विकास प्रषासन का मुख्य विशय विकासात्मक गतिविधियां होती हैं जबकि कौषल विकास हुनर का वह आयाम है जो विकास के प्रषासन को ही परिभाशित करता है। जब विकास का प्रषासन जमीन पर उतरता है तो सुषासन की पटकथा लिखी जाती है। संदर्भ निहित परिप्रेक्ष्य यह भी है कि कौषल विकास के लिये एड़ी-चोटी का जोर पहले से अब के बीच जितना भी लगाया जा रहा है वह नाकाफी है, जबकि कोरोना प्रभाव के चलते इसकी मुष्किलें तुलनात्मक बढ़ी ही हैं। कोविड-19 महामारी ने कौषल विकास के क्षेत्र में अन्तर्राश्ट्रीय सहयोग की आवष्यकता को मानो बढ़ा दिया हो। भारत जिस पैमाने पर युवाओं का देष है यदि उसी आंकड़े पर कौषल विकास से युक्त देष को खड़ा करना है तो पेषेवर प्रषिक्षण और कौषल विकास कार्यक्रम बाजार की मांग की अनुपात में विकसित करना ही होगा। सुषासन की धारा में कौषल विकास की विचारधारा उतनी ही प्रासंगिक है जितना कि ईज़ आॅफ लिविंग के लिये सरकार का बेहतरीन सुविधा प्रदायक होना। लोक प्रवर्धित अवधारणा को मजबूत करने के लिये कौषल विकास को तुलनात्मक अधिक वृहद् बनाने के साथ पहुंच भी आसान करनी होगी। बाजार देना होगा साथ ही संरचनात्मक विकास के रास्ते चैड़े करने होंगे ताकि कौषल से युक्त को विकास की राह मिले और देष को उनके हिस्से का बचा हुआ सुषासन। कौषल विकास का अभिप्राय युवाओं को हुनरमंद बनाना ही नहीं बल्कि उन्हें बाजार के अनुरूप तैयार करना भी है। आंकड़े बताते हैं कि इस दिषा में बरसों से जारी कार्यक्रम के बावजूद महज 5 फीसद ही कौषल विकास कर्मी भारत में हैं जबकि दुनिया के अन्य देषों की तुलना में यह बहुत मामूली है। चीन में 46 फीसद, अमेरिका में 52, जर्मन में 75, दक्षिण कोरिया में 96 और मैक्सिको जैसे देषों में भी 38 प्रतिषत का आंकड़ा देखा जा सकता है। देष की विषाल युवा आबादी को कौषल प्रषिक्षण देकर रोजगार उपलब्ध कराने के लिये साल 2015 में स्किल इण्डिया मिषन की षुरूआत की गयी। जमीनी स्तर पर कुषल मानव षक्ति के निर्माण पर कौषल विकास योजना एक बड़ी आधारषिला थी जिसके तहत हर साल कम से कम 24 लाख युवाओं को कुषलता का प्रषिक्षण देने का लक्ष्य रखा गया पर महज 25 हजार कौषल विकास केन्द्र से क्या यह लक्ष्य पाया जा सकता है जिस पर व्यापक पैमाने पर बीते डेढ़ वर्शों में कोविड-19 की मार भी पड़ चुकी है। वैसे देखा जाये तो 6 साल पहले कौषल विकास केन्द्रों की संख्या केवल 15 हजार थी जो पहले भी कम थी और जनसंख्या के लिहाज से और कौषल विकास की रफ्तार को देखते हुए अभी भी कम ही है।
सुषासन की परिपाटी भले ही 20वीं सदी के अंतिम दषक में परिलक्षित हुई हो पर इसकी उपस्थिति सदियों पुरानी है। बार-बार अच्छा षासन ही सुषासन है जो सभी आयामों में न केवल अपनी उपस्थिति चाहती है बल्कि लोक कल्याण के साथ पारदर्षिता और संवेदनषीलता को संजोने का भी यह प्रयास करती है। षासन हो या प्रषासन यदि उसमें इन तत्वों के अतिरिक्त खुलेपन का अभाव तो सुषासन दूर की कौड़ी होती है। कौषल विकास को लेकर के चिंतायें दषकों पुरानी हैं। मगर हालिया परिप्रेक्ष्य देखें तो प्रधानमंत्री कौषल विकास योजना को 2015 में लाॅन्च किया गया था जिसका उद्देष्य ऐसे लोगों को प्रषिक्षण देना था जो कम षिक्षित हैं या स्कूल छोड़कर घर में विश्राम कर रहे हैं। जाहिर है इस योजना के अंतर्गत ऐसे लोगों के कौषल का विकास करके उनकी योग्यता के अनुपात में काम पर लगाना था। हालांकि इसके लिये ऋण की सुविधा भी दी जाती है। ऐसा इसलिए ताकि अधिक से अधिक इसका लाभ उठा सके। इसके लिये बाकायदा तीन, छः व एक साल के लिये रजिस्ट्रेषन किया जाता है और पाठ्यक्रम की समाप्ति के साथ प्रमाणपत्र दिये जाते हैं जिसकी मान्यता पूरे देष में होती है। फरवरी 2021 में प्रारम्भ पंजीकृत की प्रक्रिया के अंतर्गत 8 लाख नौजवानों को प्रषिक्षित किये जाने का लक्ष्य रखा गया है। सुषासन और कौषल विकास एक सहगामी व्यवस्था है। एक के बेहतर होने से दूसरे का बेहतरीन होना सुनिष्चित है। गौरतलब है कि सुषासन विष्व बैंक द्वारा दी गयी एक ऐसी आर्थिक परिभाशा है जो राज्य से बाजार की ओर चलने की एक संस्कृति लिये हुए है। आर्थिक न्याय सुषासन की खूबसूरत अवधारणा है जिसे 24 जुलाई 1991 में आयी उदारीकरण के बाद पोशित होते देखा जा सकता है। सारगर्भित पक्ष यह भी है कि कौषल विकास को लेकर सरकारें लम्बे समय से काम करती आ रही हैं पर इसका असल पक्ष उतना चमकदार नहीं दिखता है।
असल में कौषल विकास के मामले में भारत में बड़े नीतिगत फैसले या तो हुए ही नहीं यदि हुए भी तो संरचनात्मक और कार्यात्मक विकास के स्तर पर पहुंच पूरी नहीं हुई। यदि ऐसा होता तो 136 करोड़ के देष में और 65 फीसद युवाओं के बीच केवल 25 हजार कौषल विकास केन्द्र न होते। आंकड़े यह दर्षाते हैं कि चीन में पांच लाख, जर्मनी और आॅस्ट्रेलिया में एक-एक लाख से अधिक कौषल विकास संस्थाएं हैं। दक्षिण कोरिया जैसे कम जनसंख्या वाले छोटे देष में भी इतने ही केन्द्र देखे जा सकते हैं। चीन में तीन हजार से अधिक कौषलों के बारे में प्रषिक्षण दिया जाता है। भारत में इसकी मात्रा भी सीमित दिखती है। स्किल इण्डिया मिषन के अंतर्गत बेरोजगार युवाओं को कंस्ट्रक्षन, इलेक्ट्राॅनिक्स एवं हार्डवेयर, फूड प्रोसेसिंग और फिटिंग, हैंडीक्राॅफ्ट, जेम्स एवं ज्वेलरी ओर लेदर टेक्नोलाॅजी जैसे करीब 40 तकनीकी क्षेत्र के ट्रेनिंग प्रदान की जाती है। चीन अपने सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2.5 फीसद व्यावसायिक षिक्षा पर खर्च करता है जबकि भारत चीन की तुलना में तो काफी कम और अपनी जीडीपी का मामूली धन ही खर्च करता है। यही कारण है कि कौषल विकास के मामले में मात्रा भी सीमित रह जाती है और गुणवत्ता भी एक सवाल बनकर रह जाता है। जिस सुषासन की परिपाटी कौषल विकास के रास्ते अनवरत् करने का प्रयास होता है उसमें लड़ाई अधूरी रह जाती है। स्किल, स्केल और स्पीड पर काम करने की बात सरकार करती है साथ ही युवाओं को कौषल युक्त बनाने की जद्दोजहद में भी दिखाई देती हैं मगर व्यावहारिक पक्ष यह है कि स्पीड कछुए की चाल हो जाती है और स्थिति इंच भर आगे-पीछे की बन कर रह जाती है। खास यह भी है कि भारत को दस फीसद से अधिक विकास दर चाहिये ताकि 2024 तक पांच ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था बन सके। यहां भी दो टूक यह है कि इस गगनचुम्भी विकास दर और इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था को आसमान देने के लिये कौषल विकास को व्यापक और व्यावसायिक बनाना होगा।
स्किल इण्डिया कार्यक्रम सुषासन को एक अनुकूल जगह दे सकता है बषर्ते कि यह अपने उद्देष्य में खरा उतरे। इस कार्यक्रम का उद्देष्य वर्श 2022 तक कम से कम 30 करोड़ लोगों को कौषल प्रदान करना है। मुहाने पर खड़ा 2022 और कौषल विकास की स्थिति को देखते हुए यह संतुलन डांवाडोल दिखाई देता है। वर्श 2014 में जब कौषल विकास उद्यमिता मंत्रालय का निर्माण किया गया तब यह उम्मीद से लदा हुआ था और अब यह बोझ से दबा हुआ है। कौषल विकास कई चुनौतियों से जूझ रहा है जिसमें अपर्याप्त प्रषिक्षण क्षमता, उद्यमी कौषल की कमी, उद्योगों की सीमित भूमिका तो बुनियादी कारण हैं ही साथ ही इसके प्रति कम आकर्शण और नियोक्ताओं का रवैया भी ठीक नहीं है। इतना ही नहीं कौषल केन्द्रों पर कुषलता या हुनर के स्थान पर काफी हद तक प्रमाणपत्र बांटने पर ही जोर है। बाजार स्पर्धा से भरा है जहां सिक्का तब खनकता है जब काबिलियत फलक पर होती है। ऐसे में प्रमाणपत्र के भरोसे रोज़गार की अपेक्षा करना न तो सही है और न ही सम्भव है। इसी भारत में आंकड़े यह भी बता चुके हैं कि हर चार में तीन बीटेक की डिग्री धारक और हर दस में से नौ डिग्री धारक काम के लायक नहीं है तो जरा सोचिये कि जिन्हें केवल कौषल विकास के नाम पर प्रमाण पत्र को ही योग्यता थमा दिया गया हो उनके रोजगार का क्या हाल होगा। सवाल है कि सरकार को क्या करना चाहिए। षिक्षा एवं प्रषिक्षण खर्च में वृद्धि करना चाहिए। हालांकि पिछले बजट में इस दिषा में वृद्धि दिखाई देती है। दो टूक यह भी है कि चीन और भारत की जनसंख्या आस-पास ही है जबकि कौषल विकास पर खर्च में जमीन-आसमान का अंतर है इसे पाटना होगा। प्रषिक्षण संस्थानों का भी मूल्यांकन समय-समय पर होना चाहिए साथ ही कौषल सर्वेक्षण भी होता रहे। हालांकि भारत को चीन, जापान, जर्मनी, ब्राजील, सिंगापुर समेत कई देषों के व्यावसायिक तथा तकनीकी षिक्षा माॅडल से प्रेरणा लेनी चाहिए मगर सच यह भी है कि इन देषों के समक्ष भी भारत की तरह ही कमोबेष समस्याएं हैं।
कौषल विकास के लिये पथ सुषासन से भरा बनाने के लिये समाज के सभी वर्गों का ताना-बाना इसमें षामिल होना चाहिये। यूएनडीपी की एक रिपोर्ट पहले भी कह चुकी है कि अगर अमेरिका की भांति भारत के श्रम बाजार में कुल महिलाओं की भागीदारी 70 फीसद तक पहुंचाई जाये तो आर्थिक विकास दर को 4 फीसद से अधिक बढ़ाया जा सकता है। कौषल विकास को ऊंचाई देने के लिये आधी दुनिया से भरी नारी को भी इस धारा में बड़े पैमाने पर षामिल करना होगा। ताकि उन्हें हुनरमंद बनाकर न केवल देष में विकास की गंगा बहायी जा सके बल्कि आत्मनिर्भर भारत के सपने को भी साकार किया जा सके। इतना ही नहीं लोकल फाॅर वोकल को भी एक नया आसमान मिले और उन्हें समाज में स्थान। सब के बावजूद फिलहाल मौजूदा समय में भारत में बेरोज़गारी एक बड़ी समस्या तो बनकर उभरी है। इस समस्या के लिये बड़ी वजह कौषल विकास की कमजोर स्थिति को भी माना जा सकता है। इस कमी से निपटने के लिये भारत विभिन्न देषों एवं पूर्वी एषियाई देषों से प्रेरणा ले सकता है साथ ही इस बात पर भी जोर दे सकता है कि स्थानीय समस्याओं पर से कैसे निपटा जाये। देष की युवा आबादी बड़ी है सबको एक साथ कौषल युक्त बनाना चुनौती तो है पर रास्ता चिकना करके स्किल, स्केल और स्पीड तीनों को मुकाम दिया जा सकता है।
दिनांक :6 अक्टूबर, 2021
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपrर नत्थनपुर
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