Thursday, December 30, 2021

दोगुनी आय के कितने समीप किसान

पहली बार 28 फरवरी 2016 को उत्तर प्रदेष के बरेली में एक किसान रैली को सम्बोधित करते हुए औपचारिक तौर पर प्रधानमंत्री ने यह घोशणा की थी कि 2022 में जब देष 75वां गणतंत्र दिवस मना रहा होगा तो किसानों की आय दोगुनी हो चुकी होगी। जाहिर है इस लिहाज से किसान दोगुनी आय के समीप खड़े हैं मगर हकीकत और फसाने में क्या सही है यह पड़ताल का विशय है। देष की कुल श्रम षक्ति का लगभग 55 प्रतिषत भाग कृशि तथा इससे सम्बन्धित उद्योग धन्धों से अपनी आजीविका कमाता है। विदेषी व्यापार का अधिकांष भाग कृशि से ही जुड़ा हुआ है। उद्योगों को कच्चा माल कृशि से ही प्राप्त होता है। इतने ताकतवर कृशि के किसान ओलावृश्टि या बेमौसम बारिष का एक थपेड़ा नहीं झेल पाते ऐसा इसलिए क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था कच्ची मिट्टी से पक्की की ओर जा ही नहीं पा रही है। बीते 7 दषकों में जो हुआ उसे देखते हुए यह कहना सही होगा कि चाहे केन्द्र हो या राज्यों की सरकारें कृशि की तबियत ठीक करने का बूता पूरी तरह तो इनमें नहीं है। मौजूदा समय में लाये गये तीनों कृशि कानूनों को भी आमदनी का अच्छा जरिया बताया जा रहा है। हालांकि इस कानून के विरोध में नवम्बर 2020 से ही किसान दिल्ली की सीमा पर डटे हुए हैं। सरकार और किसानों के बीच एक दर्जन बार बातचीत भी हो चुकी है मगर सरकार कानून वापस लेने के पक्ष में नहीं हैं और किसान इससे कम में तैयार नहीं है। हालांकि किसानों की न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी पर कानून की मांग कहीं से नाजायज नहीं लगती। गौरतलब है कि किसानों की आय दोगुनी करने वाले वह करिष्माई वर्श 2022 मुहाने पर खड़ा है और यही वर्श आजादी की 75वीं वर्शगांठ का भी है जिसके लिये 13 अप्रैल 2016 को 1984 बैच के आईएएस अधिकारी डाॅ0 अषोक दलवाई के नेतृत्व में डबलिंग फाॅर्मर्स कमेटी का गठन किया गया था। अब इस वायदे के पांच साल पूरे होने वाले हैं मगर सरकार ने यह अब तक नहीं बताया कि किसानों की आय कितनी बढ़ गयी है। 

वित्त वर्श 2018-19 में दो हेक्टेयर से कम जमीन वाले 12 करोड़ से अधिक लघु और सीमांत किसानों की आर्थिक मदद के लिए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की योजना षुरू की गयी जिसके चलते प्रति चार माह में किसानों के खाते में 2 हजार रूपए सीधे भेजे जाते हैं। डिजिटल तकनीक से भी किसानों को जोड़ा गया है। किसानों के जीवन में बड़ा बदलाव तब संभव जब उपज की कीमत समुचित मिले। इसी को देखते हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को किसान गारंटी कानून के रूप में चाहता है। कृशि यंत्रिकरण, उत्पादन लागत घटाने, कृशि बाजार में लाभकारी संषोधन और फसल की सही कीमत से कृशक समृद्ध हो सकेगा। हो सकता है कि सरकार के कानून कुछ हद तक किसानों के लिए सही हों पर जिस तरह भरोसा टूटा है उससे संषय गहरा गया है। फिलहाल कृशि विकास और किसान कल्याण भले ही सरकारों की मूल चिंता रही हो पर आज भी किसान को अपनी बुनियादी मांग को लेकर सड़क पर उतरना ही पड़ता है। अर्थषास्त्रियों का मानना है कि कृशि क्षेत्र में लगे करोड़ों लोगों की आय में यदि इजाफा हो जाय तो किसान और कृशि दोनों की दषा बदल सकती है। यह आंकड़ा माथे पर बल ला सकता है कि अमेरिका में किसान की सालाना आय भारतीय किसानों की तुलना में 70 गुना से अधिक है। जिन किसानों के चलते करोड़ों का पेट भरता है वही खाली पेट रहें यह सभ्य समाज में बिल्कुल नहीं पचता। भारत में किसान की प्रति वर्श आय महज़ 81 हजार से थोड़े ज्यादा है जबकि अमेरिका का एक किसान एक माह में ही करीब 5 लाख रूपए कमाता है। आंकड़ें यह भी स्पश्ट करते हैं कि भारत का किसान गरीब और कर्ज के बोझ के चलते आत्महत्या का रास्ता क्यों चुनता है। किसानों की समस्या इतनी पुरानी है कि कई नीति निर्धारक इस चक्रव्यूह में उलझते तो हैं पर उनके लिए षायद लाइफ चेंजर नीति नहीं बना पा रहे हैं। हां यह सही है कि सत्ता के लिए गेमचेंजर नीति बनाने में वे बाकायदा सफल हैं।

अगस्त 2018 में राश्ट्रीय कृशि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) द्वारा नफीस षीर्शक से एक रिपोर्ट जारी किया गया, जिसमें एक किसान परिवार की वर्श 2017 में कुल मासिक आय 8,931 रूपए बतायी गयी। बहुत प्रयास के बावजूद नाबार्ड की कोई ताजा रिपोर्ट नहीं मिल पायी परन्तु जनवरी से जून 2017 के बीच किसानों पर जुटाये गये इस आंकड़े के आधार पर इनकी हालत समझने में यह काफी मददगार रही है। यही रिपोर्ट यह दर्षाता है कि भारत में किसान परिवार में औसत सदस्य संख्या 4.9 है। इस आधार पर प्रति सदस्य आय उन दिनों 61 रूपए प्रतिदिन थी। दुनिया में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में षुमार भारत का असली चेहरा देखना हो तो किसानों की सूरत झांकनी चाहिए। जब राज्यों की स्थिति पर नजर डाली जाती है तो किसानों की आय में गम्भीर असमानता दिखाई देती है। सबसे कम मासिक आय में उत्तर प्रदेष, झारखण्ड, आन्ध्र प्रदेष, बिहार, उड़ीसा समेत पष्चिम बंगाल और त्रिपुरा आदि षामिल हैं। जहां किसानों की मासिक आय 8 हजार से कम और 65 सौ से ऊपर है जबकि यही आय क्रमषः पंजाब और हरियाणा में 23 हजार और 18 हजार से अधिक है। असमानता देखकर यह प्रष्न अनायास मन में आता है कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का जो परिप्रेक्ष्य लेकर केन्द्र सरकार चल रही है वह कहां, कितना काम करेगा। पंजाब और उत्तर प्रदेष के किसानों की आय में अंतर किया जाये तो यह साढ़े तीन गुने का है। सवाल यह है कि क्या दोगुनी आय के साथ अंतर वाली खाई को भी पाटा जा सकेगा। खास यह भी है कि आर्थिक अंतर व्यापक होने के बावजूद पंजाब और उत्तर प्रदेष किसानों की आत्महत्या से मुक्त नहीं है। इससे प्रष्न यह भी उभरता है कि किसानों को आय तो चाहिए ही साथ ही वह सूत्र, समीकरण और सिद्धान्त भी चाहिए जो उनके लिए लाइफचेंजर सिद्ध हो। जिसमें कर्ज के बोझ से मुक्ति सबसे पहले जरूरी है। 

खेती के लिये किसान खूब कर्ज ले रहे हैं यही कारण है कि वित्त वर्श 2020-21 के दौरान नाबार्ड द्वारा बांटा गया लोन 25 फीसद बढ़कर 6 लाख करोड़ रूपए तक पहुंच गया। नाबार्ड ने अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा है कि इन बांटे गये ऋण में से आधा हिस्सा उत्पादन और निवेष से जुड़ा है। पहले से कमाई का कम होना और कर्ज का लगातार बढ़ता बोझ किसानों पर दोहरी मार है हालांकि सरकार ऋण माफी को लेकर भी सरकार कभी-कभार राहत की बात कर देती है मगर अच्छी बात तब होगी जब किसान आत्मनिर्भर बने। वैसे देखा जाये तो कमाई के लिहाज़ से इतने कम पैसे में परिवार का भरण-पोशण करना कैसे सम्भव है। इसके अलावा कर्ज की अदायगी भी करनी है, बच्चों को भी पढ़ाना है और विवाह-षादी के खर्च भी उठाने हैं। इन्हीं तमाम विवषताओं के चलते आत्महत्या को भी बल मिला है। अब सवाल है कि दोश किसका है किसान का या फिर षासन का। राजनीतिक तबका किसानों से वोट ऐंठने में लगी रही जबकि विकास देने के मामले में सभी फिसड्डी सिद्ध हुए हैं। कौन सी तकनीक अपनाई जाय कि किसानों का भला हो। खाद, पानी, बिजली और बीज ये खेती के चार आधार हैं। फिलहाल आय दोगुनी वाला साल 2022 समीप है और लाख टके का सवाल यह है कि इस मामले में सरकार कहां खड़ी है। 

दिनांक : 9 अक्टूबर, 2021



डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

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