Thursday, December 30, 2021

समतल नहीं ई-गवर्नेंस से आगे की राह

जब कभी देश में ई-गवर्नेंस की बात होती है तब नये डिजाइन और सिंगल विंडो संस्कृति मुखर हो जाती है। नागरिक केन्द्रित व्यवस्था के लिए सुषासन प्राप्त करना एक लम्बे समय की दरकार रही है। ऐसे में ई-षासन इसका बहुत बड़ा आधार है। यह एक ऐसा क्षेत्र है और एक ऐसा साधन भी जिसके चलते नौकरषाहीतंत्र का समुचित प्रयोग करके व्याप्त कठिनाईयों को समाप्त किया जा सकता है। देखा जाय तो नागरिकों को सरकारी सेवाओं की बेहतर आपूर्ति, प्रषासन में पारदर्षिता की वृद्धि के साथ व्यापक नागरिक भागीदारी के मामले में ई-षासन कहीं अधिक प्रासंगिक है। ई-षासन, स्मार्ट सरकार का भी एक ताना-बाना है। तकनीक किस सीमा तक षासन-प्रषासन को तीव्रता देती है और किस सीमा तक संचालन को प्रभावित करती है। यदि इसे असीमित कहा जाये तो अतार्किक न होगा। प्रौद्योगिकी मानवीय पसन्दों और विकल्पों द्वारा निर्धारित परिवर्तन का अनुमान ही नहीं बल्कि एक सषक्त परिणाम भी ई-षासन से पाया जा सकता है लेकिन इस दिषा में अभी और भी काम करने की अवष्यकता है। ऐसे समावेषी विकास पर बल देने की जरूरत है जो इलेक्ट्राॅनिक सेवाओं, उत्पादों, उपकरणों और रोजगार के अवसरों समेत किसानों से सम्बंधित बुनियादी तत्वों को आपेक्षित बढ़ावा दे सकें। गौरतलब है साल 1992 में आठवीं पंचवर्शीय योजना समावेषी विकास की धुरी पर आगे बढ़ी थी और इसी वर्श भारत में सुषासन की नींव पड़ी थी। 1991 के उदारीकरण के बाद जिस अपेक्षा और अवधारणा के अंतर्गत भारत आर्थिक व वैज्ञानिक दृश्टिकोण से युक्त होकर नागरिक केन्द्रित धारा के साथ आगे बढ़ा था उसका प्रवाह उतना सकारात्मक नहीं दिखाई दिया। ई-गवर्नेंस को लागू करने सम्बंधी तकनीकी अवसंरचना, महत्वपूर्ण मुद्दों की पहचान, कुषल मानव संसाधन एवं ई-साक्षर नागरिकों की आवष्यकता पड़ती है। हालांकि साल 2006 में राश्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना के चलते काॅमन सर्विस सेंटरों के जरिये आम नागरिकों को सभी सरकारी सेवाओं पर पहुंच प्रदान करते हुए सक्षमता, पारदर्षिता व विष्वसनीयता सुनिष्चित करने का प्रयास हुआ था जो आज भी पूरा नहीं है। 

व्यवस्था उपयोग का बड़ा साधन ई-गवर्नेंस जो मोबाइल, इंटरनेट और बिजली के संयोजन पर निर्भर है। नीतियां कितनी भी षोध परख हों मगर जिस माध्यम से क्रियान्वयन होना है यदि उसकी आधारभूत संरचना कमियों से युक्त हो तो नीतियों को जनकेन्द्रित कर पाना मुष्किल होता है। देष में साढ़े छः लाख गांव और ढ़ाई लाख पंचायते हैं जहां बिजली और इंटरनेट कनेक्टिविटी एक आम समस्या है। इंटरनेट एण्ड मोबाइल एसोसिएषन आॅफ इण्डिया से यह जानकारी मिलती है कि भारत में पूरी दुनिया के मुकाबले सबसे सस्ता इंटरनेट पैक है मगर कड़वी सच्चाई यह भी है कि यहां दो-तिहाई जनता इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं करती है। गौरतलब है कि 2017 तक भारत में केवल 34 फीसद आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल करती थी। संख्या की दृश्टि से वर्तमान में यह आंकड़ा 55 करोड़ पार कर गया है जिसे 2025 तक 90 करोड़ होने की सम्भावना जतायी गयी है। 136 करोड़ जनसंख्या वाले भारत में लगभग 120 करोड़ से अधिक मोबाइल उपभोक्ता हैं। जनसंख्या और मोबाइल के बीच केवल 16 करोड़ का अंतर है जबकि इंटरनेट वालों की संख्या कहीं अधिक पीछे है। वैसे इन आंकड़ों में कुछ जनसंख्या दो या तीन मोबाइल उपयोग करने वाली भी होगी। इंटरनेट पैक सस्ता है पर पहुंच फिर भी नहीं है इसके पीछे लोगों की आर्थिक स्थिति भी जिम्मेदार है। भारत में हर चैथा व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे है और इतना ही अषिक्षित भी। इसके अलावा आर्थिक से जुड़ी कई व्यावहारिक कठिनाईयों के चलते इंटरनेट कनेक्टिविटी दूर की कौड़ी बनी हुई है। इलैक्ट्राॅनिक उपकरण बिजली के आभाव में संचालित नहीं किये जा सकते। नगरीय क्षेत्रोें में भले ही बिजली जरूरतों को पूरा कर देती हो मगर गांव और दूर-दराज के इलाकों में इसका आभाव ई-षासन को प्रभावित कर रहा है। वाणिज्य मंत्रालय द्वारा स्थापित ट्रस्ट इण्डिया ब्राण्ड इक्विटी फाउंडेषन की रिपोर्ट से यह पता चलता है कि भारत दुनिया में बिजली उत्पादन के मामले में तीसरा देष है और खपत में पहला। भले ही जापान और रूस से बिजली उत्पादन के मामले में भारत आगे है मगर सभी तक इसकी पहुंच अभी भी पूरी तरह सम्भव नहीं है और इसका सीधा असर मोबाइल और इंटरनेट सेवा पर पड़ रहा है जो ई-षासन के आगे की राह को मुष्किल बनाये हुए है। बिजली उत्पादन में चीन पहले और अमेरिका दूसरे स्थान पर है। 

देखा जाय तो ई-षासन के उदय के पीछे षासन का जटिल होना और सरकार से नागरिकों की अपेक्षाओं में वृद्धि ही रही है। जबकि इसका उद्देष्य आॅनलाइन के माध्यम से सेवाओं की आपूर्ति करना है, नागरिकों को बेहतर सेवा प्रदान करना, पारदर्षिता और जवाबदेहिता को बढ़ावा देना, षासन दक्षता में सुधार सहित व्यापार और उद्योग के साथ तमाम प्रक्रियागत संदर्भों को तीव्रता देना षामिल था। जबकि ई-षासन के चार स्तम्भों में नागरिक, प्रक्रिया, प्रौद्योगिकी और संसाधन निहित हैं। आज विष्व के विभिन्न देषों के मध्य सिमटती दूरियों का कारण सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार को माना जाता है जबकि देष के भीतर सेवा आपूर्ति में तत्परता और नागरिकों को षीघ्र खुषियां देने के लिए ई-षासन को देखा जा सकता है। किसानों के खाते में सम्मान निधि का स्थानांतरण इसका एक छोटा सा उदाहरण है। ई-लर्निंग, ई-बैंकिंग, ई-अस्पताल, ई-याचिका और ई-अदालत समेत कई ऐसे ई देखे जा सकते हैं जो षासन को सुषासन की ओर ले जाते हैं। जब भारत सरकार ने 1970 में इलेक्ट्राॅनिक विभाग की स्थापना की तो ई-षासन की दिषा में यह पहला बड़ा कदम था। जबकि 1977 के राश्ट्रीय सूचना केन्द्र के चलते देष के सभी जिला कार्यालयों को कम्प्यूटरीकृत करने के लिए जिला सूचना प्रणाली कार्यक्रम षुरू किया गया। ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देने की दिषा में 1987 में लाॅन्च राश्ट्रीय उपग्रह आधारित कम्प्यूटर नेटवर्क (एनआईसीएनईटी) एक क्रान्तिकारी कदम था। जिसका मुखर पक्ष 1991 के उदारीकरण के बाद देखने को मिलता है। मगर आधारभूत कमियों के चलते यह जिस मात्रा में होना चाहिए उतना हुआ नहीं। गौरतलब है भारत में ई-षासन व्यापक सम्भावनाओं से भरा हुआ है।

सरकार के समस्त कार्यों में प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग ई-गवर्नेंस कहलाता है जबकि न्यूनतम सरकार और अधिकतम षासन सुषासन की एक विचारधारा है। जहां नैतिकता, संवेदनषीलता और जवाबदेही की भावना भी निहित होती है। भारत दुनिया में उभरने वाली अर्थव्यवस्था थी कोरोना के चलते व्यवस्था बेपटरी हो गयी है। देष बरसों पीछे जाता दिखाई दे रहा है जिसका असर ई-गवर्नेंस पर पड़ना तय है। मोबाइल षासन का दौर भारत में भी तेजी से बढ़ा है और इसी के चलते ई-व्यवस्था भी बढ़त बनाई है। मंदी और बंदी के इस दौर में इसी ई-व्यवस्था ने कुछ हद तक ई-षिक्षा को पटरी पर लाया है। ई-गवर्नेंस के कारण ही नौकरषाही का कठोर ढांचा नरम हुआ है। ई-गवर्नेंस का विस्तार सभी के लिए वरदान है। न्यू इण्डिया के लिए भी यह कारगर सिद्ध हो सकता है। ई-लोकतंत्र, ई-वोटिंग से लेकर ई-सिस्टम तक इसकी महत्ता को दिन-प्रतिदिन बढ़त के तौर पर देखा जा सकता है। देष भ्रश्टाचार के मकड़जाल से भी जूझ रहा है। ई-गवर्नेंस से भ्रश्टाचार कम करना, अधिक से अधिक जन सामान्य के जीवन में सुधार करना साथ ही षासन और जनता के बीच पारदर्षी लेन-देन होना भी सम्भव है। विकास के नये आयाम के रूप में ई-गवर्नेंस षासन की आगे की विधा है मगर रास्ता इसके आगे भी है। जब तक ग्रामीण इलाकों में कम्प्यूटर या मोबाइल उपकरण और इंटरनेट के प्रयोग के प्रसार को बल नहीं मिलेगा, डिजिटल असमानता को दूर नहीं किया जायेगा व देष के नागरिकों को डिजिटली साक्षर नहीं किया जायेगा तब तक ई-षासन अपने लक्ष्य से दूर रहेगा। स्थानीय भाशाओं, वेब सर्वर का विकास, ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्रों में तकनीक के विस्तार पर बल से ई-गवर्नेंस को सबलता मिलेगी। बावजूद इसके वर्तमान राह समतल नहीं है।

दिनांक : 13 नवम्बर, 2021


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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