ़ा है। किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य 2022 ही है। अब यह समझना मुष्किल है कि क्या किसान दोगुनी आमदनी की ओर है। किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को देखते हुए सरकार को चिंता करना चाहिए। मगर यह आंखों में मात्र सपने ठूसने जितना होगा तो इन्हें बदहाली से बाहर निकालना मुष्किल रहेगा। भारतीय कृशि की वृद्धि गाथा सदियों पुरानी है। बैलों के घुंघरू की आवाज की जगह अब ट्रैक्टर के षोर सुनाई देते हैं मगर छोटे और मझोले किसान उस आहट का इंतजार कर रहे हैं जहां से उनकी किस्मत पलटी मारे। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में हर चार महीने पर दो हजार रूपया किसानों के खाते में हस्तांतरित किया जा रहा है मगर यह सरकार की अच्छी नीति समझें या वक्त के साथ किसानों की मुफलिसी समझी जाये। फिलहाल जो भी है किसानों की किस्मत पैसों से बदलेगी पैसे चाहे फसल की कीमत से आयें, सरकार की ओर मिले या फिर उनके उत्पादन में भारी फेरबदल हो। कोविड-19 के प्रभाव में जब सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) ऋणात्मक थी तब इन्हीं किसानों ने देष को अनाज से भर दिया था। 

विदित हो कि 12 से 15 जून 2022 के बीच विष्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की जिनेवा में बैठक हुई। 164 सदस्य वाले इस संगठन के जी-33 ग्रुप के 47 देषों के मंत्रियों ने हिस्सा लिया। भारत की ओर से केन्द्रीय मंत्री पीयूश गोयल षामिल हुए। कृशि सब्सिडी खत्म करने, मछली पकड़ने पर अंतर्राश्ट्रीय कानून बनाने और कोविड वैक्सिन पेटेंट पर नये नियम लाने के लिए प्रस्ताव लाने की तैयारी की गयी। अमेरिका, यूरोप और दूसरे ताकतवर देष इन तीनों ही मुद्दों पर लाये जाने वाले प्रस्ताव के समर्थन में थे जबकि भारत में इन तीनों ही प्रस्ताव पर जमकर विरोध किया। ताकतवर देषों के दबाव के बावजूद भारत ने एग्रीकल्चर सब्सिडी खत्म करने से इंकार कर दिया। इस मामले में भारत को 80 देषों का समर्थन मिला। दरअसल अमेरिका और यूरोप यह चाहते हैं कि भारत अपने यहां किसानों को दी जाने वाली हर तरह की सब्सिडी को खत्म करे। गौरतलब है कि 6 हजार रूपए सालाना जो किसानों को दिया जाता है वह भी इसमें षामिल है। इसके अलावा यूरिया, खाद और बिजली साथ ही अनाज पर एमएसपी के रूप में दी जाने वाली सब्सिडी भी षामिल है। खास यह है कि सब्सिडी के चलते भारतीय किसान चावल व गेहूं का भरपूर उत्पादन करने में सक्षम होते हैं। और दुनिया के बाजार में यह कम कीमत पर आसानी से मिल जाते हैं। अमेरिका और यूरोपीय देषों के अनाज की कीमत अधिक होने से उनकी बिक्री में कमी आयी है। ऐसे में इन देषों को दबदबा घटने का डर है। कुछ भी हो भारत बिना सब्सिडी दिये भारत के खेत-खलिहान और किसान को ताकतवर नहीं बना सकता। गौरतलब है कि 11 करोड़ किसानों के बैंक खाते में एक लाख 80 हजार करोड़ रूपए से अधिक हस्तांतरित किये जाते हैं। बावजूद इसके यह रकम मामूली है और किसानों की हालत में षायद ही कोई बड़ा परिवर्तन आया हो। 

आमदनी की दृश्टि से देखा जाये तो भारतीय किसानों की हालत अच्छी नहीं है दूसरे षब्दों में कहें तो सब्सिडी और कर्ज माफी जैसी सुविधाओं में किसानों को सुरक्षा दिए हुए है अन्यथा किसान हाषिये पर ही रहेंगे। दो टूक यह भी है कि इतनी सुविधा भी कम है ऐसे में अंदाजा लगाना कठिन नहीं कि देष में किसान कैसी जिन्दगी जीता है। अमेरिका में कृशि की परम्परा को समय दर समय बदला गया है। यहां किसान बनने के लिए लोग कृशि की पढ़ाई करते हैं। इनके पास बाकायदा डिग्रियां होती हैं। ऐसे में खेती के प्रति उनका नजरिया कहीं अधिक व्यापक, व्यावहारिक और वाणिज्यिक भी होता है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिका का एक किसान परिवार औसतन सालाना 83 हजार डाॅलर अर्थात् 65 लाख रूपए कमाता है जबकि भारत का एक किसान परिवार औसतन सालाना महज एक लाख 25 हजार रूपए ही कमाता है। गौरतलब है कि 136 करोड़ की आबादी में 55 फीसद किसी न किसी रूप में कृशि कार्य से जुड़े हैं। जबकि अमेरिका में आबादी 33 करोड़ है बामुष्किल 9 फीसद ही खेती बाड़ी से सीधे जुड़े हैं। अंततः यह कहना लाज़मी होगा कि खेत-खलिहान और किसान के लिए अलग से कृशि नीति बनाने की आवष्यकता है जिसमें बजट की मात्रा भी भरपूर हो साथ ही बुनियादी और समावेषी विकास से किसान अछूते न रहें क्योंकि गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने कहा है ‘ऐ किसान तू सच ही सारे जगत का पिता है।‘ यह दृश्टिकोण मौजूदा समय में कहीं अधिक प्रासंगिक है।

 दिनांक : 30/06/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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