विगत् कुछ दषकों में चुनावों में धन बल, बाहुबल और आपराधिक तत्वों का प्रयोग बढ़ा है और इस बाढ़ ने लोकतन्त्र को चोटिल किया है। जाहिर है चुनाव में निश्पक्षता और पारदर्षिता के बगैर लोकतंत्र की सफलता सुनिष्चित नहीं की जा सकती। चार दषक का चुनावी सुधार यह बताता है कि इसके लिए निरंतर प्रयास भी किया गया है। 1980 की तारकुण्डे समिति, 1989 की दिनेष गोस्वामी कमेटी व 1999 की विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट और टीएन षेशन की सिफारिषें आदि समेत विभिन्न चुनाव सुधार समितियां इस मामले में मील का पत्थर रही हैं। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम और आचार संहिता में हुए बदलाव भी इसी पारदर्षिता के परिचायक हैं। हर चुनाव अपनी एक चुनौती रखता है और सरकार और संसद की यह जिम्मेदारी है कि ऐसे नियमों और विनियमों का निर्माण किया जाये जिससे लोकतंत्र के संरक्षक चुनाव आयोग के पास चुनावी चुनौतियों से निपटने हेतु भरपूर कानूनी ताकत उपलब्ध रहे। इसी क्रम में केन्द्रीय कैबिनेट ने चुनाव सुधार से जुड़े एक नये विधेयक को बीते 15 दिसम्बर को मंजूरी दी है जिसके अन्तर्गत वोटर आईडी कार्ड को आधार नम्बर से जोड़ा जायेगा। हालांकि आधार को वोटर आईडी से जोड़ने का फैसला स्वैच्छिक होगा। जाहिर है सरकार ने चुनाव प्रक्रिया में एक बड़े सुधार का इरादा जता रही है। गौरतलब है कि सरकार ने चुनाव आयोग की सिफारिष के आधार पर ही ये फैसला किया है। साफ है कि आधार का वोटर आईडी से लिंक हो जाने से फर्जी वोटर कार्ड से जो धांधली होती है उस पर लगाम लगायी जा सकेगी।
दरअसल आधार कार्ड एक ऐसा कार्ड है जिसका वास्तव में एक उद्देष्य नहीं है। वोटर आईडी को जोड़ने से पहले आधार कई आयामों से लिंक किया जा चुका है। आधार कार्ड के अभाव में सरकारी योजना का लाभ उठाना सम्भव नहीं है। आधार कार्ड गैस कनेक्षन, राषन कार्ड, जनधन योजना, सरकारी सब्सिडी, पहचान पत्र, बैंक खाते, इनकम टैक्स आदि से पहले ही जोड़े जा चुके हैं। इतना ही नहीं निवास के प्रमाण पत्र के लिए भी आवष्यक दस्तावेज जो वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए होम लोन या पर्सनल लोन आदि हेतु पुख्ता प्रमाण माना जाता है। देखा जाये तो कार्ड एक, फायदे अनेक की तर्ज पर आधार कार्ड अपनी पहचान रखता है। अब इसी तर्ज पर वोटर आईडी को भी लिंक करने की कवायद को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। वोटर आईडी कार्ड एक ऐसा दस्तावेज है जो अपने ढंग का पहचान बताता है और लोकतंत्र की परिपाटी में अहम भूमिका निभाता है। पासपोर्ट बनवाते समय दो पहचानपत्रों में वोटर आईडी को भी प्रमुखता दी जाती है। अब इसे आधार से लिंक करने पर इसकी सारगर्भिता और प्रासंगिकता दोनों में इजाफा हो सकता है। साथ ही चुनाव सुधार की दिषा में भी एक उम्दा कदम होगा। हालांकि जिस आधार को इतनी महत्ता मिली है उसी की वैधानिकता पर सुनवाई करते हुए 26 सितम्बर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आधार संवैधानिक रूप से सही नहीं है और कुछ बदलावों के साथ इसे लागू रखा जा सकता है। गौरतलब है कि कोर्ट ने सिम लेने, एडमिषन हेतु व अकाउंट खोलने के लिए आधार की अनिवार्यता को खत्म कर दिया था।
चुनाव देष में लोकतंत्र का महापर्व होता है। मौजूदा समय में देष में 90 करोड़ वोटर हैं। गौरतलब है कि दिनेष गोस्वामी समिति ने पहली बार मतदाताओं को परिचय पत्र उपलब्ध कराने की सिफारिष की थी। पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त टीएन षेशन ने भी इस बात पर जोर दिया था और पहचान पत्र की षुरूआत सम्भव हुई। अगस्त 1993 में भारत के चुनाव आयोग ने मतदाता सूची की सटीक संदर्भ और सुधार को ध्यान में रखते हुए मतदाता धोखाधड़ी को रोकने हेतु फोटो पहचान पत्र बनाने का आदेष दिया। मई 2000 में आयोग द्वारा इलेक्टर्स फोटो आइडेंटिटी कार्ड (ईपीआईसी) के लिए संषोधित दिषा-निर्देष जारी किये गये। विदित है कि मौजूदा समय में मतदाता पहचान पत्र आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। आधार और वोटर आईडी जोड़ने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निजता के अधिकार के फैसले को भी ध्यान में रखा जायेगा। निजता का अधिकार संविधान के भाग-3 के अन्तर्गत अनुच्छेद 21 में निहित है। संविधान संरक्षक उच्चत्तम न्यायालय को आधार कार्ड और अन्य प्रक्रिया से लिंक पर निजता का अधिकार की चिंता रही है। सरकार चुनाव आयोग को ज्यादा अधिकार देकर लोकतंत्र की गरिमा और प्रतिश्ठा को और बेहतर करना चाहती है। इतना ही नहीं अब वोटर बनने के लिए साल में 4 तारीखों को कटआॅफ माना जायेगा ऐसा चुनाव आयोग की मांग भी थी। पहले हर साल 1 जनवरी या उससे पहले 18 वर्श के होने वाले युवाओं को वोटर के तौर पर रजिस्टर होने की इजाजत थी और 2 जनवरी जिसकी उम्र 18 वर्श हो रही थी उसे एक साल इंतजार करना पड़ता था पर अब साल में 4 तारीखें होने से मतदाता लम्बी प्रतीक्षा नहीं करेंगे।
चुनाव सुधार को लेकर कई सवाल या तो उठे नहीं है या उठाए नहीं गए हैं। मताधिकार की आयु 1989 में 18 वर्श किया गया। निर्वाचन आयोग को बहुसदस्यीय बनाया गया। चुनाव को बैलेट पेपर के बजाय इलेक्ट्राॅनिक वोटिंग मषीन से कराया जाने लगा साथ ही आचार सहिंता में भी बदलाव होता रहा। चुनाव में आपराधिक गतिविधियों से संलग्न उम्मीदवारों को रोकने के लिए देष की षीर्श अदालत ने भी कई निर्देष दिए है बावजूद इसके लोकतन्त्र के इस पावन महोत्सव में विसंगतियां स्थान ले ही लेती हैं। इन्हीं विसंगतियों को लेकर चिंताए परवान चढ़ती है और साफ-सुथरा चुनावी परिदृष्य विकसित करने हेतु नित नये प्रयास किए जाते है। इन्हीं में से एक मौजूदा समय में कैबिनेट द्वारा स्वीकृत चुनावी सुधार वोटर आईडी को आधार से जोड़ने वाला संदर्भ देखा जा सकता है।
फिलहाल दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में चुनाव सम्पन्न कराना हमेषा एक बड़ा काज रहा है और निरंतर मतदाताओं की बढ़ती संख्या इसकी पारदर्षिता और निश्पक्षता को बनाये रखने के लिए चुनौती भी। चुनाव एक निरंतर प्रवाहषीलता प्रक्रिया है समय के साथ यहां भी सुधार और बदलाव की आवष्यकता रही है इसी की एक कड़ी आधार कार्ड से वोटर आईडी को जोड़ना भी है। इन सबके पीछे लोकतंत्र की मजबूती छुपी है। जाहिर है चुनाव आयोग के पास जितने सारगर्भित आयाम होंगे लोकतंत्र की सुरक्षा उतनी ही पैमाने पर की जा सकेगी। 136 करोड़ की जनसंख्या वाले देष में सब कुछ एकाएक नहीं हो सकता मगर सजग प्रहरी की भूमिका में निर्वाचन आयोग को रहना होता है। हालांकि वोटर आईडी को आधार से जोड़ने का फैसला स्वैच्छिक होगा ऐसे में यह किस पैमाने पर सम्भव होगा इसका अंदाजा लगाना कठिन नहीं है। यदि इसे पूरी तरह सम्भव करना है तो मतदाताओं में विष्वास को बढ़ाना होगा और लोकतंत्र के प्रति नई उम्मीद और चेतना विकसित करनी होगी। राजनीतिक स्थिति को देखते हुए बड़ी तादाद में मतदाता मतदान करने से भी स्वयं को वंचित कर लेते हैं। रही बात आधार से लिंक की तो इसे लेकर भी कितनी सफलता मिलेगी यह वक्त ही बतायेगा। बावजूद इसके कैबिनेट की इस पहल को सुषासनिक बनाने हेतु और कदम उठाने की आवष्यकता होगी।
दिनांक : 17 दिसम्बर, 2021
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
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