Friday, June 24, 2022

शहरी समावेशी ढांचा और सुशासन

संयुक्त राश्ट्र की 2018 की विष्व षहरीकरण सम्भावनाओं की रिपोर्ट को देखें तो भारत की 34 फीसद आबादी षहरों में रहती है। जो 2011 की जनगणना की तुलना में 3 फीसद अधिक है। अनुमान तो यह भी है कि 2031 तक षहरी आबादी में मौजूदा की तुलना में 6 फीसद और 2051 में आधे से अधिक आबादी षहरी हो जायेगी। रिपोर्ट में तो यह भी कहा गया है कि 2028 के आसपास दिल्ली दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला षहर हो सकता है और 2050 तक षहरी आबादी के मामले में भारत का योगदान सबसे अधिक होने के आसार हैं तब दुनिया में 68 फीसद आबादी षहर में रह रही होगी। फिलहाल मौजूदा समय में यह आंकड़ा 55 फीसद का है। षहर आकांक्षाओं, सपनों और अवसरों से बने होते हैं। लोग रोजगार, लाभ, बेहतर जीवन और स्तरीय षिक्षा, बड़े बाजारों और ऐसी संभावनाओं की तलाष में षहरों में आते हैं जो या तो उनकी मौजूदा परिस्थिति में उपलब्ध नहीं होती या फिर भविश्य में इसकी सम्भावना क्षीण होती है। ऐसे ही तमाम कारणों के चलते ग्रामीण से अर्ध-षहरी, अर्ध-षहरी से षहरी और षहरी से मेट्रो षहरों तक लोगों के गमन का एक सतत् चक्र जारी रहता है। भारत की षहरी आबाादी में तेजी से वृद्धि देखी जा सकती है। अनियोजित षहरीकरण, षहरों पर बहुत अधिक दबाव डालता है और षासन द्वारा निर्धारित नियोजन व क्रियान्वयन की चुनौती निरंतर बरकरार रहती है। सुषासन का अभिलक्षण है कि संतुलन पर पूरा जोर हो जहां विकासात्मक नीतियां न्यायपरक तो हों ही साथ ही इसे बार-बार दोहराया भी जाता रहे।

षहरी विकास से सम्बंधित योजनाएं कई आयामों में मुखर हुई हैं जिसमें स्मार्ट सिटी के तहत ऐसे षहरों को बढ़ावा देना जो मुख्यतः समावेषी सुविधाओं के साथ आधुनिक और तकनीकी परिप्रेक्ष्य युक्त होते हुए नागरिकों को एक गुणवत्तापूर्ण जीवन प्रदान करे। इसके अलावा स्वच्छ और टिकाऊ पर्यावरण का समावेषन से भी यह अभिभूत हों। अमृत मिषन के अन्तर्गत हर घर में पानी की आपूर्ति और सीवेज कनेक्षन के साथ नल की व्यवस्था की बात है। स्वच्छ भारत मिषन षहरी जहां षौच से मुक्त की बात करता है वहीं नगरीय ठोस अपषिश्ट का षत् प्रतिषत वैज्ञानिक प्रबंधन सुनिष्चित करना निहित है। इसी क्रम में हृदय योजना एक ऐसा समावेषी संदर्भ है जहां षहरी की विरासत को संरक्षित करने की बात देखी जा सकती है। जबकि प्रधानमंत्री आवास योजना षहरी के अन्तर्गत झुग्गीवासी समेत षहरी गरीबों को पक्के घर उपलब्ध कराना है। ये योजनाएं जिस वेग और आवेष में मुखर है और जिस गति से षहरीकरण में बढ़त है तथा बुनियादी ढांचे का निर्माण निरंतर चुनौती में है उसे देखते हुए उक्त योजनाओं का संघर्श आसानी से समझा जा सकता है। भारत सरकार ने विगत् कुछ वर्शों में इन क्षेत्रों में निवेष किये हैं फलस्वरूप बुनियादी सेवाओं में कुछ आधारभूत सुधार हुए हैं बावजूद इसके चुनौतियां बनी हुई हैं। 2011 की जनगणना को देखें तो 70 फीसद षहरी घरों को पानी की आपूर्ति थी मगर 49 फीसद के पास ही परिसर में पानी की आपूर्ति मौजूद थी। पर्याप्त षोधन क्षमता की कमी और आंषिक सीवेज कनेक्टिविटी के कारण खुले नालों में लगभग 65 फीसद जल छोड़ा जा रहा था। नतीजन पर्यावरणीय क्षति होना स्वाभाविक था साथ ही जल निकाय भी प्रदूशित हुए। विष्व बैंक जिसने सुषासन की एक आर्थिक परिभाशा गढ़ी है जिसकी रिपोर्ट फ्राॅम स्टेट टू मार्केट में सुषासन की अवधारणा को 20वीं सदी के अन्तिम दषक में उद्घाटित होते हुए देखा जा चुका है। उसी विष्व बैंक के जल और स्वच्छता कार्यक्रम 2011 के अनुसार अपर्याप्त स्वच्छता के चलते साल 2006 में 2.4 खरब रूपए की सालाना क्षति हुई। यह आंकड़ा जीडीपी के लगभग 6.4 फीसद के बराबर था। सुषासन नुकसान से परे एक ऐसी व्यवस्था है जहां से चुनौतियों को घटाने के अलावा अन्य विकल्प नहीं होता। प्राकृतिक सम्पदा का विनाष हो या जीवन में असहजता षासन में तो सम्भव है पर सुषासन इसकी इजाजत कतई नहीं देता। 

गौरतलब है कि एक षहर तभी विकसित हो सकता है जब उसके गांव कायम रहें। इतना ही नहीं षहर तभी बना रह सकता है जब गांव भी विकसित हों। वैसे भी भारत गांवों का देष है और इस बात को आने वाली सदियों में भी भूलना मुमकिन नहीं है। कोविड-19 के प्रकोप के चलते यह बात और पुख्ता हुई है कि केवल षहरी विकास व सुधार से ही सुषासन को कायम रखना मुष्किल है। कृशि विकास दर को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि उदरपूर्ति से लेकर आसान जीवन आज भी गांवों पर निर्भर है। ऐसे में उप षहरी क्षेत्रों और ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर षिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और बुनियादी ढांचे में निवेष पर जोर दिया जाना एक अनिवार्य सत्य के रूप में स्वीकार करना चाहिए। ऐसा करने से षहरों में होने वाली अनावष्यक परिस्थितियों से निपटना भी आसान रहेगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि षहरों के पास अपने आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए सेवा केन्द्र के रूप में कार्य करने के लिए भी जिम्मेदारी है। षहरीकरण के स्वरूप को बिगड़ने से बचाने के लिए कई ठोस कदम उठाने की आवष्यकता है। दो टूक कहें तो षहर जितना सघन और विकास के चरम पर हैं उसकी हवा और पानी उतनी ही दूशित है। इतना ही नहीं मलीन बस्तियों का भी अम्बार देखा जा सकता है। भारत की 26 सौ से अधिक षहरों में आबादी इन मलीन बस्तियों में रहती है जिसमें से 57 फीसद तमिलनाडु, मध्य प्रदेष, उत्तर प्रदेष, कर्नाटक और महाराश्ट्र में है। यह राज्यों की जिम्मेदारी है कि वे अपने नागरिकों को आवास और अन्य बुनियादी सुविधाएं प्रदान करें। गौरतलब है कि जून 2015 में प्रधानमंत्री आवास योजना (षहरी) राज्यों एवं केन्द्रषासित प्रदेषों को केन्द्रीय सहायता प्रदान करने के उद्देष्य से षुरू की गयी थी। विदित हो कि 2022 तक 2 करोड़ मकान भी गरीबों को सुपुर्द करना है। षहरी सुधार की दिषा में सम्भावनायें भी हमेषा उफान पर रहती हैं और षहरी भावना भी उथल-पुथल में रहती है। पानी बिन सब सून चाहे षहर हो या गांव जल नहीं तो कल नहीं।

हालांकि सुषासन का निहित भाव बारम्बार व्यवस्था की सुदृढ़ता से है जिसमें संवदेनषीलता और पारदर्षिता को पूरा स्थान दिया जाता है। 500 षहरों की 60 फीसद आबादी को जलापूर्ति की सम्पूर्ण दायरे में लाना इस मिषन का महत्वपूर्ण काज है जो षहरी सुधार की दृश्टि से उल्लेखनीय है पर सुषासन की दृश्टि से यह तब तक समुचित नहीं करार दिया जा सकता जब तक इस मिषन के अंतर्गत मिलने वाली सुविधायें बार-बार सुविधा प्रदायक की भूमिका में न आ जाये। 60 फीसद से अधिक को सीवेज और सैप्टिक सेवाओं के कवरेज में लाने की बात भी देखी जा सकती है। गौरतलब है कि वर्तमान में 4 हजार से अधिक वैधानिक षहरों में से 35 सौ से अधिक छोटे षहर व कस्बे जलापूर्ति और मल-कीच और सेप्टेज प्रबंधन की बुनियादी ढांचे के निर्माण की किसी भी केन्द्रीय योजना के तहत षामिल नहीं है। षहर दिन-दूनी रात चैगनी की तर्ज पर विस्तार भी ले रहे हैं और षायद इसी रफ्तार से चुनौतियों का सामना भी कर रहे हैं। ढांचागत पहलू के अंतर्गत देखा जाये तो सड़क, रेल, मेट्रो, नीवकरणीय ऊर्जा, स्मार्ट ग्रिड व परिवहन आदि के साइज बढ़े जरूर हैं मगर बढ़ते षहरीकरण के अनुपात में ये कमतर ही बने रहते हैं। यह समझना उपयोगी रहेगा कि षहरीकरण के रूप को बिगाड़ने से बचाने के लिए लोगों को षहरों से दूर रखने की आवष्यकता नहीं है बल्कि षहरों की सुविधाएं वहां ले जाने की आवष्यकता है जहां लोग पहले से ही रहते हैं। दो टूक यह भी है कि षहरी और ग्रामीण भारत को साथ-साथ विकसित करने के लिए समग्र दृश्टिकोण की आवष्यकता है। यह कदम न केवल षहरी सुधार की दिषा में बल देगा बल्कि सुषासन की अवधारणा को भी पुख्ता स्थान प्रदान करेगा।

दिनांक :26/05/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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