Thursday, December 30, 2021

समावेशी विकास को चुनौती देता भुखमरी सूचकांक

वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2021 एक बार फिर फलक पर है और 116 देशों में भारत पिछले साल की तुलना में 7 पायदान नीचे जाते हुए 101वें स्थान पर है। यह तस्वीर उस समस्या को उजागर कर रही है जिससे निपटने के लिए समावेषी विकास के दर्जनों कषीदे गढ़े गये और 80 करोड़ से अधिक जनमानस को मुफ्त अनाज बांटने का दावा किया गया। बेषक देष की सत्ता पुराने डिजाइन से बाहर निकल गयी हो मगर दावे और वायदे का परिपूर्ण होना अभी दूर की कौड़ी है। विष्व बैंक का कुछ समय पहले यह कहना कि 1990 के बाद अब तक भारत अपनी गरीबी दर को आधे स्तर पर ले जाने में सफल रहा यह संदर्भ देष के मनोबल बढ़ाने के काम आ सकता है पर हालिया ग्लोबल हंगर रिपोर्ट 2021 उम्मीदों पर पानी फेर रही है। गौरतलब है कि पिछले साल 107 देषों के लिए की गयी रैंकिंग में भारत 94वें पायदान पर है। रिपोर्ट के अनुसार 27.2 के स्कोर के साथ भारत भूख के मामले में गम्भीर स्थिति में था। यह उसी समय पता चल चुका था। अब तो 2021 में यह स्कोर बढ़कर 38.8 हो गया है जबकि 2019 में भारत का स्कोर 30.3 था। यहां बताते चलें चार संकेतकों के मूल्यों के आधार पर ग्लोबल हंगर इंडेक्स 100 बिन्दु पैमाने पर भूख का निर्धारण करता है। जहां 0 सबसे अच्छा स्कोर है और 100 को सबसे खराब माना जाता है। बड़े मुद्दे क्या होते हैं और क्या होती हैं बड़ी रणनीतियां। नीतियां बनती हैं, लागू होती हैं और उनका मूल्यांकन भी किया जाता है पर नतीजे इस रूप में हों तो हैरत होती है। सत्तासीन भी बहुत कुछ करने में षायद सफल नहीं होते इसकी एक बड़ी वजह बड़े एजेण्डे हो सकते हैं। सुषासन, षासन की वह कला है जिसमें सर्वोदय और अंत्योदय जैसे रहस्य छुपे हैं जो स्वयं में लोक विकास की कुंजी है।

सामाजिक-आर्थिक उन्नयन में सरकारें खुली किताब की तरह रहें और देष की जनता को दिल खोलकर विकास दें ऐसा कम ही रहा है। मानवाधिकार, सहभागी विकास और लोकतांत्रिकरण का महत्व सुषासन की सीमाओं में आते हैं जबकि गरीबी, भुखमरी और बुनियादी समस्याएं षासन का पलीता लगाते हैं। अगर देष में गरीबी रेखा से लोग ऊपर उठ रहे हैं तो भुखमरी के कारण देष फिसड्डी क्यों हो रहा है यह भी लाख टके का सवाल है। हालांकि कोविड-19 के चलते अर्थव्यवस्था बेपटरी हुई और गरीबी बादस्तूर जारी रही। सरकारी आंकड़े तो नहीं हैं मगर प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट देखें तो स्पश्ट है कि कोरोना के इस कालखण्ड में गरीबों की संख्या बढ़ी है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स की पूरी पड़ताल यह बताती है कि भुखमरी दूर करने के मामले में मौजूदा मोदी सरकार मनमोहन सरकार से मीलों पीछे चल रही है। 2014 में भारत की रैंकिंग 55 हुआ करती थी जबकि साल 2015 में 80, 2016 में 97, 2017 में यह खिसक कर 100वें स्थान पर चला गया और 2018 में तो यही रैंकिंग 103वें स्थान पर रही। 2019 की रैंकिंग में भारत का स्थान 117 देषों में 102 पर था। अब लगभग स्थिति वहीं पहुंच गयी है। हालांकि 2020 में स्थिति थोड़ी सुधरी हुई दिखाई देती है पर 2021 के इंडेक्स पर कोरोना की काली छाया पड़ती दिखाई देती है। 

वैष्विक निर्धनता आंकलन 1970 के दषक में प्रारम्भ हुआ। रणनीतिकारों ने अत्यंत निर्धन विकासषील देषों के राश्ट्रीय निर्धनता रेखा के आधार पर अन्तर्राश्ट्रीय निर्धनता रेखा के लिए षोध किया। निर्धनता के समग्र आंकड़ों को मापने हेतु जिन देषों ने बहुआयामी निर्धनता सूचकांक को अपनाया उनमें से सर्वाधिक लाभ भारत को हुआ कहा जाता है। साल 2019 तक की जानकारी को देखें तो निर्धनता में तेजी से गिरावट भारत में देखी जा सकती है पर कोविड-19 के चलते निर्धनता कहीं न कहीं फिर एक बार मुखर हो रही है। निर्धनता, भुखमरी का एक बड़ा कारण है और इन दोनों का कारण बेरोज़गारी है और व्याप्त बेरोज़गारी यह संकेत करती है कि नीति-निर्माताओं ने लोगों को जिस पैमाने पर सषक्त करना चाहिए वैसा नहीं किया। ऐसे में सुषासन का पैमाना किसी भी तरह से बड़ा नहीं हो सकता। देष बदल रहा है, चुनौतियां अलग रास्ता अख्तियार कर रही हैं एक ओर डिजिटल इण्डिया और न्यू इण्डिया की बात होती है तो दूसरी तरह गरीबी और भुखमरी सीना ताने खड़ी हैं। लोक विकास की कुंजी सुषासन भी इसी प्रकार की हिस्सों में बंट गया है। ग्रामीण क्षेत्र की राहें अभी भी पथरीली हैं हालांकि षहरों के बाषिंदे भी कुछ इसमें षामिल हैं। सरकार यह जोखिम लेने में पीछे है कि बदहालों का कायाकल्प हर हाल में करेगी। किसानों की भी स्थिति अच्छी नहीं है। कोरोना के इस कालखण्ड में अन्नदाताओं ने अपनी भूमिका बड़ी पारदर्षी तरीके से निभाई है। सब कुछ ठप्प हुआ पर भोजन को लेकर के संकट नहीं पैदा होने दिया मगर उनका क्या जो गरीबी और भुखमरी में पहले थे और कोरोना उनके लिए दोहरी मार थी। कृशि क्षेत्र और उससे जुड़ा मानव संसाधन भूखा, प्यासा और षोशित महसूस करेगा तो सुषासन बेमानी होगा।

गौरतलब है 1989 की लकड़ावाला समिति की रिपोर्ट में गरीबी 36.1 फीसद थी। तब विष्व बैंक भारत में यही आंकड़ा 48 फीसद बताता था। मौजूदा समय में हर चैथा व्यक्ति अभी भी इसी गरीबी से जूझ रहा है। रिपोर्ट में था कि 2400 कैलोरी ऊर्जा ग्रामीण और 2100 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त करने वाले लोग गरीबी रेखा के ऊपर हैं। गौरतलब है कि 1.90 डाॅलर यानी लगभग 2 डाॅलर प्रतिदिन कमाने वाला गरीबी रेखा के नीचे नहीं है। यह तुलना कुछ वर्श पहले तय हुई थी। अब समझने वाली बात यह है कि रोटी, कपड़ा, मकान, षिक्षा, चिकित्सा जैसी जरूरी आवष्यकताएं क्या इतने में पूरी हो सकती हैं। जाहिर है देष को गरीबी से ऊपर उठाने के लिए रास्ता चैड़ा करना होगा और इसके लिए सुषासन ही बेहतर विकल्प है। देखा जाये तो भारत भुखमरी के मामले में नेपाल, पाकिस्तान व बांग्लादेष आदि से भी कमजोर सिद्ध हो रहा है। साफ है कि भुखमरी से निपटने में भारत को बेहतर प्रदर्षन करने की आवष्यकता है। पिछल साल की रिपोर्ट में देखें तो भारत की करीब 14 फीसद जनसंख्या कुपोशण की षिकार है। इससे भी स्पश्ट होता है कि सुषासन जिस पैमाने पर गढ़ा जाना है अभी वहां पहुंच बनी नहीं है। गौरतलब है कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स में विष्व के भिन्न-भिन्न देषों में खान-पान की स्थिति की विस्तृत जानकारी दी जाती है और इस इंडेक्स में यह देखा जाता है कि लोगों को किस प्रकार का खाद्य पदार्थ मिल रहा है तथा उसकी गुणवत्ता तथा मात्रा कितनी है और क्या कमियां हैं। फिलहाल समग्र संदर्भ यह दर्षाते हैं कि समस्याएं बड़े रूप में व्याप्त हैं। भारत एक बड़ी जनसंख्या वाला देष है और ऐसी समस्याओं को हल करने में बड़े समय और संसाधन की आवष्यकता लाज़मी है पर 7 दषक इसमें खपाने के बाद भी जो परिणाम निकले हैं वह संतोशजनक नहीं कहे जा सकते। ऐसे में षासन यदि स्वयं को बेहतर और मजबूत सुषासन की कसौटी पर ले जाना चाहता है तो गरीबी और भुखमरी से मुक्ति पहली प्राथमिकता हो। 

 दिनांक :19 अक्टूबर, 2021



डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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