Thursday, December 30, 2021

सरकार की जवाबदेही और सुशासन

मानव सभ्यता की भांति सुषासन का विकास भी इसके साहित्य, इतिहास और दर्षन में निहित रहा है। गौरतलब है कि मानव, प्रबंध और षासन का मुख्य केन्द्र बिन्दु है। षासन चलाने वाली सरकारें इन्हीं मानव सभ्यता को ध्यान में रखकर अपनी सुषासनिक गतिविधियों को अंजाम देती हैं और यह इनकी जिम्मेदारी भी है और जवाबदेही भी। भारत जैसे विषाल और विविधतापूर्ण समाज में संसाधनों और सेवाओं का न्यायपूर्ण वितरण सभी की समृद्धि का मूल मंत्र है। गांधी जी ने सत्य पर अनेकों प्रयोग किये और उनका जीवन ही सत्य और जवाबदेही से घिरा रहा। गांधी दर्षन से उदित तमाम विचार यह संदर्भित करते हैं कि सरकार को अपनी भूमिका में कितना बने रहने की आवष्यकता है। सर्वोदय की कसौटी पर सुषासन का पैमाना कहीं अधिक सारगर्भित है जहां लोक प्रवर्धित विचारधारा को अवसर मिलता है, संवेदनषील तरीके से व्यवस्था को चलायमान करने हेतु ऊर्जा का संचार होता है और लोक कल्याणकारी भावना से निहित मानव सभ्यता और लोक समाज को ऊंचाई देना इसमें षामिल है। वैसे नागरिकों के प्रति जवाबदेही लोकतांत्रिक षासन का बुनियादी सिद्धांत हैं जो सरकारें नागरिक की हितधारक होती हैं वहीं सुषासन की कसौटी पर खरी और जवाबदेही में अव्वल होतीे हैं। जीवन जब आर्थिक कठिनाईयों से दो-चार होता है तब सरकार की जवाबदेही तुलनात्मक बढ़ जाती है। महंगाई की मार हो या युवाओं के सामने बेरोजगारी की समस्या या फिर गरीबी ही क्यों न हो उक्त समस्याएं सुषासन की राह में किसी कांटे से कम नहीं है। गौरतलब है कि थोक महंगाई दर बीते एक साल की तुलना में अपने उच्चत्तम स्तर पर है। आंकड़े इंगित करते हैं कि दिसम्बर 2020 में थोक महंगाई दर 1.95 प्रतिषत की बढ़त लिऐ हुए था जो दिसम्बर 2021 में ऊंची छलांग के साथ 14.23 प्रतिषत पर पहुंच चुका है। खुदरा महंगाई के मामले में यह प्रतिषत 4.91 है। जाहिर है महंगाई का यह स्वरूप सरकार की जवाबदेही और सुषासन दोनों को चुनौती दे रहा है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने बीते 14 दिसम्बर को कहा था कि मुद्रा स्फीति की दर मुख्यतः खनिज तेल, कच्चा तेल, गैस, खाद्य उत्पादक और मूल धातुओं आदि की कीमतों में वृद्धि के चलते गत वर्श के इसी माह की तुलना में बढ़ी है। इतना ही नहीं खाद्य सूचकांक के मामले में भी पिछले महीने की 3.06 प्रतिषत के अनुपात में यह दोगुना से अधिक 6.70 फीसद पर पहुंच गया है। महंगाई ऐसी डायन है जो किसी का घर नहीं छोड़ती और मानव सभ्यता का पीछा यह हमेषा करती रही है। सवाल है कि इसे नियति मान लें या सरकार की नीतियों में खोट।

जवाबदेही का सिद्धांत सभ्यता जितना ही पुराना है। यह एक ऐसा दायित्व है जिसमें कार्य को अक्षरतः पूरा करना षामिल है। सरकार के समूचे कामकाज के लिए वित्तीय जवाबदेही बेहद महत्वपूर्ण है। संसद में पारित किये जाने वाले बजट और उसके खर्च से होने वाले विकास के प्रति सुषासनिक दृश्टिकोण इस जवाबदेही को पूर्ण करती है। देष और नागरिक को क्या चाहिए इसकी समझ उसी जवाबदेही का हिस्सा है। बेरोजगारी, गरीबी, षिक्षा में कठिनाई, भ्रश्टाचार और विकास में कमी जैसी तमाम समस्याओं का निपटारा समय से न हो तो कठिनाई निरंतरता ले लेती है। ऐसा नहीं है कि बुनियादी विकास मसलन षिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा, सड़क, बिजली, पानी आदि में कमोबेष परिवर्तन नहीं हुआ है बावजूद इसके जिम्मेदारी का परिप्रेक्ष्य यहां भी रोज चुनौती में रहता है। समावेषी विकास और सतत विकास तीन दषक से चलायमान है फिर भी गरीबी और भुखमरी जाने का नाम नहीं ले रही है। साल 2020 के मानव विकास सूचकांक में 189 देषों में 131वें स्थान पर भारत का होना और साल 2021 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 101वें स्थान पर भारत की स्थिति इस बात को पुख्ता करती है। भारत ने ई-षासन को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं लेकिन केन्द्र, राज्य, जिला और स्थानीय षासन के बीच इंटर कनेक्टिविटी से सम्बंधित जटिलतायें अभी भी मौजूद हैं। संयुक्त राश्ट्र के सामाजिक और आर्थिक मामलों के विभाग (यूएनडीईएसए) के द्वारा साल 2020 के ई-षासन सर्वेक्षण में भारत को सौवां स्थान दिया है। पड़ताल बताती है कि ई-षासन विकास सूचकांक के मामले में भारत 2018 में 96वें स्थान पर था। विवेचनात्मक संदर्भ में देखें तो 2016 में 107वां, 2014 में 118वां स्थान रहा। गणना बताती है कि भारत 2014 के मुकाबले 2018 में 22 स्थानों की उछाल लिया मगर यह उछाल बरकरार न रहकर 2020 में सौवें स्थान पर चली गयी। ई-षासन पारदर्षिता का एक बेहतर उपाय है साथ ही एक ऐसा उपकरण जिसमें कार्य संचालन की गति को तीव्रता मिलती है। देष की ढ़ाई लाख पंचायतों में अभी आधी संख्या ई-कनेक्टिविटी से अभी भी वंचित है। ई-भागीदारी के मामले में भारत 2020 में 29वें स्थान पर रहा जबकि 2018 में यह 15वें स्थान पर था। उक्त आंकड़े यह दर्षाते हैं कि लोकतांत्रिक देष में लोक कनेक्टिविटी और ई-भागीदारी को कमतर होने का मतलब तय जवाबदेही के साथ सामाजिक बदलाव में रूकावट और सुषासन के लिए भी बढ़ी चुनौती है।

कोरोना महामारी की दूसरी लहर में साढ़े तीन लाख से ज्यादा लोगों को जान गवानी पड़ी जिसमें लगभग 88 फीसद लोग 45 वर्श और इससे ज्यादा उम्र के थे। जाहिर है यह उम्र परिवार चलाने और संभालने की होती है। भारत में मध्यम वर्ग की स्थिति रोज कुंआ खोदने और रोज पानी पीने वाली रही है। ऐसे में कोरोना के षिकार लोगों के परिवार की आजीविका आज किस स्थिति में है और इसके प्रति कौन जवाबदेह होगा साथ ही इनके लिए षासन ने क्या कदम उठाया यह किसी अज्ञात विशय से कम नहीं है। कोरोना त्रासदी की कड़वी सच्चाई यह है कि स्वास्थ और अर्थव्यवस्था दोनो बेपटरी हुए। एक अनुमान तो यह भी है कि लाॅक डाउन के कारण कम से कम 23 करोड़ भारतीय गरीबी रेखा के नीचे पहुंच गये हैं। विष्व असमानता रिपोर्ट भी यह इंगित करती है कि भारत में 50 प्रतिषत आबादी की कमाई इस वर्श घटी है। रिपोर्ट का लब्बो-लुआब यह भी है कि अंग्रेजों के राज में 1858 से 1947 के बीच भारत में असमानता अधिक थी। उस दौरान 10 प्रतिषत लोगों का 50 प्रतिषत आमदनी पर कब्जा था। हालांकि वह दौर औपनिवेषिक सत्ता का था और लोकतंत्र की अहमियत और महत्व से अनंत दूरी लिए हुए था। स्वतंत्रता के पष्चात् 15 मार्च 1950 को प्रथम पंचवर्शीय योजना का षुभारम्भ हुआ और असमानता का आंकड़ा घट कर 35 प्रतिषत पर आ गया। उदारीकरण का दौर आते-आते स्थितियां कुछ और बदली विनियमन में ढील और उदारीकरण नीतियों से अमीरों की आय बढ़ी वहीं इसी उदारीकरण से षीर्श एक फीसद सबसे अधिक फायदा हुआ। रही बात मध्यम और निम्न वर्ग की तो यहां भी इनकी दषा में सुधार की रफ्तार कहीं अधिक सुस्त रही। जाहिर है यह सुस्ती गरीबी को फूर्ति देती है। यहां स्पश्ट कर दें कि विष्व असमानता रिपोर्ट 2022 को ध्यान में रखकर उक्त बातें कहीं गयी हैं जिसमें दुनिया के 100 जाने-माने अर्थषास्त्री असमानता को लेकर अध्ययन करते हैं और रिपोर्ट देते हैं। 

जवाबदेही का सरोकार केवल सरकार से नहीं है इसमें जनता भी षामिल है। मौजूदा समय में लोकतंत्र में हिस्सेदारी को लेकर जनता को भी कुछ और कदम बढ़ाना चाहिए। वोट प्रतिषत कम बने रहने की स्थिति यह जताती है कि जनता का एक वर्ग अपने ही खिलाफ काम कर रहा है। कौन, किसके प्रति जिम्मेदार है यह कोई यक्ष प्रष्न नहीं है साथ ही किस बात के लिए जवाबदेही है इससे भी लोग अनजान नहीं है। यदि किसी चीज की कमी है तो अपने दायित्व और जवाबदेही पर खरे उतरने की। चुनाव आयोग लोकतंत्र का संरक्षक है और देष में चुनाव एक लोकतांत्रिक महोत्सव है। वोटर आईडी को आधार से लिंक किये जाने वाला कैबिनेट का बीते 15 दिसम्बर 2021 को लिए गये फैसले से कह सकते हैं कि सरकार चुनाव आयोग के माध्यम से फर्जी मतदान रोकने को लेकर अपनी जवाबदेही पूरी करने का प्रयास कर रही है। गौरतलब है कि चुनाव आयोग की मांग पर यह फैसला लिया गया। इसके अलावा भी कई संदर्भ मसलन अब मतदाता सूची में दर्ज होने के लिए साल में 4 तारीखें होंगी। अब तक यह 1 जनवरी तय थी। जाहिर है 1 जनवरी तक जिसकी उम्र 18 वर्श है वह वोटर के तौर पर रजिस्टर किया जाता था और जो 2 जनवरी को उम्र पूरी करता था उसे एक साल का इंतजार करना पड़ता था। सुषासन के कई पहलू हैं और सुषासन लोक विकास की कुंजी भी है। जन भागीदारी के साथ पारदर्षिता, दायित्व और जवाबदेही का अच्छा उदाहरण है। 24 जुलाई 1991 के उदारीकरण के बाद देष में कई सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन हुए और सरकार अपनी जवाबदेही को लेकर चैकन्नी भी हुई नतीजन जनता को सामाजिक-आर्थिक न्याय के साथ तमाम अधिकार प्रदान किये गये। सूचना का अधिकार 2005 सरकार की जवाबदेही और सुषासन की दृश्टि से उठाया गया एक बेहतर कदम है। इसी जवाबदेही को देखते हुए सिटीजन चार्टर, खाद्य सुरक्षा अधिनियम, षिक्षा का अधिकार लोकपाल आयुक्त समेत कई विशय फलक पर आये। फिलहाल मानव सभ्यता और सरकार की जवाबदेही का ताना-बाना एक अनवरत् प्रक्रिया है। यह एक-दूसरे के लिए चुनौती नहीं बल्कि पूरक है। 

दिनांक : 16 दिसम्बर, 2021


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

No comments:

Post a Comment