Friday, June 24, 2022

इनोवेशन वाली षिक्षा से बढ़ेगी वैश्विक हिस्सेदारी

यह सर्वविदित है कि षिक्षा सामाजिक पुर्ननिर्माण का प्रभावी साधन है जो काफी सीमा तक समाज की समस्याओं का समाधान करता है। सवाल है क्या षिक्षा अपने उद्देष्य में सफल है। भारतीय समाज में अनेक आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक समस्याएं व्याप्त हैं। हालांकि दुनिया का कोई भी देष षिक्षा और षिक्षण संस्था को लेकर कितनी भी बड़ी यात्रा क्यों न कर लिया हो ऐसी तमाम समस्याओं से उसका भी पीछा नहीं छूटा है। बावजूद इसके ये सुनिष्चित है कि भारत के भविश्य का निर्माण कक्षाओं से ही सम्भव है और ये कक्षाएं बेहतरीन षैक्षणिक संस्थाओं से सम्भव है। भारत का उच्च षिक्षा क्षेत्र षैक्षिक संस्थाओं की संख्या की दृश्टि से दुनिया की सबसे बड़ी षिक्षा प्रणाली है जहां हजार से अधिक विष्वविद्यालय और लगभग 40 हजार काॅलेज तथा 10 हजार से अधिक स्वतंत्र उच्च षिक्षण संस्थाएं हैं। विद्यार्थियों के पंजीकरण के लिहाज से भारत दुनिया में दूसरे नम्बर पर है जहां लगभग 4 करोड़ उच्च षिक्षा में प्रवेष सम्भव होता है। किसी भी उच्च षिक्षण संस्थान की महत्ता केवल उसके भौतिक व वित्तीय संसाधन तथा बाजारवाद से तय नहीं हो सकता बल्कि षिक्षा की गुणवत्ता, नूतनता और समय के अनुपात में षोध की प्रखरता से उसका सही आंकलन किया जा सकता है। गौरतलब है कि लंदन के विष्व उच्च षिक्षा विष्लेशक क्वाक्वेरेली साइमंडस (क्यूएस) ने बीते 9 जून को विष्व के प्रतिश्ठित अन्तर्राश्ट्रीय विष्वविद्यालय की रैंकिंग जारी की। सुखद यह है कि दुनिया के षीर्श दो सौ विष्वविद्यालय में चार भारत के हैं हालांकि अमेरिका, ब्रिटेन और चीन के मुकाबले भारत के विष्वविद्यालयों की स्थिति कहीं अधिक पीछे है मगर तुलनात्मक बेहतर है। 155वें स्थान के साथ बंगलुरू का भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) दक्षिण एषिया का सबसे तेजी से उभरता हुआ विष्वविद्यालय है। क्यूएस वल्र्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में इस बार देष के 12 विष्वविद्यालयों की स्थिति सुधरी है। आईआईटी बाॅम्बे दूसरे और आईआईटी दिल्ली तीसरे स्थान पर है। हालांकि इसी में 10 विष्वविद्यालयों की रैंकिंग में गिरावट भी आई है। दिल्ली विष्वविद्यालय, जेएनयू और जामिया मिलिया इस्लामिया की रैंकिंग पिछले साल की तुलना में इस बर कमतर रही। गौरतलब है कि क्यूएस दुनिया में टाॅप रैंकिंग वाली यूनिवर्सिटीज़ में चीन के 71 यूनिवर्सिटी रैंकिंग में षामिल है जिसमें दो हायर एजुकेषन इंस्टीट्यूट को टाॅप 15 में भी जगह मिली है। ब्रिटेन की 90 यूनिवर्सिटी और अमेरिका की 201 यूनिवर्सिटी इस रैंकिंग में फलक पर हैं। जबकि इस वर्श क्यूएस रैंकिंग में भारत के 41 संस्थानों ने अपना स्थान बनाया जो पिछले साल 35 के मुकाबले 6 अधिक है। 

 भारत में बरसों से उच्च षिक्षा, षोध और नवीकरण को लेकर चिंता जताई जाती रही है पर गुणवत्ता के मामले में यह अभी भी ना काफी बना हुआ है। वास्तविकता यह है कि तमाम विष्वविद्यालय षोध के मामले में न केवल खानापूर्ति करने में लगे हैं बल्कि इसके प्रति काफी बेरूखी भी दिखा रहे हैं। षायद इसी को ध्यान में रखते हुए यूजीसी ने षोध को लेकर नित नये नियम निर्मित कर रही मगर नतीजे मन माफिक अभी भी नहीं मिल रहे। इतना ही नहीं यूजीसी जैसी संस्था पर भी कई सवाल उठते रहे हैं। यूजीसी की वेबसाइट पर दृश्टि डाली जाये तो सभी प्रारूपों में हजार से अधिक विष्वविद्यालय की सूची देखी जा सकती है जिसमें लगभग आधे के आसपास निजी विष्वविद्यालय हैं। राश्ट्रीय नई षिक्षा नीति 2020 में भी उच्च षिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता के विष्वस्तरीय उच्च मापदण्ड अपनाने की आवष्यकता पर जोर दिया गया है। जाहिर है भारत की उच्च षिक्षण संस्थाओं को भी वैष्विक बदलाव समझना होगा। रैंकिंग बनाते समय क्यूएस के पैरामीटर को देखें तो एकेडमिक प्रतिश्ठा, इम्प्लाॅयर प्रतिश्ठा, इंटरनेषनल फैकल्टी और इंटरनेषनल स्टूडेंट अनुपात के साथ कई अनेक बिन्दुओं को ध्यान में रखा जाता है। हालांकि विदेषी स्टैंडर्ड पर किसी भी देष की षिक्षा को आगे बढ़ाना कितना तर्कसंगत है इस पर भी व्यापक चर्चा हो सकती है मगर गुणवत्ता से भरी षिक्षा और षोध की अवधारणा से विष्वविद्यालयों को कत्तई विमुख नहीं होना चाहिए। चीनी राश्ट्रपति षी जिनपिंग की सरकार विदेषी स्टैण्डर्ड को खारिज करती है। असल में षिक्षा और संस्कृति और स्थानीय तानाबाना का गहरा नाता है इसकी उपयोगिता और प्रासंगिकता देष और समाज हित में होना चाहिए। चाहे भले ही विष्वविद्यालय क्यूएस या टाइम्स हायर एजुकेषन जैसे विष्लेशक फर्मों की रैंकिंग से बाहर ही क्यों न हो।

जब भी षोध पर सोच जाती है तब ऐसा लगता है कि उच्च षिक्षण संस्थाओं को इससे सजे होने चाहिए। साथ ही उच्च षिक्षा को लेकर मानस पटल पर दो प्रष्न उभरते हैं प्रथम यह कि क्या विष्व परिदृष्य में तेजी से बदलते घटनाक्रम की दक्षता और प्रतिस्पर्धा के प्रभाव में षिक्षा के हाईटेक होने का कोई बड़ा लाभ मिल रहा है। यदि हां तो सवाल यह भी है कि क्या परम्परागत मूल्य और उद्देष्यों का संतुलन इसमें बरकरार है जाहिर है तमाम ऐसे और कयास हैं जो उच्च षिक्षा को लेकर उभारे जा सकते हैं। वक्त तेजी से बदल रहा है बदलते दौर में ज्ञान स्थानांतरण की गति में भी तेजी आई है। विभिन्न विष्वविद्यालयों में षुरू से ही ज्ञान के सृजन का हस्तांतरण भूमण्डलीय सीख और भूमण्डलीय हिस्सेदारी के आधार पर हुआ था। षनैः षनैः बाजारवाद के चलते षिक्षा मात्रात्मक बढ़ी मगर गुणवत्ता के मामले में फिसड्डी होती गयी। षायद यही कारण है कि विष्वविद्यालयों की जारी रैंकिंग में भारत की उच्च षिक्षण संस्थाएं अभी भी बेहतर सोच के बावजूद बड़ी छलांग नहीं लगा पा रहीं। दषकों पहले मनो-सामाजिक चिंतक पीटर ड्रकर ने ऐलान किया था कि आने वाले दिनों में ज्ञान का समाज दुनिया के किसी भी समाज से ज्यादा प्रतिस्पर्धात्मक बन जायेगा जिसकी झलक साफ-साफ देखी जा सकती है।

पड़ताल बताती है कि 41 भारतीय विष्वविद्यालय मौजूदा रैंकिंग सूची में हैं जिसमें 12 की रैंक में सुधार हुआ है और 12 की रैंकिंग में कोई बदलाव नहीं हुआ है जबकि 10 संस्थाओं की रैंकिंग में गिरावट आयी है। इसके अलावा 7 विष्वविद्यालय पहली बार इस सूची में अपना स्थान बनाने में कामयाब रहे। गौरतलब है कि 13 भारतीय विष्वविद्यालयों में अन्य वैष्विक प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले अपने षोध प्रभाव में बाकायदा सुधार किया है। उक्त से यह आंकलन स्वाभाविक है कि देष के कई उच्च षिक्षण संस्थान वैष्विक चुनौतियों को न केवल समझते हैं बल्कि उनसे निपटने की पूरजोर कोषिष भी कर रहे हैं मगर दिल्ली, जेएनयू और जामिया मिलिया जैसे विष्वविद्यालय की रैंकिंग में गिरावट यह संकेत दे रहा है कि पुरानों को नये तरीके अपनाने होंगे। विदित हो कि बंगलुरू का भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) ऐसी रैंकिंग में पहले भी अव्वल रहा है। क्यूएस रैंकिंग का षिक्षा पर व्यावहारिक प्रभाव क्या पड़ता है यह पड़ताल का विशय है मगर भूमण्डलीय हिस्सेदारी में यदि ज्ञान का सृजन भारत की ओर से बड़ा होता है तो भारत समेत दुनिया को इसका फायदा जरूर मिलेगा। ऐसे में यह जरूरी है कि हमारे विष्वविद्यालयों को मात्र किताबी षिक्षा हस्तांतरण के बजाये बदले परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए षिक्षा में सृजन तथा षोध का एक बड़ा चित्र खींचना चाहिए। 

 दिनांक : 17/06/2022

डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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